गुरुवार, 30 मई 2024

कविता:"छुट्टी "

 "छुट्टी "
जल्दी हो छुट्टी स्कूल से ,
इंतजार नहीं हो रहा | 
गर्मी तो हो रही है बहुत ,
पसीना का बौछार हो रहा | 
गर्म हवा और लू चलती है ,
कूलर भी उससे लड़ती है | 
पेड़ -पौधे भी सूख गए ,
पर एक बूँद नहीं बरसती है | 
कवि :विरेन्द्र कुमार ,कक्षा : 3rd 
अपना घर 

बुधवार, 29 मई 2024

कविता :"एक चाह"

"एक चाह"
ठुकरा दिए सारे नाते इस जंहा से ,
छोड़ दिए हर ख्वाब को राह में |
 मुछत से थी जो चाह इस दिल में , 
वो भी छूट गई कंही अँधेरी राह में | 
अब डर क्या और खौफ क्या ,
सब छुप गए गहराई के समुन्दर में | 
बस रोना ही था इस जिंदगी में ,
वो भी छूट गए कंही अँधेरी राह में | 
आंसूओ ने भी छोड़ दिया साथ उसका ,
जीने की भी न रही आस उसकी | 
कोई मौका सफल न रहे ,
बस बर्बाद रहा समय उसका | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा 8th 
अपना घर 

शनिवार, 25 मई 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
इस बार की गर्मी ,
मानो सूरज सर पर आई है | 
सुबह से लेकर शाम तक ,
पसीना ही पसीना आई है |
नहीं है अच्छे से आराम , 
बह -बहकर भर गया तालाब | 
इस बार की गर्मी ,
पेड़ -पौधे झुलस गए ,
अब उनको भी पानी पीना है | 
सड़क से भी गर्म हवा अब आती है ,
मुश्किल हो गाया अब जीना है | 
इस बार की गर्मी | 
कवि :अभिषेक कुमार ,कक्षा :6th 
अपना घर  

शुक्रवार, 24 मई 2024

कविता :"सोच "

"सोच "
काश कोई मेरे बारे में सोचता ,
तो आज यंहा नहीं होता | 
काश कोई मेरे लिए काम करता ,
तो आज यंहा नहीं होता | 
काश कोई मेरे लिए रोता ,
तो गंगा से भी एक और नदी बहता | 
धूप से तपती आग में ,
मेरे लिए काम करती है | 
काश कोई मेरी भी दुनियां होता ,
फूलों से सजा होता | 
कवि :नीरू कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

मंगलवार, 21 मई 2024

कविता "दिखावे "

 "दिखावे "
सब तो दिखावे है ,
असलियत तो कुछ और ही है | 
ये भाईचारा ,ये दोस्ताना ,ये प्यार ,
भरी बाते सब तो दिखावे है | 
असलियत कुछ  और ही है,
कहते है सब अपने है | 
भीगी मुस्कान देकर ,
सब को  पिघला देते है | 
सब दिखावे है ,
असलियत तो कुछ और ही है | 
बाते भी संभल कर करते है ,
ताकि कोई उसका उधार न मांग ले | 
प्यार ऐसे जताते है जैसे कुछ हुआ ही न हो ,
सब दिखावे है असलियत कुछ और है | 
कवि :अप्तार हुसैन ,कक्षा :7th 
अपना घर 

सोमवार, 20 मई 2024

कविता:"अलग और बीरान "

"अलग और बीरान  "
कुछ चाहिए जो अनजाना है ,
सबसे अलग और बीरान  है | 
अकेला रहा करता था हमेशा वह ,
दुःख का बाधा न बना करता किसी का |  
हर वक्त चाहता कुछ अनोखा ,
पर मुशीबत न करने देता ऐसा | 
समुद्र की लहरों की तरह ,
बार -बार मुशीबतों से जूझता | 
और उम्मीद की चिंगारी हमेशा जगाए रहता ,
उसे उम्मीदों की माले की तरह | 
वक्त मिलने पर  गुथा करता , 
यह सब सुनकर मर जाना क़ुबूल करता वह | 
कुछ चाहिए जो अनजाना है,
सबसे अलग और बीरान है | 
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

रविवार, 19 मई 2024

कविता :" नजरे "

" नजरे "
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है ,
मस्ती के रंग में रंगीन हो नाच रही है| 
कितने ही शिकवों और शिकायतों से झुक रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
अश्कों को छुपाकर बातों को भुलाकर ,
अपने को रुलाकर किसी को हंसाकर | 
खुद से जुदा हो के लोगो से मिल रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
ख्वाबो में डूबकर सबकुछ भूलकर ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
कवि :साहिल कुमार ,=कक्षा :8th 
अपना घर 

शनिवार, 18 मई 2024

कविता :"मैंने सीखा "

"मैंने सीखा "
छोटी -छोटी गलतियों से ,
मैंने आगे बढ़ना सीखा है | 
दूसरो को देख -देखकर ,
मैंने पढ़ना सीखा है | 
जब बचपन में पापा ने ,
मेरे उंगलिंया छोड़ी तो | 
मैंने अकेला ही चलना सीखा है ,
मैंने इन हाथों से लिखना सीखा है | 
छोटी -छोटी गलितयों से ,
मैंने आगे बढ़ना सीखा है | 
कवि :रमेश कुमार ,कक्षा :4th 
अपना घर 

शुक्रवार, 17 मई 2024

कविता :"लोग "

"लोग "
धरती पर लोग गुमसुम क्यों है ,
आस -पास खुश और दुखियों से | 
और या आपसी सम्बन्ध में तालमेल न होने से ,
धरती पर लोग एक- दूसरे से दूर क्यों है | 
आपसी रिश्ते में कुछ कमी होने से ,
या फिर लोगो को देखकर | 
एक दूसरे के प्रति घृणा प्रकट करने से , 
धरती पर लोग एक -दूसरे का मदद क्यों नहीं करते | 
अपने -अपने कामो में लगे रहने के कारण से , 
धरती पर लोग गुमसुम क्यों है | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 
 

गुरुवार, 16 मई 2024

कविता :"हाँ सीखा मैंने "

"हाँ सीखा मैंने "
गिर -गिर कर मैंने चलना सीख लिया,
गलती कर-कर के वो चीज करना सीख लिया | 
छोटी -छोटी प्रयासों से ही मैंने ,
कठिनाइओं से लड़ना  सीख लिया | 
कठिनाईओ से लड़ -लड़ कर मैंने ,
जिंदगी को जीना सीख लिया | 
आगे बढ़ -बढ़ के रास्तों पर ,
कैसे चलना है मैंने वो भी सीख लिया | 
गिर -गिर कर मैंने चलना सीख लिया ,
मेरे जिंदगी ने और कुछ भी सिखाया | 
मैंने वो भी सीख लिया ,
गलती कर-कर के वो चीज करना सीख लिया | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

बुधवार, 15 मई 2024

कविता :"खुशी बाटी है "

"खुशी बाटी है "
क्या तुमने भी किसी को खुश किया है ?
या फिर दो पल हंसाया है | 
क्या तुमने भी गिरे लोगो को उठाया है ?
या फिर रूठे हुए को मनाया है | 
क्या कभी शांत वातावरण में जिया है ?
या फिर शोर- शराबे में रोया है | 
क्या तुमने किसी को धमकाया है ?
या फिर किसी को मारा है | 
मेरे तो दिन बुरे है आज ,
पर क्या तुमने इसे कभी आजमाया है ?
कवि :पंकज कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 
 

मंगलवार, 14 मई 2024

कविता:"वह लड़का "

"वह लड़का "
कड़क धूप में भी गुनगुनाता है ,
बरसती बरसात में भी चलता है | 
हर बार फिसलता है ,हर बार घिसटता है | 
हिम्मत हर कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का है जो सारे आसूं पी जाता है | 
सबके ताने सह जाता है ,
हर गम झेल जाता है 
हर पल धोखा दे जाता है | 
हिम्मत हर कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का जो सरे आंसू पी जाता है | 
कभी जब फेल होता है ,
सब कहते है तू करेगा जिंदगी में 
ये सब सुनकर भी हँसता रहता है | 
हिम्मत हार कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का है जो सारे आंसू पी जाता है | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

सोमवार, 13 मई 2024

कविता :"नया करे "

"नया करे "
चल आज कुछ नया करते है ,
हाथ में हाथ मिलाकर 
एक विश्वाश बनाते है| 
अपने सोच विचार को बदलते हुए ,
एक नए विश्वाश के साथ 
उम्मीद की आस जगाते है | 
चल आज कुछ नया करते है ,
हाथ में हाथ मिलाकर 
एक दूसरे को साथ देते है 
चल आज कुछ नया करते है| 
हाथ में हाथ मिलाकर 
अपने विचार को बदलते है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

रविवार, 12 मई 2024

कविता :"वक्त का जख्म "

 "वक्त का जख्म "
कर देते है बर्बाद अपने वक्त को जब हम ,
चाहकर भी वो वक्त कुछ नहीं कह पाता है  | 
जब रुलाकर दे जाते जख्म उसे हम ,
चुपचाप वक्त उसे सह जाता है | 
हर मुश्किलों को झेलकर ,
अपने आप को समझाता है | 
होते देख बर्बाद खुद को ,
रोते हुए भी नहीं रो पता है | 
जो जख्म देते है वक्त को हम,
चुपचाप उसे वह सह जाता है | 
लेकिन मै वक्त हूँ जो अपना सही समय तरसता हूँ ,
अपने को बर्बाद होते देख खुद को समझाता हूँ | 
वक्त को फिजूल जया करने वालों को ,
जब वक्त का जख्म लगता है | 
वो इंसान चाहकर भी जिंदगी में ,
कुछ कर नहीं पाता है | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शुक्रवार, 10 मई 2024

कविता: "संघर्ष "

 "संघर्ष "
दो पल की छांव है ,
और दो पल की धूप है | 
यह संघर्ष की सफर में ,
अनेक रूप है कई शुकून की लम्हे नहीं | 
बस हर पल डर है और है नमी ,
यह संघर्ष की सफर में | 
रूठी है मुझसे यह जमी ,
हर पल ढूंढ़ता हूँ | 
शुकून की जिंदगी ,
अब तो दुवा  यही करता हूँ | 
ना रहे कोई कमी ,
यह संघर्ष की सफर में | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

बुधवार, 8 मई 2024

कविता:"सोच "

"सोच "
अपनी सोच को सुधारो लोगो ,
क्यों इतना जीवन में भाग रहे हो | 
इनसे डर कर क्यों जीवन काट रहे हो ,
अपनी हिम्मत पर रखो विश्वास | 
हर पल न होगा इनका विकाश ,
याद करलेंगे सारे वादे | 
जितना इन्होने हम पर  बांधे ,
खुद पर रखना संयम | 
आगे बनेगा अपना नियम ,
अपनी सोच को सुधारो लोगो |
 क्यों इतना जीवन में भाग रहे हो,
कवि :अवधेश ,कक्षा :11th 
अपना घर 

सोमवार, 6 मई 2024

कविता :"मज़दूर "

 "मज़दूर "
मजदूर है हम ,कोई चोर नहीं | 
मेहनत करते है ,पसीना भाते है | 
एक वक्त का पेट भरने के लिए ,
पहाड़ो से टकराते है हम | 
मजदूर है हम ,
किसी का छीनकर नहीं खाते | 
खेती करते है फसल उगाते है ,
जरूरत पड़ने पर हम ही बताते है | 
हर अमीरों तक अनाज पहुँचते है हम,
महदूर है हम | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

शनिवार, 4 मई 2024

कविता:"दुनिया "

"दुनिया " 
अब अंत आ रहा है,
न जाने ये दुनिया किस ओर जा रहा है | 
सारी  चीजों को कर दिया बर्बाद ,
अब करते है इनको बचाने का फरियाद | 
अब अंत आ रहा है,
सूरज की किरणे भी जहर बरसा रहा है | 
अब जीवन बनता जा रहा है जिन्दा लाश ,
अब अंत आ रहा है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

शुक्रवार, 3 मई 2024

कविता "बड़े होना "

 "बड़े होना "
क्या कभी हम बड़े हुए हो ?
अपने पैरों पर खड़े हुए हो ?
क्या कभी अपने आप को तुम ने बदला है ?
क्या तुम्हारी जिंदगी कभी गिरके सम्भला है ?
हाँ मै जनता हूँ ,
क्योंकि ये हर किसी की जिंदगी की बात है | 
कभी दिन है तो कभी रात है ,
क्या तुमने अपने से छोटे की माफ़ी दी है ?
क्या तुमने सच में कोई इंसाफ़ी दी है ?
क्या तुम्हारे कोई निर्णय दिल ,
से है या दिमाग से | 
या फिर तुम्हारी हार के रोटी की मजबूरी है ,
हमेशा जिंदगी में हसीन शाम नहीं होता 
बड़े होना आम नहीं होता | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

गुरुवार, 2 मई 2024

कवि ता:"प्रकृति "

"प्रकृति " 
ये जंहा है मुझको प्यारा ,
जहा पनपती है जीवन सारा | 
यंहा हर प्रकार की बहार है ,
जंहा सूरज के उगने से जगमगाता संसार है | 
कितना प्यारा और सुन्दर जंहा है ,
जंहा बस्ती हर तिनको पर जान है | 
हर रीतियुओ की यंहा बौछार है ,
जंहा चमचमाता हमारा ब्रह्माण्ड है | 
ये जहान है मुझको प्यारा ,
जंहा पनपती है जीवन सारा | 
कवि :संतोष कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर

बुधवार, 1 मई 2024

कविता :"आजादी"

"आजादी"
आजादी यूँ ही नहीं मिलती ,
इसमें कुछ खोना पड़ता है | 
कई जंग लड़ना पड़ता है,
और मुस्किलो से गुजरना पड़ता है | 
आजादी हमें यूँ ही नहीं  मिलती  है,
कई कुर्बानिया लेनी  पड़ती है | 
तो कई कुर्बानिया देनी पड़ती है ,
न जाने कितनो ने अपना खून बहाया होगा | 
और कितनो शूली पर चढ़ा होगा ,
आजादी यूँ ही नहीं मिलती | 
न जाने कितना कष्ट सहा होगा,
और जाने कितना कोड़े खाये होंगे | 
तब जाके ये आजादी मिली होगी ,
आजादी यूँ ही नहीं मिलती | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर