" देरी बा "
हर इंसान के जिंदगी में कुछ न कुछ होला,
बस ओकरा के ऊ समझए के देरी बा |
ऊ वो बदल सकेला अपनी जिंदगी के,
बस ओकरा के बदले के देरी बा |
ऊ खोज सकेला दुःख के घड़ी में ख़ुशी,
बस ओकरा समझदार बने के देरी बा |
हर इंसान के मंजिल पावे के होला हुनर,
बस ओकरा के हुनर के पहचाने के देरी बा |
ओहू बन सकेला एक बड़का ऑफिसर,
बस ओकरा के पढ़ाई पे ध्यान देने के देरी बा |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता समीर के दवरा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | इस कविता का शीर्षक " देरी बा " है | इस कविता की खास बात यह है की समीर ने इसे भोजपुरी भाषा में लिखी है जो की बहुत प्रभावित करती है और प्रेरणादायिक है |
1 टिप्पणी:
वाह! लाजवाब!!!
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