"जब हम नाराज़ होते है "
हर रास्ते गलत दिखती है |
हर बात तीखी लगती है ,
हर चीजे बेकार होते है |
जब हम नाराज़ होते है ,
कोई समझाए तो|
हमे समझ नहीं आता,
रिस्ते और दोस्ती |
शत्रु है बन जाता ,
हर बात पर दूसरो दोषी ठहराते है |
जब हम नाराज होते है ,
रोटी अच्छी नहीं लगती है|
चावल पक्का नहीं लगता है,
माँ का हाथो का खाना |
भी गले में अटक जाता है,
मन पसंद मिठाई भी |
पीका पड़जाता है ,
हर चीजों से मुँह बनाकर |
बैठ जाते है ,
जब हम नाराज होते है |
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11
अपना घर
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