" नजरे "
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है ,
मस्ती के रंग में रंगीन हो नाच रही है|
कितने ही शिकवों और शिकायतों से झुक रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है |
अश्कों को छुपाकर बातों को भुलाकर ,
अपने को रुलाकर किसी को हंसाकर |
खुद से जुदा हो के लोगो से मिल रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है |
ख्वाबो में डूबकर सबकुछ भूलकर ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है |
कवि :साहिल कुमार ,=कक्षा :8th
अपना घर
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