शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

कविता -माचिस की तीली

माचिस
माचिस की तीली है बड़ी अलबेली ,
काम करती है अकेली ........
नहीं किसी से मदद लेती ,
सबको रोशनी है देती ..........
उसकी एक तीली पर ,
उसकी एक चिंगारी पर ........
आग जल जाती है ,
खाना बनाने में वह मदद करती है ...
घर में आग लगती है ,
मृत्य शरीर को जलती है .........
एक माचिस की तीली पर,
दुनिया जल जाती है ..........
लेकिन इसका एक उपाय है,
जो हमारे पास है...............
आग अगर लग जाती है ,
पानी उसे बुझाती है ..........
आग को शांत कराती है ,
माचिस की तीली है बड़ी अलबेली ,
काम करती है अकेली ..............
लेखक :मुकेश कुमार "उत्साही "
कक्षा :८
अपना घर ,कानपुर

कविता -जब काली घटायें आती हैं

जब काली घटायें आती हैं

जब काली घटायें आती हैं ,
चिड़ियाँ उड़ उड़ जाती हैं .....
घोर घने बादल में जब ,
इन्द्रधनुष चमकते हैं .....
उस समय ऐसा लगता है ,
जैसे कोई बादल गरजता है .....
जब काली घटायें आती हैं ,
बादलों में आक्रति छा जाती हैं .....

लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

कविता: अब नहीं किसी का जुल्म सहेंगे

अब नहीं किसी का जुल्म सहेंगे

जुल्म क्या है ? जुल्म से लड़ना सीखो,
मुल्क क्या है ? मुल्क में रहना सीखो।
कोई किसी को मारे ये जुल्म है,
कोई खड़ा देखे ये तो और जुल्म है।
अपना मुल्क तो अपना भारत देश है
टोपी, चश्मा, हाथ में लाठी ये गाँधी जी का वेश है।
लक्ष्मी बाई और भगत सिंह ने भारत में जन्म लिया,
इस देश कि खातिर अपने प्राणों को गंवा दिया।
गोरे हम पर जुल्म ढाने आये,
साथ में गोला, बारूद, बम लाये
सारा देश फिर एक हुआ,
जुल्म के खिलाफ साथ हुआ।
जनता बोली नहीं सहेंगे जुल्म किसी का,
गोरा काला सरकार या और किसी का।
आओ मिलकर फिर से लड़ेंगे,
गलत हुआ तो चुप रहेंगे।
अब किसी का जुल्म सहेंगे,
आजाद है हम आजाद रहेंगे
लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर



कविता -खगोल वैज्ञानिक अनमोल

खगोल वैज्ञानिक अनमोल
खगोल वैज्ञानिक हैं अनमोल ,
करते रहते प्रथ्वी को पोल ।
न जाने क्या करते खोज ,
करते हैं प्रथ्वी के ऊपर बोझ ।
इस बोझ से पता नहीं क्या होयेगा ,
इस प्रथ्वी से पता नहीं क्या खोएगा ।
खगोल वैज्ञानिक प्रथ्वी की खोलते पोल ,
२०१२ का बजाते रहते ढोल ।
खगोल वैज्ञानिक हैं अनमोल ,
करते रहते प्रथ्वी को पोल ।
लेखक : ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

कविता -किसान गया कलकत्ता

किसान गया कलकत्ता
एक किसान गया कलकत्ता ।
उसने खाया पान का पत्ता ॥
मुँह हो गया उसका लाल ।
उसने किया रात में मुर्गे को हलाल ॥
जब उसने पेट भरकर खाया ।
उसने घर में किसी को नहीं बताया ॥
जब किसान के घर में बदबू आई ।
उसकी पत्नी सह ना पाई ॥
एक किसान गया कलकत्ता ।
उसने खाया पान का पत्ता ॥


लेखक -मुकेश कुमार
कक्षा -८
अपना घर

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

कविता -औरत ने जन्म दिया बच्चे को

औरत ने जन्म दिया बच्चे को
प्रकृति ने रचा है पृथ्वी को ,
औरत ने जन्म दिया है बच्चे को ।
बच्चों को किसी तरह पाल-पोषकर बढ़ा सकें ,
ताकि बच्चे बड़ें होकर माँ को आराम दें सकें ।
पर आज के युग में बच्चे ऐसा करते नहीं ,
माँ बाप के कहने पर चलते नहीं ।
जो मन में आये वही करते हैं ,
जुआँरी ,शराबी तभी तो बनते हैं ।
लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता: चाय गरम

चाय गरम

चा बनी है गरम - गरम,
ठंढ़ी लगे नरम - नरम।
चाय पीये हम गरम - गरम,
ठंढ़ी लागे हमको गरम
ठंढ़ी से हम सबको बचना होगा,
इसका हमको ध्यान रखना होगा


लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

कविता: खेल

खेल
ये खेल है भाई कैसा ,
जिसमें मजा आये ।
पर लगे न पैसा ,
हम भी खेले तुम भी खेलो ।
आओ नहीं लगेगा पैसा ,
पर आयेगा मजा वैसा ।
जो कभी खेल खेला न होगा ऐसा ,
ये खेल है भाई कैसा ।
लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

कविता -निकला सरज गया अँधेरा


निकला सूरज गया अँधेरा
निकला सूरज गया अँधेरा ,
इन सूरज की किरणों ने हमको घेरा
निकल पड़े जब सूरज भाई,
शाम कहीं नजर आई
चिड़ियाँ निकली पेड़ों पर ,
निकल पड़े सब आदमी
बच्चे निकले सब खेल खेलने ,
विद्यार्थी निकले पढने को
खेत किसान जोतने को ,
शाम हुई जब सूरज भागा
अँधेरा भाई दौड़कर आया ,
सभी लौट के अपने घर को
बच्चे खेलकर विद्यार्थी पढ़कर ,
किसान खेत जोतकर
चिड़ियाँ चिल्लाकर ,
सूरज रौशनी देकर
लौट पड़े सब अपने घर को ............. ।
लेखक :सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

कविता -जिसके पास सब कुछ है

जिसके पास सब कुछ है

चल पड़ा है अपने साधन से ।
रोड़ के किनारे से ॥
अपने दफ्तर की ओर को ।
मस्ती से जा रहा है ॥
गाना सुनते हुए ।
मोबाइल जेब में डाले हुए ॥
चला जा रहा है ।
मस्ती से गाना सुनते हुए ॥
अपने दफ्तर की ओर को ।
जिसके पास सब कुछ है
लेखक -अशोक कुमार
कक्षा -
अपना घर

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

कविता -रेल

रेल

रेल चली भाई रेल चली
दस दस डिब्बे साथ में ले चली
रेल के डिब्बे बड़े ही भारी
उस पर बैठी जाने कितनी सवारी
रेल का लगता बड़ा ही भाड़ा
लोग फैलाते जाने कितना कूड़ा
रेल है भारत की सम्पत्ती
जब चलती है तो धरती- हिलती
किसी के रोके से रुकती
ऐसा लगता मानो गई कोई विपत्ती
रेल किसी को नहीं जानती
जो भी आगे आता ,उस पर चढ़ जाती

लेखक आशीष कुमार, कक्षा , apna ghar

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

कविता -लालू ने खाया लाल टमाटर

लालू ने खाया लाल टमाटर
लालू ने खाया लाल टमाटर
मेढक बोले टर्र -टर्र
पानी बरसे झर- झर
नाला जाये भर- भर
लालू ने खाया लाल टमाटर
बिल्ली चढ़ गई छत के ऊपर
लालू ने उसको मार भगाया
फिर टमाटर पेट भर कर खाया
टमाटर खाने में बड़ा मजा आया
लालू ने खाया लाल टमाटर
लेखक -मुकेश कुमार
कक्षा -
अपना घर

कविता: जब मानव आपस में लड़ता है

जब मानव आपस में लड़ता है

जब मानव आपस में लड़ता है ,
तब जुल्म सितम बढ़ता है
कौन बचाए उनको कौन छुड़ाये,
ये सारा जमाना कहता है
कुछ लड़ते है इस देश के खातिर,
कुछ मरते है बस रुपयों के खातिर
सब मांगते है बस अपने लिए ,
कोई जीता नहीं जिए दूजे के लिए
इस देश पर जताए जो सिर्फ अपना हक़ ,
इनको भी सिखायेंगे अब हम सबक
चारो ओर फैलाओ सबको यह बात ,
नहीं है अलग कोई धर्म जात -पांत
हम है सभी एक इन्सान भाई,
क्यों करते हो आपस में लडाई।
गले मिल जाएँ एक दूजे के हम,
दुनियाँ में सुखमय जीवन जिएँ हम


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

कविता: बैगन के है नसीब फूटे

बैगन के है नसीब फूटे

बैगन जी कि दिल्ली गई बरात,
पहुचते पहुचते हो गई आधी रात ।
मूली जी दुल्हन बनी थी ,
मन ही मन वो सोच रही थी ।
कब आयेंगे दुल्हे राजा ,
उन्हें खिलाऊंगी हलुआ ताजा।
तब तक आ गए दुल्हे राजा ,
मूली ने देख रुकवाया बाजा।
क्योकि दूल्हा थे बैगन काला ,
मूली बोली मै नहीं डालूंगी माला ।
दूल्हा काला दुल्हन गोरी ,
टूट गई शादी कि डोरी ।
बैगन बोला हमारे नसीब है क्यों फूटे,
मूली झट से बोली क्योकि तुम हो काले कलूटे।


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

कहानी: चूहा और बिल्ली कि दोस्ती

चूहा और बिल्ली कि दोस्ती

एक बार कि बात है कि एक बिल्ली थी, जिसक नाम बाटी था और एक चूहा जिसका नाम चोखा था। उन दोनों में बहुँत अच्छी दोस्ती थी। वे जँहा भी जाते एक साथ जाते और एक दूसरे के ऊपर मुसीबत जाने पर सहायता करते थे। एक दिन बिल्ली किसी के घर दूध पीने गई। उसने देखा कि दूध भरा हुआ कटोरा रसोई घर में हुआ है, वो रसोई घर में घुस गयी, तभी चूहा भी पीछे से धमका, बाटी ने दूध कटोरा गिरा दिया। दूध जमीन पर गिर गया बाटी और चोखा दोनों मस्त होकर दूध पीने लगे। थोड़ी देर में चूहे का पेट भर गया वो एक तरफ जाकर आराम फरमाने लगा। तभी बाटी के ऊपर किसी ने जाल डाल दिया, और उसे जाल में बांधकर रसोईघर के एक कोने में रखदिया। उस आदमी के जाने के बाद चोखा धीरे से बाहर आया और बाटी को आजाद करने के लिए जल्द से उस जालको काट दिया, और बाटी को मरने से बचा लिया। घर का कोई आदमी फिर आकर मारे उससे पहले दोनों वंहा से भाग लिए। इस तरह से चूहे ने बिल्ली कि जान बचा ली और अपनी मित्रता कि शान बढा ली।

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता: तुलसी प्यारी

तुलसी प्यारी

कितनी न्यारी कितनी प्यारी,
बड़ी सुन्दर है इसकी क्यारी
छोटी छोटी इसकी डाली,
खिल रही देखो हरियाली।
लगती है ये बड़ी ही प्यारी,
इसकी पत्ती बड़ी ही न्यारी।
इससे बनती दवा है सारी,
इसकी खुश्बू बहुत ही प्यारी।
इसका नाम है बड़ा ही प्यारा,
तीन अक्षर का नाम है सारा।
सभी प्यार से कहते तुलसी,
सबके आंगन में रहती तुलसी।
कितनी न्यारी कितनी प्यारी,
जिसको चाहे दुनिया सारी।

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

कहानी -श्यामू ने पंडित जी का मजाक उड़ाया

श्यामू ने पंडित जी का मजाक उड़ाया

एक बार पंडित जी ने दीननाथ के घर में कथा सुनाईदीननाथ ने अपने कुछ ख़ास रिश्तेदारों को बुलवाया थाजब कथा सम्पन्न हो गईउसके बाद पंजीरी और चंदामिरित खाने को मिलता हैदीननाथ के बेटे ने उसके बुआ का लड़का श्यामू दोनों मिलकर सभी को यह प्रसाद बांटने लगेजब सभी को प्रसाद बाँट दिया तब श्यामू , पंडित जी के पास कटोरी में पंजीरी लेकर गयापंडित जी जहां पर थे, वहां पर बहुत से लोग और भी बैठे थेतभी श्यामू ने पंडित जी से कहा कि अभी जब में अपने मुंह में पंजीरी भरकर मुंह बंद कर लूँतब आप मुझसे कहियेगा कि कहो फूफा, पंडित जी ने कहा ठीक हैश्यामू ने जैसे अपने मुंह में पंजीरी भरी तुरंत पंडित जी ने वही कह दियाश्यामू ने जैसे ही फूफा कहा वैसे ही मुंह की सारी पंजीरी पंडित जी के मुंह में जा गिरी , वहां पर बैठे सभीलोग हंसने लगे

लेखक -आशीष कुमार, कक्षा ,अपना घर

कविता : पान ने बनाया सबसे बड़ा "डान"

पान ने बनाया सबसे बड़ा " डान "


एक था पान का पत्ता
दिखने में लगता जैसे लत्ता
सब इसको खाते कलकत्ते में,
अधिक दबाते इसको मुंह में।
पान सबका मुंह करता लाल,
तब तक मेरे फोन में आई काल।
हमने उठाया और बोला कौन ?,
उसने बोला मै हूँ मुंबई का " डान"।
फिर मैंने बोला अरे चुप हो जा मौन,
मै हूँ इस भारत का सबसे बड़ा " डान" ।

लेखक: चन्दन कुमार, कक्षा ४, अपना घर

कविता: चिड़िया के घोसले में अंडा

चिड़िया के घोसले में अंडा

एक दिन मैंने देखा था ,
चिड़ियों के घोसले में अंडा था ।
उस अंडे में बच्चे थे,
बच्चे सबसे अच्छे थे।
चिड़िया जब जब आती थी ,
बच्चों के मुहं में दाना दे जाती थी ।
बच्चे अच्छे से खाते थे ,
घोसले में मौज उड़ाते थे ।

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर

कविता: थोड़ी सी कर ले पढाई

थोड़ी सी कर ले पढाई

मैदान में लगी है कितनी घास ,
जिसमें लगती है रोज लात।
जानवर उसको खाते है ,
अपना पेट फुलाते है ।
उसी घास में सब खेलते है ,
मौज मस्ती करते है ।
मौज मस्ती नहीं ज्यादा करना ,
सबको थोडा है पढाई करना ।

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर

कविता: संसार अनोखा

संसार अनोखा

आसमान में है जो तारे,
टिम - टिम कर टिमटिमाते सारे।
टिमटिमाते है जो तारे,
देखने में लगते है कितने प्यारे।
आसमान में एक सूरज अपना,
जिसके बारे में हम देखे सपना।
ये धरती सहती है कितना भार,
जिस पर है पूरा संसार।
पृथ्वी पर ही है बस हरियाली,
सूरज में ही है बस लाली।
ये संसार है कितना अनोखा,
जिसे सोचने में होता है धोखा।

धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

कहानी : कौआ और बन्दर की दोस्ती

कौआ और बन्दर की दोस्ती

एक समय की बात है, कि एक काला कौआ एक आम के पेड़ पर जाकर बैठ जाता है, वह अपने काले बदसूरत रंगको देखकर अपने आप को काला कह रहा था थोड़ी देर बाद वहीं पर एक बड़ा सा बन्दर आया उसने कौए की हालत देखकर कहा दुखी क्यों होते हो भाई ईश्वर ने जब तुम्हें ऐसा रंग दिया है , तो उसमें तुम्हारा क्या दोष इतनी बात कहने के बाद बन्दर ने पके -पके आम तोड़े और एक कौआ को दिया और एक उसने ले लिया दोनों ने जमकर आम खाए, अब कौआ बहुत खुश था, क्योंकि अब उसे अपने काले रंग का दुःख नहीं था, और उसे एक अच्छा दोस्त भी मिल गया था

लेखक -आशीष , कक्षा - , अपना घर

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

कविता: आँक्सीजन गैस का महत्व

आँक्सीजन गैस का महत्व
प्राक्रतिक ने दिया इसको जन्म ।
जिससे जीवित हैं मानव जीवन ॥
वायुमंडल में इसका प्रतिशत है इक्कीस ।
जिससे मानव है जीवित ॥
"O" है इसका संकेत ।
"02" है इसका सूत्र ॥
सभी सजीवों को है ।
इसकी आवश्यकता ॥
जलने में भी करती बड़ी सहायता ।
इसके बिन जीवन की न थी कल्पना ॥
जिस दिन खत्म हो जाएगी ।
वायुमंडल से इसका प्रितशत ॥
इस भू धरा में ।
सजीवों की भी न होगी कल्पना ॥
लेखक -अशोक कुमार
कक्षा -७
अपना घर

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

कविता: गंगा बचाओ

गंगा बचाओ
गंगा बचाओ गंगा बचाओ ।
सदा साफ उसको दिखलाओ ॥
गंगा को प्रदूषित न करो भइया ।
गंगा हमारी रास्ट्रीय नदी है ॥
गंगा में में कूड़ा करकट न फेको ।
गंगा बचाओ गंगा बचाओ ॥
गंगा में सारे जीव जन्तु रहते हैं ।
गंगा में फैक्ट्री का गंदा पानी न गिराओ ॥

लेखक चन्दन, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

कविता: ब्लैक बोर्ड

ब्लैक बोर्ड
ब्लैक बोर्ड होता काला ।
पडे न इससे मेरा पाला ॥
अगर पड गया इससे पाला ।
तो वी० के० यादव ने पीट डाला ॥
मैं तो हो जाऊंगा काला ।
बच्चे चिडाये काला काला ॥
क्या पड़ा वी० के० से पाला ।
तुम्हारे जगह मैं होता लाला ॥
तो ब्लैक बोर्ड होता न काला ।

लेखक सोनू कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता पर्यावण

विता पर्यावरण
आओं प्यारे भाई आओं |
मिलकर पर्यावरण बचाओ....
स्वास्थ्य अपना देश बनाओ|
दुनिया में देश क नाम करों....
अगर पर्यावरण प्रदूषित होता रहेगा|
दुनिया कोई नहीं बचेगा.....
प्रथ्वी का अंत हो जायेगा|
आओं प्यारे भाई आओं....
मिलकर पर्यावरण बचाओ|
पौधों को खूब लगाओ....
शुध्द आक्सीजन पाओ|
जल परिवर्तन जब आयेगा....
कार्बन को भगा जायेगा |
आओं प्यारे भाई आओं....
मिलकर पर्यावरण बचाओ|
लेखक मुकेश कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

कविता: कैसे अपना संसार बना

कैसे अपना संसार बना

कई मोहल्लो से मिलकर बनता गाँव,
वंहा पर मिलती सबको पेड़ो की छाँव।
गाँव मिलाकर बनती ग्राम पंचायत,
गर्मी में जब पानी पीते तब मिलती राहत।
ग्राम पंचायत मिलकर ब्लाक है बनता,
अब कोई किसी की नहीं है सुनता।
ब्लाक मिलाकर बनती तहसील ,
दुनिया में तो सबसे होती भूल।
तहसील मिलाकर जिला है बनता,
हर इंसा हर एक पर हँसता।
जिला मिलाकर राज्य है बनता,
हर राज्य में मुख्य मंत्री है रहता।
राज्य मिलाकर बनता देश,
सबका अपना रंग बिरंगे वेश
देश मिलाकर बनते महाद्वीप,
दिवाली में आओ जलाये तेल के दीप।
महाद्वीप मिलाकर ग्रह है बनता,
पृथ्वी ग्रह पर ही जीवन मिलता।
जिसमे हम सब है प्यार से रहते,
संसार को हम सब मिलकर रचते ।

लेखक: आशीष कुमार, कक्षा ७, अपना घर, कानपुर