शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

कविता: समझ में न आता

समझ में न आता

मुझे समझ में नहीं आती,
मेरे मन में एक बात...
बड़े बड़े आफिसर,
चलते फोर्स को लेकर...
फोर्स में मानव ही होते,
कोई जानवर नही होते...
अगर बीच में कभी युद्ध,
तो मानव ही मारे जाते...
आफिसर बैठ गाड़ी में,
आफिस को चले जाते...
दुख होता है,
इन अफसरों से.....
जो अपनी जान बचाकर,
चुपके से निकल जाते...
आम लोग ही मरते है,
वह अपने ख्यालो में है....
डूबे रहते है,
मुझे समझ में नही आती...



लेखक -अशोक कुमार, kksha 6, apna घर, 15/12/2009

कविता: तितली


तितली

जब -जब आती तितली प्यारीं
मन को भाती तितली प्यारी ॥
रंग -बिरंगी तितली प्यारी
फूलो से भी है सबसे न्यारी
फूलो पर मडराती है
यहा-वहा उड़ जाती है
हाथ में हमारे आती है
पख फैलाकर उड़ जाती है

लेखक: ज्ञान, कक्षा ६, अपना घर, १३/१२/२००९



सोमवार, 14 दिसंबर 2009

कविता हो गयी दिकत ख़त्म

हो गयी दिकत ख़त्म
आज के विज्ञान ने सब कुछ नापा है ,
आकाश को तक नहीं छोड़ा.....
सागर और धरती को पता नहीं,
उसने कैसे नापा है.....
छोटे -छोटे आणुओं से मिल कर,
न जाने कितने पदार्थ बनाया......
मानव उनका करता है उपयोग,
कभी न होता उनका सदुपयोग.......
जिससे बड़ी आसानी से होता कार्य,
कभी न होती उनमे दिकत.......
बड़े -बड़े आविष्कार हुए है,
जिनका बड़ा उपयोग हुआ है........
आज के विज्ञान ने सब कुछ नापा है,
आकाश को तक नहीं छोड़ा.......
लेखक अशोक कुमार कक्षा ७ अपना घर
क्या क्या मै बोउ
मेरे खेतो की मिट्टी है उपजाऊ ,
मै सोचू इसमे सब कुछ बोउ....
मन करता है गेहूं और मक्का बोउ,
जिसकी रोटी बनवा कर खाऊ......
मन करता है लगाऊ,
जिसमे में चावल की खीर खाऊ......
मन करता है गन्ना लगाऊ,
जिसमें गुड की भेली मै खाऊ.......
मन करता है सरसो बोउ ,
जिसे पिराकर तेल के पापड़ तल के खाऊ ......
मन करता है सब्जी बोउ,
जिन्हें बाजार में बेचने जाऊ.....
मन करता है फूल लगाऊ,
जिससे अच्छी सुगंध में पाऊ......
मन करता है बेर लगाऊ,
जिससे चूरन बनाकर खाऊ.....
खेती करने में लगती लागत,
साथ में लगती मानव की ताकत.......
मै चाहता सब कुच्छ बोउ,
पर इतने रूपये कहाँ से में लाऊ ....
मेरे खेती की मिट्टी है उपजाऊ,
मै सोचू सब कुछ बोउ......
लेखक कविता मुकेश कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपूर ,

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

कविता सुनो भाइयों और बहिनों

सुनो भाइयों और बहिनों
सुनो-सुनो भाई बहाना,
सावधान तुम रहना....
चोरो धोखे बाजों से सावधान रहना,
अपहरण से तुम बचना....
शहर में अकेले न घूमना,
कितने बच्चे किडनैप हो गये....
अपहरण करने वाले पकड़े गये,
मासूम बच्चों को मार डाला.....
न्यायलय में न कोई अपील करने वाला,
सुनो-सुनो सब भाई बहना.....
सावधान तुम रहना,
जिसका मासूम बच्चा मारा गया.....
उनसे रात में सोया न गया......
लेखक कविता मुकेश कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

कविता: मैंने सोचा

मैंने सोचा

मैंने सोचा था कि खेत हो मेरे पास,
मेरे खेत की मिट्रटी अच्छी...
वह मिट्रटी बहुत उपजाऊ हो.
मै सोचा था कि इसमे क्या बोउं...
भइया बोले मिर्च लगाओ,
खेत मे मिर्च लग जाती..
और बैगन मे बैगन,
बैगन बोले मिर्च से...
साथ चलोगी क्या मेरे,
मिर्च बोली कहाँ चलोगे....
बैगन बोला जिसने बोया,
उसके घर में जायेंगे....
भइया नें बाजार दिखाया,
मोल भाव कर बेच देते....
मैंने सोचा था कि खेत हो मेरे पास.....

लेखक: जीतेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २४/११/२००९

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

कविता मन

मन
मन हमारा मन हमारा ,
कितना सुंदर मन हमारा....
मन इधर भी घूमता,
मन उधर भी घूमता....
मन चाहे जिधर भी घूमता,
मन अच्छे बातों में रहता....
मन गन्दी बातों में रहता,
मन चाहे जो करता....
मन अपने काबू में नही रहता,
मन जबाबो को देता....
मन हमारा मन हमारा,
कितना सुंदर मन हमारा....
लेखक कविता लवकुश कक्षा ६ अपना घर कानपुर
नीम बड़ी उपयोगी है

नीम बड़ी उपयोगी है,
औषधि के काम आती है...
बड़े बड़े फर्नीचर बनते,
कीड़े उसमें कभी लगते....
मानव सुबह उठता है,
दातून उसी से करता है....
फ़िर अपना कार्य करता है,
नीम बड़ी उपयोगी है....
औषधि के काम आती है,


लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २५/११/२००९

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

कविता: फूल

फूल

फूल हैं ये कितने कोमल,
सुंदर दिखते हैं ये हर पल....
फूल की जातियां हैं अनेक,
फ़िर भी सब मिलकर रहते एक....
कमल को कीचड़ में भी उग आता,
फ़िर भी इतना सुंदर है दिखलाता....
किसी फूल से भेदभाव नही करता,
इसलिए भारत का राष्ट्रीय फूल कहलाता....
फूलों से मिलकर रहना सीखो,
आपस में खुश रहन सीखो....
फूल हैं ये कितने कोमल,
सुंदर दिखते हैं ये हर पल
....

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर १९/११/२००९

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

कविता: भालू भइया मंत्री बन गए .....

भालू भइया मंत्री बन गए

जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....
लोमड़ी एक दिन रोती आई,
शेर से अपनी बात बताई....
शेर ने पूछा क्या हो गया,
लोमड़ी बोली पूँछ कट गया....
शेर ने झट डाक्टर बुलवाया,
दौड़ के डाक्टर जल्दी आया....
डाक्टर थे भाई भालू लाला,
ढूंढ़ के फेविक्युक ले आया....
झट से उसके पूँछ में लगाई,
लोमड़ी रानी खूब चिल्लाई....
उसकी झट से पूँछ जुड गई,
डाक्टर भालू की चर्चा फ़ैल गई....
शेर राजा झूम के गाये,
लोमड़ी रानी खुशी से नाचे....
शेर राजा खुश हो गए,
भालू भइया मंत्री बन गए....
जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २०/११/२००९


कविता: आओ मिलकर खेले खेल

आओ मिलकर खेले खेल

आओ सब मिल खेले कोई खेल,
जिससे हो जाए सबका मेल...
सोच के बोलो कौन सा होगा खेल,
जिससे हो जाएगा सभी का मेल....
ना कोई बल्ला ना कोई जेल,
होगा वह लुका छुपी का खेल....
कुछ बने चोर कुछ बने सिपाही,
बाकि सब बन जायें राही....
बीच में चोर आगे राही,
पीछे दौड़े पुलिस सिपाही....
जोर लगाकर भागो चोर,
आओ मिलकर मचाये शोर.....
यही है सबसे बढ़िया खेल,
जिससे होगा सबका मेल....


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर, १८/११/२००९

बुधवार, 25 नवंबर 2009

कविता: सर्दी का अमरुद्ध

सर्दी का अमरुद्ध

अमरुद्ध लगे हैं कितने प्यारे,
लगता है मुँह में जाए सारे...
पर डर लगता है सर्दी का,
डाक्टर लेगा पैसा फर्जी का...
पैसा नहीं लगाना अब फर्जी का,
अमरुद्ध नही खाना अब सर्दी का....


लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर , १६/११/2009

रविवार, 22 नवंबर 2009

कविता: कद्दू और मिर्च की हुई लडाई

मिर्चा और कद्दू

मिर्चा भइया मिर्चा भइया,
कद्दू बोले राम -राम भइया....
कद्दू बोला मै तुझे खा जाऊंगा,
मिर्चा बोला मै तुझे चबा जाऊंगा....
कद्दू बोला इतना मोटा हूँ,
मिर्च बोला मै बस छोटा हूँ....
मुँह में तेरे घुस जाउँगा,
कड़वाहट फैला आऊँगा....
कद्दू सुनकर जोर से भागा,
मिर्चा भइया सोकर जागा....

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ८, अपना घर

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

कविता: बागड़ बिल्ला लेके बल्ला

बागड़ बिल्ला

बागड़ बिल्ला लेके बल्ला,
दिन रात करता रहता हल्ला....
कभी बिल्ली तो कभी चूहे को मारे,
उसकी मार से डरते सभी बेचारे....
एक दिन एक नन्हा चूहा आया,
उसने बिल्ले को बातों में फंसाया....
तब तक सब बिल्ली चूहों ने घेरा,
सबने उसकी बांह पकड़ कर मोड़ा....
मिलकर सबने इतना मारा,
बिल्ला हो गया अधमरा बेचारा....
अब बिल्ले को अक्ल है आई,
सबको कहता बहना - भाई....
अब तो सबकी सेवा करता,
सबके संग में मिलकर रहता....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

बुधवार, 18 नवंबर 2009

सम्पादकीय

सम्पादकीय
हमारा "बाल सजग" अच्छे से चल रहा है, और आगे बढ़ते जा रहा है। जिस तरह से एक पौधे का बीज अंकुरित होकर विकसित होत है... आज देश में प्रद्योगकी के साथ साथ बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है, इसका मुख्य दोष हमारी शिक्षा का तरीका है । क्योकि एक मजदूर का बच्चा एक प्राइवेट स्कूल का फीस नही दे सकता है, क्योकि मजदूर की एक दिन की मजदूरी लगभग १०० रुपए है। इसी सौ रुपये में वो दिन का रासन और अन्य सामान लाताहै। मजदूर का ८० रूपये रासन में खर्च होता है॥ उसके पास प्रति दिन २० रुपये बचता है जिसमे में वो बीमार पड़ने पर दवा, पहनने का कपड़ा आदि में खर्च करता है .... सौ रुपये उसके गुजारे के लिए भी कम पड़ता है तब वो कर्ज लेता है और कर्ज को चुकाने में पूरी उम्र ठेकेदार के यंहा गुलामी करता है... वो अपने बच्चों को चाहकर भी अच्छे स्कूल में नही पढ़ा पता है.... एक इंजिनियर की तनख्वाह करीब २०,००० रूपये होती है ... उसमें वो महीने में ८ हजार खाने और रहने में 2 हज़ार में दवा और अन्य खर्च करता है तब भी उसके पास १० हज़ार रुपये बचता है जिसमें वो अपने बच्चे को २ हज़ार रूपये महीना फीस देकर अच्छे से अच्छे से स्कूल में पढ़ता है... और उसके बाद अपनी बचत में बाकि पैसे इकठ्ठा करके भविष्य के लिए निश्चित रहता है. हमरे देश के हम जैसे गरीब आदमी का बच्चा अच्छे स्कूल में नही पढ़ पाता अपनी परिस्थितियों के कारण और देश में सबको एक जैसा स्कूल न होने के कारण अमीर का बच्चा इसलिए पढ़ जाता है क्योकि उसके पास हर चीज की सुविधा होती है.....हम मजदूरों के बच्चे भी पढ़ना चाहते है लिखना चाहते है कंप्यूटर चलाना चाहते है...इस देश को अच्छा बनाना चाहते है...मगर हमें मौका ही नही मिलता है....

"संपादक"
अशोक
कुमार,
कक्षा ७, अपना घर

कविता: उत्तक

उत्तक

कोशिका से उत्तक बनता है,
जो करते है अंगो का गठन....
अंगों से से बनता है अंग - तंत्र,
सभी मिल करते शरीर का गठन....
संयोजी उत्तक सब अंगों का,
जोड़ कर देता है सहारा....
उत्तक से उत्तक को जोड़ता,
आपस में अंग जोड़ते हमारा....
सभी ऊतक ही अस्थिया है,
जो
शरीर को देती ढांचा है ....
अधिक कठोर होती है ये,
कंकाल खड़ा कर देती है....
पेशी उत्तक शरीर को,
गति प्रदान है करता....
ह्रदय हमारा बिना थके चलता रहता,
जीवन भर हर पल धड़कता रहता....


लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर....

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

कविता: हिंदुस्तान हमारा है........

हिंदुस्तान हमारा है

हिंदुस्तान हमारा है,
हमको जान से प्यारा है....
इसकी खातिर लोगो ने दी क़ुरबानी,
तब जाकर मिली हम सबको आजादी....
देश के खातिर जो मिट गए,
अंग्रेजों को देश से खदेड़ गए.....
अंग्रेज तो कब के चले गए,
पर अपनी अंग्रेजियत छोड़ गए ....
आज काले अंग्रेज करते है राज,
नही सुनता कोई गरीबों की आवाज....
क्या इस अंग्रेजियत से पार पाएंगे,
जाने कब इनको मार भगायेंगे ....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर



कविता: पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....

पड़ोसी के घर से निकली रे गइया

दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....
काली - काली सी उसकी है बछिया,
भाग रही है गलियाँ रे गलियाँ....
जिसके डर से भागे रे सारे,
भोले - भोले बच्चें रे प्यारे....
दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
कोई तो पकड़े जाके रे भइया....
सब कोई डर के घर में छुप जाए,
पास उसके अब कोई जाए....
आओ रे बच्चों सब मिल ही जाओ,
मिल के सभी खूब शोर मचाओं....
डर के भागेगी काली रे बछियाँ,
फ़िर हम खेलेंगे गलियाँ रे गलियाँ....
दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर ...




कविता: अपने देश को मज़बूत बनाना है

अपने देश को मज़बूत बनाना है

नाली - नाली की करो सफाई,
यही है स्वच्छता की इकाई....
सभी को पढ़ाओ,
सभी को समझाओ....
सबका काम पूरा करवाओ,
यह है समाजसेवा की इकाई....
सभी को पढ़ाना है,
सभी को समझाना है...
गाँव - गाँव में शिक्षा लाना है,
अपने देश को मज़बूत बनाना है....

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर

सोमवार, 16 नवंबर 2009

कविता: आम खाए पड़े बीमार

आम खाए पड़े बीमार

एक पेड़ पर डाले चार...
उस पर बैठे तोते एक हजार,
सबने मिलकर आम खाए चार हजार...
खाते ही एक साथ पड़ गए सभी बीमार,
बीमारी का नाम था अमवां ,
सब पहुचें घबरा के नगवां....
नगवां में रहते थे घोंचू डाक्टर,
उसने लगाई सूई सबको जमकर...
सूई लगी तो दर्द से बोला सबने,
टाँव टाँव की जोर लगाई सबने...
दर्द हुआ तो डक्टर लगे कसाई,
पर उसने सबकी जान बचाई...
जिस पेड़ पर छिडकी हो दवा अब जाना,
डाक्टर बोला हरदम फल धोकर ही खाना...
एक पेड़ में डाले चार,
उस पर बैठे तोतें हजार ....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा 7, अपना घर



बुधवार, 11 नवंबर 2009

कविता क्रोध

क्रोध
क्रोध बना देता है पागल ,
क्रोध कभी मत करना ...
क्रोध अगर आ ही जाए तो ,
जल पीकर चुप रहना ...
क्रोध जगे तो कुछ मत करना ,
साँस देखने लगना ...
बाहर भीतर आती जाती ,
साँस देख चुप रहना ...
इसमें सबका भला छिपा है ,
वरना तुम्हारा होगा बुरा ...
लेखक प्रदीप कुमार अपना घर

सोमवार, 2 नवंबर 2009

कविता: सबसे अच्छा क्या

सबसे अच्छा क्या

तारों मे अच्छा तारा,
वह है सूर्य हमारा...
रातों मे सबसे अंधेरी रात,
वो है अमौस्या की रात...
गीतों में वह गीत,
वो है अपने देश का राष्ट्रीय गीत...
दीवारों में है दीवार,
वह है चीन की दीवार...
मीनारों में वह है मीनार,
वह है दिल्ली में कुतुबमीनार....
ज्ञानों में वह ज्ञान जिससे मिले सभी को ज्ञान,
जिसको हम सभी कहते है विज्ञान ...
नारों में है वह नारा,
वो है इन्कलाब का है नारा...
झंडों में है सबसे प्यारा,
वो है तिरंगा हमारा...
देशो में है सबसे न्यारा,
वो है भारत है देश है हमारा...
सप्ताह में छुट्टी वाला दिन,
वो है रविवार का दिन...
बातों में वह है बात,
मज़ेदार की बात...
दानों में वह दानी,
जिसकी सुनी है सभी ने कहानी...
हम सबकी है मुजबानी,
कोई नही है हरिश्चंद्र जैसा दानी...

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

कविता: रिश्ते नाता

रिश्ते नाते

पापा के पापा है हमारे दादा ,
बिहार मे पड़ता है जिला नवादा ...
चाचा की बहन को कहते बुआ ,
हम सब खायेगे बुआ के हाथो से पुआ ...
मम्मी के भाई को कहते हम मामा ,
दिल्ली चले बन्दर मामा पहन पजामा ...
मम्मी की मम्मी है हमारी नानी ,
हमने राजा - रानी की सुनी बहुत कहानी ...
बहन के पति को कहते है जीजा ,
गर्मी मे खायेगे हम सब खरबूजा ...
भइया की पत्नी को कहते है भाभी ,
आज पराठे मे खाया हमने गोभी ...
लेखक: आदित्य पाण्डेय, कक्षा ७, अपना घर


रविवार, 1 नवंबर 2009

कविता फूल

फूल

नीले- पीले हरे रंग- बिरंगे ,
फूल है जैसे हर रंगो से रंगे .....
बाग में फूल है हर रंग के अनेक ,
बाग में है सब एक .....
रंग- बिरंगे हरे नीले- पीले ,
फूल है सभी बाग में खिले ......
सुंदर -सुंदर न्यारे -न्यारे ,
फूल लगे बाग में प्यारे प्यारे .....
नीले -पीले हरे रंग -बिरंगे ,
फूल है जैसे हर रंगों से रंगे....
सुंदर- सुंदर न्यारे- न्यारे ,
फूल है कितने प्यारे -प्यारे ......
लेखक -धर्मेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर

कविता: आजाद देश

आजाद देश

आजादी का दिन आया,
बच्चों के मन में खुशियाँ लाया...
अपना तिरंगा झण्डा फहराया,
अमर शहीदों के नारे थे....
भगत सिंह जिन बच्चों के मन में भाते थे,
उनके मन में इन्कलाब का नारा था...
आजादी का दिन आया,
बच्चों के मन में खुशियाँ लाया ...
जब बच्चों ने मिलकर आवाज उठाईं ,
तब भारत माता ने ली अंगडाई...

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर

शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

कविता: जंगल में घुस गई एक बकरी

जंगल में घुस गई एक बकरी

सुनो सुनो एक खुशखबरी,
घुस गई जंगल में एक बकरी....
शेर को ये जब संदेशा आया,
उसके समझ में कुछ आया....
डर से हालत हो गई पतली,
शेर को आने लग गई मितली....
तभी एक बिल्लौटा आया,
शेर को एक तरकीब बताया....
शेर को बाते समझ में आई,
उसने झट से मीटिंग बुलाई....
बन्दर हाथी भालू आए,
गदहा घोड़ा मिलकर गाये....
सबने मिलकर सोच लगाई,
बन्दर की बुद्धि काम में आई....
बन्दर बोला सुनो रे भाई,
बकरी से क्या डरना भाई....
बकरी खाती घास और दाना,
इसमें अपना क्या है जाना....
शेर की जान तब जान में आई,
सबने जंगल में खुशी मनाई....


लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ८, अपना घर




कविता: बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

हमको तो सब कुछ याद है,
अब तो मार खायेंगे...
जो कुछ याद नही है,
उसे तो बिल्कुल रट लेंगे...
अब होने को है पेपर उसमे लिख देंगे,
जो भी देंगे उसको हल कर देंगे...
ये सब याद हुआ है डंडे के बल पे,
टीचर तो बैठे रहते कुर्सी पे...
हाथ में हरदम ले कर डंडे,
मार से रोज टूटे कितने डंडे...
भोले भाले और मुस्काते सारे बच्चे आते है,
रात को रटते सुबह भूल ही जाते है...
डंडे खाते फिर याद करते,
रोते रोते घर को जाते....
डंडे के बल पर हम कब तक पढ़ पाएंगे,
क्या कोई अब प्यारे टीचर आयेंगे....
बिन मारे क्या हम नही पढ़ पाएंगे,
बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगे....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

कविता: लाल टमाटर हरा टमाटर

लाल टमाटर हरा टमाटर

लाल टमाटर हरा टमाटर,
दोनों थे पक्के यार ...
एक दिन गए कद्दू राजा के पास,
कद्दू से बोले हम राजा तुम मेरे दास...
इतने में हो गया तीनों में झगड़ा,
कद्दू राजा तो था ही तगड़ा....
बैठ गए उन दोनों के ऊपर,
मारा दोनों के दो - दो झापड़....
झापड़ लगा गाल हुए दोनों के लाल,
बहुत बुरा हुआ उन दोनों का हाल....
राजा बनने का ख्वाब उतरा उनके सर से,
जान बचाकर भागे गए वह जल्दी से....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

कविता: बिजली का करो न दुरूपयोग

बिजली का करो दुरूपयोग

बिजली का सभी करते उपयोग,
कुछ लोग तो करते इसका दुरूपयोग....
भारत में ऐसी जगह है आती,
जंहा पर बिजली पहुँच नही पाती....
बड़े - बड़े ये जो बाँध बनाते,
जिससे लोग है बिजली बनाते.....
ये पानी बहकर गांवों में आता,
जिससे गाँव पुरा डूब जाता....
बिजली का करो दुरूपयोग,
बिजली बचाकर करना उपयोग...
देश के लोग सभी है एक समान,
सभी को बिजली करो प्रदान....

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर


सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

कविता: पृथ्वी है अनमोल

पृथ्वी है अनमोल

सभी ग्रहों में से पृथ्वी है अनमोल,
पृथ्वी पर कई तरह के होते है बल...
घर्षण बल के कारण चलते- फिरते,
घर्षण बल कम करने से आगे बढ़ नही पाते...
गुरुत्त्वा कर्षण बल पृथ्वी में होता,
यह सभी को अपनी ओर खीचता....
नही किसी को यह दिखता,
अपना कार्य स्वंय यह करता...
पृथवी पर सब कुछ है मिलता,
सूरज, चंदा, तारे, आसमान पास में दिखता...
छोटे नन्हे मुन्ने पौधे पृथ्वी पर उगते,
जो हरदम सबको ऑक्सीजन देते ...
ऑक्सीजन से ही हम जीवित रहते,
कार्बनडाई आक्साइड पौधों को देते...
सभी ग्रहों में पृथ्वी है अनमोल,
नीली सुंदर दिखती गोल...
क्या देगा इसका कोई मोल,
इससे करो कोई खेल ...

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर
बातें जो बोल नही पाते

बहुँत सी बातें है,
कुछ मन की गांठे है...
जो कुछ लोग कह नही पाते,
कुछ बातें कुछ लोग ही कह पाते....
बोलने की लगन होती है,
मगर बोल नही पाते...
समझना चाहते है पर समझ नही पाते,
क्योकि वह बात बोल ही नही पाते...
यह धरती के हर प्राणी में होती है,
ये कैसी लीला है जो हर जगह होती है...

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

कविता: पेन

पेन

पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा...
तुम से हम सब लिखा पढ़ी करते,
तुमसे ही हिसाब किताब रखते...
पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा...
पेन जिस कागज पर चलता,
समझो वो तो कभी मिटता...
पेन है हरदम संग संग रहता,
सभी का प्यारा दोस्त है बनता...
पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा...
पेन खरीदता है हर कोई,
बच्चे बूढे और हो कोई...
साथी है सबके जीवन का,
नीले पीले और सतरंगी सा....
पेन हमारा कितना प्यारा,
तुम हो हम सबका सहारा....

लेखक : सागर कुमार, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

कविता: सूर्य

सूर्य

सूर्य एक तारा है,
यह उजाले का सहारा है...
इससे रोशनी पाती दुनिया है,
सौर मंडल की मज़ेदार दुनिया है...
सूर्य होता आज अगर,
हम होते दुनिया पर...
सूर्य तो जान से प्यारा है,
चाहता इसको संसार सारा है...
जिन्दगी का बहता जो धारा है,
इसकी वजह सूर्य हमारा है....
लेखक: सोनू कुमार, कक्षा , अपना घर



गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

कविता: आसमान क्या रंग बदलता

आसमान क्या रंग बदलता


ऊपर देखो तारे देखो,
आसमान के नज़ारे देखो...
नीचे देखो बजारें देखो,
बच्चों के भी मजाके देखो...
आसमान भी क्या रंग बदलता,
हम बच्चों का मन बदलता...
तन है कैसा मन है कैसा,
ये आसमान का रंग है कैसा...

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ४, अपना घर

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

कहानी: हरहर सिंह की तरकीब

हरहर सिंह की तरकीब
प्राचीन काल की बात है की एक राजा किसी नगर में राज्य करता था वह बड़ा ही निर्दयी और क्रूर और हरदम दुखी रहने वाला राजा था वह लोगो को हमेशा सताया और डराया करता था वह सभी लोगो से अपने खेतों में काम करवाता था और काम के बदले जो भी पैसा तय करता उतने देकर उससे बहुत ही काम पैसे देता था, मजदूर जब अपने पैसे मांगते थे तो उनकी पिटाई करता और उन्हें जेल में डाल देता इस तरह से राजा नगर के लोगों को सताया करता था उसी नगर में हरहर सिंह नाम काल एक नौजवान रहता था उसकी उम्र लगभग २८ वर्ष थी, वह कुछ पढ़ा लिखा था और बहुत समझदार भी था जब उसे पता चला की राजा नगर के वासियों के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है, तो हर हर सिंह ने लोगों को बुलाकर एक बैठक की और उन्हें समझाया कि हम लोगों को स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार है और हम लोगो से कोई जबरदस्ती करके काम नही ले सकता है मगर हम लोगों को अपने अधिकार लेने के लिए एक साथ संगठित और शिक्षित होकर संघर्ष कारन पड़ेगा तब हमें अपना अधिकार मिलेगा हमें अपना अधिकार तब मिलेगा सब हम सभी राजा के पास चलाकर इस अन्याय का विरोध करे और हम स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार मांगे बैठक के बाद कुछ लोगो राजा के पास जाकर विरोध करने के लिए तैयार ही गए, मगर कुछ लोगो राजा के डर से इस विरोध में शामिल नही हो रहे थे हर हर सिंह ने उन लोगों को फ़िर से खूब समझाया कि राजा तुम्हारा कुछ नही कर सकता है करेगा, इसलिए आप सभी इस संघर्ष में शामिल हो... ये तुम्हारा अधिकार है अगर आप नहीं लोगो तो वो कौन लेगा, तुम्हे अपना अधिकार लेने के लिए राजा का विरोध करना चाहिए, अगर नही करोगे तो तुम्हे अधिकार नही मिलने वाला है इतन कहते ही सभी नगर वासी संघर्ष के लिए तैयार हो गए औए अगले दिन राजा के राजा के दरबार में विरोध करने पहुँच गए और अपने अधिकार के मांग को लेकर नारे लगाने लगे राजा सभी नगरवासियों को इकठ्ठा देख कर डर गया वो सोचने लगा कि कंही सभी मिलकर हमें पीटने लगे राजा सभी से बातचीत करने लगा और उसने नगरवासियों से कहा कि मै ग़लत था आप सबसे अपनी गलतियों के लिए माफ़ी चाहता हूँ आज से आप सभी अपने मर्जी से काम का समय तय करेंगे और जो भी मजदूरी आप सभी मिल कर तय करेंगे वो मजदूरी आपको पूरी कि पूरी मिलेगी और राजा ने उनके सभी अधिकार दिए नगर के लोगो इस जीत से बहुँत ही खुश हुए नगरवासियों ने हरहर सिंह को इस जीत के लिए धन्यवाद् दिया और खूब बधाइयां दी हरहर सिंह कि तरकीब देखकर राजा बहुँत ही प्रभावित हुआ राज ने भी निर्दयता, क्रूरता, सताना और डरना छोड़कर लोगो के साथ अच्छा ब्यवहार करने लगा राजा अब सभी के साथ खेतो में जाकर ख़ुद काम करने लगा सभी लोगो के साथ मिलकर उनके साथ प्रेमपूर्वक जीने लगा इस प्रकर अब नगर के सभी लोग हरहर सिंह के साथ खुशी से रहने लगे साथ में अब राजा भी बहुत खुश रहने लगा....
lekhak: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना ghar