शनिवार, 20 जून 2009

कविता: कंप्यूटर भाई

कंप्यूटर भाई
कंप्यूटर भाई कंप्यूटर भाई
तुम क्यो होतो हो हमसे गुस्सा॥
गुस्सा तुमको अब नही करना है।
हमारा काम अब तुमको करना है॥
कंप्यूटर भाई कंप्यूटर भाई।
तुम कहाँ चले गए
बिजली गई तो तुम भी गए
मेरा काम अधूरा छोड़ गए
तुम्हारे सहारे सब काम चल रहा है।
तुम ही हो मेरे काम के साथी॥
अब साथ- साथ तुम्हे रहना है
अब मेरा काम भी करना है॥
कंप्यूटर भाई कंप्यूटर भाई।
तुम क्यो होतो हो हमसे गुस्सा

कविता: सागर कुमार , कक्षा 5, अपना घर

सोमवार, 15 जून 2009

कविता: एक किसान गया कलकत्ता

एक किसान गया कलकत्ता

एक किसान गया कलकत्ता।
उसने खाया पान का पत्ता॥
मुंह हो गया उसका लाल।
रात में किया मुर्गे को हलाल॥
जमकर उसने मुर्गा खाया।
किसी को घर में नही बताया॥
घर में मांस की बदबू आई
उसकी पत्नी सह नही पाई॥
पत्नी उसकी पड़ी बीमार।
किसान ने मन में किया विचार॥
मांस कभी खाऊँगा।
नहीं किसी को सताऊंगा॥
अबकी बार गया कलकत्ता।
नहीं खाऊँगा पान का पत्ता

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा , अपना घर


रविवार, 14 जून 2009

कविता: चारो चोर गए सुधर

चारो चोर गए सुधर
एक गाँव में चार थे चोर।
रोज पकड़ते थे वे मोर॥
एक चोर पकड़ गया थाने में।
तीन गिर गए नाले में॥
नाले में भर गया था पानी।
चोरों की हो गई बदनामी॥
छोड़ी चारों ने बईमानी।
ख़त्म हुई उनकी शैतानी॥
चारो अब तो गए सुधर।
भाग के पहुँचे अपने घर॥
खेत में करने लगे वे काम।
गाँव में हुआ फ़िर उनका नाम॥
ख़त्म हुई उनकी बदनामी।
यही है चार चोरो की कहानी

लेखक : ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर




कविता: चारो ही गए गंजे

चारो हो गए गंजा
चार थे पण्डे।
खाते थे रोज अंडे॥
चारो गए स्कूल।
स्कूल में की शैतानी॥
टीचर को हो गई हैरानी।
टीचर ने मारा दो - दो अंडा॥
चारो के मुंह से निकल पड़ा अंडा।
फ़िर चारो गए पंजाब॥
पंजाब में बिल्ली ने मारा पंजा
चारो का सर हो गया गंजा
कविता: चंदन कुमार, कक्षा , अपना घर

शनिवार, 13 जून 2009

कविता: आओ सीखे गिनती

एक बोलो एक
एक बोलो एक उड़ती चिरैया देख
दो बोलो दो हाथ साफ से धो॥
तीन बोलो तीन बच्चों बजाओ बीन।
चार बोलो चार चलें बाजार
पॉँच बोलो पॉँच बंदरिया नाच।
: बोलो : सब बच्चों की जय॥
सात बोलो सात चले बारात।
आठ बोलो आठ बच्चों बिछाओ खाट॥
नौ बोलो नौ गिनती सीखो सौ।
दस बोलो दस बच्चों चलाओ बस॥
कविता: मुकेश कुमार, कक्षा , अपना घर

सोमवार, 8 जून 2009

कविता: दूध पियो

दूध पियो
दूध पियो दूध पियो।
गरमा - गरम दूध पियो
मीठा - मीठा दूध पियो।
लम्बी -लम्बी उमर जियो
दूध पियो मोटा हो जाओ।
तोंद फुलाओ तोंद पचकाओ॥
आओ जमके दूध चढाओ
पेट भिडाओ पेट लड़ाओ॥
दूध पियो और मस्त हो जाओ।
तन की बीमारी दूर भगाओ
मक्खन खाके पेट फुलाओ।
जिससे चाहे पंजा लड़ाओ॥
दूध पियो दूध पियो
गरमा - गरम दूध पियो॥
कविता: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता: गर्मी का मौसम

गर्मी का मौसम
गर्मी का मौसम है आया।
शरीर पसीने से है थरार्या
दोपहर में बड़ी जोर।
चलती है लू घनघोर॥
धूल मिट्टी सर-सर कर।
जाती है अपने घर॥
दोपहर को कड़ी धूप में
बाहर जाता हूँ मुश्किल में॥
ठंढे पानी में मजा है आता।
गर्मी को है दूर भगाता॥
गर्मी का मौसम है आया।
शरीर पसीने से है थरार्या॥
कविता: अक्षय कुमार, कक्षा , अपना घर

रविवार, 7 जून 2009

कविता: धोबी और लोहार

धोबी और लोहार
एक गधे पर चार सवार
उसमें दो धोबी और दो लोहार
घूम - घाम के सब पहुचें मंडी
दोनों धोबी ने खरीदी भिन्डी
दोनों लोहार को गुस्सा आया
दोनों ने दो दर्जन केला खाया
गधे को धोबी ने खिलाया ककड़ी
ककड़ी में छिपी थी काली मकड़ी
गधे की गर्दन में मकड़ी ने बुना जाल
गधे जी दर्द के मारे हुए बेहाल
गधे को देखकर चारो का हुआ बुरा हाल
पाँव उठाके भागे और पहुच गए ननिहाल
कविता: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर