शनिवार, 25 मई 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
इस बार की गर्मी ,
मानो सूरज सर पर आई है | 
सुबह से लेकर शाम तक ,
पसीना ही पसीना आई है |
नहीं है अच्छे से आराम , 
बह -बहकर भर गया तालाब | 
इस बार की गर्मी ,
पेड़ -पौधे झुलस गए ,
अब उनको भी पानी पीना है | 
सड़क से भी गर्म हवा अब आती है ,
मुश्किल हो गाया अब जीना है | 
इस बार की गर्मी | 
कवि :अभिषेक कुमार ,कक्षा :6th 
अपना घर  

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