शुक्रवार, 30 जून 2017

"बोझ न बनो दूसरो के सर में "

बोझ न बनो दूसरो के सर में 
ऐसी ख्वाइस है उनकी 
दूसरों की बात भी मनो 
अमल भी करो 
न की किसी दबग करो 
निर्भर रहो अपने आप 
ऐसा करो तुम काम 
कि खास रहो दूसरो के माथे में 
बोझ बनो सिर्फ अपने आप में 
और कुझ करने की ख्वाइस 
रखो अपने ताप में 
दृढ शक्ति से कदम बढ़ा 
"फिर क्या "
मजिल आएगी अपने आप 
से। .. 

                     राज 
                        अपना घर 

गुरुवार, 29 जून 2017

"अनजान  सा .. "


अनजान सा मैं आया था ,
विदवान सा बन गया | 
दुनिया भर की बातें ,
मुझे में भर गया | 
गलत और सही सही को मैं समझा ,
अमीरी गरीबी को मैं परखा | 
मैं घर और दवार समझा, 
मैं भूमि और भूमिका समझा | 
हमारा क्या है तुम्हारा क्या ,
उनको भी मैं समझा लेकिन 
किसी ने | 
माँ की ममता को , 
पिता की पसीने की | 
कीमत नहीं समझा ,

          नाम =देवा ,class 8th ,अपना घर 

जिंदगी एक शब्द नहीं जो

"जिंदगी एक शब्द नहीं जो "

जिंदगी एक शब्द नहीं जो ,
जो चाहे भुला नहीं सकता | 
तेरी मुस्कान में हजारों खुश होते है ,
गरीबों की  जिंदगी बनाते है | 
काश ;मैं भगवान होता ,
जब चाहे इंसान बना लेता | 
मेरी एक सहायता से ,
हजारों को अच्छा बनाता | 
जिंदगी में खुश हजारों लोग होंगे ,
दुःखी  में अकेले होंगे। ...... 



                                                            नाम   -  सार्थक कुमार               
                                                 कक्षा  -    ,अपना घर       

बुधवार, 28 जून 2017

कविता

गर्मियों की छुट्टियों का ख़त्म हुआ जमाना,
सब कुछ भूलकर अब स्कूल है जाना | 
बच्चे करते पढाई आधा, 
पढ़ते कम खेलते है ज्यादा|  
दिन भर मस्ती मन में गस्ती, 
गुस्से में लड़ाई बाद में दोस्ती | 
पढ़ो लिखो खेलो औरखाओ
दिन भर पढ़ो और मौज उड़ाओ | 
क्या कहे अब ये नादान 
इन्हीं को बनना है महान | 

अपना घर 
हॉस्टल 
               

 " पेड़ " 

शाम ,सुबह यह छाया देता,
रात में ये कभी - कभी सोता |  
सूंदर - सूंदर ये फूल देता, 
रस भर -भरकर फल देता | 
फूल को सूंघने में आनंद आता,
जड़ तो अंदर में छिप जाता |  
तना रात दिन खड़ा रहता,
पूरा पेड़ दूप को सहता | 
सुबह-सुबह जब पानी मिलता, 
पूरा दिन खुसी से रहता | 
शाम सुबह यह छाया देता, 
सारी रात खूब सोता | 
नाम : अवधेश कुमार ,कक्षा : 4th , अपनाघर 

मंगलवार, 27 जून 2017

 " कोई कुछ कह रहा है "

कोई कुछ कह रहा है, 
ये हवाएं जो बह रही हैं | 
उड़ती चिड़ियाँ कुछ कह रही हैं, 
छाय बदल भी कुछ कह रहे हैं | 
रात को जुगनू कुछ कह रहा है, 
नीला आसमान कुछ कह रहा है | 
अब ये तारे ,ये जमीं ,ये पौधे, 
ये पूरी दुनियां यही कह रही है | 
हवा और नदियां बह रही हैं, 
क्यों आवाज जहर बन रही है | 
वो पवित्र नदी नाला बन कर, 
क्यों जहर  बनकर बह रही है |
जिंदगी क्यों नरक बन रही है,
रोक लो यारों ये हर कोई कह रहा है  | |

नाम : देवराज कुमार ,कक्षा : 7th ,अपनाघर। 


कवि परिचय -: यह बिहार के रहने वाले देवराज हैं | इन्होंने एक से एक बढ़कर कविताऍं लिखी हैं | अबतक इन्होनें लगभग ५० -६० कविताऍं लिख चुके हैं | इनको डांस करना बेहद पसंद है | क्रिकेट में छक्के बहुत मारते हैं | हर वक्त कुछ नया सिखने को चाहते है | ये कक्षा सात में पढ़ते है |  अपना घर परिसर में रहकर अपनी शिक्षा को मजबूत बना रहे हैं | इनके माता - पिता ईंट भठ्ठे में बंधुआ मजदूर की तरह काम कर रहे हैं | ये बड़े होकर एक नेक इंसान तथा एक अच्छे खेल के खिलाड़ी बनना चाहते हैं | 

सोमवार, 26 जून 2017

"आशाओं का सूरज निकल रहा हैं  "

आशाओं का सूरज निकल रहा है ,
कामयाबी रास्ते खुल रहें है | 
मंजिल तो  हमारी हो नहीं सकती दूर ,
क्योंकि हमारी सोच बदल रही है | 

हमारी रफ़्तार बदल रहे है ,
हवाओ के जैसे हम चल रहे है | 
अब जल्द ही बदलेगा जहा ,
क्योकि हम बदल रहे है | 
हर बच्चो की ज्ञान देना ,
ये तो माँ -बाप का धर्म बन चुका है | 
उनके जिंदगी  को सवारना ,
ये तो कर्म बन चुका है | 


      नाम =देवा ,class 7th
        अपना घर 

रविवार, 25 जून 2017

कविता :मजबूरी

"मजबूरी " 
दलितों को जिंदगी जीना है मजबूरी,
समाज उनके लिए क्या कर रही 
यह बात पता नहीं किसी को पूरी |  
आर्थिक संकटों की वजह से, 
आ रही बड़ी -बड़ी रुकावटें |  
जिससे जिंदगी के हर राह पर,
खेल  रही मौत की आहट ,
जिंदगी से लड़ लड़कर क्या है जीना,
यह बहादुरी की बात नहीं|  
अपने अधिकार को लड़कर लेना,
शाबाशी की ताज तेरे सर पर सही | 
नाम : विक्रम ,कक्षा : 7th ,अपनाघर  

कवि  परिचय : इनका नाम विक्रम है | ये कविताओं को नरम हाथों से लिखकर उसमें जान फूक देते है | इनको रेस करना बहुत  पसंद है | शांत स्वभाव के विक्रम कुमार हमेशा अपने चेहरे में ख़ुशी रखना पसंद करते है | हमेशा नई  जानकारी को पाने की कोशिश करते रहते है |  इनको एक्टिंग करना पसंद है | 


कविता : "आशा है मुझे बारिश होगी "

"आशा है मुझे बारिश होगी " 

आशा है मुझे बारिश होगी ,
आशा है मुझे कुछ नया होगा  | 
देखने में लगता है कुछ खास ,
काश बादल रुक जाये आज  | 
मेरे आसपास के इस वातावरण,
में हो जाये झमाझम बरसात | 
बारिश के बूँदें को  देखू ,
  बारिश को महसूस  करूँ| 
 उछल कूदकर मैं खूब नहाऊँ  ,
अपने सपने को  खुद सजाऊँ | 
 नाम : राज कुमार , कक्षा : 8th , अपनाघर 

कवि का परिचय: राज   "अपना घर" परिवार के सदस्य है। ये हमीरपुर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले है। इनका परिवार ईट भठ्ठों में प्रवासी मजदूर का कार्य करते है. यंहा "आशा ट्रस्ट" के कानपुर केंद्र "अपना घर" में रहकर, शिक्षा ग्रहण कर रहे है। वर्तमान में ये कक्षा 8 th  के छात्र है। राज को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है। हमें उम्मीद है कि आपको इनकी ये नवीन रचना पसंद आएगी।

             
"दिन का तू ख्याल न कर "
दिन का तू ख्याल न कर
सुबह भी होगी शाम भी होगी
वही धूप होगी वही छाव होगी
सूर्य चन्द्रमा के प्रकाश को बस
फेरन होगा