"देखा मैंने हजारो जिंदगी "
अब तक क्या देखा |
देखा मैंने हजारो जिंदगी,
देखा मैने हजारो अज़नबी |
देखा मैंने हसती जिंदगी ,
देखा मैंने खुशनसीब जिंदगी|
देखा मैंने वेव्स और छोटी से छोटी जिंदगी,
और सबकी कहानी दो |
जगहों पर ख़त्म होतीं है ,
एक ढीक उस तरह |
जिस प्रकार उगे सूरज हो,
बादल छेक लेती हैं |
और खाली हाथ लौटने पर,
बेवसकर देती है |
दूसरा हसीन होतीं है,
जिस प्रकार चंद्रमा आकाश |
में हमेशा बनी रती रहती है ,
और उगे सूरज को जाने का इतजार करती है |
और अंधरे में रोशनी करती है ,
कवि: देवराज कुमार , कक्षा : 11
अपना घर
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