शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

कविता: जंगल में घुस गई एक बकरी

जंगल में घुस गई एक बकरी

सुनो सुनो एक खुशखबरी,
घुस गई जंगल में एक बकरी....
शेर को ये जब संदेशा आया,
उसके समझ में कुछ आया....
डर से हालत हो गई पतली,
शेर को आने लग गई मितली....
तभी एक बिल्लौटा आया,
शेर को एक तरकीब बताया....
शेर को बाते समझ में आई,
उसने झट से मीटिंग बुलाई....
बन्दर हाथी भालू आए,
गदहा घोड़ा मिलकर गाये....
सबने मिलकर सोच लगाई,
बन्दर की बुद्धि काम में आई....
बन्दर बोला सुनो रे भाई,
बकरी से क्या डरना भाई....
बकरी खाती घास और दाना,
इसमें अपना क्या है जाना....
शेर की जान तब जान में आई,
सबने जंगल में खुशी मनाई....


लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ८, अपना घर




कविता: बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

हमको तो सब कुछ याद है,
अब तो मार खायेंगे...
जो कुछ याद नही है,
उसे तो बिल्कुल रट लेंगे...
अब होने को है पेपर उसमे लिख देंगे,
जो भी देंगे उसको हल कर देंगे...
ये सब याद हुआ है डंडे के बल पे,
टीचर तो बैठे रहते कुर्सी पे...
हाथ में हरदम ले कर डंडे,
मार से रोज टूटे कितने डंडे...
भोले भाले और मुस्काते सारे बच्चे आते है,
रात को रटते सुबह भूल ही जाते है...
डंडे खाते फिर याद करते,
रोते रोते घर को जाते....
डंडे के बल पर हम कब तक पढ़ पाएंगे,
क्या कोई अब प्यारे टीचर आयेंगे....
बिन मारे क्या हम नही पढ़ पाएंगे,
बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगे....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

कविता: लाल टमाटर हरा टमाटर

लाल टमाटर हरा टमाटर

लाल टमाटर हरा टमाटर,
दोनों थे पक्के यार ...
एक दिन गए कद्दू राजा के पास,
कद्दू से बोले हम राजा तुम मेरे दास...
इतने में हो गया तीनों में झगड़ा,
कद्दू राजा तो था ही तगड़ा....
बैठ गए उन दोनों के ऊपर,
मारा दोनों के दो - दो झापड़....
झापड़ लगा गाल हुए दोनों के लाल,
बहुत बुरा हुआ उन दोनों का हाल....
राजा बनने का ख्वाब उतरा उनके सर से,
जान बचाकर भागे गए वह जल्दी से....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

कविता: बिजली का करो न दुरूपयोग

बिजली का करो दुरूपयोग

बिजली का सभी करते उपयोग,
कुछ लोग तो करते इसका दुरूपयोग....
भारत में ऐसी जगह है आती,
जंहा पर बिजली पहुँच नही पाती....
बड़े - बड़े ये जो बाँध बनाते,
जिससे लोग है बिजली बनाते.....
ये पानी बहकर गांवों में आता,
जिससे गाँव पुरा डूब जाता....
बिजली का करो दुरूपयोग,
बिजली बचाकर करना उपयोग...
देश के लोग सभी है एक समान,
सभी को बिजली करो प्रदान....

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर


सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

कविता: पृथ्वी है अनमोल

पृथ्वी है अनमोल

सभी ग्रहों में से पृथ्वी है अनमोल,
पृथ्वी पर कई तरह के होते है बल...
घर्षण बल के कारण चलते- फिरते,
घर्षण बल कम करने से आगे बढ़ नही पाते...
गुरुत्त्वा कर्षण बल पृथ्वी में होता,
यह सभी को अपनी ओर खीचता....
नही किसी को यह दिखता,
अपना कार्य स्वंय यह करता...
पृथवी पर सब कुछ है मिलता,
सूरज, चंदा, तारे, आसमान पास में दिखता...
छोटे नन्हे मुन्ने पौधे पृथ्वी पर उगते,
जो हरदम सबको ऑक्सीजन देते ...
ऑक्सीजन से ही हम जीवित रहते,
कार्बनडाई आक्साइड पौधों को देते...
सभी ग्रहों में पृथ्वी है अनमोल,
नीली सुंदर दिखती गोल...
क्या देगा इसका कोई मोल,
इससे करो कोई खेल ...

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर
बातें जो बोल नही पाते

बहुँत सी बातें है,
कुछ मन की गांठे है...
जो कुछ लोग कह नही पाते,
कुछ बातें कुछ लोग ही कह पाते....
बोलने की लगन होती है,
मगर बोल नही पाते...
समझना चाहते है पर समझ नही पाते,
क्योकि वह बात बोल ही नही पाते...
यह धरती के हर प्राणी में होती है,
ये कैसी लीला है जो हर जगह होती है...

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

कविता: पेन

पेन

पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा...
तुम से हम सब लिखा पढ़ी करते,
तुमसे ही हिसाब किताब रखते...
पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा...
पेन जिस कागज पर चलता,
समझो वो तो कभी मिटता...
पेन है हरदम संग संग रहता,
सभी का प्यारा दोस्त है बनता...
पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा...
पेन खरीदता है हर कोई,
बच्चे बूढे और हो कोई...
साथी है सबके जीवन का,
नीले पीले और सतरंगी सा....
पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा....

लेखक : सागर कुमार, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

कविता: सूर्य

सूर्य

सूर्य एक तारा है,
यह उजाले का सहारा है...
इससे रोशनी पाती दुनिया है,
सौर मंडल की मज़ेदार दुनिया है...
सूर्य होता आज अगर,
हम होते दुनिया पर...
सूर्य तो जान से प्यारा है,
चाहता इसको संसार सारा है...
जिन्दगी का बहता जो धारा है,
इसकी वजह सूर्य हमारा है....
लेखक: सोनू कुमार, कक्षा , अपना घर



गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

कविता: आसमान क्या रंग बदलता

आसमान क्या रंग बदलता


ऊपर देखो तारे देखो,
आसमान के नज़ारे देखो...
नीचे देखो बजारें देखो,
बच्चों के भी मजाके देखो...
आसमान भी क्या रंग बदलता,
हम बच्चों का मन बदलता...
तन है कैसा मन है कैसा,
ये आसमान का रंग है कैसा...

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ४, अपना घर

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

कहानी: हरहर सिंह की तरकीब

हरहर सिंह की तरकीब
प्राचीन काल की बात है की एक राजा किसी नगर में राज्य करता था वह बड़ा ही निर्दयी और क्रूर और हरदम दुखी रहने वाला राजा था वह लोगो को हमेशा सताया और डराया करता था वह सभी लोगो से अपने खेतों में काम करवाता था और काम के बदले जो भी पैसा तय करता उतने देकर उससे बहुत ही काम पैसे देता था, मजदूर जब अपने पैसे मांगते थे तो उनकी पिटाई करता और उन्हें जेल में डाल देता इस तरह से राजा नगर के लोगों को सताया करता था उसी नगर में हरहर सिंह नाम काल एक नौजवान रहता था उसकी उम्र लगभग २८ वर्ष थी, वह कुछ पढ़ा लिखा था और बहुत समझदार भी था जब उसे पता चला की राजा नगर के वासियों के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है, तो हर हर सिंह ने लोगों को बुलाकर एक बैठक की और उन्हें समझाया कि हम लोगों को स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार है और हम लोगो से कोई जबरदस्ती करके काम नही ले सकता है मगर हम लोगों को अपने अधिकार लेने के लिए एक साथ संगठित और शिक्षित होकर संघर्ष कारन पड़ेगा तब हमें अपना अधिकार मिलेगा हमें अपना अधिकार तब मिलेगा सब हम सभी राजा के पास चलाकर इस अन्याय का विरोध करे और हम स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार मांगे बैठक के बाद कुछ लोगो राजा के पास जाकर विरोध करने के लिए तैयार ही गए, मगर कुछ लोगो राजा के डर से इस विरोध में शामिल नही हो रहे थे हर हर सिंह ने उन लोगों को फ़िर से खूब समझाया कि राजा तुम्हारा कुछ नही कर सकता है करेगा, इसलिए आप सभी इस संघर्ष में शामिल हो... ये तुम्हारा अधिकार है अगर आप नहीं लोगो तो वो कौन लेगा, तुम्हे अपना अधिकार लेने के लिए राजा का विरोध करना चाहिए, अगर नही करोगे तो तुम्हे अधिकार नही मिलने वाला है इतन कहते ही सभी नगर वासी संघर्ष के लिए तैयार हो गए औए अगले दिन राजा के राजा के दरबार में विरोध करने पहुँच गए और अपने अधिकार के मांग को लेकर नारे लगाने लगे राजा सभी नगरवासियों को इकठ्ठा देख कर डर गया वो सोचने लगा कि कंही सभी मिलकर हमें पीटने लगे राजा सभी से बातचीत करने लगा और उसने नगरवासियों से कहा कि मै ग़लत था आप सबसे अपनी गलतियों के लिए माफ़ी चाहता हूँ आज से आप सभी अपने मर्जी से काम का समय तय करेंगे और जो भी मजदूरी आप सभी मिल कर तय करेंगे वो मजदूरी आपको पूरी कि पूरी मिलेगी और राजा ने उनके सभी अधिकार दिए नगर के लोगो इस जीत से बहुँत ही खुश हुए नगरवासियों ने हरहर सिंह को इस जीत के लिए धन्यवाद् दिया और खूब बधाइयां दी हरहर सिंह कि तरकीब देखकर राजा बहुँत ही प्रभावित हुआ राज ने भी निर्दयता, क्रूरता, सताना और डरना छोड़कर लोगो के साथ अच्छा ब्यवहार करने लगा राजा अब सभी के साथ खेतो में जाकर ख़ुद काम करने लगा सभी लोगो के साथ मिलकर उनके साथ प्रेमपूर्वक जीने लगा इस प्रकर अब नगर के सभी लोग हरहर सिंह के साथ खुशी से रहने लगे साथ में अब राजा भी बहुत खुश रहने लगा....
lekhak: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना ghar

कविता: लालू भइया ........

लालू भइया ........

लालू भइया बड़े दयालू,
खाते जाते हरदम आलू....
घर में पहुंचे बन गए भालू,
इसलिए हम कहते लालू....
लालू भइया बड़े दयालू,
उनके दोस्त है मोटे कालू....
लालू जम के खाते अंडा,
खूब लहराते देश का झंडा....
लालू भइया बहुँत है छोटे,
इसीलिए दिखते है मोटे. ..
लालू भइया बड़े है भोले,
रखते मुंह में पान के गोले....
लालू भइया बड़े दयालू,
दान में हरदम देते आलू....
लालू जब भी खाते आलू,
उनके घर में आता भालू....

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

कविता: आख़िर क्या......?

आख़िर क्या....

कुछ नही बोलता,
फालतू में चिल्लाता...
दूसरो को जगाता,
सबकी नींद भगाता...
फटी जेब सिलता,
सभी से यह मिलता...
हलवा पूड़ी खाता,
रात को अपने घर में सोता...
आख़िर क्या....?


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर