शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

कविता: फूल

फूल

फूल हैं ये कितने कोमल,
सुंदर दिखते हैं ये हर पल....
फूल की जातियां हैं अनेक,
फ़िर भी सब मिलकर रहते एक....
कमल को कीचड़ में भी उग आता,
फ़िर भी इतना सुंदर है दिखलाता....
किसी फूल से भेदभाव नही करता,
इसलिए भारत का राष्ट्रीय फूल कहलाता....
फूलों से मिलकर रहना सीखो,
आपस में खुश रहन सीखो....
फूल हैं ये कितने कोमल,
सुंदर दिखते हैं ये हर पल
....

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर १९/११/२००९

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

कविता: भालू भइया मंत्री बन गए .....

भालू भइया मंत्री बन गए

जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....
लोमड़ी एक दिन रोती आई,
शेर से अपनी बात बताई....
शेर ने पूछा क्या हो गया,
लोमड़ी बोली पूँछ कट गया....
शेर ने झट डाक्टर बुलवाया,
दौड़ के डाक्टर जल्दी आया....
डाक्टर थे भाई भालू लाला,
ढूंढ़ के फेविक्युक ले आया....
झट से उसके पूँछ में लगाई,
लोमड़ी रानी खूब चिल्लाई....
उसकी झट से पूँछ जुड गई,
डाक्टर भालू की चर्चा फ़ैल गई....
शेर राजा झूम के गाये,
लोमड़ी रानी खुशी से नाचे....
शेर राजा खुश हो गए,
भालू भइया मंत्री बन गए....
जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २०/११/२००९


कविता: आओ मिलकर खेले खेल

आओ मिलकर खेले खेल

आओ सब मिल खेले कोई खेल,
जिससे हो जाए सबका मेल...
सोच के बोलो कौन सा होगा खेल,
जिससे हो जाएगा सभी का मेल....
ना कोई बल्ला ना कोई जेल,
होगा वह लुका छुपी का खेल....
कुछ बने चोर कुछ बने सिपाही,
बाकि सब बन जायें राही....
बीच में चोर आगे राही,
पीछे दौड़े पुलिस सिपाही....
जोर लगाकर भागो चोर,
आओ मिलकर मचाये शोर.....
यही है सबसे बढ़िया खेल,
जिससे होगा सबका मेल....


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर, १८/११/२००९

बुधवार, 25 नवंबर 2009

कविता: सर्दी का अमरुद्ध

सर्दी का अमरुद्ध

अमरुद्ध लगे हैं कितने प्यारे,
लगता है मुँह में जाए सारे...
पर डर लगता है सर्दी का,
डाक्टर लेगा पैसा फर्जी का...
पैसा नहीं लगाना अब फर्जी का,
अमरुद्ध नही खाना अब सर्दी का....


लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर , १६/११/2009

रविवार, 22 नवंबर 2009

कविता: कद्दू और मिर्च की हुई लडाई

मिर्चा और कद्दू

मिर्चा भइया मिर्चा भइया,
कद्दू बोले राम -राम भइया....
कद्दू बोला मै तुझे खा जाऊंगा,
मिर्चा बोला मै तुझे चबा जाऊंगा....
कद्दू बोला इतना मोटा हूँ,
मिर्च बोला मै बस छोटा हूँ....
मुँह में तेरे घुस जाउँगा,
कड़वाहट फैला आऊँगा....
कद्दू सुनकर जोर से भागा,
मिर्चा भइया सोकर जागा....

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ८, अपना घर

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

कविता: बागड़ बिल्ला लेके बल्ला

बागड़ बिल्ला

बागड़ बिल्ला लेके बल्ला,
दिन रात करता रहता हल्ला....
कभी बिल्ली तो कभी चूहे को मारे,
उसकी मार से डरते सभी बेचारे....
एक दिन एक नन्हा चूहा आया,
उसने बिल्ले को बातों में फंसाया....
तब तक सब बिल्ली चूहों ने घेरा,
सबने उसकी बांह पकड़ कर मोड़ा....
मिलकर सबने इतना मारा,
बिल्ला हो गया अधमरा बेचारा....
अब बिल्ले को अक्ल है आई,
सबको कहता बहना - भाई....
अब तो सबकी सेवा करता,
सबके संग में मिलकर रहता....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

बुधवार, 18 नवंबर 2009

सम्पादकीय

सम्पादकीय
हमारा "बाल सजग" अच्छे से चल रहा है, और आगे बढ़ते जा रहा है। जिस तरह से एक पौधे का बीज अंकुरित होकर विकसित होत है... आज देश में प्रद्योगकी के साथ साथ बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है, इसका मुख्य दोष हमारी शिक्षा का तरीका है । क्योकि एक मजदूर का बच्चा एक प्राइवेट स्कूल का फीस नही दे सकता है, क्योकि मजदूर की एक दिन की मजदूरी लगभग १०० रुपए है। इसी सौ रुपये में वो दिन का रासन और अन्य सामान लाताहै। मजदूर का ८० रूपये रासन में खर्च होता है॥ उसके पास प्रति दिन २० रुपये बचता है जिसमे में वो बीमार पड़ने पर दवा, पहनने का कपड़ा आदि में खर्च करता है .... सौ रुपये उसके गुजारे के लिए भी कम पड़ता है तब वो कर्ज लेता है और कर्ज को चुकाने में पूरी उम्र ठेकेदार के यंहा गुलामी करता है... वो अपने बच्चों को चाहकर भी अच्छे स्कूल में नही पढ़ा पता है.... एक इंजिनियर की तनख्वाह करीब २०,००० रूपये होती है ... उसमें वो महीने में ८ हजार खाने और रहने में 2 हज़ार में दवा और अन्य खर्च करता है तब भी उसके पास १० हज़ार रुपये बचता है जिसमें वो अपने बच्चे को २ हज़ार रूपये महीना फीस देकर अच्छे से अच्छे से स्कूल में पढ़ता है... और उसके बाद अपनी बचत में बाकि पैसे इकठ्ठा करके भविष्य के लिए निश्चित रहता है. हमरे देश के हम जैसे गरीब आदमी का बच्चा अच्छे स्कूल में नही पढ़ पाता अपनी परिस्थितियों के कारण और देश में सबको एक जैसा स्कूल न होने के कारण अमीर का बच्चा इसलिए पढ़ जाता है क्योकि उसके पास हर चीज की सुविधा होती है.....हम मजदूरों के बच्चे भी पढ़ना चाहते है लिखना चाहते है कंप्यूटर चलाना चाहते है...इस देश को अच्छा बनाना चाहते है...मगर हमें मौका ही नही मिलता है....

"संपादक"
अशोक
कुमार,
कक्षा ७, अपना घर

कविता: उत्तक

उत्तक

कोशिका से उत्तक बनता है,
जो करते है अंगो का गठन....
अंगों से से बनता है अंग - तंत्र,
सभी मिल करते शरीर का गठन....
संयोजी उत्तक सब अंगों का,
जोड़ कर देता है सहारा....
उत्तक से उत्तक को जोड़ता,
आपस में अंग जोड़ते हमारा....
सभी ऊतक ही अस्थिया है,
जो
शरीर को देती ढांचा है ....
अधिक कठोर होती है ये,
कंकाल खड़ा कर देती है....
पेशी उत्तक शरीर को,
गति प्रदान है करता....
ह्रदय हमारा बिना थके चलता रहता,
जीवन भर हर पल धड़कता रहता....


लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर....

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

कविता: हिंदुस्तान हमारा है........

हिंदुस्तान हमारा है

हिंदुस्तान हमारा है,
हमको जान से प्यारा है....
इसकी खातिर लोगो ने दी क़ुरबानी,
तब जाकर मिली हम सबको आजादी....
देश के खातिर जो मिट गए,
अंग्रेजों को देश से खदेड़ गए.....
अंग्रेज तो कब के चले गए,
पर अपनी अंग्रेजियत छोड़ गए ....
आज काले अंग्रेज करते है राज,
नही सुनता कोई गरीबों की आवाज....
क्या इस अंग्रेजियत से पार पाएंगे,
जाने कब इनको मार भगायेंगे ....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर



कविता: पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....

पड़ोसी के घर से निकली रे गइया

दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....
काली - काली सी उसकी है बछिया,
भाग रही है गलियाँ रे गलियाँ....
जिसके डर से भागे रे सारे,
भोले - भोले बच्चें रे प्यारे....
दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
कोई तो पकड़े जाके रे भइया....
सब कोई डर के घर में छुप जाए,
पास उसके अब कोई जाए....
आओ रे बच्चों सब मिल ही जाओ,
मिल के सभी खूब शोर मचाओं....
डर के भागेगी काली रे बछियाँ,
फ़िर हम खेलेंगे गलियाँ रे गलियाँ....
दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर ...




कविता: अपने देश को मज़बूत बनाना है

अपने देश को मज़बूत बनाना है

नाली - नाली की करो सफाई,
यही है स्वच्छता की इकाई....
सभी को पढ़ाओ,
सभी को समझाओ....
सबका काम पूरा करवाओ,
यह है समाजसेवा की इकाई....
सभी को पढ़ाना है,
सभी को समझाना है...
गाँव - गाँव में शिक्षा लाना है,
अपने देश को मज़बूत बनाना है....

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर

सोमवार, 16 नवंबर 2009

कविता: आम खाए पड़े बीमार

आम खाए पड़े बीमार

एक पेड़ पर डाले चार...
उस पर बैठे तोते एक हजार,
सबने मिलकर आम खाए चार हजार...
खाते ही एक साथ पड़ गए सभी बीमार,
बीमारी का नाम था अमवां ,
सब पहुचें घबरा के नगवां....
नगवां में रहते थे घोंचू डाक्टर,
उसने लगाई सूई सबको जमकर...
सूई लगी तो दर्द से बोला सबने,
टाँव टाँव की जोर लगाई सबने...
दर्द हुआ तो डक्टर लगे कसाई,
पर उसने सबकी जान बचाई...
जिस पेड़ पर छिडकी हो दवा अब जाना,
डाक्टर बोला हरदम फल धोकर ही खाना...
एक पेड़ में डाले चार,
उस पर बैठे तोतें हजार ....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा 7, अपना घर



बुधवार, 11 नवंबर 2009

कविता क्रोध

क्रोध
क्रोध बना देता है पागल ,
क्रोध कभी मत करना ...
क्रोध अगर आ ही जाए तो ,
जल पीकर चुप रहना ...
क्रोध जगे तो कुछ मत करना ,
साँस देखने लगना ...
बाहर भीतर आती जाती ,
साँस देख चुप रहना ...
इसमें सबका भला छिपा है ,
वरना तुम्हारा होगा बुरा ...
लेखक प्रदीप कुमार अपना घर

सोमवार, 2 नवंबर 2009

कविता: सबसे अच्छा क्या

सबसे अच्छा क्या

तारों मे अच्छा तारा,
वह है सूर्य हमारा...
रातों मे सबसे अंधेरी रात,
वो है अमौस्या की रात...
गीतों में वह गीत,
वो है अपने देश का राष्ट्रीय गीत...
दीवारों में है दीवार,
वह है चीन की दीवार...
मीनारों में वह है मीनार,
वह है दिल्ली में कुतुबमीनार....
ज्ञानों में वह ज्ञान जिससे मिले सभी को ज्ञान,
जिसको हम सभी कहते है विज्ञान ...
नारों में है वह नारा,
वो है इन्कलाब का है नारा...
झंडों में है सबसे प्यारा,
वो है तिरंगा हमारा...
देशो में है सबसे न्यारा,
वो है भारत है देश है हमारा...
सप्ताह में छुट्टी वाला दिन,
वो है रविवार का दिन...
बातों में वह है बात,
मज़ेदार की बात...
दानों में वह दानी,
जिसकी सुनी है सभी ने कहानी...
हम सबकी है मुजबानी,
कोई नही है हरिश्चंद्र जैसा दानी...

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

कविता: रिश्ते नाता

रिश्ते नाते

पापा के पापा है हमारे दादा ,
बिहार मे पड़ता है जिला नवादा ...
चाचा की बहन को कहते बुआ ,
हम सब खायेगे बुआ के हाथो से पुआ ...
मम्मी के भाई को कहते हम मामा ,
दिल्ली चले बन्दर मामा पहन पजामा ...
मम्मी की मम्मी है हमारी नानी ,
हमने राजा - रानी की सुनी बहुत कहानी ...
बहन के पति को कहते है जीजा ,
गर्मी मे खायेगे हम सब खरबूजा ...
भइया की पत्नी को कहते है भाभी ,
आज पराठे मे खाया हमने गोभी ...
लेखक: आदित्य पाण्डेय, कक्षा ७, अपना घर


रविवार, 1 नवंबर 2009

कविता फूल

फूल

नीले- पीले हरे रंग- बिरंगे ,
फूल है जैसे हर रंगो से रंगे .....
बाग में फूल है हर रंग के अनेक ,
बाग में है सब एक .....
रंग- बिरंगे हरे नीले- पीले ,
फूल है सभी बाग में खिले ......
सुंदर -सुंदर न्यारे -न्यारे ,
फूल लगे बाग में प्यारे प्यारे .....
नीले -पीले हरे रंग -बिरंगे ,
फूल है जैसे हर रंगों से रंगे....
सुंदर- सुंदर न्यारे- न्यारे ,
फूल है कितने प्यारे -प्यारे ......
लेखक -धर्मेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर

कविता: आजाद देश

आजाद देश

आजादी का दिन आया,
बच्चों के मन में खुशियाँ लाया...
अपना तिरंगा झण्डा फहराया,
अमर शहीदों के नारे थे....
भगत सिंह जिन बच्चों के मन में भाते थे,
उनके मन में इन्कलाब का नारा था...
आजादी का दिन आया,
बच्चों के मन में खुशियाँ लाया ...
जब बच्चों ने मिलकर आवाज उठाईं ,
तब भारत माता ने ली अंगडाई...

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर