"गर्मी "
इस बार की गर्मी ,
मानो सूरज सर पर आई है |
सुबह से लेकर शाम तक ,
पसीना ही पसीना आई है |
नहीं है अच्छे से आराम ,
बह -बहकर भर गया तालाब |
इस बार की गर्मी ,
पेड़ -पौधे झुलस गए ,
अब उनको भी पानी पीना है |
सड़क से भी गर्म हवा अब आती है ,
मुश्किल हो गाया अब जीना है |
इस बार की गर्मी |
कवि :अभिषेक कुमार ,कक्षा :6th
अपना घर
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