शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

शीर्षक : ठंडी

              "ठंडी"
इस बार ठण्ड का आया मौसम ।
जिससे की सारा शहर गया सहम ।।
तूने न पहचान ये तेरा है भ्रम ।
सर्दी में बोले हर -हर गंगे हम ।।
सूरज न दिखता , ये तेरा है भ्रम ।
सर्दी में कोहरे का कोहराम ।।
सुन लो बच्चो सुन लो तुम ।
छुट्टी में कर लो आराम ।
इतना भी न करना आराम ।।
कि कोई न दे तुमको काम ।
कुछ काम करो और हो जाओ लायक ।
जिससे न कहा पाए कोई मक्कार , निक्कमा ,नालायक !
नाम : आशीष कुमार, कक्षा 10, अपना घर, कानपुर  

शीर्षक : स्त्री

            " स्त्री "
एक स्त्री जिसने समाज को बनाया ,
आज उस स्त्री को महत्व ,
लोगों की समझ से परे है ,
क्योंकि लोगों नहीं समझ रहें सामाजिक तत्व ,
की स्त्री वाही नारी है ,
जिसकी गोद मे खेली दुनिया सारी ,
आखिर कब तक सहे वह जुल्म ,
मानव कर रहा दिन प्रति -दिन जुर्म ,
तुम्हे है इतनी बेशर्मी ,
फिर भी बैक स्त्री को ही कहते मम्मी ,
तुम्हारे घर में भी है माँ - बहन ;
यदि उनका करे कोई बलात्कार और लुटे गहने ,
फिर बोल क्या करोगे ?
क्या  इसी तरह के स्त्री पर हो रहे जुलम सहोगे ,
क़ानून तो केवल है अँधा ,
केस मुकदमे चलाना यह है एक धंधा ,
देश मे इतने सारे है क़ानून ,
पानी के भाव बह रहा है खून ,
इतनी है सुरक्षा और  सैन्य बल ,
जिससे हर समस्या हो सकती है हल ,
इस देश की व्यवस्था को चलाने वाले ,
कर दो इन सब के मुंह काले ,
धन -दौलत के चक्कर में हो गए है अंधे ,
लूटमार , बलात्कार ,करना हो गए है रोज के धंधा ,
लक्ष्मी बाई और दुर्गावती के जैसे ,
यदि बन जाए हर स्त्री वैसे ,
तो इस देश से कतम हों जायेंगे जुल्म साते ,
फिर ना बच पायें लूटमार बलात्कार के हत्यारे ,
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 10
अपनाघर कानपुर 

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

 शीर्षक :- आज की फिल्मे
आज की फिल्मे तो आदर्श बनी पड़ी है....
युवा पीढी को भड़काने में |
ऐसे अश्लील से शब्द है....
हर किसी न किसी फ़िल्मी गानों में |
वर्तमान में फिल्मो का ऐसा पड़ा है, सब पर असर....
कि चारो ओर चल रहा है, फिल्मो का ही कहर |
मुन्नी से लेकर शीला की जवानी....
हर बच्चे की जुवां पर है, अजब प्रेम की गजब कहानी |
डायेरेक्टर भी तो कहते है, क़ि लोंगो की जैसी मांग....
वैसी हम करेंगे उनकी पूर्ति |
दुकानदार का कम है, बीडी तम्बाकू को बेचना....
तो तुम अपने आप को रोको मत खाओ सुरती |
मां बाप मना करें तो नहीं मानते बच्चे....
बातें कहेंगे ऐसी जैसे वह सबके चच्चे |
शौक है उनका फिल्म मोबाईल रख गाड़ी से चलना....
और रातों दिन है, मोबाईल से बातें करना |
कवि :- आशीष कुमार
कक्षा :-10
अपना घर