शनिवार, 30 मई 2009

कहानी: मछुआरे और नेवले कि दोस्ती

मछुआरे और नेवले कि दोस्ती
एक समय की बात है कि एक मछुआरा मछली मारने के लिए जाल लेकर अपने घर से नदी की ओर चला, चलते- चलते रास्ते में उसे एक बडा सा सांप मिला, वह सांप बहुत काला और खतरनाक था वह सांप रास्ते में खड़ा हो गया और बोला कि मैं तुम्हें काटूगा इतने में मछुआरे ने कहा कि मैंने आपका क्या बिगाडा है, जो आप मुझे काटेगें सांप ने कहा मैं भूखा हूँ और मुझे कुछ खाने को चाहिए मछुआरे ने कहा ठीक है जब मै मछली मारकर वापस आऊंगा , तब मैं आपको मछली दूंगा, आप उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लेना सांप नें कहा कि अगर मछली मिली तो मैं तुमको काट लूँगा मछुआरे नें कहा कि ठीक है, तो जाओ और जल्दी वापस आना, सांप ने कहा जब मछुआरा वहां से थोडी दूर बढ़ा तो उसने देखा कि एक नेवला प्यास की वजह से चल नहीं पा रहा है तो उस मछुआरे को दया गई, उसने नेवले को उठाया और पहुंच गया नदी के पास ,वहाँ जाकर नेवले को मछुआरे ने पानी पिलाया और चुप चाप एक जगह पर जाल लगाकर बैठ गया नेवले ने पूछा कि क्या बात है तुम इतने उदास क्यों हो मछुआरे ने सारी बात बता दी नेवले ने कहा कि तुम चिंता मत करो सब कुछ ठीक हो जाएगा, जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ तुम्हें कुछ नहीं होगा मछुआरे को वहाँ जाल से एक भी मछली नहीं मिली, अब मछुआरा बहुत उदास हुआ नेवले ने कहा कि तुम घर कि ओर चलो और मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ मछुआरे ने नेवले को अपनी पोटली में रख लिया और घर कि तरफ़ चल दिया, थोड़ी दूर चलते ही वहीं साँप रस्ते में मिला और वह फुंफकारते हुए बोला कि मछलियाँ कहाँ हैंमछुआरे ने पोटली खोलकर नेवले को बाहर निकाल दिया नेवला पोटली से निकलते ही साँप पर टूट पड़ा, नेवले और सांप में खूब लड़ाई होने लगी सांप को काफी चोट भी लग गई सांप वंहा से जंगल कि तरफ़ भाग निकलामछुआरा नेवले को अपने साथ घर ले गया और इस प्रकार से घर में सही सलामत पहुच कर मछुआरे और नेवले ने साथ में कहना खायाइस प्रकार से मछुआरे और नेवले में पक्की दोस्ती हो गईअगले दिन से दोनों दोस्त साथ में मछली मरने जाने लगे
कहानी: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

गुरुवार, 28 मई 2009

सम्पादकीय: १७ मई 2009

प्यारे दोस्तों
"बाल सजग" अच्छे से चल रहा है। हमें उम्मीद है की हमारे बाल सजग की कविता और कहानियाँ लोग बराबर पढ़ रहे है। पाठकों के हौसला अफजाई संदेश हमें बराबर मिल रहे है जिससे हमें और ज्यादा लिखने की प्रेरणा मिल रही है। इस बार बाल सजग में पेंटिंग बहुँत ही कम लगी, यह हम सभी की गलती है । हम कोशिश करे की बाल सजग को और बेहतर बनायें, हम सभी को और मेहनत करनी चाहिए। अभी लोक सभा का चुनाव ख़त्म हुआ और कांग्रेस भारी मतों से जीती है अब फ़िर से कांग्रेस की सरकार भी बन जायेगी। हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को काम करते हुए ५ साल हो चुके है अगले प्रधानमंत्री फ़िर से मनमोहन सिंह जी होंगे। शायद हमारे देश की जनता सोचती है की राजनीतिक पार्टिया अच्छा काम करती है, तभी तो वो उन्हें जिताकर संसद में भेजती है। मगर मुझे नही लगता है की राजनितिक पार्टिया और ये नेता अच्छा काम कर रहे है, वो तो जनता को लूटने में लगे है, उनसे बेहतर तो समाज सेवक और निर्दलीय लोग अच्छा काम कर रहे है। पार्टी सिर्फ़ अपने हित के लिए सोचती है मगर समाज सेवक तो देश और आम जनता के लिए सोचते है। हमारे देश में अगर कोई समाज सेवक किसी ग़लत बात का विरोध करता है तो जनता उसका साथ नही देती है, मगर राजनीतिक पार्टी के लोग ग़लत भी करे तो जनता उनका साथ देती है और अपने घर ले जाकर शरबत, चाय पिलाती है। सरकारी कार्मचारी भी उन्ही राजनीतिज्ञों की सुनते है। मगर हमें इस व्यवस्था को बदलना होगा और ये तभी होगा, जब आम जनता चेतेगी और इस गन्दी राजनीति को साफ करके अच्छे लोगों को चुनकर संसद में भेजेगी.....
१७ मई २००९
संपादक: अशोक कुमार, कक्षा ६, अपना घर
उप सम्पादक: ज्ञान कुमार, कक्षा ५, अपना घर
बाल सजग
अपना घर
बी० -१३५/८, प्रधान गेट, नानाकारी
आई० आई० टी० , कानपूर -२०८०१६
फोन: ०५१२-2770589

कविता: एक तालाब पर बैठा बगुला

एक तालाब पर बैठा बगुला॥
अपना ध्यान पानी लगाये।
मछली उछले उसको लपकूं॥
ये उसके मन में विचार आए
तभी एक केकड़ा पहुचाँ॥
झट उ़सने बगुले को दबोचा।
तब बगुले को समझ में आया॥
अ़ब करूँगा कभी शिकार।
तब केकड़े ने उसको छोड़ा
छूटते ही बगुले ने भर ली उड़ान।
और जा पहुँचा आसमान
कविता: ज्ञान , कक्षा 5, अपना घर
पेंटिंग: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर


कविता: जल है जीवन

जल है जीवन
जल है मेरा जीवन
क्या इसके बिना जीवन
सदा साफ जल को ही पिए।
खूब जीवन लम्बी जिए॥
सबकी प्यास बुझाता जल।
तन की थकान मिटाता जल॥
जल को बर्बाद करे हम।
जल को बचाए मिलकर हम॥
जाने कितने को देता है जीवन।
इसके बिना बेकार है जीवन॥
जल है मेरा जीवन।
इसके बिना क्या जीवन
कविता: मुहम्मद चंदन तिवारी, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 26 मई 2009

कविता: पेड़.

पेड़
पेड़ है देखो कितने प्यारे।
ये तो है सबसे न्यारे ॥
पेड़ के सहारे सब जीते है।
पंछी तेरा रस पीते है ॥
फल को खाकर हम जीते है ।
छाँव में तेरे सुख पाते है ॥
तुम तो हो स्वपोषी ।
जीते तुमसे परपोषी ॥
तुमसे बहती जीवन की धारा ।
तुम तो हो जीवन का तारा ॥
तुमको हमें बचाना है ।
पेड़ों को खूब लगाना है ॥
कविता: सागर कुमार, कक्षा ५, अपना घर

कविता: टेलीफोन

टेलीफोन
कितना अच्छा है टेलीफोन।
बातचीत का साधन टेलीफोन
दूर - दूर से बाते होती
जाने कैसे आवाज पहुँचती॥
सोच - सोचकर यही पछताता।
कैसे टेलीफोन बातें करवाता
टेलीफोन एक ऐसा रस्ता।
जोड़े एक दूजे का रिश्ता॥
इसमे है रुपये का खर्चा।
तभी तो है टेलीफोन का चर्चा

कविता: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर


शनिवार, 23 मई 2009

कविता: पानी जीवन का गहना

पानी जीवन का गहना
बादल गरजा गड़ - गड़ - गड़
बिजली चमकी चम - चम - चम
पानी बरसा टप - टप -टप
मेढ़क कूदा छप - छप - छप।।
हम सब भीगे पानी में
पानी भागे नाली में ।।
पानी को हमें बचाना है
पेड़ों को खूब लगना है
पानी को इकठठा करके रखना
जल ही है जीवन का गहना
कविता: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर

बुधवार, 20 मई 2009

कहानी: बाग की परियाँ

बाग की परियाँ
पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा सा गाँव, जिसका नाम सुन्दरपुर था । मानस और उसका परिवार उसी गाँव में रहते थे, माँ जब पहाड़ों पर जंगल से लकड़ी बीनने जाती तब मानस भी माँ के साथ बकरियों को लेकर पहाड़ पर चराने जाया करता था। उस गाँव के पास दूसरे पहाड़ पर एक बहुत ही सुंदर बगीचा था। मानस उस बगीचे में घूमने और फल खाने जाया करता था, कभी - कभी तो रात को भी उस बगीचे में घूमने चला जाता था। एक बार उसकी माँ ने कहा बेटा उस बगीचे में रात को मत जाया करो, वहां पर रात को परियां नाचने आती है। मानस ने कहा माँ तुम चिंता मत करो मुझे परियों से डर नही लगता , परियां अगर कभी मुझसे बगीचे में मिल गई तो मै उनके साथ खूब खेलूँगा और नाचूँगा भी। माँ के लाख मना करने के बाद भी मानस बगीचे में जाना नहीं छोड़ा। वो हमेशा दिन रात उन परियों के बारे में सोचता रहता। एक दिन घर के सभी लोग रात को गहरी नींद में सो रहे थे, मानस अपने बिस्तर से उठा और चुपके से बगीचे की तरफ़ चल दिया। बगीचे में दूर से रौशनी दिख रही थी, मानस और तेजी से बगीचे की तरफ भागा। बगीचे में पहुच कर मानस ने देखा की सफ़ेद रौशनी में गुलाबी, सफ़ेद, नीली, पीली, लाल और कई रंग की कपड़े पहने सुंदर - सुंदर परियां नाच रही है। मानस भी उनके साथ नाचने लगा, कुछ देर में परियों ने नाचना बंद कर दिया। सभी परियां मानस को चारो तरफ़ से घेर कर खड़ी हो गई, और उसके बारे में पूछने लगी। मानस और परियों में आपस में खूब दोस्ती हो गई। परियों ने कहा मानस अब हम लोग सात पहाड़ों के पार फूलों की घाटी में नाचने जा रही है तुम भी चलोगे क्या ? मानस ने कहा मै कैसे जा सकता हूँ मेरे पास तो पंख ही नहीं है। मानस का मन उदास हो गया, मानस को उदास देख कर लालपरी ने अपनी जादू की छड़ी से मानस की पीठ को छुआ, जादू की छड़ी को छूते ही मानस के पीठ पर सुंदर से पंख उग आए। मानस सभी परियों के साथ फूलों की घाटी की तरफ़ उड़ चला। फूलों की घाटी में मानस और परियों ने खूब नाचा, मानस नाचते - नाचते अब थक गया था। मानस परियों से बिदा लेकर अपने घर की तरफा उड़ चला, आसमान से उसका घर पास दिख रहा था। वो अब और तेजी से अपने घर की तरफ उड़ा, वो घर पहुचने ही वाला था तभी एक पेड़ की डाली से मानस टकरा गया, डाली से टकराकर वो धड़ाम से जमीं पर गिर पड़ा, उसके सारे पंख टूट गए। जमीं में पड़े उसकी आँख बंद होने लगी, अचानक उसकी आंख खुली और मानस ने देखा की वो बिस्तर से नीचे जमीं पर गिरा पड़ा है, अब उसे समझ में आया की ये सब सपना था।
कहानी: जीतेन्द्र कुमार, कक्षा , अपना घर
पेंटिंग: मुकेश कुमार, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 19 मई 2009

कविता: चिड़िया खाए पान की पुड़िया

चिड़िया खाए पान की पुड़िया
एक डाल पर बैठी चिड़िया ।
खाके पान की पुड़िया॥
तब आकर बोली एक बुढ़िया।
तुम क्या कर रही हो चिड़िया॥
बोली गुस्से में आकर चिड़िया ।
खाए बैठी हूँ पान की पुड़िया॥
प्यार से कहते मुझको गुड़िया।
दिखता नही क्या तुझको बुढ़िया॥
सुनकर चिड़िया की ऐठी बतियाँ।
गुस्से से फ़िर भर गई बुढ़िया ॥
बोली ले जाउंगी पकड़ के घर में।
तुझसे खाना बनावऊँगी चूल्हे में।।
चिड़िया बोली आसमान में उड़ जाउंगी।
पकड़ न मुझको तुम पाओगी।।
मुहँ बनके रह जाओगी।
खाली हाथ ही घर जाओगी॥
कविता: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग: लवकुश कुमार, कक्षा ५, अपना घर


सम्पादकीय, ११ मई, २००९

सम्पादकीय
प्यारे दोस्तों,
हमारा बाल सजग अच्छे से चल रहा है। बाल सजग में लिखे गए कवितायें और कहानियाँ अपने ब्लॉग बाल सजग पर लगातार प्रकाशित हो रही है। ४ मई को हिंदुस्तान दैनिक अख़बार ने भी अपने ब्लॉग की चर्चा अपने अख़बार में करके हमारा हौसला अफजाई किया है। हम सभी को इस बात की खुशी है कि हमारी मेहनत अब धीरे-धीरे सफल हो रही है। ब्लॉग में लिखे गए हमारी कवितायें, कहानियाँ को पढ़ कर लोगों द्वारा दी गई टिप्पणियाँ हमें लगातार और लिखने के लिए उत्साहित करती है। साथियों अभी लोकसभा का चुनाव ख़त्म हुआ है, देखना है कि कौन सी पार्टी या निर्दलीय नेता चुनकर लोकसभा में जाते है, और देश तथा लोगों कि भलाई के लिए क्या काम करते है। साथियों हमारी गर्मी कि छुट्टिया चल रही है, इन छुट्टियों के दौरान हम कुछ नया लिखें और अपने बाल सजग को और अच्छा और सुंदर बनाने कि कोशिश करें। हम अपनी कल्पनाओं को और ऊँचा ले जायें ताकि सुंदर औए मज़ेदार रचना हो सके।
धन्यवाद् फ़िर मिलते है....
अशोक कुमार, कक्षा ६
११ मई , २००९
संपादक, बाल सजग
अपना घर ,बी० /१३५-८, नानाकारी, प्रधान गेट
आई० आई० टी०, कानपुर-१६
फोन: ०५१२-2270589

कविता: प्यारे फूल

प्यारे फूल
कितने प्यारे फूल है।
सबके प्यारे फूल है॥
जब यह महके तो जग महके।
बगिया में खिलते हरदम रहके॥
इनको देख के खुलते अक्ल के ताले।
मन के हट जाते सब जाले॥
नही किसी से इनका बैर।
सब देशो से इनका मेल॥
हर देशो से इनका नाता।
फूल सभी के मन को भाता॥
दुनिया करती इनकी सेवा।
सेवा करो तो पाओ मेवा॥
फूल है दुनिया के नन्हें तारे।
तभी तो है ये सबके प्यारे॥
महक है इनकी कितनी न्यारी।
खुशबू देते कितनी सारी॥
सबके मन को लगती न्यारी।
फूल की दुनिया सबसे प्यारी॥

कविता: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर
पेंटिंग: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर


















सोमवार, 18 मई 2009

कविता: गर्मी की छुट्टी

गर्मी की छुट्टी
गर्मी आई गर्मी आई।
सर्दी को दूर भगाई॥
गर्मी में हो गई छुट्टी।
पढ़ाई से हो गई कुट्टी॥
गर्मी की छुट्टी में नैनीताल जायेंगे।
मिलके सभी हम खुशियाँ मनाएंगे।।
नानी से मिलने उनके घर जायेंगे।
नाना के संग बाजार घूम आएंगे।।
गर्मी में आइसक्रीम खूब खायेंगे।
पानी में नहाकर गर्मी दूर भगायेंगे॥
स्वस्थ शरीर हम पाएंगे।
गर्मी में नैनीताल जायेंगे॥

कविता: मुकेश कुमार, कक्षा ७, अपना घर
पेटिंग: अशोक कुमार, कक्षा ६, अपना घर

कविता: गर्मी


गर्मी
हवा चल रही है क्या पुरवाई ।
झूम रही है हर पेड़ की डाली॥
सन - सन चल रही गरम लपट।
पतंग हमारी उड़ रही है फटाफट॥
ऐसे में पतंग भला कौन न उडाये।
इतनी गर्मी में भला कौन न नहाये॥
चलो गर्मी के बहाने लस्सी पिया जाए।
लस्सी पीकर चलो पेड़ के नीचे बैठा जाए॥

कविता: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग: अक्षय कुमार, कक्षा ६, अपना घर


कहानी: ऊंट और सियार

उंट और सियार
एक बड़ा सा जंगल था, उस जंगल में एक सियार और एक ऊंट रहता था, उन दोनों में पक्की दोस्ती थी। उंट बहुँत ही शांत और समझदार था पर सियार कुछ ज्यादा ही चालक और गुस्सैल था। सियार हमेशा ऊं के बारे में बुरा सोचता रहता था। एक दिन सियार और ऊंट में किसी बात को लेकर बहस छिड़ गई। सियार बातो ही बातो में गुस्सा होने लगा अचानक सियार को बहुँत गुस्सा आ गया। सियार गुस्से में बोला अगर तू चुप नही हुआ तो मै तुझे मारकर तेरा मांस भी खा जाऊंगा। ऊंट ये नही चाहता था की आपस में कोई झगडा हो इसलिए उंट शांत होकर बोला मै नही चाहता आपस में कोई झगडा हो अगर मुझे से कोई गलती हुई है तो मै तुमसे माफ़ी मांगता हूँ। ऊंट ने कहा मुझसे जो भी अब तक गलती हुई है उन सबके लिए मै माफ़ी मांगता हूँ अब मुझे माफ़ कर दो, और अब मै ये जंगल भी छोड़कर जा रहा हूँ ताकि तुम्हे कोई कष्ट न हो, इतना कहकर ऊंट जंगल से चल पड़ा। सियार को ये सब सुनकर बड़ा अफ़सोस हुआ की गलती मेरी है और ऊंट मुझसे ही माफ़ी मांग रहा है। उसे बहुँत पछतावा हुआ, सियार दौड़ कर गया और ऊंट के पैरो से लिपट गया और कहा मुझसे गलती हुई है मुझे माफा कर दो और जंगल छोड़कर मत जाओ। आगे से मै ऐसा कभी नही करूँगा, ऊंट ने उसे उठाकर गले से लगा लिया। ऊंट और सियार फ़िर आपस में प्यार और मजे से रहने लगे...
कहानी: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर
पेंटिंग: सागर कुमार, कक्षा , अपना घर

रविवार, 17 मई 2009

कहानी: मास्टरनी रीना ने बदली गाँव के तस्वीर

मास्टरनी रीना ने बदली गाँव के तस्वीर
एक समय की बात है। एक गाँव में एक गरीब आदमी रहता था, जिसका नाम दयाशंकर था। वह बहुत ही निर्धन आदमी था, उसका जन्म १७ जनवरी १९६६ को हुआ था। वह किसानी का काम करता था। उसके गाँव का नाम रामपुर था, वह गाँव बहुत साफ - सुथरा और खुशहाल था, लेकिन वंहा के लोग बहुत गरीब थे। उस गाँव में शिक्षा का कोई प्रबंध नही था। दयाशंकर अनपढ़ आदमी था, इस कारण जब वह पास के शहर में काम करने जाता तो ठेकेदार उसे पूरी मजदूरी न देकर सिर्फ़ आधी मजदूरी देता था। दयाशंकर अपने चारो बेटों को पढ़ना चाहता था, लेकिन रामपुर में कोई स्कूल ही नही था। वहां के प्रधान उमाशंकर बड़े ही दुष्ट प्रकार के इन्सान थे। वे सिर्फ़ लोगों से वोट मांगते थे मगर गाँव की समस्याओं की तरफ कोई ध्यान नही देते थे। गाँव के सड़क, नाली लोगो को रासन, स्कूल आदि किसी समस्याओ का निदान नही करते थे। दयाशंकर के पत्नी रीना थोड़ा बहुत पढ़ी - लिखी थी। रीना ने अपने बच्चो को ख़ुद पढ़ना शुरू किया, पास के और बच्चे पढ़ने आने लगे, दयाशंकर के घर में ही स्कूल शुरू हो गया। गाँव के और बच्चे सुनीता, मोनी, राजेश, ब्रिजेश, महेश, सोनू, रानी, गीता और अन्य सभी बच्चे स्कूल आने लगे। गाँव के सब लोग रीना को अब मास्टरनी जी कहके बुलाने लगे। गाँव के सभी बच्चें मन लगाकर पढ़ाई करने लगे, रीना भी उन्हें खेल खिलाकर , गीत, गाना के माध्यम से पढाने लगी, धीरे - धीरे सभी बच्चे लिखना, पढ़ना और जोड़- घटना आदि सब सीख गए। पढ़लिखकर बच्चे अब बड़े हो गए थे, वे शहर में जाकर मजदूरी करने लगे, पढ़े - लिखे होने के कारण उन्हें अब पूरी मजदूरी मिलाने लगी। अगले साल चुनाव आया सभी लोगो ने मिलकर मास्टरनी रीना को प्रधान के चुनाव में खड़ा किया। गाँव के सभी लोगो ने मास्टरनी रीना को अपना वोट दिया, वो चुनाव जीत कर रामपुर गाँव की प्रधान बन गई। अब गाँव में विकास के सारे काम शुरू हो गए। गाँव में पक्की सड़क और नाली बन गई मास्टरनी जी के प्रयास से उस गाँव में एक सरकारी स्कूल भी खुल गया। अब गाँव के सभी बच्चे स्कूल जाने लगे और पढ़ाई करने लगे। गाँव के लोगों को अब पूरी मजदूरी भी मिलने लगी, धीरे - धीरे पूरे गाँव के तस्वीर ही बदल गई। इस तरह से रामपुर गाँव एक शिक्षित और खुशहाल गाँव बन गया।
कहानी: मुकेश कुमार, कक्षा ७, अपना घर
पेंटिंग: आदित्य कुमार, कक्षा ६ , अपना घर


शनिवार, 16 मई 2009

कविता: मै भी पढ़ने जाऊंगा


मै भी पढ़ने जाऊंगा
पापा मै भी पढ़ने जाऊंगा।
पढ़ लिखकर महान बनूँगा॥
अच्छे से अच्छा काम करूँगा।
पापा आपका नाम करूँगा॥
पापा मै भी पढ़ने जाऊंगा।
पढ़ लिखकर महान बनूँगा॥
सदा आपका कहना मानूंगा।
गरीबो की हमेशा मदद करूँगा॥
पापा मै भी पढ़ने जाऊंगा।
पढ़ लिखकर महान बनूँगा॥
देश की मै रक्षा करूँगा।
देश की खातिर जान भी दूंगा॥
पापा मै भी पढ़ने जाऊंगा ।
पढ़ लिखकर अच्छा इन्सान बनूँगा॥

कविता: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर
पेंटिंग: मुहम्मद चंदन तिवारी, कक्षा , अपना घर

कविता: परीक्षा


परीक्षा
जब वार्षिक परीक्षा आई।
तो हमार सिर चकराई॥
नींद ऊपर से आई।
जम्हाई अलग से आई॥
पर क्या करे ? पेपर है सिर पर।
लेके कापी बैठ गए छत पर॥
नंबर आई अगर कम।
तो निकल जाई हमार दम॥
यही सोच के हम पछताई।
की परीक्षा कब खत्म हो जाई॥

कविता: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर
पेंटिंग: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर

सोमवार, 11 मई 2009

कविता: मच्छर

मच्छर
देखो मच्छर की टांगे चार।
काटे तो हम हो जाए बीमार॥
फैले बीमारी मलेरिया हैजा।
रोटी खाने में न आए मजा॥
पड़े रहे फ़िर घर के अन्दर।
काम न करने जा पाए बाहर॥
मच्छर गंदे पानी में रहते।
रुके पानी में हरदम पलते॥
घूम - घूम को रात को काटे।
बीमारी एक दूजे को बांटे॥
पानी साफ हमेशा रखना।
सब बच्चों का यही है कहना॥
जो मच्छर को दूर भगाओगे।
फ़िर तन मन अच्छा पावोगे॥

कविता
: मुकेश कुमार , कक्षा ७, अपना घर
पेंटिंग: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर

कहानी: भूख से हुई मौत

भूख से हुई मौत
एक गाँव में एक आदमी था, वह बेचारा बहुत ही गरीब और ईमानदार आदमी था, वह अपनी टूटी हुई झोपड़ी में रहता था। उसके परिवार में उसके साथ उसकी पत्नी और एक बेटा रहता था। वह आदमी रोज काम करने दुसरे गाँव में जाता था, उससे जो भी आमदनी होती उसी से उसके परिवार का खर्चा चलता था। जब तक वह काम करता रहा तब तक उसका घर चलता रहा, मगर एक दिन वह बीमार पड़ गया और काम पर नही जा सका। अगले दिन वो काम पर जाने की कोशिश किया मगर वह बहुँत ही कमजोर हो चुका था, वो चाह कर भी बिस्तर पर से उठ नही सका। घर में बस थोड़ा सा आनाज बचा था, अब घर में खाने के लिए कमी होने लगी। उसका घर गाँव से थोड़ी दूरी पर था, गाँव के लोग इधर की तरफ बहुत कम ही आते थे। बारिस का समय होने के कारण अब बारिश भी शुरू हो गई थी। अचानक रातो दिन तेज बारिश होने लगी, वह बेचारा बारिश और बीमारी के कारण काम करने नही जा पा रहा था। अब उसके घर का सारा रासन खत्म हो गया सिर्फ़ पानी पीकर पूरा परिवार गुजारा करते थे, अब उन तीनो में उठने की भी ताकत धीमे-धीमे खत्म हो रही थी, धीरे- धीरे वह तीनो भूख से मरने लगे। पास के नदी का पानी बारिश के कारण उफान पर था। अगले दिन तीनो भूख से लड़ते - लड़ते अंततः मर गये... सारा दिन उनकी लाश उस टूटी झोपड़ी में पड़ी रही.. और बाहर भयंकर तूफ़ान के साथ जोरो की बारिश होती रही.... रात को नदी में जोरो की बाढ़ आ गयी और बाढ़ का पानी अपने साथ उन तीनो और उनकी टूटी झोपड़ी को इस गाँव से बहुत दूर बहा कर ले गई... जहाँ भूख से कोई नही मरता......
कहानी: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग: सागर कुमार, कक्षा ५, अपना घर

शनिवार, 9 मई 2009

कविता: चुनमुन चिड़िया


चुनमुन चिड़िया
आओ बच्चों सुनो कहानी।
एक था राजा थी रानी॥
रानी ने एक चिड़िया पाली।
शक्ल की थी वो भद्दी काली॥
कद में तो वह छोटी थी।
पर कुप्पे सी मोटी थी॥
गले में था चमड़े की पट्टी।
काम में थी वो हट्टी - कट्टी॥
मक्के की रोटी खाती थी।
फुर्र से वो तब उड़ जाती थी॥
कविता: रामकृष्ण , कक्षा , अपना घर
पेंटिंग: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता: सब्जी का बाजार

सब्जी का बाजार
आलू भइया चले घूमने ।
कद्दू के संग लगे झूमने॥
तब तक दौड़ा शिमला आया।
अपने संग गाजर को लाया॥
मिर्च टमाटर दूर खड़े थे।
मटर और गोभी डंटे पड़े थे॥
बैगन थोड़ा मस्ती में था।
कटहल राजा गस्ती में था॥
लगी झूमने धनिया रानी।
संग में नाचे ककड़ी नानी॥
तभी रंग में भंग पड़ गया।
कद्दू शिमला पर चढ़ गया॥
शिमला को फ़िर गुस्सा आया।
बगल से उसने डंडा लाया॥
शिमला ने कद्दू को मारा।
कद्दू लुढक गया बेचारा॥
इतने में लौकी आ गई ।
चारो तरफ से भीड़ छा गई।।
लौकी पूछी क्या हुआ है भाई ।
क्यो कर रहे हो दोनों लड़ाई॥
बंद करो आपस का झगड़ा।
किसी करो न कोई रगड़ा॥
आपस में मिलजुलकर रहना।
सब सब्जी का यही है कहना ॥
आपस में जब मिल जाते है ।
अच्छी सब्जी बन जाते है॥
कविता: मुकेश कुमार, कक्षा ७, अपना घर
पेंटिंग: ज्ञान कुमार, कक्षा ५, अपना घर






कविता: रात के अंधेरे में


रात के अंधेरे में
रात के अंधेरे में भूतों के डर से।
निकल पड़ा दुसरे पड़ोसी के घर से॥
रास्ते में निकल पड़ा सांप लंबा सा।
दूर से दिखा तो लगा बिल्कुल लकड़ी सा॥
पास जाकर देखा तो मै डर गया।
डर के मारे मै पड़ोसी के घर भाग गया॥
बीती रात हुआ जब उजाला।
तब मै पड़ोसी के घर से निकला॥
गा रही थी चिड़िया पेडों पर।
मै पहुँच गया अपने घर पर॥


कविता
: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग: ज्ञान कुमार कक्षा ५, अपना घर

शुक्रवार, 8 मई 2009

कहानी:- नन्हा शिकारी

नन्हा शिकारी
बहुत साल पहले की बात है। एक राजा का ४ - ५ गाँवो का एक छोटा सा राज्य था, उस राज्य में में सभी लोग खुशी से रहते थे। उसके राज्य का एक गाँव जंगल के किनारे पर था। एक बार उस गाँव के किनारे वाले जंगल में कंही से शेर आ गया। उधर से जो भी गुजरता था, शेर उसे मार कर खा जाता था। शेर से परेशान होकर गाँव वालो ने राजा के यंहा फरियाद की, राजा ने ये घोषित करवाया कि जो भी आदमी इस शेर को मार देगा, हम उसे बहुँत सारा धन और १० बीघा खेत भी देंगे। सभी ने ये ये बात सुनी, मगर किसी कि यह हिम्मत नही हुई कि वह जाकर शेर को मारे। उसी गाँव में एक १० वर्ष का लड़का अपने माँ के साथ रहता था। उसकी माँ बहुँत ही गरीब और बीमार थी। उस लड़के ने शेर को मारने के लिए ठान लिया। वो राजा के पास गया और कहा आप बस मुझे एक धनुष और जहर में बुझे कुछ तीर दे दीजिये। मै शेर को मरूँगा, राजा उस छोटे से बच्चे को देखकर मुस्कराए मगर उसकी बहादुरी और जिद को देखकर उसे धनुष और तीर दे दिए। उस लड़के ने धनुष और तीर लेकर जंगल कि तरफ़ चल दिया। वह एक अपने साथ एक आदमी का पुतला भी बना कर ले गया। वह जंगल में जाकर एक पेड़ पर चढ़ गया और उसकी डाल से उस आदमी के पुतले को लटका कर थोडी उचाई पर बाँध दिया, और खुद पत्तो के बीच छुपकर धनुष और तीर लेकर बैठ गया और शेर के आने का इंतजार करने लगा। उधर शेर को कई दिनों से शिकार नही मिला था, घूमते - घूमते वो उस पेड़ के पास पहुँच गया। जैसे ही वो पुतले को देखा उसने सोचा कि वो कोई आदमी है , वो उस पुँतले पर छलांग लगा दी, तभी पत्तो के बीच छुपे लड़के ने उसके दोनों आँखों के बीच निशाना साध कर तीर चला दी, तीर सीधे आँखों के बीच में जाकर लगा गया। शेर एक जोर का दहाड़ लेकर जमीं पर गिर पड़ा, और मर गया। राजा ने जब यह सुना तो उन्होंने उस लड़के को सम्मानित किया और ढेर सारा धन के साथ-साथ १० बीघा जमीं दिया, और उसे अपने राज्य का नन्हा शिकारी बना दिया। अब वो नन्हा लड़का अपनी माँ और सभी गाँव वालो के साथ खुशी पूर्वक रहने लगा।
कहानी:- आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग:- मोनू कुमार, कक्षा ५, अपना स्कूल

कविता:- राजा रानी

राजा रानी
एक था राजा एक थी रानी
दोनों की है अजब कहानी
राजा करता था शिकार।
रानी बनती थी आचार॥
दोनों खाते थे आचार।
अच्छा रहता उनका विचार॥
कभी न पड़ते वे बीमार।
रहते हरदम होशियार॥
एक दिन दोनों में हो गई लड़ाई।
एक दुसरे की करी पिटाई॥
रानी जीती राजा हारा।
राजा के पास बचा न चारा॥
राजा बोला अब न करेंगे लड़ाई।
आओ एक दूजे की करे बड़ाई ॥

ज्ञान कुमार, कक्षा ५, अपना घर





कहानी:- घमंडी शेर

घमंडी शेर
एक गांव के पास में एक खूब घना जंगल था, उस जंगल में ढेर सारे जानवर रहते थे।जंगल के सब जानवरों ने मिलकर अपने यहाँ एक शेर को राजा बनाया। मगर धीरे - धीरे शेर अपने को जंगल का मालिक समझने लगा। वह बहुत घमंडी हो गया था, वह अपने को सबसे महान और ताकतवर समझने लगा। वह सोचता था कि उससे कोई नही जीत पायेगा। घमंडी शेर जंगल में सब जानवरों के ऊपर अत्याचार करने लगा।जंगल के पास के गाँव के लोग उस जंगल में लकड़ी और फल चुनने आते थे। जंगल के जानवर कभी भी उनको परेशान नही करते, गाँव के लोग भी जंगल के जानवरों का ख्याल रखते थे। उस जंगल में कोई भी शिकारी गाँव के डर वालो से शिकार करने नही आता था। गाँव वालो का जंगल में आना उस घमंडी शेर को पसंद नही आया। शेर अब गाँव वालो को परेशान करने लगा, गाँव के लोग अब इस जंगल के तरफ आने से डरने लगे। शेर ये सोच के खुश हो रहा था की सब गाँव वाले मुझसे डरते है अब मै दुनिया में सबसे ताकतवर हूँ। एक दिन शेर जंगल में घूमते - घूमते गांव की सीमा पर पहुचं गया, वंहा खेत में एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। शेर ने उस किसान को डराने के लिए उसे दौड़ा लिया, किसान शेर को अपनी तरफ़ आता देख डर के मारे अपने घर की तरफ़ भागा। शेर भी उस आदमी के दौड़ता हुआ गाँव में पहुँच गया। शेर के गाँव में पहुँचते ही गाँव के सब कुत्तो ने मिलकर शेर को चारो तरफ़ से घेर लिया और उसे काटने लगे शेर घबरा गया मगर वो अब चारो तरफ़ से कुत्तो के बीच घिर गया था। सभी कुत्तो ने मिलकर उस घमंडी शेर को मार डाला। शेर के मरते ही सभी गांव वाले खुश हो गए। उधर जंगल में जैसे ही ख़बर मिली की घमंडी शेर को गाँव के कुत्तो ने मार डाला जंगल के सारे जानवरों ने खूब खुशी मनाई और सभी जानवरों ने मिलकर इस बार सबसे अच्छे हाथी दादा को जंगल का राजा नियुक्त किया। अब जंगल में फ़िर से गाँव वाले जाने लगे और पूरे जगल में सभी जानवर मजे से रहने लगे।
कहानी:- सोनू कुमार, कक्षा ७, अपना घर
पेंटिंग:- आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर

बुधवार, 6 मई 2009

कहानी:- हाथी और बकरी

हाथी और बकरी
एक जंगल में हाथी और बकरी दोनों साथ रहते थे। दोनों में बहुँत दोस्ती थी हाथी और बकरी दोनों खाना ढूंढने साथ में ही निकलते थे। एक दिन दोनो जगंल में दूर निकल गए, उन्हें वहां पर एक तालाब दिखाई दिया, उस तालाब के किनारे एक बेर का पेड़ दिखा, बेर का पेड़ देख कर हाथी और बकरी दोनों खुश हो गए। बेर खाने के लिए हाथी ने बेर के पेड़ को जोर से हिलाया ढेर सरे पके बेर जमीं पर गिरने लगे। उसी पेड़ पर एक चिड़िया का घोसला भी था, उस घोसले में चिड़िया का बच्चा सो रहा था, चिड़िया कहीं दाना चुगने गई थी। बकरी जल्दी- जल्दी बेर बटोरने लगी, बे के पेड़ हिलने से घोसले में सोया चिड़िया का बच्चा तालाब में गिर गया। चिड़िया का बच्चा डूबने लगा ये देख कर बकरी जल्दी से पानी में कूद गई, लेकिन बकरी को ज्यादा तैरने नही आता था। बकरी भी डूबने लगी तभी हाथी तालाब में कूद गया और उसने बकरी और चिड़िया के बच्चे को तालाब से बाहर निकालकर उन्हें डूबने से बचा लिया। चिड़िया तब तक वापस आ गई अपने बच्चे को ठीक देखकर चिड़िया बहुत खुश हुई। उसने हाथी और बकरी को यंही पर साथ में रहने को कहा। हाथी और बकरी चिड़िया के साथ वही पर रहने लगे। कुछ दिनों में चिड़िया का बच्चा बड़ा हो गया। चिड़िया पेड पर और हाथी बकरी पेड के नीचे रहते थे चिड़िया उड़कर पता लगाती कि कहां कहां फल लगे हैं फिर चारो वहां जाते और खूब फल खाकर नाचते कूदते मजे करते।
कहानी :- आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग १:- चंदन कुमार, कक्षा ३, अपना घर
पेंटिंग २:- लवकुश कुमार, कक्षा ५, अपना घर

कहानी:- सांप और चूहे की दोस्ती

सांप और चूहे की दोस्ती
एक बार की बात है, एक बिल में एक चूहा रहता था। एक दिन उसी बिल के पास एक सांप आकर बैठ गया। चूहा ने सोचा अब तो हमारी खैर नही, ये सांप हमे खा जायेगा पर वह सांप ऐसा नहीं सोचता था। वह सांप चूहे से दोस्ती करने आया था, क्यो की उस सांप के पास अपना घर नहीं था। वह सांप एक घर तलाश कर रहा था जहाँ पर वो रह सके, पर चूहा के मन में ये डर बैठा रहा की ये सांप कहीं हमको खा गया तो... सांप ने चूहा को बताया की वो उसे खाने नही आया है वो तो बस एक घर को तलाश रहा है जहाँ पर वो रह सके.... यह सुनकर चूहा अपने बिल से बहार आकर बोला भाई आप कौन हो और मेंरे घर में क्या करने आये हो सांप बोला भाई मेरा कोई नहीं है और मेरा पास घर भी नहीं है। अगर आप मुझे अपने घर में रख लेंगे तो आप की बडी दया होगी चूहा ने बोला ठीक है भाई रख लेगें। चूहे ने अपने घर के एक हिस्से में सांप को रहने के लिए जगह दे दी। चूहा और सांप दोनों साथ - साथ रहने लगे। एक दिन सांप बीमार पड़ गया वो शिकार करने नही जा सका उसे खाने में कुछ नही मिला......भूख के मारे सांप के पेट में दर्द होने लगा। सांप ने सोचा की इस चूहे को ही मार के खा जाते है फ़िर उसने सोचा की इस चूहे ने अपनी जान जाने की परवाह किए बिना हमें रहने की जगह दी है, इसको खाना ठीक नही होगा। सांप को इस तरह पड़ा देखकर चूहा ने सोचा ये सांप कहीं शिकार के लिए गया भी नही और लग रहा है कुछ खाया भी नही है। चूहा चुपके से सांप को देखने लगा सांप भूख के मारे तड़प रहा था.... चूहा को यह देखा नही गया उसने पूछा कि तुम खाना क्यो नहीं खाते हो सांप ने कहा मै बीमार हूँ इस लिए शिकार नही कर सका मेरे पास कोई खाना नही है... भूख के मारे मेरा बुरा हाल है कई बार मेरे मन में बुरा ख्याल आया की मै तुमको खा जाऊ मगर नही दिल ने मना कर दिया। चूहे ने यह सुनकर दौड़कर बहार गया और उसके लिए खाने का इंतजाम किया... फ़िर सांप और चूहे दोनों ने साथ में बैठकर भरपेट खाना खाया..... अब सांप और चूहे दोनों रोज साथ में खाना खाते और घूमने जाते। सांप और चूहा दोनों मजे से एक ही बिल में रहने लगे... धीरे - धीरे सांप और चूहे की दोस्ती की कहानी पूरे जंगल में फ़ैल गई।
कहानी:- सागर कुमार, कक्षा ५, अपना घर
पेंटिंग:- लवकुश कुमार, कक्षा ५, अपना घर

मंगलवार, 5 मई 2009

कहानी:- मूर्ख सियार

मूर्ख सियार
एक जंगल में दो सियार रहते थे, वे दोनो भाई थे। वे दोनो हमेशा आपस मे लड़ते रहते थे। उनके माता पिता उनसे बहुत परेशान थे। उनके माता पिता ने जंगल के राजा शेर को अपनी परेशानी बताया। शेर ने दोनों सियारों को बुलाकर उन्हे बहुत समझाया लेकिन वे नही माने, एक दिन सियार की मम्मी मर गयीं। उनके पापा ने अपने दोनों बेटों को बुलाया और उनको समझाया कि देखो हम भी एक दिन मर जायेंगे तो उसके बाद खेत को कौन देखेगा, अगर तुम दोनो ऐसे ही लड़ते रहे तो हमारे खेत कोई दूसरा ले लेगा इसलिए आपस में लड़ने की बजाय तुम लोग मिलकर रहो, लेकिन फ़िर भी उनकी समझ में नही आया। अंततः एक दिन उनके पिता भी चल बसे। सियार के पास तीन जमीनके टुकडे थे । दोनों सियारों ने जमीन का बटवारा करना तय किया, बड़ा वाला सियार अपने छोटे सियार भाई से बोला कि दो खेत हम ले लेते है और एक खेत तुम ले लो। छोटा भाई सियार बोला नहीं हम दो खेत लेंगे, इस बात को लेकर दोनों सियारों में खूब झगड़ा होने लगा। उसी समय उधर से एक लोमड़ी निकल रही थी छोटे भाई सियार ने लोमड़ी को जाते देखकर उसे आपस में समझौते के लिये बुलाया। लोमड़ी ने उन दोनों सियारों को पास में बैठाया और कहा की तुम दोनों चाहते हो की तुमसे ज्यादा दुसरे को न मिले, दोनों सियारों ने कहा हाँ। लोमड़ी ने कहा की मेरे पास एक तरीका है तुम दोनों अपने तीनो जमीन के टुकड़े मुझे दे दो इन जमीन के टुकडों से जब एक और जमीन का टुकडा पैदा होगा तब तुम्हारे पास चार जमीन के टुकडे हो जायेंगे फ़िर दोनों दो - दो जमीन के टुकड़े ले लेना। दोनों मुर्ख सियार लोमड़ी के इस बात को मान गए और वे खुश हो गए की उन्हें जमीन के दो - दो टुकड़े मिलेंगे। दोनों ने अपने जमीन के तीनो टुकड़े के लोमड़ी को दे दिया। लोमड़ी ने उनसे तीन साल बाद आने को कहा। लोमड़ी आराम से उनमे खेती करके आनाज उगने लगी। तीन साल बाद दोनों सियार आए आयर कहा लोमड़ी बहन जमीन का बच्चा हुआ क्या? लोमड़ी उन्हें देखकर जोर - जोर से रोने लगी दोनों सियार डर गए, लोमड़ी बोली सियार भइया हमने बहुँत मेहनत की मगर आपकी जमीन बच्चा देते हुए मर गई। मैंने आपका बहुँत इंतजार किया आप नही आए तो मैंने उसे जंगल फेंक दिया। इस तीन साल में लोमड़ी ने जमीन पर ढेर सारा पेड़ लगा दिया अब वंहा पर कोई खाली जमीन नही थी। लोमड़ी ने कहा देखो यंहा पर कोई जमीन नही है, दोनों मूर्ख सियार रोते हुए वापस जंगल की तरफ चले गए।
कहानी:- धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा 6, अपना घर
पेंटिंग:- आदित्य कुमार, कक्षा 6, अपन घर

कविता:- छोटी सी मख्खी

छोटी सी मख्खी
एक छोटी सी मख्खी
दिन भर रहती घर के अन्दर
घर के अन्दर जब भी आ जाती
घर के दरबाजे खुले पा जाती
एक छोटी सी मख्खी..
दिन भर रहती घर के अन्दर
घर के अन्दर तब - तब आती
घर के अन्दर जब गन्दगी रहती
खाने में मुंह लगा देती हैं
सबको को बिमार बना देती हैं
अपने आप को बचा कर भाग जाती
फ़िर न किसी से पकड़ में आती
वापस उस घर में शक्ल दिखाती नहीं
क्योंकि वह पहचान में आती नहीं
सब एक जैसी लगती हैं ।
एक छोटी सी मख्खी
दिन भर रहती घर के अन्दर ....
कविता:- अशोक कुमार , कक्षा ६ , अपना घर
पेंटिंग:- चंदन कुमार, कक्षा ३ अपना घर

सोमवार, 4 मई 2009

सम्पादकीय

सम्पादकीय
प्यारे दोस्तों नमस्कार ,
मै आपका नया सम्पादक मुकेश कुमार हूँ। मेरे प्रिय दोस्तों मुझे पूरा विश्वास है कि आप सभी लोग तन-मन से अपना लेखन का काम करेंगे और अच्छा लिखेंगे। मेरे प्रिय साथी पहले के लेखन मे और अभी की लेखन में बहुत परिवर्तन होता आ रहा है, और मुझे आपसे गुजारिश है कि आप सभी अच्छी कवितायें, कहानियाँ, चुटकुला, पेन्टिग, सैरसपाटा और सारांश कुछ इस तरह लिखने की कोशिश करे कि आपकी सब लोग तारीफ करें और अगर यह बाल सजग अच्छी तरह चलता रहा तो हम सब बच्चों के लिए गर्व की बात है। आप सभी सभी लोगों ने समाज के बारे में अच्छा लेखन लिखकर अपनी सोच को आगे बढ़ाया है। हम सभी लोग कविता, कहानी इसलिए लिखते है, क्योकि इससे हम लोगो की जो सोच है वह और आगे बढ़ती है। आप अच्छी- अच्छी कवितायें और कहानियाँ लिखकर अपनी सोच को और विकसित करे ये हमारा सर्वश्रेष्ट उद्देश्य है। आप में से जिनको कविता या कहानी लिखनी न आती हो तो वह लिखने का अवश्य प्रयत्न करें, क्योंकि आप जब दस लाइन लिखने का प्रयत्न करेंगे तो आप इस समाज के लिए दस लाइन बोलने का प्रयत्न करेगें ।
धन्यवाद............

मुकेश कुमार, संपादक, बाल सजग
कक्षा ७, अपना घर

प्रेस:- बाल सजग को हिंदुस्तान अख़बार का हौसला अफजाई

बाल सजग को हिंदुस्तान अख़बार का हौसला अफजाई
आज ४ मई को हिंदुस्तान अखबार ने अपने कानपुर संस्करण में बाल सजग को जगह देकर हम बच्चो के हौसला को बढाया है। http://epaper.hindustandainik.com/default.aspx?selPg=1135&page=04_05_2009_007.jpg&ed=426&BMode=100&artHigh=5
धन्वाद
बाल सजग टीम