सोमवार, 28 सितंबर 2009

कविता: खाई गधे की लात

खाई गधे की लात

एक लड़का जिसका नाम था सोहन,
वो दिन रात करता था आलसीपन...
कुछ दिन बाद आया जाड़ा,
खूब याद किया उसने पहाड़ा...
एक दिन घर में बैठा वो अन्दर,
अपनी जेब में रखे चुकंदर...
जमके उसने चुकंदर खाया,
दायें बाएं जो भी पाया....
चुकंदर में थे बड़े- बड़े कीड़े,
सोहन के पेट में पड़ गए कीड़े....
सोहन फ़िर तो चला बाज़ार,
गधे पर हुआ जमके सवार....
अक्ल से था वो निपट गंवार,
बिन के लगाम के हुआ सवार....
गधे ने फ़िर मारी लात ,
सोहन ने खाई चार गुलाट....
लेखक: मुकेश कुमार (स्टुवर्ट), क्क्श८, अपना घर

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

कविता: जल का न करे दुरूपयोग

जल का करे दुरूपयोग

जल ही जीवन है हम सबका,
कभी करे दुरूपयोग इसका....
जल बिन जीवन होगा कैसा,
बंजर धरती बिन प्राणी जैसा....
आओ हम मिल सरंक्षण करे इसका,
जल ही जीवन है हम सबका....
आओ मिल पानी की बूंद बचाए हम,
जीवन के सबको सुखी बनाये हम....
जल के दुरूपयोग को मिल रोके हम,
दुनिया के जीवन आगे बढाये हम....
जल का है महत्त्व बड़ा,
इससे ही हर चीज खड़ा...
जल का हम सब करते उपयोग,
इसलिए कभी करे इसका दुरूपयोग.....

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा , अपना घर

रविवार, 20 सितंबर 2009

कवि़त: आओ - आओ नाव में बैठो

आओ - आओ नाव में बैठो

आओ -आओ बच्चों आओ,
नाव में बैठो मजे उडाओं...
पानी देखो मछली देखो,
उपर देखो नीचे देखो...
आओ - आओ भाग के आओ,
नाव में जल्दी बैठ भी जाओ...
पानी की लहरों को देखो,
मछली की चहलों को देखो...
देखो - देखो बच्चों देखो,
आओ मिलके इनसे सीखो...
कहाँ है बगुला कहाँ है कछुआ,
ये मिलकर सब पता लगाओ...
जल्दी आओ जल्दी आओ,
नाव में बैठे मजे उडाओं...

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

कविता: पापा और बेटा

पापा और बेटा

पापा कहते है बेटा,
तुम भी पढ़ने जाया करो...
पढ़ लिख कर अच्छा काम करोगे,
जग में अपना नाम करोगे...
पापा कहते है बेटा,
तुम भी पढ़ने जाया करो...
पापा ने पूछा एक सवाल,
बेटा बोलो मेरे कमाल....
तुम कौन सा ऐसा काम करोगे,
जिससे जग में नाम करोगे....
मैंने काफी सोच के बोला,
अपना छोटा सा मुंह खोला....
पापा मै अच्छा इन्सान बनूँगा,
हर गरीब की मदद करूँगा....
जिससे उनका होगा काम,
जग में होगा मेरा नाम....
पापा कहते है बेटा,
तुम भी पढ़ने जाया करो....


लेखक: सागर कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता: प्रार्थना

प्रार्थना

हे प्रभू....
हम है तेरे बंधू,
घूम रहे है लिए तम्बू...
दे दो हमको काम और ज्ञान,
रहे हम घर परिवार के साथ...
हम है तेरे बन्दे और बंधू,
फ़िर क्यो लिए घूम रहे है तम्बू...
दे दो हमको ऐसा ज्ञान,
घूम के बांटे सबको ज्ञान....
भगवन तुम तो हो सूपर,
एक छत कर दो हमारे ऊपर...
करेंगे ज्ञान का प्रचार,
होगा अच्छाई का प्रसार...
इतन सा तू कर दे काम,
लेंगे हरपल तेरा नाम....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता: गुरु जी की मार

गुरु जी की मार

गुरु जी हमारे कितने प्यारे,
हरदम पाठ पढाते प्यारे...
हम भी पढ़ते जाते सारे,
याद हमको होते प्यारे...
कक्षा में जब गुरु जी बोले,
पाठ सुनाओ बेटा भोले...
हम तो भइया गए भूल,
सोचा क्यो आए स्कूल...
गुरु जी को गुस्सा आया,
खूब पड़े फ़िर मुझको रूल...
याद गई मेरी नानी,
ख़त्म हुई अब मेरी कहानी...

लेखक :चंदन कुमार, कक्षा ४, अपना घर

बुधवार, 16 सितंबर 2009

कविता: थाली और गिलास

थाली और गिलास

एक थी थाली एक था गिलास,
खाने में मिलते हरदम साथ...
हर घर में वे रहते साथ,
एक दूजे से करते बात...
एक दिन थाली की आई बारात,
चम्मच कटोरी जमके नाचे साथ...
दूल्हा बन ठुमके थे गिलास,
दोनों की शादी हो गई साथ...
एक थी थाली एक था गिलास,
खाने में मिलते हरदम साथ
....
लेखक: जमुना कुमार, कक्षा ४, अपना घर

सोमवार, 14 सितंबर 2009

कविता: कंप्यूटर

कंप्यूटर
कंप्यूटर है ये कितना अच्छा,
चलाता है इसको बच्चा बच्चा...
कंप्यूटर होते है बहुँत प्रकार,
अलग अलग होते है इनके आकार...
बहुँत सारा होता है डाटा स्टोर,
करता नही है ये शोर...
छोटा सा होता है माऊस एक,
जो करता है काम अनेक...
कंप्यूटर है ये कितना अच्छा,
चलाता है इसको बच्चा बच्चा...
छोटा सा होता है माऊस एक,
जो करता है काम अनेक...
लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा , अपना घर

रविवार, 6 सितंबर 2009

कविता: लालू आलू और भालू

लालू आलू और भालू

असली है घोड़ा, उस पर बैठा मोड़ा,
जा पहुँचा वह अल्मोडा...
वहा पर खाया उसने केला,
फ़िर देखा दशहरे का मेला...
मेले में ख़रीदा उसने आलू,
मोड़ा के पीछे पड़ गया भालू...
छोड़ के भागा फ़िर वह आलू,
तब तक गए पूर्व रेलमंत्री लालू...
लालू ने भी ख़रीदा आलू,
उनके पीछे पड़ गया भालू...
लालू को लगा बड़ा ही झटका,
तब तक भालू ने उनको दे पटका...
लालू को जोर से गुस्सा आया,
जल्दी से उसने पुलिस बुलाया...
भालू की जेल में हुई पिटाई,
भालू ने अस्पताल में दवा कराई...

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 2 सितंबर 2009

कविता: आओ सीखे अ, आ, ई

आओ सीखे , ,

छोटा "" से अजगर, बड़ा "" से आम,
कभी करना, तुम कोई ग़लत काम....
छोटी "" से इमली, बड़ी "ई" से ईख,
बड़ों से लेना हरदम सीख...
छोटा "" से उपमा, बड़ा "" ऊन,
देखने जाना देहरादून...
से "एक", "ऐ" से ऐनक,
बच्चे सभी बनेगे सैनिक...
"ओ" से ओर, "औ" से और,
आसमान का मिलता छोर...
"अं" से अंगद, "अः" पर है विसर्ग,
एक ही है सब जाति और धर्म....


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

कविता: चूहे राजा की रानी

चूहे राजा की रानी

एक चूहे की तीन रानी,
तीनों रानी बड़ी सयानी ...
एक थी कानी पर कोयल जैसी बाणी,
बाते करती ऐसी जैसी सबकी हो नानी...
एक थी लगडी सर पर डाले पगड़ी,
हट्टी -कट्टी और थी मोटी तगड़ी...
एक थी सीधी -साधी प्यारी सी,
राजा को लगती राजकुमारी सी...
दोनों रानी इस बात से चिढ़ती थी,
राज के कान को भरती थी...
एक दिन दोनों राजा के उपर गिर गई,
राजा की पूछ उनके वजन से दब गई...
कानी लगडी का वजन था ज्यादा,
चूहे राजा को याद आ गए दादा ...
दर्द ने राजा के गुस्से को भड़काया,
राजा ने रानी को घर से मार भगाया...
लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर