रविवार, 19 मई 2024

कविता :" नजरे "

" नजरे "
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है ,
मस्ती के रंग में रंगीन हो नाच रही है| 
कितने ही शिकवों और शिकायतों से झुक रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
अश्कों को छुपाकर बातों को भुलाकर ,
अपने को रुलाकर किसी को हंसाकर | 
खुद से जुदा हो के लोगो से मिल रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
ख्वाबो में डूबकर सबकुछ भूलकर ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
कवि :साहिल कुमार ,=कक्षा :8th 
अपना घर 

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