रविवार, 21 जून 2020

कविता : शब्दकोश

" शब्दकोश "

शब्दकश  के भण्डार में ,
बहता है ज्ञान का समंदर | 
जितना जल्दी हो सके,
भर लो इसको अन्दर | 
उठाओ शब्दकोश ढूंढों,
ज्ञान का बहता समंदर | 
क्या कमी रह गई ,
और झाँको अपने मन के अंदर | 
शब्दों की दुनिया में खो जाओ,
ज्ञान के समंदर में सो जाओ | 
सफलता की कुंजी,
जो सभी के लिए है पूँजी | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

शनिवार, 20 जून 2020

कविता : अब ठानी है

" अब ठानी है "

कुछ करने की मैनें अब ठानी है 
बहुत अरसो बाद अपनी बात मानी है
मन भटकता ,दिमाग नकारता था,
बिना सोचे -समझे कुछ भी पढ़ता था | 
समय को अब ही गवानी है,
 कुछ करने की मैंने अब ठानी है | 
बहुत सुने प्रवचन और मोटिवेशन,
अब खुद ही बनाना होगा अपना मन | 
कुछ कर दिखाना है इस ज़माने में,
अब कुछ करने की ठानी है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " अब मैंने ठानी है " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखा बहुत अच्छा लगता है | गणित में बहुत रूचि रखते हैं |

गुरुवार, 18 जून 2020

कविता : मेरी प्यारी माँ

" मेरी प्यारी माँ "

माँ दिल बच्चों की तरह रोता है,
तेरे ही आँचल में आकर सोता है |  
मेरी सारी सिसकियाँ बंद हो जाती है,
जब तू मेरी छाती को सहलाती है | 
मुझे छोटे से परवरिश करती है तू,
मेरी हर ख्वाईश को पूरा करती है तू | 
मुझे मारती है तो तेरे हाथ रुक जातें  है,
क्योंकि तू मुझे मन से प्यार करती है | 
मेरे छोटे पाँव को काँटों से बचाती है,
नज़र न लगे तो गालों में काजल लगाती है | 
माँ मैं तेरे कर्ज को कभी नहीं चुका सकता,
इस जहाँ में तेरे जैसा पा नहीं सकता | 
मैं भगवान से माँगूँगा जब दुवा,
मुझे फिर मिले तेरे जैसी ही माँ | 
मेरी प्यारी माँ ,मेरी प्यारी माँ | | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर

बुधवार, 17 जून 2020

कविता : कोरोना से जंग

" कोरोना से जंग "

कोरोना आया कोरोना आया,
साथ में अपने बीमारी लाया | 
कोरोना आय कोरोना आया ,
साथ में अपने वायरस लाया | 
सबका जीना मुश्किल का दिया,
दो महीनों से घर में बंद कर दिया | 
मास्क, सेनिटाइज़र लगाएंगें,
इस कोरोना से छुटकारा पाएँगें | 
हम करेंगें कोरोना को तंग,
तब ख़त्म होगी कोरोना की जंग | 

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 3rd , अपना घर

मंगलवार, 16 जून 2020

कविता : गर्मी |

" गर्मी "

बढ़ती हुई गर्मी ने,
कर दिया बुरा हाल | 
ढूँढा कूलर ,पंखा,
करना पड़ा बिजली का इन्तज़ार | 
बिजली वाले को फोन कर रहे हज़ार,
जान निकल रही बिजली दो यार | 
नहीं बता रहे बिजली का समाचार,
बिजली के सिवाए कोई नहीं उपचार |
लोग हो रहे परेशां मन करता है लगा ले,
तालाब में डुबकी चार | 
बढ़ती हुई गर्मी ने,
कर दिया बुरा हाल | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

रविवार, 14 जून 2020

कविता : लॉकडाउन

" लॉकडाउन "

लॉकडाउन का फिर से है चान्स,
कोई नहीं खा रहा मुर्गा ,मांस | 
गाय , भैस तो खा रहे हैं घास,
इंसा संक्रमित हो रहे कोरोना के साथ | 
दुनिया में बीमारी फैली हज़ारो लाख,
कई लोगों की ले ली गई जान | 
गाड़ियाँ बंद हो गई है शहरों की,
तकलीफें बढ़ रहीं है इंसानों की | 
ख़त्म हो रही इच्छा जीने की,
भर रही है झोली कोरोना वायरस की | 
लॉकडाउन का फिर से है चान्स,
कोई नहीं खा रहा मुर्गा ,मांस | 

कवि : नवलेश कुमार कक्षा : 6th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " लॉकडाउन " है नवलेश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | नवलेश को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | नवलेश पढ़ने में बहुत अच्छा हैं | 

शनिवार, 13 जून 2020

कविता : कोरोना से हम भी लड़ेंगें

" कोरोना से हम भी लड़ेंगें "

कोरोना से हम सब लड़ेंगें 
इस ;लड़ाई में हम सब रहेंगें | 
बीमारी तो धीरे - धीरे बढ़ेगी,
पता नहीं बाद में क्या होगा | 
 कोरोना आया साथ वायरस लाया,
बहार खेलते हुए मम्मी ने बुलाया | 
सब बंद कर दिया हमारा खेल,
घर भी लगने लगने लगा है जेल | 
कैसे रहूं काया कहूं समझ न आए,
घर से बाहर अब कैसे जाए | 
फिर भी सावधान हम रहेंगें,
सभी की तरह हम भी लड़ेंगें | 

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 3rd , अपना घर


शुक्रवार, 12 जून 2020

Poem : My beautiful boat

" My beautiful boat "

when it was raining ,
I put my raincoat on.
the patches becomes full of water,
I made one boat of paper .
I loaded some flowers on,
which were from my garden .
it touch my heart all about,
boat was great when I proud .
I write letter to my friends,
I made a boat which is a trend .
I believe on my boat 
anywhere I will not land,
you also can make boat my friend .  


Poet : Mahesh kumar , class : 6th, Apna Ghar 

Introduction : This poem whose tittle name is " My beautiful boat" is written by mahesh which is from Banda district . He is very curious child to the new thing how it work . He is very interesting in writing poem , drawing etc. .

गुरुवार, 11 जून 2020

कविता :मौसम के इशारे

" मौसम के इशारे "

इस मौसम के इशारे पर,
होने लगी है पानी की बौछार | 
सो रहे पेड़ों को जगा रही,
भीषड़ गर्मी को भगा रही है | 
पानी की सुनहरी बूंदों को गिरा रही है,
घास और पत्तों को भिगा रही हैं | 
तालाबों को पानी भर सजा रही है,
प्यासे को जी भर पानी पीला रही है | 
वातावरण की शान बढ़ा रही है,
प्रदूषण को जड़ से हटा रही है
जीवन की अवधि को और बढ़ा रही है 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कविता : टीवी

" टीवी "

टीवी तो हर समय देखते हैं,
जिससे समय भी जल्दी कट जाता है | 
कुछ सोच भी नहीं पाते हैं,
कुछ समय पलकें भी झपकना भूल जाते हैं | 
रिमोट की बटनें बस हाथों में होती,
सीरियल देखने के लिए बहन रोती | 
पर क्या करें वह है छोटी,
हमेशा मेरी ही मर्जी होती | 
पढ़ाई सब चौपट कर जाए,
रिसल्ट में अब जीरो ही आय | 
अब पापा ने लगाई मुझे डाँटा,
नहीं पढ़ेगा तो लगाऊँगा चाँटा | 
समय से पढ़ाई फिर देखो टीवी,
नहीं तो बंद होगी हमेशा के लिए टीवी | 

कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर

कविता : देरी बा

" देरी बा "

हर इंसान के जिंदगी में कुछ न कुछ होला,
बस ओकरा के ऊ समझए के देरी बा | 
ऊ वो बदल सकेला अपनी जिंदगी के,
बस ओकरा के बदले के देरी बा | 
ऊ खोज सकेला दुःख के घड़ी में ख़ुशी,
 बस ओकरा समझदार बने के देरी बा | 
हर इंसान के मंजिल पावे के होला हुनर,
बस ओकरा के हुनर के पहचाने के देरी बा | 
ओहू बन सकेला एक बड़का ऑफिसर,
 बस ओकरा के पढ़ाई पे ध्यान देने के देरी बा | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर   

कवि परिचय : यह कविता समीर के दवरा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | इस कविता का शीर्षक " देरी बा " है | इस कविता की खास बात यह है की समीर ने इसे भोजपुरी भाषा में लिखी है जो की बहुत प्रभावित करती है और प्रेरणादायिक है | 

सोमवार, 8 जून 2020

कविता : मेरा बचपना

" मेरा बचपना " 

तीन साल पहले मैं कितना छोटा था,
अब मैं बस बढ़ चला हूँ | 
मेरी आज़ादी अब छीनने लगी है,
मेरी जिंदगी  बदलने लगी है | 
पहले मैं आज़ादी से घुमा करता था,
बिना बेवजह शैतानियां किया करता था | 
न मुझे डर था और न मुझे था भय,
मुझे ही करना पड़ता था काम तय | 
बड़े होने पर बचपना छीन गया,
जो भी था सब चला गया | 
शायद वह दिन फिर से आए,
मेरा बचपना काश लौट कर आए | 

कवि : अपतर अली , कक्षा : 3rd , अपना घर

रविवार, 7 जून 2020

कविता : मौसम के इशारे

" मौसम के इशारे "

ये मौसम के इशारों पर,
होने लगी पानी की बौछार | 
सबके खेतों  में हो रही,
कितनी अच्छी फसल | 
सब लोग तो नाच गा रहे हैं,
बरसात में मौज कर रहे हैं | 
चारों तरफ पानी भर गया,
सभी नभचर की प्यास बुझ गई |
 इस बारिश के मौसम में 
मन मग्न हो चला है,
पानी की बौछार होने लगी है | 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " मौसम के इशारे "  सार्थक के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | सार्थक को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | खेलकूद में बहुत रूचि रखते हैं और पढ़ लिखकर एक आर्मी बनना चाहते हैं |


शनिवार, 6 जून 2020

कविता : एक पेड़

" एक पेड़ "

जब मैं बैठा  था एक पेड़ के पास ,
कुछ नया सोचने के लिए | 
हवाएँ चली बारिश आई,
मुझे तंग करने के लिए | 
मुझे पता न चला कि 
मेरे पास ही एक पेड़ था,
जो गिर पड़ा मुझे डरने के लिए | 
मैं नहीं डरा चलता रहा,
अपनी खोई हुई मंजिल का पाने के लिए | 
उस बारिश और हवा में जाने क्या था,
जो बस मुझे छू कर जा रहा था | 
मैं जनता उसमें कोई तो है,
जो मुझसे कुछ कहना चाहता था | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और साथ ही साथ गीत भी गाना अच्छा लगता है | बड़े होकर एक संगीतकार बनना चाहते हैं |

शुक्रवार, 5 जून 2020

कविता : बारिश के मौसम में

" बारिश के मौसम में "

बारिश के मौसम में,
कितना मज़ा आता है | 
गर्मी को दूर भगा कर,
ठंडी का अहसास कराया | 
बारिश की बूंदें करे परेशां,
लेकिन बेजान पौधे में
 भी डाल दे जान | 
पेड़ -पौधों और फसलों को 
हरा भरा कर दे 
कितना मजा आता है बारिश में,
जब मछलियाँ उछलती है तालाबों में | 

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर
 



गुरुवार, 4 जून 2020

कविता : फूलों की खुशबू

" फूलों की खुशबू "

मौसम है सुहाना,
और सुहाना है ये जहाँ | 
फूलों की खुशबू महके,
प्रकति में हलचल हो वहाँ | 
मधुमक्खियों की भनभनाहट,
शहद से भरी छत्तों की बनावट | 
उतनी ही मीठा होती है,
जितनी अच्छी फूलों  खुशबू होती है | 
महक उठा है वातावरण,
चहक उठा है चिड़ियों का गगन | 
अब आँखों में न होंगें आँसू,
क्योंकि चेहरे पर है फूल जैसी खुशबू | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक  " फूलों की खुशबू " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजलको कवितायेँ लिखने के साथ चैत्राकला  भी बहुत अच्छी लगती है | गणित में बहुत रूचि रखते हैं | 

बुधवार, 3 जून 2020

कविता : कोरोना का कहर

" कोरोना का कहर "

पूरी दुनियाँ में फैली है कोरोना 
मुश्किल हो गया है लोगों का जीना | 
देशों में लग गया है lockdown 
 घर के सिवाय कहीं और न जाएँ | 
अब कोरोना का डर भी सताने लगा,
यह एक खतरनाक महामारी है 
ये बात भी डॉक्टर बताने लगे | 
मन करता है बाहर जाने का,
दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने का | 
बस ऑनलाइन पढ़ाई होती है,
जो मजा  क्लास में होती थी 
 अब ख़त्म हो गया | 
जल्द जाए कोरोना का कहर,
फिर हम घूमें दिन , दोपहर |

कवि : अप्तर अली , कक्षा : 3rd , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका " कोरोना का कहर " अप्तर के द्वारा लिखी गई है जो की असम के रहने वाले हैं | अप्तर को कविता लिखना बहुत अच्छा लगता है और अच्छी कवितायेँ लिखने की कोशिश करते हैं |  
 

मंगलवार, 2 जून 2020

कविता : गांव की मिट्टी

" गांव की मिट्टी "

रंग बदलें रूप बदलें,
बदला सारा बहार |
अपनों से दूर होकर,
जाना मैनें सारा संसार |
ये सब जानने के बाद,
मुझे  लगे सब अनोखी |
पर मुझसे जो जुड़ा है,
वह है मेरे गांव की मिट्टी| 

मिझे अभी भी याद है वो
बरसात के दिन |
मैं जब झूमा करता था,
अपनों के बिन यहाँ तेज़ हवाओं के साथ |
उड़ने वाली रंग - बिरंगें तितली होती थी,
और उस दीवाने मौसम में |
मेरे साथ सोंधी मिट्टीके खुशबू होती थी,
मैं थोड़ी देर रुक जाऊँ
इसलिए अपने दिल बेइंतिहां गुजारिश थी | 
और वक्त भी चलता था,
इसलिए वहाँ खूब बारिश की |
लेकिन खुद समझाया,
और बताया कभी और मिलेंगें |
ये अपने ख़ुशी के,
शायद कभी और खिलेंगें |

इसलिए सोचा आज,
लिख दूँ एक चिठ्ठी |
की मेरा मन जीत लिया अपनी गांव की मिट्टी  || 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखा गया है जो की बिहार के रहने वाले हैं | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा  लगता है साथ ही साथ डांस करना बहुत अच्छा लगता है | विज्ञानं में बहुत रूचि रखते हैं

सोमवार, 1 जून 2020

कविता : कोरोना मियाँ

" कोरोना मियाँ "

कितने सुंदर वो दिन थे,
जब एक  साथ घूमते थे |
कोई कुछ  नहीं कहता था,
अपनी मन मर्जी किया करते थे | 
अब जाने कैसा दिन आ गया 
रोकते है एक दूजे को पास आने से | 
उस दिन की यादें घूम रही है,
सपनों में बस झूम रही है |   
छीन ली हमारी खुशियाँ, 
अपने छोटे कोरोना मियाँ | 
कितने सुंदर वो दिन थे,
जब एक  साथ घूमते थे |


कवि : साहिल कुमार , कक्षा : 4th , अपना घर