शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

कविता : मोती सी चमक

"  मोती सी चमक " 

  मोती सी चमक तेरी,

घासों पर नजर आती है | 

वह  मखमली सी खुशबू ,

सिर्फ फूलों से महक आते हैं | 

चाँद की रोशनी में भी,

तारे और सितारे नज़र आते हैं | 

वह ओस की बूँद ,

जो सुबह  घासों में फैली होती है | 

मैं  रोज़ टहलता हूँ सुबह,

कोहरा  ही कोहरा नजर आता है |

इस हवाओं की झोकों से,

ओस की बूंदे  फिसल जाती हैं |

मैं रोकना चाहता हूँ ओस को, 

जो आँखों से टपक जाते हैं |

और जमीन पर गिर जाते हैं,

गिर क मिट्टी  में यूँ मिल जाते हैं | 

                                                                                                                   कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 7th 

अपना घर

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

कविता : हमारा राजनीतिक दौर कैसा है

 " हमारा राजनीतिक दौर कैसा है "

 

हमारा राजनीतिक दौर कैसा है,

वादों  की  तो पोटली सा खोलता | 

वक्त पर सबसे प्रेम से बोलता,

बेरोजगारी दूर करने की न सोचता | 

हमारा राजनीतिक दौर कैसा है,

दिल जितने के लिए तरीके अपनाता | 

चुनाव जितने के लिए कुछ भी कर जाता।

 हमारा राजनितिक दौर कैसा है | 

साथ अनजान को भी गले लगाता, 

पर लोग क्या करे समाज ही ऐसा है | 

हमारा राजनीतिक दौर कैसा है | | 


कवि : रविकिशन 

कक्षा : १२ 

 अपनाघर


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

कविता : शांत वातावरण

" शांत वातावरण "

 यह शांत वातावरण मुझसे कहता  है,

तू  हर पल क्यों अकेला रहता है | 

हवाओं से करता क्या तू बात,

करना चाहता हूँ  उससे मुलाकात | 

गर्मी  में तेरी आवाजें होती है तेज़,

लगता है मझे कभी  यह जेल | 

जाना चाहता हूँ  मैं तेरे पास,

जल्द  ही करुगा मैं घर वास | 

 यह  शांत वातावरण मुझसे कहता है,

तू क्यों हर पल अकेला रहता है | | 

कवि : कुल्दीप कुमार 

कक्षा : 10th , अपना घर

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

कविता "सूरज की चंचल किरणे"

 "सूरज की चंचल किरणे"

सूरज की चंचल किरणे,

टहक  - टहक कर उठती है| 

पेड़ो की बधियो से वो ,

धरती पर  छन कर गिरती है | 

 सूरज की चंचल किरणे ,

टहक  - टहक कर उठती है | 

यहाँ -  वहां वो अपने संग ,

नई उमंग किरणों को  |

दुनिया में  फैलाती है  ,

सूरज की चंचल किरणे |

टहक  - टहक कर उठती है ,

पेड़ो की बधियो से वो |

धरती पर  छन कर गिरती है 

कवि : सनी कुमार कक्षा : 10th, अपना घर

 

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

कविता : कोरोना है बड़ा महामारी

" कोरोना है बड़ा महामारी "

 कोरोना है बड़ा महामारी ,

क्योकि फैला रहा बड़ा बिमारी  | 

इस में हम तुम नाही बल्की | 

परेशान है दुनिया सारी ,

दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहा  है | 

हर दिन किसी न किसी को दुःख पोहचा रहा ,

किसी न किसी को कोरोना सता रहा है | 

 कोरोना है बड़ा महामारी ,

क्योकि फैला रहा बड़ा बिमारी  | 

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th  , अपना घर       

 

 

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

कविता : " मौसम का क्या कहना "

 " मौसम का क्या  कहना "

मौसम का क्या  कहना ,

 जो हसी -ख़ुशी का माहौल बना  दे | 

 सुखने लगे सारे  पेड़- पौधे ,

अब तो बादलो से बून्द गिरा दे  | 

 मौसम का क्या कहना ,

जो अंधकार  को उजाला में बदल दे | 

चारो तरफ ही अंधेरा -अंधेरा ,

अब तो अंधेरे -अंधेरे में दीपक जला दे

मौसम का किया कहना ,

जो हर एक चेहरे पर मुस्कान दिला दे | 

रूठे है लोग तुझसे ,

अब तो गर्मी को सर्दी को  बदल दे | 

 मौसम का क्या कहना ,

जो चाँदनी  रात में तारे दिखा दे | 

लोग करते है तेरा इंतजार ,

अब तो फूलो से  बगिया महका दे |

कवि : रविकिशन , कक्षा : 12th , अपना घर

रविवार, 18 अप्रैल 2021

कविता :" एक खेल है साबकी प्यारी "

"  एक खेल है साबकी प्यारी "

 एक खेल है साबकी प्यारी ,

हर जगह है क्रिकेट की महामारी | 

लोग बैठे करते है चर्चे ,

जगह -जगह बाट रही है पर्चे |

धोनी - धोनी  आवाज लगाते ,

विराट कोहली नाचते गाते | 

पंड्या के छक्के सबको  भाते  ,

बुमराह भी खूब यार्कर आजमाते  | 

रोहित भैया शतक -पे शतक लगाते  ,

धवन भी छक्के - चौके खूब बरसाते  | 

कभी अंदर बाहर होते नटराजन  भैया ,

कई बार कराई है इन्हों ने नइया | 

मोटा है महारा पंत ,

करता है मैच का अंत | 

 एक खेल है साबकी प्यारी ,

हर जगह है क्रिकेट की महामारी |

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर


शनिवार, 17 अप्रैल 2021

कविता : " बसंत की उमंगें है आँगन में फैली "

  " बसंत की उमंगें है आँगन में फैली " 

बसंत की उमंगें है आँगन में फैली ,

पत्ते ना हो -तो  लगते है विषैली | 

धीमे - धीमे सुनती है शाहरी ,

चाहे दिन हो या दोपहरी | 

बसंत में  हरे- भरे पत्ते है फैली ,

बसंत की मौसंम बुझती है पहेली | 

गुन - गुन  गाती है पहेली ,

समझ नही आती  है पहेली | 

उसने सबके साथ खेल -खेली ,

आओ बैठकर  सुने है पहेली | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th , अपना  घर

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

कविता : " मचा रहा कहर कोरोना "

 " मचा रहा कहर कोरोना  "

मचा रहा कहर  कोरोना ,

घर बैठे आ रहा रोना | 

बचा नहीं  कुछ करने को ,

रह गया अब सोना -सोना | 

सभी जगह है बोला -बोला ,

लोग जपने लगे गाली  | 

काम न करे वैक्सीन ,

 मर रहे है सब समय गिन -गिन 

कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 1oth , अपना घर




मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

कविता : " आम लगी है डाली -डाली "


 " आम लगी है डाली -डाली "

 आम लगी है डॉली डॉली  ,

क्यों की आई है हरियाली | 

खाने को है ललचाया ,

मन मचला तोड़ आया  | 

खाते - खाते आम मालिक है आया ,

बच्चो को खूब दौड़ाया | 

दौड़ने की रफ़्तार बड़ी थी ,

 आम खाने को जो आदत पड़ीं थी | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 10th  , अपना  घर

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

कविता : " गर्मी का मौसम है आया "

  " गर्मी का मौसम है आया "

गर्मी का मौसम है आया ,

राहत  देती है पेड़ो की छाया | 

गर्मी  की है अलग ही माया ,

सारे  दिन रहता गर्म -धुप  से छाया | 

पेड़ पौधे और जंगल में ,

शांति माहौल है गहरी ठंडी छाये में | 

कोई नजर न आए धरती -आकाश में ,

ठंडी की जगह गर्म हवा चलती है |

इससे पहले भी शरीर से पानी रहती ,

गर्मी का मौसम है आया | 

गर्मी  देती है पेड़ो की छाया ,

कवि : पिंटू कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर

 

रविवार, 11 अप्रैल 2021

कविता : " काश मै हवा बन जाऊ "

 "  काश मै हवा बन जाऊ "

 काश मै हवा बन जाऊ ,

हर गली -मोहल्ले  सेगुजर  जाऊ | 

बाग़ - बगीचे में सैर कर आऊँ  ,

जब चाहे मन करता | 

तब मै  उड़ता फिरुँ  ,

पेड़ -पौधे के साथ | 

खूब मौज -मस्ती करुँ , 

शाम डलने पर चुपचाप शांत हो जाऊँ | 

मै तो बस हवा हूँ ,

मुझे पूरी दुनिया को जीवित है रखना | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

कविता : " रात को बैठकर कवित लिख रहा हूँ "

  " रात को बैठकर कवित लिख  रहा हूँ "

रात को बैठकर कविता लिख रहा हूँ ,

कितनी मुश्किल जिंदगी जी रहा हूँ  |

तो भी हसी - ख़ुशी से जी रहा हूँ  ,

यही तो हमारी जिंदगी है  |

बस अच्छे से जी रहा हूँ  ,

जिंदगी में मुश्किल परिस्थिति आती | 

उस से लड़ के जी रहा हूँ  ,

लड़ -लड़ के आगे बड़  रहा हूँ | 

जिसको हसिल करना  है उसी के पीछे दौड़ रहा हूँ

कवि : अजय कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

कविता :" वो सुनहरी धुप "

"सुबह की  वह सुनहरी धुप "

सुबह की वह  सुनहरी धुप ,

जो बिना बोले चमक आती है |

सही समय नहीं होने पर ,

आपने आप गयाब हो जाती है |

न लगती न चुभती है ,

मन के भीतर तक है | 

सभी दिमाग के तार को ,

फिर से एक्टिव करजाती है |

ये सुनहरी धुप ,

जिसके अनेक है रूप  | 

लेकिन मन को  मोह जाती है ,

सुबह की वह सुनहरी धुप |  

कविता :  प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th , अपना घर

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

कविता : " नसीब भी क्या खेल खलती है "

  " नसीब भी  क्या खेल खलती है "

नसीब भी  क्या खेल खलती है ,

कही किसी चीज की जरूरत और दूसरी तरफ | 

सारे रस्ते बंद कर देती है ,

पता नहीं चलता की |

हमे चलना किस तरफ  है ,

क्योकि किस्मत की | 

दरवाजे बंद हर  तरफ है ,

लेकिन हर एक दरवाजो पर |

दस्तक देना  जरूर है ,

क्योकि हम तो मजबूर है | 

पर इस अंधेरे  भी रोशनी ढलती है ,

नसीब भी क्या खेल खेलती है | 

कवि : देवराज कुअंर , कक्षा  10th ,  अपना घर

 

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

कविता : " जब हम नराज होते है "

  " जब हम नराज होते है "

 जब हम नराज  होते है ,

अक्सर सब कुछ छोड़ देते है |

हर  किसी की बात कड़वी लगती है ,

हमारी नसों में खून ऊपर से निचे दौड़ती  है | 

खाना --पीना सब त्याग देते है ,

सब से मुँह मोड़ देते है | 

अपनी दुनियाँ में खोए रहते  है ,

आपने सपनो  में खोए रहते है | 

जब हम नराज होते है ,

अक्सर सब कुछ छोड़ देते है | 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10th  , अपना घर

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

कविता :" पेड़ पौधों ने ली अंगड़ाई "

" पेड़ पौधों ने ली अंगड़ाई "

 पेड़ पौधों ने ली अंगड़ाई ,

आम ने डाली को झुकाई | 

तूफान ने किया पेड़ो पर अत्याचार ,

सब पेड़ पौधों का हो रहा बुरा हाल | 

जब से गर्मी का ये सीजन आया ,

फल फूल को सूखाते आया | 

काश कोई इसका दर्द जान पाता ,

फिर भी पेड़ में आम लटक आता | 

 पेड़ पौधों ने ली अंगड़ाई ,

आम ने डाली को झुकाई | 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

कविता : " कोरोना ने फिर से किया हमला "

  " कोरोना ने फिर से हमला किया "

 कोरोना ने फिर  से हमला किया ,

 स्कूल जाना बंद किया | 

लॉकडाउन में क्या किया ,

घर में रहते  - रहते हो गए बोर | 

फिर भी कोरोना को ,

भागने में लगा रहे जोर | 

क्योकि कोरोना है हराम खोर | 

 डॉक्टर  लगा रहे जोर ,

कोरोना को भगा कर मचाएँगे शोर | 

घर में बैठे -बैठे हो रहे बोर ,

फिर बच्चे मचाते है शोर | 

कवि : अजय कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर

रविवार, 4 अप्रैल 2021

कविता : " मै अब भी याद करता हूँ उस पल को "

 " मै अब भी याद करता हूँ उस पल को "

मै अब भी याद करता हूँ उस पल को ,

 जब मै घुठनो के बल चलता था | 

मुझे याद है वह दिन ,

जब खटिए से गिर जाता था | 

मुझे याद है वह दिन ,

जब  मैं  मिट्टी से सना रहता था | 

माँ को डर था कही हम गिर न जाए ,

इसलिए उगंली पकड़कर चलता था | 

उन्हे मालूम था कही गिर  न जाए हम ,

मै याद करता हूँ उस पल | 

जब मै घुठनो के बल था चलता | | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

कविता : " इस प्यारे से संसार को "

" इस प्यारे से संसार को "

इस प्यारे से संसार को ,

प्रकृति ने पुष्पों से सजा दिया | 

  पुष्पों के कुछ पौधे से फिर ,

ये सुन्दर जगह बना दिया | 

इस प्यारे से संसार को ,

एक नया रूप  दिखा  दिया | 

सुन्दर  फूल -पौधों से सजा दिया ,

जगह  हमारा  सुन्दर था | 

और  सुन्दर बना दिया ,

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

कविता : " उपवन की हरयाली में "

"  उपवन की हरयाली में "

 उपवन की हरयाली में ,

दोस्ती की गहराई में | 

मौज मस्ती की बातो में ,

कब औऱ कैसे हो गया शाम | 

दिन हो या दोपहर ,

गर्मी लगती है बहुत जहर | 

लोग धुप में काम कर  के जाते है कहर  ,

ऐसी लिए धुप में ज्यादा देर मत ठहर | 

बगीचा हमेशा  हरा दिखे ,

दोस्ती ओर प्यार से भरा दिखे | 

कवि : पिंटू कुमार , कक्षा 6th , अपना घर