बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

कहानी:- सोनपरी

सोनपरी
एक बार की बात हैएक घने जंगल में एक परी रहती थी, उसका नाम सोनपरी थासोनपरी बहुत ही सीधी और शांत स्वभाव की थी, लेकिन गाँव वाले उससे बहुँत डरते थेगाँव वाले सोचते थे कि कंही वो हमारे बच्चो को खा जायउस गाँव में एक बहुँत ही सीधा लड़का रहता था, लेकिन गाँव वाले उससे बोलते नही थेलड़का बहुत दुखी रहता था, एक दिन वो रात को जंगल में सोनपरी के पास गया और बोला कि सोनपरी तुम मुझको खा लो, सोनपरी बोली क्यो लड़का बोला क्योकि गांव वाले मुझसे बात नही करते हैसोनपरी बोली मै तो किसी को नही खाती हूँ मै तुम्हारी मदद करुँगी , गाँव वालो को मै समझा दूंगीलड़का वापस गाँव में गयाएक दिन गाँव में कंही से एक पागल हाथी गया और गाँव में उधम मचाने लगा गाँव वाले जान बचाकर भागने लगे तभी सोनपरी गाँव में आई हाथी को मार डाला फ़िर गाँव वालो से बोली मै आप लोगो को कोई कष्ट नही दूंगीअब आप लोग सभी के साथ सुख से जिए और उस बच्चे को साथ लेकर बोली कि आप सभ इस से बात करेंगे तो मै हमेशा आपकी मदद करुँगी इतना कहकर परी उड़ गई
ज्ञान
कक्षा , अपना घर

लेख:- आज का बेटा

आज का बेटा
हर पिता अपने बेटे को बचपन से चाहता है, और उसे बहुँत प्यार करता हैवह हमेशा सोचता है की उसका बेटा एक दिन बड़ा होकर पढ़ - लिखकर कुछ बनेगा, ताकि अपने माता - पिता की मदद सेवा करेगाहर एक पिता अपने बेटे के बारे में यही सोचता है हर एक माँ यही सोचती है, पर उसे यह बात नही मालूम रहती है की उसका बेटा आगे चलकर बड़ा होकर क्या बनाने वाला हैउसका बेटा गंदे लड़को का साथ पकड़ लेता है, और उनके साथ वही कम करने लगता है जो उसके दोस्त करते रहते हैधीरे - धीरे इतना बिगड़ जाते है की अपने माता - पिता का कहना तक नही मानते हैजो मन में आता है वही करते है, धीरे - धीरे नशा करना, जुआ खेलना, मार - पीट करना आदि सभी काम करने लगते हैएक दिन वही बेटा शराब पीकर जब घर पर आता है, अगर माँ - बाप उससे कुछ कहते है तो वह उन्ही को मरता हैयह कहा कहा न्याय है की जो माँ - बाप अपने बेटे को पाल - पोसकर बड़ा करे, वही उनको मारता हैआज कल भारत में हर जगह यही हो रहा है...
आदित्य कुमार
कक्षा ६, अपना घर

कविता:- नई सुबह की नई उमंग

नई सुबह की नई उमंग
सूरज की लालिमा के संग
नई सुबह की नई उमंग
खिलती है कलिया फूलो के संग
चिड़िया चहकी है भर के नई उमंग
हम भी गाये हम भी नाचे
उछले कूदे चिडियों के संग
तभी तो कहते है भईया
मिल - जुलकर रहो हमेशा एक दूजे के संग
सूरज की लालिमा के संग
नई सुबह की नई उमंग
आदित्य कुमार
कक्षा ६, अपना घर


कविता:- मजदूर

मजदूर
मजदूर बेचारे करते काम
दिन और रात सुबह और शाम
करते - करते ही वह थक जाते
अपना साहस कभी नही छोड़ते
सदा आगे बढ़ते रहते
कभी नही वे पीछे हटते
दिन और रात करते काम
लेते रहते हरि का नाम
मजदूर बेचारे करते काम
दिन और रात सुबह और शाम
ज्ञान
कक्षा ५, अपना घर

कविता :- हाथी दादा

हाथी दादा
हाथी दादा आना तुम
अपनी पूंछ हिलाना तुम
सब बच्चो को बैठाकर
इधर- उधर घुमाना तुम
हाथी दादा आना तुम
अपनी सूंड हिलाना तुम
हाथी दादा तुम चलते हो
अपनी सूंड हिला चलते हो
हाथी दादा आना तुम
अपनी कान हिलाना तुम

ज्ञान
कक्षा , अपना घर



कविता:- हम बच्चे

हम बच्चे
हम बच्चे है भोले - भाले
करते है हम मनमानी
हमें डटो हमें मारो
हमें भड़काओ
हमें हड्काओ
हम करते है बहुत शैतानी
जिससे होती सबको हैरानी
एक दिन बंद करेंगे शैतानी
दूर होगी सबकी परेशानी
हम बच्चे है भोले - भाले
करते है हम मनमानी
आदित्य कुमार
कक्षा ६, अपना घर

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

कविता:- प्यारी चप्पल

प्यारी चप्पल
कितनी प्यारी चप्पल है
रबर की बनी होती है
कोई होती काली और कोई पीली
लेकिन सब होती एक जैसी
जो चप्पल नही पहनते
उनके पैर में लगते है कांटे
जो चप्पल जूते पहनते
उनके पैर में कभी नही लगते कांटे
कितनी प्यारी चप्पल है
वह रबर की बनी होती है
आदि केशव
कक्षा ६, अपना घर

कहानी:- सफाई की सीख

सफाई की सीख
नदी के किनारे पर एक बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर एक घोंसला बना कर एक गौरिया रहती थी। उसी पेड़ के नीचे बिल बनकर एक खरगोश रहता था। कुछ दिनों बाद गौरेयाने दो अंडे दिये, फ़िर उन्हें सेयाऔर फोड़ा तो उनमे से दो नन्हे - मुन्हे बच्चे निकले। जब बच्चे कुछ खाते थे तो, जो बचाता था वह सब खरगोश के बिल के पास फेंक देते थे। खरगोश कुछ दिनों तक तो नही बोला पर एक दिन खरगोश ने गौरिया से कहा की गौरिया बहन तुम्हारे बच्चे बहुँत शरारती है, खाने के बाद जो भी कुछ बचता है, वह मेरे बिल के पास फेंक देते है। मै चाहता हू की तुम सारा कूड़ा इकठ्ठा करके उसे कंही जमीं में दबा दो। गौरेया गुस्सा गई और गुस्से में आकर बोली चल भाग यंहा से अगर तुम्हे यंहा रहना है तो गन्दगी सहनी ही पड़ेगी, वर्ना पेड़ पर आकर रहने लगो। खरगोश बोला मेरे पास तो पंख नही है मै पेड़ पर कैसे रह सकता हू। खरगोश और गौरेया की बातो को पास के एक पेड़ पर बन्दर बैठा हुआ सुन व देख रह था। खरगोश अंततः परेशां होकर अपना बिल छोड़कर कंही दूसरी जगह चला गया। कुछ दिनों बाद गौरैया ने अपने बच्चो का जन्मदिन मनाया, सभी मेहमान आए हुए थे। बन्दर भी आया हुआ था, वो पेड़ पर सबसे ऊपर चढ़ गया और वंहा पर बैठ कर आम खाने लगा। आम खाते जाता और उसकी गुठली तथा छिलका गौरैया के घोंसले में फेंकने लगा। जब गौरिया ने यह देखा तो वो परेशां हो गई और बन्दर से ये कहा की तुम्हे दिखाई नही देता क्या ?जो यंहा पर गंदगी फैला रहे हो। बन्दर ने कहा की आज तुम्हे गंदगी नजर आ रही है। जब तुम्हारे बच्चे खरगोश के बिल में गंदगी फैला रहे थे तब तुम्हे समझ में नही आ रहा था और आज गंदगी की बात कर रही हो। अंतत गौरैया को अपनी गलती का एहसास हो गया वो अपनी गलती मान ली और बन्दर से मांफी मांगी।
आदित्य कुमार
कक्षा ६, अपना घर

कविता:- मटका

मटका
मटका अपना गोल - गोल
अन्दर से है पोल - पोल
मिटटी का ये बना हुआ है
गोल - गोल ये बना हुआ है
जिसके घर में मटका होता है
ठंढा पानी पीता है
मटका जल्दी फूट जाता है
मटका अपना गोल - गोल
अन्दर से है पोल - पोल
ज्ञान
कक्षा ५ अपना घर

कविता:- बन्दर की बारात

बन्दर की बारात
बन्दर जी की आज बारात
हाथी भालू शेर और चीते
नाच रहे है एक साथ में
गा रहे है एक संग में
उन चारो ने धूम मचा दी
बारात को भी खूब सजा दी
बन्दर जी ने धूम मचा दी
बंदरिया को खूब नचा दी
बन्दर की बारात ला दी
बंदरिया से उनको मिलवा दी
सोनू कुमार
कक्षा ७, अपना घर

कविता:- लाल टमाटर

लाल टमाटर

लाल टमाटर, लाल टमाटर

तुम कितने अच्छे लगते हो

लाल लाल होते हो

खा जाते है तुमको बच्चे

कोई होता है हरा टमाटर

कोई होता है लाल

कोई टमाटर होता है मीठा

कोई टमाटर होता है खट्टा

लाल टमाटर लाल टमाटर

तुम लगते हो कितने अच्छे

लाल लाल होते हो

खा जाते है तुमको बच्चे

अक्षय कुमार

कक्षा ६ अपना घर

कविता:- मेरी पतंग

मेरी पतंग
पतंग है मेरी कितनी प्यारी
आसमान में उड़ है
फ़िर नीचे आ जाती है
मेरी बात मान जाती है
फ़िर ऊपर उड़ जाती है
सर-सर - सर उडी पतंग
रंग बिरंगी उडी पतंग
पतंग मेरी नही है कटती Align Centerऊपर आसमान में उड़ती है
पतंग है मेरी कितनी प्यारी
देवेन्द्र
५ अपना घर

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

कविता:- पानी बरस

पानी बरसे
पानी बरसे झम - झम - झम ।
बूंदे गिरे टप - टप - टप ।
बिजली कड़के कड़ - कड़ - कड़ ।
पानी बरसे झम - झम - झम ।
दादा नानी नाचे छम - छम - छम ।
छाता लेकर निकले हम - हम - हम ।
पानी बरसे झम - झम - झम ।
मु० चंदन तिवारी
अपन घर

कविता:- चुहिया रानी

चुहिया रानी
चुहिया रानी चुहिया रानी
तुम तो बड़ी सयानी
किसी की पकड़ नही आती हो
उछल कूद कर बिल में घुस जाती हो
चुहिया रानी चुहिया रानी
तुम तो हो बड़ी सयानी

मु० चंदन तिवारी,

कक्षा ३, अपना घर

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

कविता:- हाथी

हाथी
हाथी पों पों करता है
कभी किसी की नहीं सुनता है
अपनी धुन में चलता है
खूब मजे से रहता है
हाथी पों पों करता है
कान उसके बड़े बड़े
सूप जैसे कितने अच्छे
हाथी है कितने अच्छे
उसके दांत है लंबे लंबे
मानस
अपना घर, कक्षा 5