शनिवार, 30 जुलाई 2011

कविता - भ्रष्ट नेता

भ्रष्ट नेता 
भ्रष्ट हैं पुलिस भ्रष्ट हैं नेता ,
बैठे- बैठे कुछ नहीं करते .....
जब चोरी चमारी होती हैं  ,
 तो  खड़े- खड़े बस ताका करते....
 जब आती हैं चुनाव की बारी ,
 तो सबके घर जाया करते ......
 भ्रष्ट हैं पुलिस भ्रष्ट हैं नेता......
 लेखक - सागर कुमार
 कक्षा -८  अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

कविता - लुगाई के खातिर की कमाई

लुगाई के खातिर की कमाई 
 एक व्यक्ति ने की इतनी कमाई ,
जिससे ला सके वह एक लुगाई......
 एक दिन बैठा लगा सोचने ,
 उसी दिन गया वह लुगाई देखने .....
 लुगाई उसको पसंद आई ,
 तय हो गयी उन दोनों की सगाई,
जब वापस घर को था लौटना ......
 उसी क्षण हुई उसके संग एक दुर्घटना ,
 दुर्घटना में उसने एक हाथ ,एक पैर ,एक आंख गंवाई.....
ठीक  होने के लिए उसने सारी सम्पति लगाई,
 लुगाई को तब पता चला ......
 उसने तोड़ दिया उससे रिश्ता,
सारा जीवन रह गया बेचारा  कुंवारा घिसता...... 
 जितना गम नहीं था उसे अपने अंग खोने से ,
उससे ज्यादा गम  था उसकी सगाई न होने से..... 
   

लेखक - आशीष कुमार , कक्षा  - ९,  
अपना घर कानपुर               

बुधवार, 27 जुलाई 2011

कविता : सरकार को शायद नहीं पता

सरकार को शायद नहीं पता 

हर एक चौराहों पर ,
खड़े हैं पुलिशवाले.....
चौराहों की चौकी में बैठकर,
पूंछते हैं अपनी जन्म कुंडली......
 उनकों शायद यह नहीं पता कि,
चौराहों पर लग गयी है वाहनों की मंडली....
सरकार को भी शायद यह नहीं पता ,
पुलिशवाले किसको रहें हैं सता ..... 

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

कविता : हो मानव का कल्याण

 हो मानव का कल्याण

 मच गया सभी जगह हा-हा कार ,
कौन है तेरे बिन बेकार .....
समझ है पर ज्ञान नहीं ,
लेकर तू गुरुजनों का ज्ञान ....
कर तू विश्व में अपना नाम ,
जिससे देश न हो बदनाम .....
कर तू हर दम येसे ही कार्य ,
जिससे मानव का हो कल्याण.....

लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

रविवार, 24 जुलाई 2011

कविता : बरसात का मौसम

 बरसात का मौसम 


बरसात का है मौसम आया,
हरियाली से पृथ्वी को सुंदर बनाया....
बरसात हुई तो पक गयी जामुन ,
खाने में लोगों को बड़ा मजा आया....
बरसात में हरे,नीले,पीले फूलों से ,
इस संसार को है खूब महकाया .....
रंग-बिरंगे सुंदर से फूलों ने मिलकर,
इस संसार को क्या खूब चमकाया .....
आज हुई है जमकर खूब बरसात ,
हम सभी लोगों ने खूब नहाया .....

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  धर्मेन्द्र

शनिवार, 23 जुलाई 2011

कविता - जिन्दगी हैं एक पल की

शीर्षक - जिन्दगी हैं एक पल की 
 जिन्दगी हैं एक पल की ,
  बन्दे खो मत इसको .....
 जब प्राण ले जायेगे यमराज तुम्हारे,
 नहीं रोक पाओगे तुम उनको ....
 पल भर के लिए ,
 हर एक क्षण जीवन के लिए.......
 धैर्य रखना सीख लो ,
यह एक अच्छा गुण हैं जीवन के लिए.....
 तुम बाधाओ से न घबराओ ,
 काट के जंगल उसमे भी तुम रह बनाओ..... 
हर मुश्किल को आसान करने के लिए ,
 अपने जीवन को सुखमय  बनाने के लिए......
 जिन्दगी हैं एक पल ले लिए ,
 बन्दे खो मत उसको ......
 एक - एक पल क्षण हैं  कीमती,
प्यर्थ न करके प्रयोग कर उनको  ......

 लेखक -आशीष कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

कविता - शिक्षा अधिकारी

कविता - शिक्षा अधिकारी
ये कैसे हैं शिक्षा अधिकारी,
केवल अपनी करते हैं  खातिदारी .....
हर महीने और सालो में ,
नयी- नयी किताबे चलाते हैं....
एक दो पाठ बादल कर ,
पुरानी किताबो से नयी बनाते हैं ....
और इससे पैसा खूब कमाते हैं ,
पुस्तक किताबे हो गयी महंगी .....
किताब खरीदने के लिए कंहा से लाए इतना पैसा,
जो सौ रुपये रोज कमाता हैं उससे जा कर पूछो......
कि वह किताब कैसे लता हैं ?
लेख़क - मुकेश कुमार
कक्षा - १० अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

कविता -बादल

कविता -बादल
काले - काले बादल आये ,
रिमझिम - रिमझिम जल बरसाए.....
हरे -भरे पेड़ पौधे उग आये ,
हरी - भरी चारो ओर घास उग आयी.....
हरी- हरी घास सब के मन को भाये,
हर जगह कोमलता फैलाये ....
जो सब को मन को भाये ,
काले- काले बादल आये.....

लेख़क - हंसराज
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर




गुरुवार, 14 जुलाई 2011

हमारे नेता

हमारे नेता
ये देश फिर बढ  रहा है गुलामी की ओर ,
क्योंकि  भ्रष्टाचार फैला हैं चारो ओर ....
अब सब जनता हैं इन लोगो से बेहाल ,
क्योंकि नेता बन गये हैं अब चोर ....
अपनी बात को कहने से डरता  हैं इंसान,
क्योंकि ये नेता हो गये घूसखोर.....
बन कर नेता पैसे ये खूब लूटते हैं ,
क्योंकि नेता से ये बन गये चोर ......

लेख़क -धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 13 जुलाई 2011

कविता : हमारे नेता

 हमारे नेता

ये देश फिर बढ़ रहा है गुलामीं की ओर ,
क्योंकि भ्रष्टाचार फैला है चारो ओर....
अब सब जनता इन लोगों से बेहाल ,
क्योंकि नेता अब बन गयें हैं चोर .....
अपनी बात को कहने से डरता है इंसान,
क्योंकि ये नेता हो गये हैं घूसखोर ....
बनकर नेता पैसे ये खूब कमाते ,
क्योंकि नेता से ये बन गये चोर ......

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर

सोमवार, 11 जुलाई 2011

कविता : जंगल में स्कूल


 जंगल में स्कूल

हाथी भइया पढ़ा रहे थे ,
जंगल में स्कूल चला रहे थे ....
इतने में एक बन्दर आया ,
बंदरिया के दो चपत लगाया....
इतने में आया जंगल का राजा ,
बन्दर वहां से जल्दी भागा.....
हाथी भइया पढ़ा रहे थे ,
जंगल में स्कूल चला रहे थे ....

लेखक : जीतेन्द्र कुमार
कक्षा : 8
अपना घर

शनिवार, 9 जुलाई 2011

कविता - एक दिन के लिए

कविता - एक दिन के लिए
एक दिन के लिए ,
दुखी था जिस दिन....
आज भी याद हैं ,
क्या भारत की जनता आजाद हैं?
सबको भारत से प्यार था ,
एक दिन के लिए ....
नेता जी आए थे ,
हाथ जोड़े थे पैर छुए थे....
चुनाव जीतने के लिए ,
सबके ताने सुने थे ....
एक दिन के लिए ,
हम अंग्रेजों के गुलाम थे .....
आप  उनको जानते हैं ,
उनसे मेल - जोल भी हैं तो .....
एक दिन के लिए ,
बहुतो ने द्रढ निश्चय किया हैं.....
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ,
सबको जोश  आया भी तो....
एक दिन के लिए......
लेख़क - आशीष कुमार
कक्षा - ९ apna  घर ,कानपुर

बुधवार, 6 जुलाई 2011

कविता : हरियाली आई

हरियाली आई 
हरियाली आई हरियाली आई ,
आसमान में रंग है लाई....
खेतों में हरियाली भर आई,
सभी जगह भर आई है घास.....
लगता है खूब हुई है बरसात ,
इसलिए खेतों में आ गई मेढकों की बारात.....
हरियाली आई हरियाली आई ,
आसमान में रंग है आई .....

लेखक : चन्दन कुमार 
कक्षा : 6
अपना घर  
 

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

कविता : आज मानव


आज मानव 

आज का मानव बहुत खराब,
पीता है दिन-रात शराब .....
पैसों को खूब उडाता है ,
पैसों से शराब पी जाता है ....
मानव के पास पैसा न होने पर ,
पत्नी से झगड़ा करता है ....
आज का मानव,मानव नहीं ,
वह दानव बन गया है  .....
आज का मानव बहुत खराब ,
पीता है, दिन-रात शराब  .....

लेखक : मुकेश कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर   

शनिवार, 2 जुलाई 2011

कविता - पड़ गया आकाल

 पड़ गया आकाल 
 सूरज हैं लाल,
 उसमें  मारा बाण....
 सूरज में पड़ गया आकाल,
 इसलिए नन्दू का हुआ बुरा हाल.....
 तब  मेरे फोन में  आयी एक काल ,
मैंने पूछा कौन ....
 उसने कहा मै पाल,
 नन्दू की उधर उतर गयी खाल.....
 नन्दू के घर में पड़ गया आकाल ,
सूरज हैं लाल ......
उसमे मारा बाण .....
 लेखक -मुकेश  कुमार
कक्षा- १० अपना घर ,कानपुर