मंगलवार, 30 जनवरी 2018

कविता : रक्षाबंधन "

" रक्षाबंधन " 

रेशम का ये डोर बहना,
जो तूने बाँधी है बहना | 
हर एक एक कदम पर,
खुशियां तुमको है देना | 
मैं जमीन  पर रहकर भी, 
आसमां में उड़ाना सिखाऊंगा |  
हिम्मत से मैं तुम्हे , 
साथ चलना सिखाऊंगा |  
हर मुश्किलों में साथ, 
मेरा काम देना होगा | 
इस रेशम की डोर की,
 कीमत मैं चुकाऊंगा |  
हमेशा खुश तू रहना,
मुबारक हो रक्षाबंधन,
मेरी प्यारी बहना | | 

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 

कविता : खेल

" खेल "

खेल क्या है, इसे जानो तुम,
खेलो और पहचानों तुम | 
कोई हारता है ,कोई जीतता है,
कभी भी खेल न घबराओ तुम |  
अपने लक्ष्य को कभी न भूलो तुम,
अपने लक्ष्य पर चलते जाओ तुम | 
खेलो के खेल में, कभी हरो तुम, 
सफलता तेरी हमेशा पग चूमेंगी |   
एक दिन सफल हो जाओगे तुम, 
हार के डर को खुशियों में बदलो तुम | 
खेल क्या है इसे जनों तुम | |  

नाम : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 

शनिवार, 27 जनवरी 2018

कविता : दोस्ती का भी क्या कहना

" दोस्ती का भी क्या कहना "

ये दोस्ती का भी क्या कहना,
दोस्त बनाकर हमको है रहना | 
हर खतरों के मोड़ पर, 
साथ है हमको चलना | 
हर छोटी सी चीज को, 
मिल बांटकरहै खाना | 
ये दोस्ती का भी क्या कहना,
दोस्त बनाकर हमको है रहना |   
नाम : कुलदीप कुमार , कक्षा : 6th , अपनाघर



कवि परिचय : यह हैं कुलदीप कुमार जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं | खेल कूद में भी बहुत रूचि रखते हैं | हमेशा कुछ करने के लिए एक्टिव रहते हैं |  

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

कविता : सुबह की वह पहली किरण

" सुबह की वह पहली किरण "

सुबह की वह पहली किरण,
लगता है नया सवेरा लाएगी | 
आयी मंडराती हुई आस पास,
जब मैं बैठा खिड़की के पास | 
वह मुझे एक बात समझा गई,
वह बात मुझको समझ में आई | 
याद के सहारे जिया जा सकता है,
हर सुख दुःख को सहा जा सकता है | 
अमावस्य के रात के अँधेरे में भी,
उजयाले के आस लगाए बैठा था | 
की जुगनू जैसा चमकता हुआ 
आएगी एक उम्मीद की किरण | 
सुबह की वह पहली  किरण 
सोच सोचकर सहम गया,
बीतों  दिनों  को देखकर वहम गया | 
हर असंभव को संभव, 
हर नामुनकिन को मुनकिन 
बनाया जा सकता है | 
सुबह की वह पहली किरण,
लगता है नया सवेरा लाएगी | 

नाम : अखिलेश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय :  अखिलेश कुमार  बिहार राज्य के रहने वाले हैं अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहें हैं | पढ़ाई में बहुत अच्छा करते हैं | इसके आलावा कवितायेँ लिखना और फूटबाल खेलना इन सभी में रूचि रखते हैं | 

रविवार, 21 जनवरी 2018

कविता : हवा चली

" हवा चली "

 हवा चली , हवा चली,
सर - सर  हवा चली | 
पत्ते गिराया धूल उड़ाया,
पानी में भी लहर उड़ाया | 
उस लहर से गांव डुबाया,
तब जाकर समझ में आया | 
लहर से बच्चो गांव बचाओ,
बचाकर नाम कमाओ | 
हवा चली , हवा चली ,
सर सर करती हवा चली |   

नाम : समीर कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 

कवि परिचय : यह हैं समीर कुमार जो की कक्षा 7th के विद्यार्थी हैं और इलाहबाद के रहने वाले हैं | गाना गए लेते हैं | 

कविता युवा दिवस

" युवा दिवस "

युवा दिवस तालियों से नहीं,
बहुत हौशलों से मनाओ |  
जीवन सम्हालने  की एक, 
जीवन में नया रह बनाओ | 
मिठाइयां खाने और खिलने,
से नहीं सम्हलती है जिंदगी |  
केवल सोचने अनुमान से नहीं,
 बदलती है ये अपनी जिंदगी |  
सूरज जैसे ही है चमकना, 
चंदा की तरह शीतल करना | 

नाम :  नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय : यह है नितीश कुमार जो की बिहार के नवादा जिले से यहाँ पढ़ने के मकसद आये हुए हैं | पढ़ाई में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते है | टेक्नोलॉजी में बहुत माहिर है और और करिअर भी टेक्नोलॉजी में ही बनाना चाहते हैं | 

शनिवार, 20 जनवरी 2018

कविता : घूमने की आयी बारी

" घूमने की आयी बारी "

घूमने की आयी बारी, 
घूमेंगे हम दुनियाँ सारी |
दिल्ली , असम जाएंगे,
वहाँ के फल हम खाएंगे | 
नए - नए जगह हम घूमेंगे,
दोस्तों को हम बताएंगे | 
दुनियाँ की सैर हम कराएंगे,
दुनियाँ घूमने हम जाएंगे | 
घूमने की आयी है बारी,
घूमेंगे हम दुनियाँ सारी |  

नाम : कुलदीप कुमार , कक्षा : 6th , अपनाघर

कवि परिचय : यह हैं कुलदीप कुमार जो की छत्तीसगढ़ से यहाँ रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे है | पढ़ाई बहुत मन लगाकर करते हैं बड़े होकर एक नेक इंसान बनना चाहते हैं | डांस भी बहुत अच्छा कर लेते हैं | 

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

कविता : हमारे बापू थे महान

" हमारे बापू थे महान "

 हमारे बापू थे महान,
भारत में बनाये मकान | 
जब बापू की गई आवाज ,
अंग्रेजो के कानों कान | 
गुलाम बना लेने की ली ठान, 
जब न सह पाया सबकी मान | 
चलनी पड़ी आंदोलन की यान,
हमारे बापू थे महान |  

नाम : संतोष कुमार , कक्षा : 4th , अपनाघर 

बुधवार, 17 जनवरी 2018

कविता : रौशनी

" रौशनी " 

अँधेरी रात में कहीं से,
रौशनी आ रही थी | 
 ये ही वो रौशनी है जो, 
मेरी जिंदगी को दिखा रही थी | 
ये जुगनू जैसा जलता, 
मेरी जिंदगी में|  
हर मोड़ के साथ चलता,
ये कोई रौशनी नहीं |  
ये तो जिंदगी का मार्ग है, 
बस इस पर चलना मेरा | 
काम है आगे देखना, 
इसका बड़ा परिणाम है | 
नाम : विक्रम कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

कविता : धैर्य रख मेरे दोस्त

" धैर्य रख मेरे दोस्त " 

धैर्य  रख मेरे दोस्त, 
हिम्मत तुझमें भी आएगी | 
कोशिश कर मेरे दोस्त,
 दुनिया बदल जाएगी |  
एक दिन होगा वो, 
जब दुनिया तुझको सुनेगी | 
तेरे हिम्मत परवानों के गीत, 
किताबों में भी बनी जाएगी |  
हर एक कीमती शब्द तेरा, 
जुबान से लेकर दिल से निकलती है |  
मन में धैर्य रखे रहना क्योंकि, 
किश्मत तो आजमाने की है | 

नाम : प्रान्जुल कुमार , कक्षा :8th , अपनाघर 

सोमवार, 15 जनवरी 2018

कविता : जिंदगी का प्यासा सागर

" जिंदगी का प्यासा सागर "

जिंदगी का प्यासा सागर, 
बहुत ही गहरा होता है | 
उम्मीदों से भरा होता है, 
मंजिल से भी दूर होता है |  
कहते हम प्रेम का सागर, 
गौर करें तो है महासागर | 
गहराई में है इसकी दुनियां, 
फिर भी है इसमें लाखो कमियां | 
सात सागरों में बता है सागर, 
बहुत गहरा होता है सागर | 

नाम : विशाल कुमार , कक्षा : 8th , अपनाघर


कविता : " शोर मचाते हैं मोर "

" शोर मचाते हैं मोर " 

शोर मचाते हैं मोर, 
बारिश में करते हैं शोर |  
सुन्दर -२ नाच दिखाते, 
इंसानों का दिल बहलाते |  
बारिश जब आ जाती है, 
नाच दिखकर गाते मोर | 
पंख फैला मचाते शोर, 
जानवरों का भी मन बहलाते | 
मेंढक दादा भी शोर मचाते |  
जब भर जाती है नाली, 
पिलो भाई ठंडा पानी |  
जब जब नाच दीखते नारिश,
समझलो भाई आ गई बारिश |

नाम : समीर कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर


कवि परिचय : यह हैं समीर जो की इलाहबाद जिले से कानपूर जिले में पढ़ाई के मकसद से आये हुए हैं | पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं साथ ही साथ गण गाने के बहुत शौकीन हैं | पढ़ लिखकर एक अच्छे इंसान बनकर समाज की सेवा करना चाहते हैं |      

शनिवार, 13 जनवरी 2018

कविता : बड़ी सोच

" बड़ी सोच "

छोटे हैं तो क्या हुआ, 
हमारी  सोच बड़ी है | 
करते नहीं हम छोटे काम, 
करते रहते हैं बड़े काम होता 
 सोच पाते नहीं हम, 
बड़ा कर दिखलाते हम | 
सोच हमारी ऊँचे अरमानों के,
खुले आकाश में बहती है | 
सूरज की तरह चमकती है, 
क्योंकि छोटा सोच पाते नहीं | 
बड़े काम दिखलाते हम | | 

नाम ; विशाल , कक्षा : ८थ , अपनाघर  

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

कविता : भौ - भौ करते कुत्ते आए

" भौ - भौ करते कुत्ते आए " 

भौ - भौ करते कुत्ते आए,
खरगोश बेचारा लगे कापने | 
कुत्ते का झुण्ड करीब आया,
खरगोश का दिल घबराया | 
कान उठाकर वहाँ से भागा,
पीछे पड़ गए कुत्ता दादा | 
दोनों की है बात निराली,
खरगोश भागने में है माहिर | 
पर कुत्ता दादा है शिकारी  |  

नाम : अखिलेश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


 कवि परिचय : यह हैं अखिलेश जो की बिहार राज्य से आये हुआ है | कक्षा 7th में ही कवितायेँ  लिखना शुरु कर दिया और आजकल अच्छी कवितायेँ लिखते हैं | खेल भी बहुत अच्छा खेलते हैं | पढ़ लिखकर अपने घर और समाज की सेवा करना चाहते हैं | 

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

कविता : हर नारी जीना चाहती है

" हर नारी जीना चाहती है " 

हर कोई नारी जीना चाहती है,
अपनी मंजिल पाना चाहती है | 
जीवन में खुशियाँ लाना चाहती है,
हर कोई  नारी जीना चाहती है | 
अपने  हक़ के लिए लड़ना चाहती है, 
अपने ख्वाइश पूरा करना चाहती है |  
अपने जी में कुछ करना चाहती है,
हर कोई नारी जीना चाहती है |  

नाम : संजय कुमार , कक्षा : 7th, अपनाघर


कवि परिचय : यह हैं संजय कुमार जो की आजकल ये बहुत अच्छी कवितायेँ लिख रहे हैं पहले ऐसा नहीं था | आजकल इनकी कविताओं से कुछ न कुछ मेसेज निकलता है | पढ़ाई में थोड़ा कमजोर हैं फिर भी खूब मेहनत करते हैं हमें उम्मीद है की ये भविष्य में कुछ अच्छा करेंगे | झारखंड के रहने वाले हैं |  
  

बुधवार, 10 जनवरी 2018

कविता : भूखी चुहिया

" भूखी चुहिया " 

चुहिया ने चूहा से बोली,
 सामान ले आये एक दो बोरी | 
दाना पानी नहीं है घर पे, 
बारिश का मौशम आईं सर पे | 
भूखे प्यासे मरेंगे हम अब,
दाना पानी लाओगे कब |  
मैं न रहूंगी भूखी - प्यासी, 
भूखी  कभी न मैं रहूंगी |  
जल्दी कुछ करना पड़ेगा, 
वारना  भूखा मरना पड़ेगा | 

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर

कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार जो की बिहार के नवादा जिले से कानपुर जिले के अपनाघर में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहें हैं | पढाई में बहुत अच्छे हैं साथ ही साथ खेल में भी अच्छे हैं | बड़े होकर एक डांसर बनाना चाहते हैं | 

कविता : हम मजदूर हैं

" हम मजदूर हैं " 

हम मजदूर हैं तो क्या हुआ, 
कल का भविष्य है हम | 
मेरी सफलताओं को, 
कदम चूमेगीं एक दिन | 
हौशला और जज्बों  को, 
कम नहीं होने देंगे हम | 
मंजिल तय न हो जाए, 
कोशिश करते कहेंगे हम | 
मुश्किलों से न घबराएँगे, 
हर संकट को पार कर जाएंगे | 

नाम : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


कवि परिचय : नितीश कुमार बिहार के रहने वाले हैं लेकिन अपने परिजन के साथ कानपूर में आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | पढाई में बहुत मेहनत करते हैं | पढ़ लिखकर अपना परिवार वालों की  मदद करना चाहते हैं |  

मंगलवार, 9 जनवरी 2018

कविता: काले बदल छाया है

"काले बदल छाया है" 

काले बदल छाया है, 
पानी बरसाने की  संभावना है | 
गरज रह था कड़ -कड़, 
बरस रहा था भड़ -भड़ |  
मेंढक की खुशीयां लाया है,
पानी में खूब नहाया है |  
जीवों को साथ में बुलाया हैं, 
सभी मिलकर बरसात का | 
आनंद जी भर के उठाया है | |  

नाम : विक्रम कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


कवि परिचय : यह हैं अपने विक्रम भाई जो की बिहार के नवादा जिला से कानपुर जिला में पढ़ाई करने के लिए आये हुआ है | पढ़ाई में हमेशा अच्छे होने की कोशिश करते हैं |   

कविता :हूँ मजबूर

" हूँ मजबूर " 

हूँ मजबूर, हूँ  सबसे दूर,
मेरी मंजिल न हुआ पूरा | 
आगे आगे कदम है रखना,
मंजिल मेरी, मेरा काम परखना | 
राह ऐसी है यह सुनहरा, 
इस पर चलना काम है मेरा | 
थककर हो गया हूँ चूर, 
हूँ मजबूर सबसे दूर | | 

नाम : देवराज , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय : देवराज लगभग बहुत सी कवितायेँ लिख चुके है इससे ये पता चलता हैं की केवल जो बड़े - बड़े   कविकार होते हैं वही केवल कवितायेँ लिख सकते हैं पढ़ाई करने का ये भी फायदा होता है | अपने जीवन में बहुत कुछ सिख रहे हैं और औरों को भी सीखना चाहिए | 



कविता : चाँद

" चाँद" 

बैठ बिस्तर  पर चाँद निहारता, 
उसकी किरणों को आँखों में भरता | 
अंधियारों को दूर है करता,
सभी में उम्मीदें है भरता |  
गोल मटोल है इसका आकर, 
देखा इसको तो आया मन में विचार | 
क्यों न इसको समझा जाए, 
इसके बारे में उत्तर पाए |  
शीतल करता है मन को ये, 
चमकार भी न जलता है ये | | 

नाम : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th , अपनाघर
 

कवि परिचय : यह है प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ से कानपुर के अपनाघर में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे है | दो तीन सैलून में अच्छी कवितायेँ लिखने लगे हैं | पढाई के साथ -साथ खेल और अन्य गतिविधियों में भी बहुत अच्छे हैं | 

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

कविता : बच्चे

" बच्चे "

ये बच्चे हैं कितने प्यारे, 
लगते हैं आसमान के तारे | 
जैसे टिमटिमा रहे हो ये सारे,, 
जिस तरह बिखरे हो तारे | 
वैसे बिखरे हैं बच्चे ये सारे, 
अपने मन के करते हैं बच्चे | 
नहीं किसी की सुनते है बच्चे, 
नन्हे हैं नादान हैं ये बच्चे | 
नासमझ मासूम से हैं ये बच्चे, 
हर बातों पर जिद पकड़े | 
बैठ जाते हैं ये बच्चे, 
छोटी बातों पर ये रूठ कर |  
कर जाते हर फरमाइश | |   

नाम :  नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


कवि परिचय : यह हैं नितीश कुमार जो की बिहार राज्य से कानपूर में पढ़ने के लिए आये हुआ हैं जो आजकल अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहे है | कविताएँ ये बहुत अच्छी लिखते हैं साथ ही साथ खेल में भी माहिर हैं | हर काम को सिरियस में लेते हैं |  

बुधवार, 3 जनवरी 2018

कविता : पुकार

" पुकार "

कोई मुझे पुकार रहा है,
इन आसमान की उचाईयों से| 
तुम्हे कोई बुला रहा है,
इस नई सुन्दर संसार में | 
तुझे कोई सिखा रहा है,
एक अच्छी राह में चलने को | 
मुझे कोई उठा रहा है,
एक नया सवेरा देखने को | 
कोई मुझे ज्ञान दे रहा है,
संसार में औरों को बाटने को| 
समाज और दिलों  में रहने को | | 

नाम : संजय कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय :  यह है संजय कुमार जो की अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं | कक्षा 7th में ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया है और आज ये बहुत अच्छी कवितायेँ लिखने लगे हैं | पढ़ाई  के साथ -साथ खेल भी अच्छा खेलते हैं | 

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

कविता : हरीसब्जी


" हरी सब्जी "

हरी सब्जी होती है खास, 
मेरे जीवन में होते हैं साथ |  
खूब खाओ और मस्त रहो, 
अपने जीवन में स्वस्थ रहो | 
रोज खाओ हरी सब्जी यार, 
न होंगे कभी तुम बीमार सारे | 
जीवन में नहीं होगी मुश्किलें, 
अगर  रोजाना हरी सब्जी लें | 
जीवन को तंदुरस्ती से  जिओ, 
खूब हरी और सब्जी खाओ | 

नाम : सार्थक कुमार , कक्षा : 7TH , अपनाघर


कवि परिचय : यह सार्थक है कुमार जो की बिहार जिले से अपनाघर में पढ़ाई करने के लिए आये हुआ है इनको लगता था की पढ़ाई करने के साथ - साथ कुछ और भी किया जा सकता है इसीलिए इन्होंने कविता और कहानी लिखना भी शुरू किया और आज की तारीख में ये एक अच्छे कवि बन गए हैं | 

सोमवार, 1 जनवरी 2018

कविता : "याद तेरी आती है "

"याद तेरी  आती है "

याद तेरी  आती है, 
मन ही मन में मुस्कुराता हूँ मैं | 
फूल के पंख झड़ जाते है जब, 
सावन  भी रूठ  जाता है तब | 
कभी भी बातें न करूंगा इंकार, 
फूलों में लगा दूंगा चार स्टार | 
नई मोड़ में करता हूँ इंतज़ार,
ढूंढ सको तो ढूढ़ लो नया संसार | 

नाम : ओमप्रकाश , कक्षा : 6th , अपनाघर 

कवि परिचय : ओमप्रकाश छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं इनके परिजन कानपूर में रहकर मजदूरी का कार्य कर रहे हैं | ड्राइंग बहुत अच्छा बना लेते है साथ ही साथ कविताएं भी लिख लेते हैं |