शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

कविता :" गरीबी क्या होती है "

"गरीबी क्या होती है "

अरे वो क्या जाने गरीबी | 

कैसी होती है गरीबी ,

गरीबी तुम उनसे पूंछो | 

जिन्होंने गरीबी देखी है ,

गरीबी एक ऐसी चीज है |

जो एक इंसान को ,

नीचा बनाती है | 

गरीबी एक ऐसी चीज है ,

जो एक इंसान को | 

नीचे गिराती है ,

लेकिन गरीबी ही एक ऐसी चीज है |   

जिसको झेलने वालो के ,

हौसले सबसे ऊंचे होते है | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

कविता : "त्योहारों की शुरुआत "

"त्योहारों की शुरुआत "

हो गई है त्योहारों की शुरुआत | 

जिसमे दीपावली और दशहरा है खाश ,

मेले सब जायेगे बच्चे हो या बूढ़े | 

सब मौज मस्ती करके आयेगे ,

खिलौने होंगे और मिठाई विभिन्न वाइराइटी | 

जिसमे खिलौने की नहीं होगी गांरटी ,

सब लोग इकट्ठे और होंगे भरमार |  

क्यों की त्योहारों का है जो ये भण्डार ,

और भारत का है यह मुख्य त्यौहार | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

कविता: "पुरानी झलक देखा "

"पुरानी झलक देखा "

पुरानी झलक देखा | 

आज मै अपने गाँव को अलग देखा ,

पर मैने पुरानी झलक देखा | 

वो सड़क , वो गलिया ,

बदल तो गयी है | 

पर उसमे चलने की ,

अंदाज वही है | 

पैन से बहता पानी ,

किसान और खेत की कहानी | 

बदल तो गयी है ,

लेकिन गाँव की आवाज वही है | 

नदी के पुल बदल गयी है ,

मेरे पुराने स्कूल बदल गये है |  

पर गाड़ियों और बच्चो की ,

शोर वही है | 

हा बहुत कुछ बदल गया ,

मेरे गाँव में | 

पर वही शाम और भोर वही है ,

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

कविता : "पुरानी यादें"

"पुरानी यादें"

आज उस चीज को | 

याद करके हसीं आती है ,

और मजाक सा लगता है | 

वो पुरानी बातें करके ,

आज भले ही भूल गए हो | 

लेकिन कुछ बातें अभी भी याद है ,

जैसे क्लॉस के समय | 

लंच करना , मैम का नकल करना ,

दिन बदलते गए | 

यादें हमारी बढ़ती गई ,

आज इतनी हो गई कि | 

अगर रोज लगातार बात करे ,

तो भी खत्म नहीं होगी | 

क्योकि पुरानी यादे होती है ,

कुछ ऐसी | 

जो कभी मिटाया नहीं जाता ,

मिट भी गया तो उसे याद भी नहीं किया जाता | 

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा : 11th 

अपना घर

 

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2021

कविता : सर्दी

 सर्दी

 सर्दी ने कर दिया परेशान | 

खास -खासकर शरीर हो गया बेजान ,

रात की नीद नहीं आती है | 

दिन में नाक बहुत सताती है ,

दवा भी हो गया बे असर |

ठीक करने की नहीं छोड़ी में कोई कसर ,

खाने में न लगता है मन  | 

 पुरे शरीर हो गया है भांग ,

सर्दी ने कर दिया परेशान | 

खास खासकर शरीर हो गया बेजान ,

कवि : कुलदीप  कुमार 

अपना घर

 

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

कविता : " मै कौन हूँ"

" मै कौन हूँ"

मै कौन हूँ | 

मुझे नहीं पता पर ,

एक आजाद पक्षी के तरह हूँ | 

मै हवाओ में टहलता हूँ ,

झरनों में खेलता हूँ | 

कठिन परिस्तिथियों से गुजरता हूँ ,

सूखे पत्तों के तरह बिखर जाता हूँ | 

लहरों के साथ गाता हूँ ,

मैं अंधकार में बदल जाता हूँ | 

मुझे नहीं पता पर ,

मैं एक आजाद पक्षी के तरह हूँ | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा :7th 

अपना घर

 

बुधवार, 22 सितंबर 2021

कविता : " हिन्द देश के बासी हम "

" हिन्द देश के बासी हम "

 हिन्द देश के बासी हम | 

हिंदी नहीं किसी से कम ,

पूरा जीवन हमने काटे | 

बोल -बोल कर हिंदी के सहारे ,

इसके आगे फिके सारे गम | 

हिंदी है हम हिंदी नहीं किसी से कम ,

क्या प्यारे -प्यारे शब्द निराले | 

अ से ज्ञ तक याद हमें है सारे ,

जोक भरे इतने शब्द हमारे |

जोश भरे है हमारे नारे ,

हिन्द देश के वासी हम | 

हिंदी नहीं किसी से कम ,

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सोमवार, 20 सितंबर 2021

कविता : "हिंदी दिवस "

"हिंदी दिवस "

 उन शब्दों की श्रृगार है हिंदी | 

जो हर हिदुस्तानियों के लब्जो पर भंडार है हिंदी ,

गहनों में सजावट है हिंदी |  

हर एक शब्दों में बनावट है हिंदी ,

सहज तरीके से बोले जाने वाली | 

फूल की किलकारी वह हिंदी ,

इस पावक दिवस पर | 

नई उंमग की उत्सव है हिंदी ,

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

 

रविवार, 19 सितंबर 2021

कविता: "जीवन की नयी शुरुआत "

"जीवन की नयी शुरुआत "

 हर एक सुबह जीवन की नयी | 

शुरुआत कराती है ,

और हर शाम व्याकुल सी दिखती | 

जैसे अपन दर्द  क्या कराती है ,

सुबह समय सूर्य की किरणे |  

अपने ऊपर जम के बिखरती है ,

एक -एक सुबह जीवन की नयी | 

शुरुआत कराती है ,

मन अपना लक्ष्य बनाती है | 

आगे बढ़ने के लिए ,

कवि : राज कुमार ,  कक्षा : 12th 

अपना घर


शनिवार, 18 सितंबर 2021

कविता : " भोर -भोर की है बात "

"  भोर -भोर  की है बात "

 भोर -भोर  की है बात | 

मै सोया था घर में टांग पसार ,

हल्की सी रौशनी आ रही थी | 

मेरे चेहरे के पास ,

मीच कर मै सोया आँख | 

बाहर चिड़ियाँ कर रही थी बात ,

मचा -मचा कर शोर | 

भर दिये थे मेरे कान ,

कह रही थी उठ जा जवान | 

कितनी सुन्दर सुबह है ,

मत  कर तू इसे बर्बाद | 

इससे कुछ सीख जाऐगा ,

मन कुछ नया लक्ष्य बनाएगा | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11TH 

 अपना घर  

शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

कविता : " धूप को देककर मौसम बदल कर "

" धूप को देककर मौसम बदल कर "

धूप को देककर मौसम बदल कर | 

आया जब सब बादलजम कर ,

लगे दिखाने अपना रंग -रूप | 

कहाँ चला गया न नजर आए थोड़ी भी धूप ,

हवाओं के संग उड़ता चला आया | 

हर घर और खेत में छा गया ,

गरज -मलक कर खूब वह बरसा | 

रात -दिन को कुछ भी न समझा ,

टीप -टिप और छम -छम की आवाजे आती रहीं | 

धूप को देककर मौसम बदल कर ,

आया जब सब बादल जम कर | 

कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 6th 

 अपना घर

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कविता : "हक"

"हक"

 हम से वह हक छीना गया | 

जिस पर मेरा हक था ,

मेरे पैरो को रोका गया | 

जिस पथ पर मेरा हक था ,

सब ने मुँह मोड़ लिया | 

मेरे चीखने व चिल्लाने पर ,

उसने हमारा घर उजाड़ दिया | 

जिस पर रहने का का हक था ,

उसने देश देश से निकाल दिया | 

जिस देश में रहने का हक था ,

जिस ने खून की नली बहा दी | 

उसी पर मेरा शक था ,

कवि : सुल्तान कुमार ,  कक्षा : 7th 

अपना घर

बुधवार, 8 सितंबर 2021

कविता: " आज मैं खुद को क्या कहु "

" आज मैं खुद को क्या कहु "

आज मैं खुद को क्या कहु | 

न रहने का तरीका आता ,

न बात करने का ढ़ग | 

पर हर कठिनाइयो में खड़े रहते हम ,

न खाने  का खाना रहता |  

न सोने के लिए घर ,

फिर भी हौसलों से बढ़ते रहे हम | 

आज जो भी हूँ ,

हर कठिनाइयो से गुजरा हूँ | 

मुझे माता -पिता और शिक्षक का साथ मिला ,

आज मैं खुद को क्या कहु | 

कवि : रविकिशन कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर 

           

सोमवार, 6 सितंबर 2021

कविता : "चलना सिखाया "

"चलना सिखाया "

कभी बचपन में  मम्मी ने उँगली | 

पकड़ कर चलना सिखाया तो ,

कभी पापा ने | 

जब सहारा मिला मम्मी -पापा का तो ,

घुटने पर गुड़कर चलना सिखा तो | 

कभी टीचर ने कदम पे  कदम मिलाकर ,

चलना सिखाया तो | 

कभी भैया लोगों ने जीवन की राह पर ,

चलना सिखाया तो | 

कभी दोस्तों ने उत्साह बढ़ाया ,

कुछ  कर के दिखाने का | 

कवि : सनी कुमार ,कक्षा : 10th 

अपना घर

शनिवार, 4 सितंबर 2021

कविता : " मै अब भी याद करता हूँ उस पल को "

" मै अब भी याद करता हूँ उस पल को "

मै अब भी याद करता हूँ उस पल को | 

जब मै घुठनों के बल चलता था ,

मुझे याद है वह दिन | 

जब खटिए से गिर जाता था ,

मुझे याद है वह दिन | 

जब मै मिट्टी से सना रहता था ,

उसे डर था कि गिर | 

न जाए कही हम ,

इसलिए उँगली पकड़ चकता था | 

मै अब भी याद करता हूँ उस पल को ,

कवि : सुल्तान कुमार 

अपना घर

बुधवार, 1 सितंबर 2021

कविता : "किस्मत "

"किस्मत "

किस्मत से है हारे ये |

पर सपने है सवारे ये ,

दूर -दूर पैदल चलकर | 

आँखों में उम्मीद को लेकर ,

बढ़ रहे है मंजिल की ओर | 

दिन में पापा की सिर्फ एक रोजी ,

जो लाता  घर शाम की रोटी | 

पर न है हारे ये ,

पर सपनो को सवारे ये | 

समाज से आगे चलकर ,

घर वाले से लड़कर | 

जाना चाहते है उस छोर ,

दिल में  आशा लेकर | 

बढ़ रहे है  मंजिल के ओर ,

कवि : देवराज कुमार 

अपना घर

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

कविता :"यह मौसम है बहुत बेगाना "

"यह मौसम है बहुत बेगाना "

यह मौसम है बहुत बेगाना | 

जब चाहिए तब हो  जाता अनजाना ,

गर्मी में हाल है बेकार | 

सर्दी में लोग करते है आराम ,

बरसात का मौसम है प्यारा | 

यही होता है एक मात्र सहारा ,

मौसम है बहुत बेगाना | 

जब चाहिए तब  हो  जाता अनजाना ,

कवि : कुलदीप कुमार 

अपना घर

 

सोमवार, 30 अगस्त 2021

कविता : "वह बचपन की बातें "

"वह बचपन की बातें "

वह बचपन की बातें | 

अब मुझे बहुत कुछ कहते है ,

वह खेत खलिहान में गुजरे हुए पल |

दोस्तों के संग खूब किया मौज मस्ती ,

आज उन सबकी याद आते है | 

माँ की हाथो से खाना खाते ,

नींद लगे तो गोद में सो जाते | 

वह बचपन की बातें ,

अब मुझे बहुत कुछ कहते है | 

नदी हो या तालाब में खूब नहाया करते ,

पिता जी के हाथो से मार खाते | 

वह बचपन की  बातें , 

कवि : सार्थक कुमार 

अपना घर

सोमवार, 9 अगस्त 2021

कविता : "मन नहीं लग रहा "

"मन नहीं लग रहा "

मन नहीं लग रहा | 

कुछ करने को ,

मन को कैसे मनाओ | 

कुछ उपाय सोचने के लिए मन नहीं लग रहा ,

कैसे मनाओ मन को | 

खेल कर या सो कर ,

किसी में मन नहीं लग रहा | 

दिन भर सोचता रहता हो ,

मन के बिना कुछ नहीं हो रहा काम | 

सिर्फ मन चाहता है आराम ,

कवि : राहुल कुमार  , कक्षा : 8th 

अपना घर

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

कविता : " मंद -मंद बहती हवाएँ "

" मंद -मंद बहती हवाएँ "

मंद -मंद बहती हवाएँ | 

बारिस की ये बूँदे ,

और बादलो की साए | 

धम -धम कर बरस रहे है ,

फुव्वारे की  तरह ये बूँदे | 

हर जहाँ खुशनुमा हो गया है ,

खेतो में   धान बो गया है | 

जगह -जगह बर गया पानी ,

उसमे तैरती मेढ़क रानी | 

हरा -भरा महौल हो गया ,

कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

बुधवार, 4 अगस्त 2021

कविता : " यह काले -काले बादलो ने कर दिया अंधेरा "

" यह काले -काले बादलो ने कर दिया अंधेरा "

यह काले -काले बादलो ने कर दिया अंधेरा | 

सुबह से शाम बरसा रहा है पानी का फव्वारा ,

कभी टीपीर -टीपीर और कभी -कभी जोर से | 

कभी अचानक उजेला होता है ,

सूरज काले बादलो में ढक जाता है | 

कभी बहुत गर्मी  होता है ,

कभी अचानक मौसम बदल जाता है | 

यह काले -काले बादलो ने कर दिया अंधेरा ,

कवि : अमित कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर


मंगलवार, 3 अगस्त 2021

कविता : " सावन का महीना है "

" सावन का महीना है "

सावन का महीना है | 

कभी धूप तो कभी बारिश ,

काले बादल को पूछो ना | 

कब बारिश करा दे ,

बिजली कड़कने के आवाज़ को सुन कर | 

हर तरफ मोर के आवाजें गूँजती है ,

ऐ सावन का महीना है | 

इस महीने में बारिश ही बारिश होता है ,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर

देखो तो हर तरफ पानी ही पानी होता है

सोमवार, 2 अगस्त 2021

कविता : "मौसम"

"मौसम"

मौसम का क्या कहना | 

जो हसी खुशी का महौल बना दे ,

सूख रहे पेड़ -पौधे | 

अब तो कुछ बूँद  गिरा दे ,

मौसम का क्या करना | 

जो दूर -दूर तक बादल से घिरा दे ,

लोंगो के चेहरें पर है मुस्कान |

अब तो कुछ बूँद  गिरा दे ,

मौसम का क्या कहना | 

जो चारों तरफ हरा भरा बना दे ,

सूख गए सारे झील तालाब | 

कुछ बूँद से इसे सुन्दर बना दे ,

कवि : रविकिशन  कुमार , कक्षा : 12th

शनिवार, 31 जुलाई 2021

कविता: " वीर क्रांतिकारियो में था दम "

" वीर क्रांतिकारियो में था दम "

 वीर क्रांतिकारियो में था दम | 

दिल्ली के विधानसभा में भगत सिंह ने फैंका था बम ,

13  अप्रैल 1919 में हुआ था जालियावाला बाग में काण्ड | 

आज भी वहाँ है दीवारों पर गोलियों का निशान ,

काकोरी काण्ड में सामिल थे कई जवान |  

देश को आज़ाद कराने के लिए ,

दिया था अपना जान | 

उनके बलिदान से ही बना देश महान ,

कवि : अमित कुमार , कक्षा : 7th 

  घर


शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

कविता : "कोरोना"

"कोरोना"

कोरोना ने जब बदली अपनी चाल | 

देश का हुआ पहले से बुरा हाल ,

ना जाने कब टलेगी | 

इस महामारी का इंजाम ,

जो करता नहीं है रूल को फलो | 

वही आ रहे है कोरोना के चपेट में यारों ,

अपने को बचना है तो | 

नियम को अपनाना है ,

कवि : राजा कुमार , कक्षा : 5th 

अपना घर

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

कविता :" मै निकला हूँ अपने तलाश में "

" मै निकला हूँ अपने तलाश में "

मै निकला हूँ अपने तलाश में | 

कोई नजर नहीं आता आस -पास में ,

कहाँ खो बैठा उनको | 

जो रहता था मेरे पास में ,

मै निकला हूँ अपने तलाश में | 

भूखें प्यासे घूमता रहता हूँ ,

खोंजने की कोशिश करता हूँ | 

मैं रहना चाहता था उसके पास में ,

लेकिन मै निकला हूँ अपने तलाश में | 

कवि : रविकिशन कुमार , कक्षा :12th 

अपना घर

बुधवार, 28 जुलाई 2021

कविता :" इस ऊमस भरी गर्मी में "

" इस ऊमस भरी गर्मी में "

 इस ऊमस भरी गर्मी में  | 

कैसे जिया जाए क्या किया जाए ,

कुछ सूझता नहीं , तन सूखता कहीं | 

बिन हवा के कैसे रहा जाए ,

इसे ऊमस भरी गर्मी में कैसे रहा जाए | 

पसीने की कतार -धार चढ़ी है ,

बिना पेड़ो के गर्मी और भी कड़ी है | 

इस ऊमस भरी गर्मी में कैसे रहा जाए ,

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

कविता : " कितना भी पास हो हमारी मंजिल "

" कितना भी पास हो हमारी मंजिल "

कितना भी पास हो हमारी मंजिल | 

उसे पाना आसान नहीं ,

जिंदगी की हर एक मोड़ सीधा नहीं है | 

थक जाना थक कर फिर चलना ,

रुकने का जहन में कभी नाम नहीं | 

पसीने से लथपत हो जाना ,

पर जिंदगी और मंजिल के |

रास्ते पर न रुकना ,

दशर्ता है हर एक व्यकित की | 

मेहनत को और शाहस को ,

कभी भी अकेले न छोड़ना | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

सोमवार, 26 जुलाई 2021

कविता :"मौसम"

"मौसम"

ठण्डी -ठण्डी हवाएं बह रही है | 

मौसम में सर्द चढ़ रही है ,

काले बादलों का है साया | 

चारों ओर अंधेरा छाया ,

कोयल की कूह -कूह |

मेढ़को की टर्र -टर्र ,

मौसम लगा रहा है शानदार | 

पानी की बूंदे है जानदार ,

मीठे -मीठे फल पक रहे है | 

चरो ओर चिडिया चहक रहे है ,

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

रविवार, 25 जुलाई 2021

कविता : "गलती को सुधारने की"

"गलती को सुधारने की"

कुछ चीजे भी हम से छूट जाती है | 

कभी हम से वो दूर चली जाती है ,

कोशिश हम बहुत करते है | 

'कोई चीज छूट जाने की आशा रहती है ,

गलती को सुधारने की वजह बहुत हो जाते है |

 गलती  करने की बड़ी -बड़ी चीजो को ,

आसानी से सुधार सकते है | 

पर कुछ चीजें ऐसे भी है ,

जोलाख कोशिश करने पर भी नहीं बदलती है | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर


शनिवार, 24 जुलाई 2021

कविता : " धरती मुझे गोद में लेकर "

" धरती मुझे गोद में लेकर "

धरती मुझे गोद में लेकर | 

मौसम -मौसम घुमाती है ,

धरती मुझे गोद में लेकर | 

हर मौसम के साथ जीना सीखती है ,

सूरज के चक्कर लगती है |

धरती मुझे गोद में लेकर ,

पूरा बह्रामंड में घुमाती है | 

धरती सब के साथ रहना सीखती है ,

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

 

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

कविता : "काश पेड़ हमारे बराबर होते "

"काश पेड़ हमारे बराबर  होते "

काश पेड़ हमारे बराबर  होते | 

जब मन चाहता चिड़ियो के घोंसले में झाँक लेते ,

जब मन जब पेड़ से फल तोड़ लेते | 

चिड़ियो के बच्चो से  उनके बचपन में ही पहचान हो जाती ,

चिड़िया हमें जानती और पहचानतीं | 

उनके बच्चे के साथ खेला करते ,

भूख लगे तो उसे खिला देते | 

काश पेड़ हमारे बराबर होते ,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

कविता : " कहे पर निर्भर मत हो "

" कहे पर निर्भर मत हो "

कहे पर निर्भर मत हो | 

सुने सुनाए पर निर्भर मत हो ,

पहले खुद करके देखो |

अगर तुम में वो हिम्मत हो ,

तवे विश्वास करना उस पर | 

कोई समझाए तो ,

दूसरों को दोषी ठहरा देना | 

कहे पर निर्भर मत हो ,

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

सोमवार, 19 जुलाई 2021

कविता :"कौन थे भीम राव अमेडकर "

"कौन थे भीम राव अमेडकर  "

जब मैं बैठा माँ से हट कर | 

पूछा उनसे सवाल एक ठट कर ,

कौन थे  भीम राव अमेडकर | 

सोचने लगीं वो कुछ देर बैठकर ,

चुपके से लिया ख़िसक वहाँ से | 

माँ बैठी थी जहाँ पे ,

गया मै पुस्तकालय के अंदर |

दिखा मुझको ज्ञान का समंदर ,

एक किताब उठाकर देखा | 

उनके बारे में था लिखा ,

समझमे आया उसको पढकर | 

कौन थे भीम राव अमेडकर , 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

शनिवार, 17 जुलाई 2021

कविता : "कैसा जाएगा मेरा एग्जाम "

"कैसा जाएगा मेरा एग्जाम "

आज शाम को मै सोच रहा था | 

कि कैसा जाएगा मेरा एग्जाम ,

फिर मैने कहा कि | 

मन से पढ़ाई करेंगे तो ,

अच्छा जाएगा एग्जाम | 

अब तो पेपर के बाद ही दिखेगा ,

कि कैसा हुआ मेरा एग्जाम | 

पेपर के बाद एग्जामपेपर,

रहा किस के काम | 

आज शाम को मै सोच रहा था ,

कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

कविता : "दोस्ती"

"दोस्ती"

दोस्ती भी क्या होता यार | 

जो देती जी भर कर प्यार ,

जगह -जगह पर साथ निभाता | 

हर मुसीबत  काम है आता ,

मेरी मुसीबत गले लगाता | 

जो वादा करो वो है निभाता ,

छोड़ देता सारा हार की परवाह | 

सम्हलता सिर्फ दोस्ती की राह ,

कवि : नंद कुमार , कक्षा : 5th 

अपना घर

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

कविता : " गर्मी के मौसम में "

" गर्मी के  मौसम में "

 पेड़ -पौधे और जंगल में | 

शानंती का महौल बनाता ,

गर्मी के  मौसम में | 

कोई नज़र न आए धरती और आकाश में ,

हिमत न होता बहार जाने में | 

ठंडी की जगह गर्म हवा है चलती ,

गर्मी में पसीनो की महक है आता | 

राहत देता है पेड़ की छाया ,

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

 

बुधवार, 14 जुलाई 2021

कविता : "हर गलत इंसान को कुछ ना कुछ सिखाती है "

"हर गलत इंसान को  कुछ ना कुछ सिखाती है "

हर गलत इंसान को  कुछ ना कुछ सिखाती है | 

लेकिन कुछ गलत कर दे ,

तो वहीं गलत इंसान को हमेशा शातती है | 

हर कोई  कहता है जो ,

पहला गलती हुआ उसे सुधरने को  कहती है | 

हर गलत इंसान को कुछ ना कुछ सिखाती है ,

कुछ गलत काम करने से पहले सोचता है | 

कवि : गोपाल कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

 

 

सोमवार, 12 जुलाई 2021

कविता : " कोरोना आया जब से "

" कोरोना आया जब से "

कोरोना आया जब से | 

देश का हर काम थक गया तब से ,

दूसरों चीजों से क्या जाती है | 

पर स्कूल याद बड़ा आती है ,

कोरीडोर व सीढ़ियो पर पर | 

अकड़ कर चलना ,

और क्लास में सबसे पीछे बैठकर | 

क्रिकेट के बारे में चर्चा करना ,

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

कितना मज़ा  आता था

शनिवार, 10 जुलाई 2021

कविता : " जिसे हम पापा कहते है "

" जिसे हम पापा कहते है  "

 घर में होता है वह इंसान |
 जिसे हम पापा कहते है ,
सभी की खुशियां का ध्यान रखते |
 हर किसी की इच्छा पूरी करते हैं ,
खुद गरीब और बच्चों को अमीर बनाते हैं |
जिसे हम पापा कहते हैं,
बड़ों की सेवा भाई बहनों में लगाव |
पत्नी को प्यार ,बच्चों को दुलार ,
बेटी की शादी ,बेटों का मकान |
बहूओ की खुशियां दावानों का मान ,
कुछ ऐसे ही सफर में गुजर वह शाम |
जिसे हम पापा कहते हैं ,

कवि : संतोष कुमार , कक्षा : 6th 

अपना घर

गुरुवार, 8 जुलाई 2021

कविता: "कोई जगह ही था "

"कोई जगह ही था  "

जैसा भी था पर कोई जगह ही था |
नदी हो या फिर कोई नाला ही था ,
पर पानी से वह भरा ही था |
बाँस - बसेड़ियों और अन्य पेड़ों से था हरा हरा ,
अलग - अलग पक्षियों से भी था भरा |
पेड़ों पे और झाड़ियों में, था हलचल स कुछ हो रहा ,
 जब देख, तो कुछ जानवर था भाग रहा |
जैसा भी था पर कोई जगह ही था ,

कवि : पिंटू कुमार , कक्षा : 6TH 

अपना घर

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

कविता : "एक नया संसार बना लूँ "

"एक नया संसार बना लूँ "

एक नया संसार बना लूँ | 

इस जहा को अपना यार बनालू ,

जग में कुछ मेरा नाम हो | 

एक अनोखा काम हो ,

जातिया हमारी एक हो |

सब को यही जता दू ,

सपनों के जैसा हो | 

किसी चीज की कमी ना हो ,

एक नया संसार बना लूँ | 

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर


सोमवार, 5 जुलाई 2021

कविता : "मिट्टी "

 "मिट्टी "

मिट्टी में पला गरीब का बच्चा | 

मिट्टी ने पाला उसे ,

मिट्टी पर ही गिरा |  

और मिट्टी ही संभाला ,

मिट्टी में ही हल है | 

और मिट्टी में ही कल है ,

गरीब मिट्टी में काम कर -कर के | 

अपना पूरा जिंदगी गुजार देते है ,

अपने परिवार को चलाने के लिए |  

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर

रविवार, 4 जुलाई 2021

कविता : "हिंदी "

"हिंदी "

शहीद वीरों का पहचान है हिंदी | 

सीमा  पर खड़े एक जवान है हिंदी ,

साहित्यकारों के दिलो में बसती है हिंदी | 

भारत में लोगों के लफ्जों में सजती है हिंदी ,

हिंदुस्तान के बच्चो के होठो का लकीर है हिंदी | 

जिन्दगी भर साथ चलने वाली एक हीर है हिंदी ,

भारत सविधान का तस्वीर है हिंदी | 

लोगों को जोड़ने का जंजीर है हिंदी ,

हिंद की रानी है हिंदी | 

शहीदो की कहानी है हिंदी ,

कवि : देवराज कुमार , कक्षा :11th 

अपना घर

शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

कविता : "सलाम करो उन शहीदो को "

"सलाम करो उन शहीदो को "

सलाम करो उन शहीदो को | 

जिसने देश को आज़ाद किया ,

गुलाम बनाओ उनको जिसने | 

देश को बरबाद किया ,

जिसने तेईस साल के उम्र | 

में ही उसने फांसी को चुना है ,

देश को आज़ाद कराने के लिए | 

अपने जान को भी त्याग दिया ,

सलाम करो उन शहीदो को | 

जिसने देश को आज़ाद किया ,

कवि : गोविंदा कुमार , कक्षा : 5th 

अपना घर

 

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

कविता : " ये कहानी ही है अजीब "

" ये कहानी ही है अजीब "

 ये कहानी ही है अजीब | 

मेरे नही है कुछ नसीब ,

हर चीज में मेरी आता स्कावत | 

मै भरता हूँ हर होसलों से आहट ,

दुनिया है मेरा उस चाँद के पास | 

फिर मै क्या कर रहा हूँ यहा इस पार ,

मै कोशिश करता हूँ बार -बार | 

उस पार जाने को ,

क्या करू मै मेरे नसीब नहीं हैं | 

कुछ पाने को ,

ये कहानी है ही अजीब | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

 

बुधवार, 30 जून 2021

कविता: "ये गर्मी"

"ये गर्मी"

ये गर्मी ने तो हद कर दी | 

पसीना बहा -बहा कर सबका ,

कर दिया बुरा हाल | 

न कुछ समझ में आता ,

 सिर्फ़ लोगों को गर्मी | 

ये गर्मी ने तो सब का जीना ,

कर दिया हराम | 

गर्मी के नाम से घर से बाहर नहीं  निकलते हैं ,

सब लोग कूलर और पंखा के सहारे हैं | 

कवि : सार्थक कुमार ,कक्षा : 11th

अपना घर

 

 

 

 

मंगलवार, 29 जून 2021

कविता : "चाँद"

"चाँद"

चाँद से दूर रहकर भी | 

हम चाँद पर जाने की बात करते हैं ,

वहाँ के नाजारो को हम | 

अपने नजरों में उतारना चाहते हैं ,

बीते सदियो से देखते चले आए है |

इस चाँद को ,

आखिर कौन सी ऐसी रोशनी हैं | 

जो इसको इतना खूबसूरत बनाती हैं ,

कभी नही दिखती है कभी दिखती हैं | 

क्या रहस्य है इसका ,

जो अपनी ओर आकर्षित करती हैं | 

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा : 11th 

अपना घर

सोमवार, 28 जून 2021

कविता : "उस पंक्षी को देखो "

"उस पंक्षी  को देखो  "

उस पंक्षी  को देखो जो टक लगाए | 

पानी को देख रहा हैं ,

और अपने भोजन का तलाश कर रहा हैं | 

कितना कठीन है उनका जीवन,

कैसे रहते होंगे | 

पंक्षी को कितना दूर -दूर तक जाना पड़ता ,

होगा भोजन के तलाश में |

 जी जान लगा देते है ,

अपने भोजन के लिए | 

उस पंक्षी को देखो जो टक लगाए ,

पानी को देख रहा हैं | 

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर



रविवार, 27 जून 2021

कविता : "सच्चे किसान की पहचान "

"सच्चे किसान की पहचान "

सच्चे किसान की पहचान | 

एक इमान्दार किसान के वजह से होता है ,

वो अपने लिए नहीं सोचता | 

पर वो सब के लिए सोचता है ,

चाहें वो फसल की बात हो | 

लेकिन उन्हें बहुत चिंता होता हैं फसल के लेके ,

 फसल का बात हो तो | 

हर कठनाई का सामना करता हैं | 

इस लिए सच्चे किसान का पहचान, 

कवि :सूरज कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

शनिवार, 26 जून 2021

कविता :" मौसम से क्या है कहना "

" मौसम से क्या  है कहना "

मौसम से क्या  है कहना | 

जो हरदिन बदल जाए ,

उगते हुए सूरज को भी |

इन काले बादलों से ढ़क जाये ,

 बादलों से कुछ बुँदे वर्षा दे | 

सूखे पेड़ और फसलों का मुस्कान लौटा दे,

जरा इन बादलों  से कुछ बुँदे गिरा दे | 

सूखे  नदिया और झरनो को तू ,

फिर से पुनर्जिवित करवा  दे | 

 जरा इन बदलो से कुछ बुँदे वर्षा दे,

इन सूखते हुए पेड़ो को हरित बना दे | 

 जरा इन बदलो से कुछ बुँदे वर्षा दे,

बंजर सी जमीन का प्यास तो मिटा दे | 

कवि :- सनी कुमार ,कक्षा :7th 

"अपना घर "

 

 


 

शुक्रवार, 25 जून 2021

कविता : "रात को सपना देख रहा था "

"रात को सपना देख रहा था "

रात को सपना देख रहा था तो | 

लग रहा था कि मैं बेड पे सो रहा हूँ ,

 सुबह अचानक नींद खुला तो देखा | 

कि मैं तो बेड के नीचे सो रहा हूँ ,

सपनें मैं देखता हूँ तो | 

लगता हैं कि घूम रहा हूँ पूरा संसार ,

अचानक आँख खुलता तो | 

और कहीं होता हूँ पर ,

रात का दिन खांस होता हैं | 

कवि : रोहित कुमार ,कक्षा : 4 

अपना घर

गुरुवार, 24 जून 2021

कविता : "सपने "

"सपने  "

रात के सपने और दिन के सपने | 

दोनों में बहुत अंतर हैं ,

दिन में जो सपने देखतें है |

वो अपने सफ़लता के बारे में देखतें हैं ,

और रात में जो सपने देखतें हैं | 

जो अपने दुनिया के बारे में देखतें हैं ,

दिन के सपने हमेशा | 

असल दुनिया से जुड़ा रहता हैं ,

रात के सपने हमेशा | 

एक कलनीक दुनिया से होता हैं , 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा :11 

अपना घर

बुधवार, 23 जून 2021

कविता : " आसमान में तारे "

" आसमान में तारे "

 आसमान में तारे | 

दिखते है बहुत सारे ,

कुछ टिमटिमाते हुए | 

कुछ झिगमिगाते हुए ,

उन अंधेरी रातों में | 

जुगनू के तरह रोशनी फैलाते हुए | 

आसमान में तारे ,

दिखते है बहुत सारे |

कवि : गोपाल कुमार , कक्षा : 4

अपना घर

 

मंगलवार, 22 जून 2021

कविता : " मै अब भी याद करता हूँ "

" मै अब भी याद करता हूँ "

 मै अब भी याद करता हूँ | 

उस पल को ,

जब मै घुटनों के बल चलता था | 

मुझे याद हैं वह दिन ,

जब खटिए से गिर जाता था | 

मुझे याद है वह दिन ,

जब मै मिट्टी से सना रहता था | 

उसे डर था की कहीं गिर ना जाए कहीं वह ,

एसलिए उँगली पकड़ कर चलता था | 

उसे मालूम था कि खो ना जाए कहीं वह ,

एसलिए हाथ नहीं छोड़ता था | 

मै अब भी याद करता हूँ ,

उस पल को | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा :7 

अपना घर

सोमवार, 21 जून 2021

कविता : "जीओ खुलकर जीओ "

"जीओ खुलकर जीओ "

 जीने में  क्या बुराई हैं | 

 चाहें हम जैसे जीए ,

पर जीना तो हम सब को | 

चाहें खुश हो के जीए ,

और चाहें दुखी हो के जीए | 

जीना तो हर हाल में हैं ,

ऐसे जीने से क्या फायदा | 

जिसमे कोई मज़ा ही नहीं ,

जीओ तुम खुलकर जीओ | 

बिना डर के , बिना शर्म के ,

जीओ खुलकर जीओ | 

चाहें भले कितनी रुकावटें आए |

हमेशा तुम खुश हो के जीओ ,

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा :11 

अपना घर

 

 

 

शनिवार, 19 जून 2021

कविता : " चेहरें की हॅंसी "

" चेहरें की हॅंसी "

 चेहरें की हॅंसी | 

रूठती ही जा रहीं हैं ,

आँसु और गम दोनों | 

मिटटी हीं जा रहीं हैं ,

चेहरें पर उदासी बनी हैं | 

न चेहरें पर मुस्कुराहट है ,

 न आँसुओ पर कोई छाया |

न मन में कोई हिचकिचाहत ,

न गम पे कोई पैहरा | 

न पैरों में कोई बंधन ,

ये दिन रुठती ही क्यों जा रहीं हैं ,

कवि : सनी कुमार , कक्षा : 10 

अपना घर

शुक्रवार, 18 जून 2021

कविता : " ज़माना अब बदलता जा रहा हैं "

" ज़माना अब बदलता जा रहा हैं "

ज़माना अब बदलता जा रहा हैं | 

लोग और विचार बदलते जा रहें है,

इस घड़ी में सभी को ढ़लना होगा | 

बस कल्पना रहती हैं ,

आने वाले समय का क्या होगा | 

लोगों का भिजाज़ बदल रहा ,

सोंचने का अन्दाज़ बदल रहा | 

रीति -रिवाजें बैण्ड -बाजे ,

सब बदल रहें हैं | 

आने वाला हर कल बदल रहा हैं ,

पढ़ाई करने का स्तर बदल रहा |

तुम्हें बदलना होगा , हम को बदलना होगा ,

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12 

अपना घर

 


गुरुवार, 17 जून 2021

कविता : " यह रंग बिरंगे फूलों "

" यह रंग बिरंगे फूलों "

यह रंग बिरंगे फूलों को | 

चाहतीं हैं पूरी दुनियाँ ,

इस फूलों की खुशबू से | 

 महेकने लगतीं हैं फूलों की बगिया,

भरा हुआ फूलों की बगिया से | 

हर कोई इसे ले जाता हैं ,

इन फूलों की हैं इतनी तारीफ़ | 

जो सभी को हैं भाता ,

हर कोई इसे घर पर ले आता |

कवि : पिंटू कुमार ,कक्षा :6 

अपना घर

बुधवार, 16 जून 2021

कविता : "ये काले -काले बादल "

"ये काले -काले बादल "

ये काले -काले बादल | 

मन को करतें घायल ,

लेके अपने सांग बारिस के बूंदे | 

यह देखकर किसान भी रूठे ,

जब गिरना होता हैं तब | 

कहाँ निकल जाते हैं ये सब,

जब गिरती तेरी बूंदे |

तब सब तुझको ढूढ़े ,

ये काले -काले बादल | 

मन को करते घायल ,

कवि :  कुलदीप कुमार ,कक्षा : 10 

अपना घर

मंगलवार, 15 जून 2021

कविता : " मौसम का क्या कहना "

 " मौसम का क्या कहना "

 मौसम का क्या कहना | 

जो हसी -खुशी का महौल बना दे,

सूखने लँगे सारे पेड़ -पौधे | 

अब तो बादलो से कुछ बूद गिरा दे,

मौसम का क्या कहना | 

जो अंधकार को उजाले में बदल दे,

चारो तरफ है अंधेरा ही अंधेरा | 

अब तो अंधेरे -अंधेरे में दीपक जला दे,

जो हर एक चेहरे पर मुस्कान दिला दे | 

रूठे  है लोग तुझसे ,

अब तो गर्मी को सर्दी में बदल दे | 

जो चाँदनी रात में तारे दिखा दे ,

लोग इंतजार करते है तेरा | 

अब तो फूलो से बगिया महका दे,

कवि :रविकिशन कुमार  ,कक्षा :12 

अपना घर

सोमवार, 14 जून 2021

कविता: "मुझे लग रहा था ,ढडी "

"मुझे लग रही  थी ,ठण्डी  "

मुझे लग रही  थी  ,ठण्डी शाम को | 

मैने इकट्ठा किया कुछ घास ,

सब मिलकर आग जलाए  एक साथ | 

ठण्डी से नहीं कर रहा था , हाथ पाँव काम,

मैने आस -पास से लकड़ी का किया इंतजाम | 

आग पे बैठे -बैठे  हो गया ,

शाम के आधी रात |

अभी भी मै क्यूँ बैठा हूँ आग के पास,

कोहरा गिर रहा था मेरे आस -पास | 

सब मिलकर आग जलाए एक साथ ,

कवि : अमित कुमार  , कक्षा :7 

अपना घर

रविवार, 13 जून 2021

कविता :"जिंदगी की ही सुरवात"

" जिंदगी की शुरुआत "

 जिन्दगी की शुरुआत  | 

सूर्य की चन्द  किरणों  से होता है ,

सुबह की हवा चली पुरवइया || 

तन -मन कर उठा ,

ये जिंदगी की शुरुआत  |

एक नए उमंग की तरह होती है ,

जिंदगी की ही शुरुआत  | 

सूर्य की चन्द  किरणों से होता है | | 

कवि :गोविंदा कुमार , कक्षा :5th 

"अपना घर "

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

शनिवार, 12 जून 2021

कविता : " कुछ ऐसे ख्वाब है "

"  कुछ ऐसे ख्वाब है "

कुछ कुछ ऐसे ख्वाब है | 

जो पूरा नहीं कर सकते ,

पर उसके बिना हम | 

नहीं रह सकते ,

संग सपने हम खूब सजाते |

पर भविष्य में क्या होगा ,

ये हम नहीं समझ पाते | 

कुछ पल हम एक दूसरे के साथ होते है ,

उसी में सारी जिन्दगी का | 

बहाब होते है ,

अगर हम एक दुसरे से जुदा होते है | 

तो जिस तरह जुड़ा उसी तरह टूटती है ,

जैसे हम पहली बार मिलते है | 

तो पूरी -पूरी रात नहीं सोते है ,

तो सोच लो यार | 

कुछ ऐसे ख्वाब होते है , 

कवि : देवराज कुमार ,कक्षा : 11 

अपना घर


शुक्रवार, 11 जून 2021

कविता :" ये जीवन चींटी चाल चलता "

" ये जीवन चींटी चाल चलता "

ये जीवन चींटी चाल चलता | 

कोई रास्ता मालूम न पड़ता ,

कोई दास्ता सुनाने को न रखता | 

बस पल -पल की ठोकर खा कर ,

आगे ही आगे बढ़ता है जाता | 

हर मुसीबतो का सामना करता,

हर रास्ता अनजान है उसका | 

न खुद का कोई पहचान है उनका,

कहाँ जाकर रुकेगा | 

मालूम न पड़ता ,

क्योकि ये जीवन चींटी चाल चलता | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

बुधवार, 9 जून 2021

कविता : "जून की गर्मियाँ "

"जून की गर्मियाँ  "

याद रहे या न रहे | 

वो फरवरी की माह में झड़ती पत्तियाँ,

बाग -बगीचों में चहचहाटे | 

और खिलते फूलों की कलियाँ,

भूल कर भी न भूल  पाते  है | 

वो जून की गर्मियाँ ,

सुबह का सूर्योदय|

हवाओ को करवटे ,

गर्मी से भीग उढ़ते है| 

शरीर के हर रोंगटे ,

फलदार भी खूब बुलाता है | 

पेड़ो के आम से भरी शाखा है,

तरबूज, खरबूज खूब लुकाता है | 

ये ही जून की गर्मी की याद दिलाता है, 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12 

अपना घर


मंगलवार, 8 जून 2021

कविता : "बचपन "

"बचपन "

खिल खिलाहट भरी हँसी की आवाज है बचपन | 

माँ की प्यार है बचपन ,

पापा के आँखो का तारा है बचपन | 

खिलौनो की भंडार और नखरों की ,

भरमार है बचपन | 

आँगन खेल  का मैदान और,

पूरा घर ही संसार है बचपन | 

पेड़ पर चड़ना और दोस्तों से लड़ना,

दो पल में ही सबकुछ भुला कर | 

आपस में खेलना है बचपन ,

स्कूल में शैतानी करना | 

बहनें और भाई से मनमानी,

करना ही है बचपन |

जीवन में एक अनोखा पल है बचपन,

सबसे अलग और अलग है बचपन | 

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8 

अपना घर

 


सोमवार, 7 जून 2021

कविता : "देखा मैंने हजारो जिंदगी "

"देखा मैंने हजारो जिंदगी "

अब तक क्या देखा | 

देखा मैंने हजारो जिंदगी,

देखा मैने हजारो अज़नबी | 

देखा मैंने हसती जिंदगी ,

देखा मैंने खुशनसीब जिंदगी| 

देखा मैंने वेव्स और छोटी से छोटी जिंदगी,

और सबकी कहानी दो | 

जगहों पर ख़त्म होतीं है ,

एक ढीक उस तरह | 

जिस प्रकार उगे सूरज हो,

बादल छेक लेती हैं | 

और खाली हाथ लौटने पर,

बेवसकर देती है | 

दूसरा हसीन होतीं है,

जिस प्रकार चंद्रमा आकाश | 

में हमेशा बनी रती रहती है ,

और उगे सूरज को जाने का इतजार करती है |

 और अंधरे में रोशनी करती है ,

कवि: देवराज कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

रविवार, 6 जून 2021

कविता : "जब हम नाराज़ होते है "

"जब हम नाराज़ होते है "

हर रास्ते गलत दिखती है | 

हर बात तीखी लगती है ,

हर चीजे बेकार होते है | 

जब हम नाराज़ होते है ,

कोई समझाए तो| 

हमे समझ नहीं आता,

रिस्ते और दोस्ती | 

शत्रु है बन जाता ,

हर बात पर दूसरो दोषी ठहराते है | 

जब हम नाराज होते है ,

रोटी अच्छी नहीं लगती है| 

चावल पक्का नहीं लगता है,

माँ का हाथो का खाना |

भी गले में अटक जाता है,

मन पसंद मिठाई भी | 

पीका पड़जाता है ,

हर चीजों से मुँह बनाकर | 

बैठ जाते है ,

जब हम नाराज होते है | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11 

 अपना घर

 


शनिवार, 5 जून 2021

कविता : "वो दिन भुलाया नहीं जा सकता "

"वो दिन भुलाया नहीं जा सकता "

वो दिन भुलाया नहीं जा सकता | 

उस दिन की लगी आग सीने से ,

बुझाया नहीं जा सकता | 

जीन वीरो ने हस कर चूमे थे,

फ़ासी के फंदे | 

देशके आज़ादी के खातीर,

उन महान वीरो को अपने दिल से | 

उनका नाम हटाया नहीं जा सकता ,

वो दिन भुलाया नहीं जा सकता | 

जिसने देश को आज़ाद कराया ,

मुझे गर्व है उस देश के भुमी पर | 

जहाँ हज़ारो लोगो को लाइट का हर एक,

कटरा देश के भूमी को स्नेह हुए | 

कवि :संजय कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर 

शुक्रवार, 4 जून 2021

कविता : "ये कोरोना है महामारी "

"ये कोरोना है महामारी "

 ये कोरोना है महामारी ,

सब पे पड़ गया है भारी |

सिर्फ घर के अन्दर ही रहते है,

न हो पाता है अच्छे से पढ़ाई | 

क्योकि आ गया है कोरोना महामारी,

 लकडाउन बढ़ता ही जा रहा है |

हॉलिडे पर हॉलिडे बढ़ता ही जा रहा है,

घर पर ही दिन और रात काटे | 

ये कोरोना है महामारी ,

कवि : नवलेश कुमार ,कक्षा : 7 

अपना घर

बुधवार, 2 जून 2021

कविता : "ये संसार कब खुश होगा "

"ये संसार कब खुश होगा "

ये संसार कब खुश होगा | 

जब हर मौसम में रस होगा,

हर सड़को पर चमकते तारे होंगे | 

हर गाँव के गलियारो ये लाईटो की रोशनी फैले होगे ,

हर बच्चा पढ़ा -लिखा होगा | 

बूड़ो की भी अपना जगह होगा,

हर बचपन सबका खुसनुया होगा |

हर ममता के आँचल में अपना प्यार होगा ,

सबसे प्यारा है संसार हमारा | 

दुनिया है तो जीवन है हमारा ,

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10 

अपना घर

 

 

मंगलवार, 1 जून 2021

कविता: "बहती हवा "

"बहती हवा "

न जाने कहाँ से चली आई | 

मन्द -मन्द बहकर वातावरण में सफाई,

कभी भवन्डर तो कभी पूर्वाई | 

इस जगत में बहती हवा आई ,

साल के हर महीने में | 

फूल और बाग बगीचों में,

फसलों के कलियों में | 

लगता हैं कोई जादू समाई ,

इस जगत में बहती हवा आई | 

जब की मौंसम बेईमान है ,

बारिश का कोई ठिकाना न हो | 

फिर भी राहत सबको दिलाई ,

इस जगत में बहती हवा आई | 

कवि :प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

रविवार, 30 मई 2021

कविता : आजाद परिंदे है हम

" आजाद परिंदे है हम "

 आजाद परिंदे है हम 

दुनिया से घमंड तोड़  देगें 

गलतियों  को सही करके  

सही रास्ते की  ओर मोड़ देंगे 

आजाद परिंदे है हम

पैरों पर खड़े होकर दिखाएगे 

एक दिन संसार को सपनों से सजाएगे  

आजाद परिंदे है हम 

पक्षी की तरह पूरा दुनिया घुम लगे 

गलतियों को सही करके 

सही रास्ते की ओर मोड़ देंगे  

कवि : अमित कुमार ,कक्षा :7th 

अपना घर

 

शनिवार, 29 मई 2021

कविता : "पैसो के पीछे भागते है "

"पैसो के पीछे भागते है "

कुछ लोग पैसो के पीछे भागते है | 

इन गरीबो को समझो ,

जो भुखमरी से पीछा नही छुड़ा पता है | 

सभी गाँव का तालाब सूख गए ,

पेड़ -पौधे भी रूठ गए | 

वह  कुआँ भी नस्त हो गए ,

जहा से पानी खीचा करते थे |

वह जमीन भी सूख गई ,

जहाँ फसल हस कर खिला करते थे | 

अबतो बादल भी रूठ गया ,

जो बूंदे बनकर टपका करते थे | 

वो मुस्कुराहट भी चली गई ,

जो वर्षा पहले दिखा करते थे | 

इन हालतो को देख कर ,

आँखों से आँसू टपक आते है | 

आधे पेट ही खा कर ,

जिंदगी जिया करते है | 

इन गरीबो को समक्षो ,

जो भुखमरी से पीछा नहीं छुड़ा पाते है | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7 

अपना घर


शुक्रवार, 28 मई 2021

कविता : " प्रकृति ने खुशहाली से "

" प्रकृति ने खुशहाली से "

 प्रकृति ने खुशहाली से ,

इस पर्यावरण को सजा दिया | 

निर्मल जल से ,

सबका प्यास बुझा दिया| 

सूरज की कड़कती किरणे ,

धरती के हर कोने में उजिया फैलाए| 

उन पेड़ पौधों को नव जीवन प्रदान कराए,

पक्षी के पाँखों को चमका  देता है | 

उन नाजुक से फूलों को खिलखिला देता है,

शीतल पवन के झोंकों | 

शरीर के हर अंग -अंग को छू जाता ,

प्रकति ने खुशहाली से |

पर्यावरण को सजा दिया,

कवि :प्रांजुल कुमार ,कक्षा :12 

अपना घर

कविता : " जिन्दगी के कुछ पल है "

" जिन्दगी के कुछ पल है "

 जिन्दगी के कुछ पल है | 

जिसे तुम्हे जीने को मिला,

अपनी यह अनजान सी जिन्दगी में | 

कुछ बड़ा करना है ,

अपने राह पर आने वाले हर | 

कठिनायो से ,

उससे तुम्हे ही लड़ना है | 

अपनी इस जिन्दगी में ,

 इस जिन्दगी के कुछ पल है | 

जो तुम्हे मिला ,

कुछ ऐसा करो अपनी | 

जिन्दगी में तुम ,

कि सारा जहाँ देखता रह जाए | 

अपने इस जिन्दगी के कुछ पल,

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

गुरुवार, 27 मई 2021

कविता : "मै जिंदा हूँ इस संसार में "

"मै जिंदा हूँ इस संसार में " 

मै जिंदा हूँ इस संसार में ,

ये मेरी मजबुरी नहीं है | 

मैं जिंदा हूँ इस संसार में ,

क्यों कि इस संसार को मेरी जरूरत है |

मै अकेला इस संसार में रह नही सकता ,

मुझे हवा , पानी , धूप चहिए | 

जिंदा रहने के लिए ,

आगे साथ चलने के लिए | 

एक नई दुनिया बसाने के लिए ,

वो भले ही क्यों ना | 

मनुष्य हो या हो फिर कोई जीव ,

कवि : नितीश कुमार , कक्षा :11 

अपना घर

 

 

 

बुधवार, 26 मई 2021

कविता: "लोगो में देश भक्ति तूने जगाया "

"लोगो में देश भक्ति तूने जगाया "

 लोगो में देश भक्ति तूने जगाया ,

ऐ कोरोना तूने सही किया जो दोबारा वापस आया | 

वापस चलने लगी थी वही जिंदगी ,

टूटने लगी थी लोगो की तुझे दिललगी |

बिना हाथ धोए किसी सामग्री का ग्रहड़ कर लेना ,

नाक ,कान को बिना झिजक के ही छू लेना | 

वापस आ गई थी वही घिसी पिटी जिंदगी ,

जिसकी वजह से आज है लोगो को खुद सेसमरदगी | 

गलत किया तूने जो आया विक्राल रूप लेकर ,

क्योंकि फिर से खुश होने लोग तुझे बराबरी कर टक्कर देकर | 

मैने मान तू सफल हुआ लोगो को विफल करने में

लेकिन तू नही जानता 

जरा भी देर नही लगती लोगो को फिर से सफल होने में 

कवि : समीर कुमार ,कक्षा :11 

अपना घर

मंगलवार, 25 मई 2021

कविता : "हाय ये गर्मी"

"हाय ये गर्मी"

हाय ये गर्मी ने मार डाला,

सूरज का भी बड़ा है पारा | 

टप -टप टपक रहा है पसीना,

पैर -हाथ हो या सीना | 

गरम हवाएं के झोके ख़तर नाक ,

लू से बचकर रहना मेरे यार | 

लाइट से भी हो गए हम परेशान,

न सुबह न रात में अब आराम | 

हाय ये गर्मी ने मार डाला ,

सूरज का भी बड़ा है पारा | 

बाहर घूमना हो गया बेकार,

कोरोना और गर्मीका है वॉर | 

हाय ये गर्मी ने मार डाला ,

सूरज का भी बड़ा है पारा | 

कवि : कुलदीप कुमार ,कक्षा :10 

अपना घर


 

सोमवार, 24 मई 2021

कविता : "कोमल पक्षियो का पंख"


"कोमल पक्षियो का पंख "

वह कोमल पक्षियो का पंख 

सपनों को पूरा करने का उमग

उन पर्वतों को छुने का लक्ष्य 

दुश्मनो से लड़ने ला दम 

उन सागरों को पार  करने की  सोच 

आसमान में उड़ने की चाहत 

वह कोमल पक्षियो का पंख 

सपनों को पूरा करने की चाहत 

अपने हौसलों को पूरा करने की सोच 

कवि : अमित कुमार, कक्षा :7 

अपना घर

 


शुक्रवार, 21 मई 2021

कविता :अगर हो जाए हम एक साथ खड़े

 

"अगर  हो  जाए  हम  एक  साथ खड़े "

 अगर  हो  जाए  हम  एक  साथ खड़े 

इस महामारी   में एक साथ लड़े 

एक दूजे को सर्तक करबाना  है 

इस समय  कोशिश है कि जान बचाना है 

कही भी जाना , मास्क अवश्य  लगाना 

झुण्ड में न रह , दो गज दूरी  बनाना है 

खासी या जुखाम , आए तो डॉक्टर  के संपर्क में आना है 

चाहे हो जितनी  जिल्लत फिर  भी एक जोर लगाना है 

इस कोरोना काल में एक दूजे का साथ निभाना है

कवि :प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12 

अपना घर

गुरुवार, 20 मई 2021

कविता : इस कड़कती मौसम

" इस कड़कती मौसम"

 इस कड़कती मौसम में,

हे वर्षा एक बूंद जल तो बरसा | 

नदियाँ  और झरनो को फिर से पुनर्जीवित  कराओ ,

उन खेतो को  फिर से हरित  बनाओ | 

उन खेतो में फिर से फसलग उगववो,

हे वर्षा एक बूंद जल तो बरसा | 

पियासे लोगों का पियास तो मिटाओ ,

उन नदियाँ और झरनो को फिर से जीवित बनाओ |

बंजर जमीन को हरित बनाओ ,

इस कड़कती मौसम में | 

हे वर्षा एक बूंद जल  तो बरसा |

कवि : अमित कुमार ,कक्षा ;7th 

अपना घर



 

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

कविता : मोती सी चमक

"  मोती सी चमक " 

  मोती सी चमक तेरी,

घासों पर नजर आती है | 

वह  मखमली सी खुशबू ,

सिर्फ फूलों से महक आते हैं | 

चाँद की रोशनी में भी,

तारे और सितारे नज़र आते हैं | 

वह ओस की बूँद ,

जो सुबह  घासों में फैली होती है | 

मैं  रोज़ टहलता हूँ सुबह,

कोहरा  ही कोहरा नजर आता है |

इस हवाओं की झोकों से,

ओस की बूंदे  फिसल जाती हैं |

मैं रोकना चाहता हूँ ओस को, 

जो आँखों से टपक जाते हैं |

और जमीन पर गिर जाते हैं,

गिर क मिट्टी  में यूँ मिल जाते हैं | 

                                                                                                                   कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 7th 

अपना घर

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

कविता : हमारा राजनीतिक दौर कैसा है

 " हमारा राजनीतिक दौर कैसा है "

 

हमारा राजनीतिक दौर कैसा है,

वादों  की  तो पोटली सा खोलता | 

वक्त पर सबसे प्रेम से बोलता,

बेरोजगारी दूर करने की न सोचता | 

हमारा राजनीतिक दौर कैसा है,

दिल जितने के लिए तरीके अपनाता | 

चुनाव जितने के लिए कुछ भी कर जाता।

 हमारा राजनितिक दौर कैसा है | 

साथ अनजान को भी गले लगाता, 

पर लोग क्या करे समाज ही ऐसा है | 

हमारा राजनीतिक दौर कैसा है | | 


कवि : रविकिशन 

कक्षा : १२ 

 अपनाघर


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

कविता : शांत वातावरण

" शांत वातावरण "

 यह शांत वातावरण मुझसे कहता  है,

तू  हर पल क्यों अकेला रहता है | 

हवाओं से करता क्या तू बात,

करना चाहता हूँ  उससे मुलाकात | 

गर्मी  में तेरी आवाजें होती है तेज़,

लगता है मझे कभी  यह जेल | 

जाना चाहता हूँ  मैं तेरे पास,

जल्द  ही करुगा मैं घर वास | 

 यह  शांत वातावरण मुझसे कहता है,

तू क्यों हर पल अकेला रहता है | | 

कवि : कुल्दीप कुमार 

कक्षा : 10th , अपना घर

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

कविता "सूरज की चंचल किरणे"

 "सूरज की चंचल किरणे"

सूरज की चंचल किरणे,

टहक  - टहक कर उठती है| 

पेड़ो की बधियो से वो ,

धरती पर  छन कर गिरती है | 

 सूरज की चंचल किरणे ,

टहक  - टहक कर उठती है | 

यहाँ -  वहां वो अपने संग ,

नई उमंग किरणों को  |

दुनिया में  फैलाती है  ,

सूरज की चंचल किरणे |

टहक  - टहक कर उठती है ,

पेड़ो की बधियो से वो |

धरती पर  छन कर गिरती है 

कवि : सनी कुमार कक्षा : 10th, अपना घर

 

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

कविता : कोरोना है बड़ा महामारी

" कोरोना है बड़ा महामारी "

 कोरोना है बड़ा महामारी ,

क्योकि फैला रहा बड़ा बिमारी  | 

इस में हम तुम नाही बल्की | 

परेशान है दुनिया सारी ,

दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहा  है | 

हर दिन किसी न किसी को दुःख पोहचा रहा ,

किसी न किसी को कोरोना सता रहा है | 

 कोरोना है बड़ा महामारी ,

क्योकि फैला रहा बड़ा बिमारी  | 

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th  , अपना घर       

 

 

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

कविता : " मौसम का क्या कहना "

 " मौसम का क्या  कहना "

मौसम का क्या  कहना ,

 जो हसी -ख़ुशी का माहौल बना  दे | 

 सुखने लगे सारे  पेड़- पौधे ,

अब तो बादलो से बून्द गिरा दे  | 

 मौसम का क्या कहना ,

जो अंधकार  को उजाला में बदल दे | 

चारो तरफ ही अंधेरा -अंधेरा ,

अब तो अंधेरे -अंधेरे में दीपक जला दे

मौसम का किया कहना ,

जो हर एक चेहरे पर मुस्कान दिला दे | 

रूठे है लोग तुझसे ,

अब तो गर्मी को सर्दी को  बदल दे | 

 मौसम का क्या कहना ,

जो चाँदनी  रात में तारे दिखा दे | 

लोग करते है तेरा इंतजार ,

अब तो फूलो से  बगिया महका दे |

कवि : रविकिशन , कक्षा : 12th , अपना घर

रविवार, 18 अप्रैल 2021

कविता :" एक खेल है साबकी प्यारी "

"  एक खेल है साबकी प्यारी "

 एक खेल है साबकी प्यारी ,

हर जगह है क्रिकेट की महामारी | 

लोग बैठे करते है चर्चे ,

जगह -जगह बाट रही है पर्चे |

धोनी - धोनी  आवाज लगाते ,

विराट कोहली नाचते गाते | 

पंड्या के छक्के सबको  भाते  ,

बुमराह भी खूब यार्कर आजमाते  | 

रोहित भैया शतक -पे शतक लगाते  ,

धवन भी छक्के - चौके खूब बरसाते  | 

कभी अंदर बाहर होते नटराजन  भैया ,

कई बार कराई है इन्हों ने नइया | 

मोटा है महारा पंत ,

करता है मैच का अंत | 

 एक खेल है साबकी प्यारी ,

हर जगह है क्रिकेट की महामारी |

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर


शनिवार, 17 अप्रैल 2021

कविता : " बसंत की उमंगें है आँगन में फैली "

  " बसंत की उमंगें है आँगन में फैली " 

बसंत की उमंगें है आँगन में फैली ,

पत्ते ना हो -तो  लगते है विषैली | 

धीमे - धीमे सुनती है शाहरी ,

चाहे दिन हो या दोपहरी | 

बसंत में  हरे- भरे पत्ते है फैली ,

बसंत की मौसंम बुझती है पहेली | 

गुन - गुन  गाती है पहेली ,

समझ नही आती  है पहेली | 

उसने सबके साथ खेल -खेली ,

आओ बैठकर  सुने है पहेली | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th , अपना  घर

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

कविता : " मचा रहा कहर कोरोना "

 " मचा रहा कहर कोरोना  "

मचा रहा कहर  कोरोना ,

घर बैठे आ रहा रोना | 

बचा नहीं  कुछ करने को ,

रह गया अब सोना -सोना | 

सभी जगह है बोला -बोला ,

लोग जपने लगे गाली  | 

काम न करे वैक्सीन ,

 मर रहे है सब समय गिन -गिन 

कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 1oth , अपना घर




मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

कविता : " आम लगी है डाली -डाली "


 " आम लगी है डाली -डाली "

 आम लगी है डॉली डॉली  ,

क्यों की आई है हरियाली | 

खाने को है ललचाया ,

मन मचला तोड़ आया  | 

खाते - खाते आम मालिक है आया ,

बच्चो को खूब दौड़ाया | 

दौड़ने की रफ़्तार बड़ी थी ,

 आम खाने को जो आदत पड़ीं थी | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 10th  , अपना  घर

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

कविता : " गर्मी का मौसम है आया "

  " गर्मी का मौसम है आया "

गर्मी का मौसम है आया ,

राहत  देती है पेड़ो की छाया | 

गर्मी  की है अलग ही माया ,

सारे  दिन रहता गर्म -धुप  से छाया | 

पेड़ पौधे और जंगल में ,

शांति माहौल है गहरी ठंडी छाये में | 

कोई नजर न आए धरती -आकाश में ,

ठंडी की जगह गर्म हवा चलती है |

इससे पहले भी शरीर से पानी रहती ,

गर्मी का मौसम है आया | 

गर्मी  देती है पेड़ो की छाया ,

कवि : पिंटू कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर

 

रविवार, 11 अप्रैल 2021

कविता : " काश मै हवा बन जाऊ "

 "  काश मै हवा बन जाऊ "

 काश मै हवा बन जाऊ ,

हर गली -मोहल्ले  सेगुजर  जाऊ | 

बाग़ - बगीचे में सैर कर आऊँ  ,

जब चाहे मन करता | 

तब मै  उड़ता फिरुँ  ,

पेड़ -पौधे के साथ | 

खूब मौज -मस्ती करुँ , 

शाम डलने पर चुपचाप शांत हो जाऊँ | 

मै तो बस हवा हूँ ,

मुझे पूरी दुनिया को जीवित है रखना | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

कविता : " रात को बैठकर कवित लिख रहा हूँ "

  " रात को बैठकर कवित लिख  रहा हूँ "

रात को बैठकर कविता लिख रहा हूँ ,

कितनी मुश्किल जिंदगी जी रहा हूँ  |

तो भी हसी - ख़ुशी से जी रहा हूँ  ,

यही तो हमारी जिंदगी है  |

बस अच्छे से जी रहा हूँ  ,

जिंदगी में मुश्किल परिस्थिति आती | 

उस से लड़ के जी रहा हूँ  ,

लड़ -लड़ के आगे बड़  रहा हूँ | 

जिसको हसिल करना  है उसी के पीछे दौड़ रहा हूँ

कवि : अजय कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर