शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

कविता: मोटा-मोटी

मोटा-मोटी

एक था मोटा, एक थी मोटी,
खाते थे, दोनों दस-दस रोटी।
एक दिन उनके घर आए मेहमान,
बोले लगी है भूख कराओ खान-पान।
मोटी थी बड़ी आलसी और खोटी,
बोली घर में बनी नही है रोटी।
चट से बोली आटा रखा है घर में,
झट से पका लो रोटी चूल्हे में।
अभी नींद लगी है, इसलिए मुझे है सोना,
पक जाए अगर रोटी, तो मुझे जगा देना।
लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 29 जुलाई 2009

कविता: कालू बन्दर

कालू बन्दर

एक था कालू बन्दर,
रहता था नाले के अन्दर...
एक दिन खा रहा था चुकंदर,
मस्ती में था नाले के अन्दर...
उतने में एक सांप आया,
उसने अपना फन जो उठाया...
बन्दर जी की घिघ्घी बन गई,
हालत उनकी पतली हो गई...
कालू बन्दर भागे अन्दर,
उनके हाथ से गिरा चुकंदर...
आगे मिल गई नागिन रानी,
बोली बन्दर भैया पीलो पानी...
कालू बन्दर नाले से भागे,
पेड़ पर चढ़ कर जम के हाफें...
याद गई बन्दर को नानी,
खत्म हो गई अपनी कहानी...

लेखक: मुकेश, कक्षा ८, अपना घर

कविता: रात का अँधेरा

रात का अँधेरा

रात का अँधेरा था,
पास के घर में उजेला था...
ऐसा लग रहा था,
जैसे कोई पढ़ रहा था...
मन में मै डर रहा था,
अपने आप से लड़ रहा था...
भूत है ये मन कह रहा था,
अँधेरा और बढ़ रहा था...
मै चद्दर ओढ़ कर सो गया,
सपनो में जाके खो गया...
सपनो में परियाँ थी,
फूलों की बगिया थी...
तभी अचानक सूरज उग आया,
चारो ओर उजाला फैलाया...
उजाले में सबने की पढ़ाई,
और मैंने ये कविता बनाई...
लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर


मंगलवार, 28 जुलाई 2009

कविता: जीवन

जीवन

जीवन के हर उमंगों से,
तितली उसके पंखों से...
आसमान में उड़ती नीली- पीली पतंगों से,
यह धरती है तो मनुष्यों से...
पक्षियों से , जीव- जंतुओं से,
आसमां के हर तारों -सितारों से...
अगर जीवन है तो पेड़-पौधों से,
सूरज से, चन्दा की रोशनी से...
हवा से, मिटटी से, पानी से,

शान्ति से, दोस्ती से, मोहब्बत से...
जीना है तो जियो मुस्करा के,
मरना है तो मरो मुस्करा के...

लेखक: आदित्य, कक्षा ७, अपना घर

कविता: बारिस का मौसम आया

बारिस का मौसम आया

बरसात का है ये मौसम आया,
हरियाली से धरती को है सुंदर बनाया...
बरसात हुई तो पक गई जामुन,
खाने में लोगों को बड़ा मजा आया...
बरसात में हरी भरी घास से,
क्यारियों को लोगों ने खूब सजाया...
रंग बिरंगे सुंदर फूलों ने मिलकर,
इस संसार को है ऐसा महकाया...
आज हुई है जमकर खूब बरसात ,
सब लोगों ने मिलकर खूब नहाया...
बरसात का है मौसम आया,
धरती को है सुंदर बनाया...

धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर

सोमवार, 27 जुलाई 2009

कविता:- लोगों के विचार

लोगों के विचार
लोगों की वाणी अनेक विचार वाली,
कभी अच्छी तो कभी बुरी वाली...
घर में बैठा था सांप,
काले -सफेद थे उसके दाग....
लोगों ने जब उसको देखा,
घर से निकाल फेंका...
जब घर के बाहर लोगों ने देखा,
झट से उनके मुंह से निकला...
महीना है सावन का,
भोले शंकर दानी का....
सर्प को मारो
मत,
उसको छेड़ों मत...
सांप तब तक ईट में चला गया,
लोगों को चिंतित छोड़ गया...
सर्प कुछ देर में बाहर निकला,
लोगों के मुंह से फ़िर वाणी निकला...
छोटे - छोटे बच्चे घर में,
निकलेंगे जब अंधरे में....
ये बच्चों को काटेगा,
मौत सभी को बाँटेगा...
झट से इसको खत्म करो,
आग लगा के भस्म करो....
अच्छी लगी कभी बुरी लगी,
लोगो की वाणी कैसी लगी.......

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर



कविता: बरसते पानी में

बरसते पानी में
बरस रहा है पानी,
कैसे मै बाहर निकलू ....
इस पानी को कैसे बंद करें,
ये है ऊपर वाले की मेहरबानी.....
बरसते हुए पानी में,
बहते हुए पानी में....
नहाने का मन कर रहा है,
पर अन्दर से डर लग रहा है.....
पानी खूब बरस रहा है,
खेलने को मन तरस रहा है...

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर

सोमवार, 20 जुलाई 2009

कविता:- कोई कुछ सुनता नही

कोई कुछ सुनता नही....
हम जगा रहे थे, कोई जागे तो।
हम डर रहे थे, कोई डरे तो।।
हम बाँध रहे थे, कोई बंधें तो।
हम रुला रहे थे, कोई रोये तो॥
हम हंसा रहे थे, कोई हंसे तो।
हम पढ़ा रहे थे, कोई पढ़े तो॥
हम लिखा रहे थे, कोई लिखे तो।
हम नचा रहे थे, कोई नाचे तो॥
हम घुमा रहे थे, कोई घूमे तो।
हम नहला रहे थे, कोई नहाये तो॥
हम खिला रहे थे, कोई खाए तो।
हम बुला रहे थे कोई आए तो॥
हम मुस्करा रहे थे, कोई मुस्कराए तो।
हम सुला रहे थे, कोई सोये तो॥

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

कहानी:- एक भूत और दो आदमी

एक भूत और दो आदमी
बहु़त समय पहले की बात है कि रास्ता था जो जंगल से होकर जाता थाउसी जंगल से एक बार दो आदमी जा रहेथे, वे लोग कुछ दूर चले होंगे कि अचानक उन्हें रस्ते में एक भूत मिल गयाउन दोनों आदमियों ने उस भूत से पूछाक्यों भाई तुम यंही रहते हो क्या ? प्रश्न सुनकर भूत बोला हाँ मै यंही रहता हूँ और यंही पर मेरा घर भी हैफ़िर भूतने उन दोनों आदमियों से पूछा कि तुम दोनों लोग कहाँ जा रहे हो ? उन दोनों ने कहा हम जंगल के उस पर दूसरेगाँव जा रहे हैभूत ने फ़िर पूछा वंहा पर तुम लोगों को क्या काम है ? तब तक ये दोनों आदमी ये समझ गए थे किये भूत है, लेकिन वे डरे नहींउन्होंने भूत से कहा कि हमें उस गाँव के लोगों ने बुलाया हैउस गाँव के लोगों को इसजंगल का कोई भूत है जो बराबर उन्हें परेशान करता है और डराता हैहम दोनों तांत्रिक है और बदमाश भूतों कोठीक करते हैहम उसी भूत को ठिकाने लगाने आए हैभूत ने जैसे ही इन दोनों आदमी कि बात सुनी तो उसकेहोश उड़ गया, वो बहुत डर गयाभूत जल्दी से उन दोनों आदमियों से पीछा छुड़ाकर उस जंगल से भाग गयादोनों आदमी इस प्रकार से आपनी चालाकी से उस भूत से पीछा भी छुड़ा लिया और वो जंगल भी उस भूत से हमेशा के लिए मुक्त हो गया

लेखक: आदित्य कुमार,,कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 15 जुलाई 2009

सम्पादकीय: १२ जुलाई २००९

सम्पादकीय
प्यारे दोस्तों नमस्ते,
उम्मीद है आप सभी का स्कूल शुरू हो गया होगा। हम लोग भी अब स्कूल जाने लगे है, गर्मियों कि छुटिया बड़े मजे में बीती उम्मीद है आप लोगो ने भी छुट्टियों का जम के मजा लिया होगा। हमारा "बाल सजग" इस समय थोड़ा ढीला चल रहा हैयह हम सब साथियों की कमी हैं, मै सभी साथियों से निवेदन करता हूँ, कि अपनी प्यारी -प्यारी कविता और कहानी लिखे और बाल सजग में शामिल करेजिससे अपना "बाल सजग" पुनः पहले जैसा हो जाय इसी को लेकर एक बात याद आती है जो की इस प्रकार हैजब बदल गरजते है और बारिस होती है तो किसान को बड़ा मजा आता है, उसी तरह जब "बाल सजग" में कविता और कहानी का भंडार होता है तो पढ़ने वालों और देखने वालो को बड़ा मजा आता हैजो बच्चों के साथ-साथ बडों का भी मन बहलाए वही बाल सजग कहलाये... तो साथियों हम अपने "बाल सजग" को और अच्छा बनाये और अपने सपनो को बाल सजग पर सजायेंबाल सजग के पाठकों से हम सबका अनुरोध है की आप अपने सुझाव हमें निरन्तर देते रहे जिससे हमें उत्साह और मार्गदर्शन मिलता रहे। "बाल सजग" का विकास आप सब के सहयोग के बिना अधूरा है...

सम्पादक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर
उप संपादक: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर
बाल सजग
अपना घर, बी०-१३५/८, प्रधान गेट, नानकारी
आई० आई० टी० , कानपूर-१६
फोन: ०५१२-2770589

कवि़त:- अंगूठा

अंगूठा
अंगूठा है कितना अच्छा
साथ है देता हरदम सच्चा
सब अंगुलियों से है मोटा
नही निकलता कभी ये खोटा
अगर अंगूठा ये होता
जीवन कितना मुश्किल होता॥
ये है जीवन का किरदार
अँगुलियों का है सरदार
अँगुलियों से सब खाते है
अपन काम निपटाते है

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ७, अपना घर

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

कविता:- चोर नेता और सिपाही

चोर नेता और सिपाही
पुलिस खड़ी है थाने में।
चोर है जेल के खाने में॥
पुलिस है डंडा लेकर खड़ी।
मूछे है उनकी बड़ी-बड़ी॥
पुलिस का है डंडा जब पड़ा।
चोर बड़ा गुस्से से खड़ा॥
गाँव में की जब चोर ने चोरी।
थाने ने उसके नाम की फाईल खोली
तब संसद में बैठा नेता।
झट उसने जब पैसा फेंका॥
फाईल झट से बंद हो गई।
चोरो पर कार्यवाही ख़त्म हो गई।।
चोर नेता और सिपाही
आपस में ये सभी है भाई॥

अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

शनिवार, 11 जुलाई 2009

कविता: पुस्तक

पुस्तक
पुस्तक कितनी प्यारी है।
इनमें जीवन की कहानी है॥
पढ़ने में लगती प्यारी है।
इनमें मज़ेदार कहानी है॥
कलम से लिखी कहानी है।
लेखकों की जिंदगानी है॥
पुस्तक को बच्चें जब पढ़ते है।
जीवन में हरदम आगे बढ़ते है॥
शिक्षा से जीवन अच्छा बनता है।
खुशी से हरदम बच्चा रहता है

लेखक
: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर


बुधवार, 8 जुलाई 2009

कविता: यादें गाँव और बचपन की

यादें गाँव और बचपन की
याद हमें आती है हर पल अपने गाँव की बातों की
याद हमें आती है हर पल, बचपन की उन बातों की.
गाँव की गलियां, गाँव के रस्ते, खुशबु अपने माटी की.
याद हमें आती है हर पल अपने गाँव की बातों की.
गुल्ली डंडा, चोर सिपाही, कुकडू कू और भाग-भगाई.
चिक्का, कबड्डी, लाली बेटा, खेल थे अपने गांवों की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातो की.
आम के पेडों पर वो चढ़ना, खेल-खेल में लड़ना-झगड़ना.
रात हुई तो जंगल परियां, थे किस्से, कहानी बाबा की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातो की.
फूलों पर तितली को पकड़ना, रात को मिलके जुगुनू पकड़ना.
बारिस होते ही तैराते, कागज की उन नावों की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
भालू का हम नाच देखते, जादू की वो बात सोचते.
ध्यान लगा रहता था दिल में, आइसक्रीम की घंटी की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
भैस के ऊपर चढ़ना-उतरना, बकरी और पिल्ले को पकड़ना.
खेतों की उस पगडण्डी पर, झरबेरी के पेडों की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
लकड़ी की पाटी ले जाना, खट्टी मिठ्ठी इमली खाना.
यारो के संग एक दूजे को, चिढ़ने और चिढ़ाने की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
गाँव के कुत्तो को दौड़ाना, पेडों से बन्दर को भगाना.
चरता गधा मिल जाये तो, मजा थी उसकी सवारी की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
सबके संग में मेला जाना, चोरी-चुपके चाट खाना.
यारो के संग एक दूजे को, हंसने और हँसाने की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
याद हमें आती है हर पल, बचपन की उन बातों की.
गाँव की गलियां, गाँव के रस्ते, खुशबु अपने माटी की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.

महेश, कानपूर

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

कहानी: पॉँच साहसी दोस्त

पॉँच साहसी दोस्त....
बहुँत समय पहले की बात है एक घना जंगल था उसी जंगल के पास एक गाँव था, गाँव के लोगों का मानना था कि इस जंगल में कई भूत, जंगली जानवर और बड़े - बड़े सांप रहते है, पर उस जंगल में ऐसा कुछ नही था बहुँत ही सुंदर और प्यारा जंगल था मगर गाँव के जितने बड़े लोग थे वह अपने बच्चों से कहते थे कि उस जंगल में मत जाना वर्ना कोई जंगली जानवर तुम्हे मार कर खा जाएगा या फ़िर तुम्हें भूत पकड़ लेगा सभी गाँव के बच्चे उस जंगल में जाने से डरते थे उसी गाँव में एक बच्चों कि टोली थी, उन पांचो बच्चों में आपस में बहुत ही अच्छी दोस्ती थी वे थोड़े शैतानी जरुर करते थे मगर निडर और साहसी थे एक दिन उन्होंने ने आपस में सलाह कि चलो उस जंगल में जाकर देखा जाय कि क्या है वंहा पर, हो सकता है ये बड़े लोग ऐसे ही झूठ बोल रहे हो फ़िर पांचो दोस्त गाँव में बिना किसी को बताये उस जंगल कि तरफ चल दिए जंगल में चलते - चलते वो बहुत दूर निकल आए मगर अभी तक उन्हें कंही भी कोई भूत, सांप ये जंगली जानवर नजर नही आया, रस्ते में उन्हें मोर, खरगोश, हिरन, तोते, जंगली कबूतर और ढेर सारे रंग बिरंगी चिड़िया दिखी आगे चलने पर उन लोगो ने देखा कि पेड़ों के बीच एक बहुत ही सुंदर महल बना है , और उस महल के आस-पास ढेर सारे बच्चे खेल रहे थे, पांचो दोस्त उन्ही बच्चों के साथ खेलने लगे महल के पास वाले बगीचे में ढेर सारे फल के पेड़ लगे थे, सभी ने पेड़ से तोड़ कर ढेर सारे फल खाया और झूला भी झूला अब शाम हो चली थी बातचीत में उन बच्चों ने बताया कि ये हम लोगो का स्कूल हैऔर हम लोग यंहा रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे है हमारे परिवार के लोग इसी जंगल में रहते है सभी बच्चों के साथ इनकी दोस्ती हो गई पांचो दोस्तों ने सभी बच्चों से बिदा लेकर अपने गाँव कि तरफ़ चल दिए इस तरफ़ बहुत देर से बच्चों के गाँव में होने से गाँव वाले परेशान हो गए थे उन्हें लग रहा था कि हो हो ये बच्चे उस जंगल में गए होंगे और वनः पर उन्हें जंगली जानवर या भूत मार डाला होगा जंगल में उन्हें खोजने डर के मारे कोई नही जा रहा था तभी जंगल से वो पंचों बच्चे आते हुए दिखाई दिए गाँव वाले सभी खुश हो गए, पांचो दोस्तों ने जंगल के बारे में और वहाँ के स्कूल के बारे में बताया अगले दिन सभी गाँव वाले उस जंगल में गए उन्होंने वहां पर स्कूल देखा सभी से मिले और बहुँत खुश हुए उन्होंने अपने गाँव के सभी बच्चों को उस स्कूल में भेजने लगे अब उन्हें पता चला कि जंगल के बारे में कितनी झूठी अफवाह फैली हुई थी अब उस गाँव में बड़े लोग उन पांचो दोस्तों कि साहस कि कहानी अपने बच्चों को सुनाने लगे

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर, कानपूर

कविता: पानी काले बादल में

पानी काले बादल में
नीले नीले आसमान में॥
पानी काले बादल में
बादल है या कोई छाया।
ये तो है प्रकृति की माया॥
कब ये पानी बरसाएगा।
हमको कब तक तरसाएगा॥
जब यह पानी बरसेगा
धरती को पहले सींचेगा॥
हम भी नहायेंगे पानी में।
नाव चलाएंगे नाली में॥
पानी की बुँदे गिरेंगी तन पे।
मेरे मन को लगेंगी छन से॥
पानी में झम - झम कूदेंगे।
हम मस्ती में सब डूबेंगे॥
हम सब झूम के नाचेंगे।
संग में सबके गायेंगे॥
सबके संग नहायेंगे।
पानी से बाहर आयेंगे॥
पानी पाकर धरती होगी हरियाली।
घर- घर में आयेगी खुशियाली

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर, कानपूर



रविवार, 5 जुलाई 2009

कविता: मेहनत का दर्द

मेहनत का दर्द
कच्ची कच्ची मिटटी खोदी ।
खोदकर पानी में फुला दी ॥
गोल करके फिर सांचे में डाली ।
ईट हुई गड़बड़ मालिक ने दी गाली॥
गाली सुनकर गुस्सा आया ।
गुस्से को मन में भड़काया ॥
तब पता चला मालिक होते है कंजूस।
गाली देकर मन को पहुचाते है ठेस ॥

आदित्य कुमार कक्षा ७, अपना घर

कविता: आसमान में छाये बादल

आसमान में छाये बादल
आसमान में छाये बादल ।
काले नीले सफ़ेद
काले बादल ने ये बोला
मै पानी बरसाऊंगा
झट नीले बादल ने बोला
मै पानी भर लाऊँगा
सफ़ेद बादल भी पट से बोला
मै रस्ता दिखलाऊँगा

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर