सोमवार, 24 दिसंबर 2012

शीर्षक : ग्रामीण महिला और अधूरे सपने

        ग्रामीण महिला और अधूरे सपने 
एक अदद जहाँ घूमने की आजादी मिल जाए अगर ।
सपनो की दुनिया बसाने की एक राह मिल जाए अगर ।।
अपने न भी हो तो कम से कम अपनों का साया मिल जाए अगर ।
रिस्तो का परिवार न सही बस  जिंदगी जीने का एक बहाना मिल जाए अगर ।।
भूखे पेट को भोजन न सही कम से कम अन्न का एक दाना मिल जाए अगर ।
चार दीवारों का आसियान न हो बस रहने का एक  ठिकाना मिल जाए अगर ।।
रेशमी  कपड़ो का ताना  बना   न सही कम से कम तन ढकने को एक टुकड़ा कपड़ा मिल जाए अगर ।
सोना चांदी का आभूषण न हो बस एक चुटकी सिन्दूर का सहारा मिल जाय अगर ।।
दर्द से करहाती देह को दावा न सही कम से कम हाल पूछने वाला कोई मिल जाए अगर ।
मान सम्मान की माला न सही बस स्वाभिमान को जगाने वाला कोई मिल जाए अगर ।।
सुख सौंदर्य न सही कम से कम बहते आसुओ को पोछने वाला कोई मिल जाए अगर
एक अदद जहाँ घूमने की आजादी मिल जाए अगर ।
 सपनो की दुनिया बसाने की एक राह मिल जाए अगर ।।
नाम : के .एम भाई 
अपना घर , कानपुर 

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

शीर्षक : रात हमारी

 रात हमारी 
अगर न होती रात हमारी ।।
हमको दिखता उजाला ही उजाला ।
अगर न होता सूरज दिन को ।
कैसे चमकता हमारा वातावरण ।।
पर्वत न  होते ऊँचे - ऊँचे ।
तो इसको पहाडो से बहाता  कौन ।।
 अगर न होती रात हमारी ।।
तो उजाला हमको दिखाता  कौन ।
रात को तारे चमकते है सारे  ।
दिखने में लगते चाँद सितारे ।।
नाम : जितेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

शीर्षक : हो रहा विवाद है

    हो रहा विवाद है 
दूर कहीं एक स्थान है ।
जो देखने में पर्वत के सामान है ।।
वहां जाने का अनोखा विचार है ।
पर उस रास्ते में नहीं कोई इंसान है ।।
लोगों की इच्छा ने जाने की लालसा दी ।
इंसानियत की पहचान दी ।
हम जमाने  के इंसान ने ।।
विश्व में छोड़ दी अपनी परवाह ।
जहां देखो वहां इंसान है ।।
पर उसमे कोई इंसानियत की पहचान नहीं ।
देखने में बड़े प्रकृति वाद है ।।
करते हर दम अपवाद है ।
निकले न उसमे कोई सार ।।
बढ़ता और उसमे विवाद ।
दूर कहीं एक स्थान है ।
जहां विवाद  रहा विवाद है  ।।
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर  

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

शीर्षक : बचपन

      बचपन 
ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए ?
जब हम खेले थे लुका -छिपी ।।
एक दूजे के मारते थे धप्पी ।
हमें अपने दे दूर करके ।
बचपन के सारे साथी भी गए ।।
ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए ?
बारिस से भरे गड्ढे - नालों में ।।
उस नाव पे बैठाते थे चीटे को हम ।
कागज की नाव बहाते थे संग -संग ।।
हमारी ये खुंशिया कौन ले गए ।
ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए ?
पतंगों की डोर सी अपनी कहानी ।।
बचपन की गलती है हमने मानी ।
फूलो सा खिलाना सिखाया था तुमने ।।
बचपन का गुसा भी  सहते गए ।
 ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए?
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 1
अपना घर ,कानपुर  

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

शीर्षक : स्त्री

           स्त्री
भारत की राजधानी दिल्ली में ।
घटी एक भयानक घटना ।।
पढ़ी - किखी समाज की लड़की को ।
उन दानव ने जिंदगी  कर दी बर्बाद ।।
वह लड़की जिंदगी मौत से कहरा रही है दिन -रात।
रात के दानवों ने आबरू छीन ली ।
और  अधेड़ स्त्री के भाँती सड़को में फेक दिया ।।
आखिर वह भी एक स्त्री है ।
वह भी एक माँ की बेटी  है ।।
जिन लोगों ने ऐसा काम किया ।
उनको गोली मार देनी चाहिए ।।
और सरेआम फांसी पर झुला देना चाहिए ।
नेताओं को केवल सुझाव देना आता है ।।
स्त्री की सुबिधा के लिए कोई काम करना नहीं आता ।
18 घंटो में दिल्ली मे होती है बालात्कार ।।
दिल्ली मे क्यों करते है दरिंदगी नहर चमत्कार ।
22 मिनट मे भी महिलाएं देश भर में नहीं है सुरक्षित ।।
आखित ये मंत्री नेता क्या करते है दिल्ली मे बैठे - बैठे ।
छोटे - छोटे मासूम बच्ची भी है हैरान ।
कुछ लोग है जो उनको दन रात करते है परेशान ।।
हमें ऐसे लोगों के मौत के घाट उतार देने चाहिए ।
ताकि देखा लोगों के रोंगटे खड़े हो जाए ।।
ताकि वह गलत काम करने से पहले एक बार सोचेगा ।
भारत की राजधानी दिल्ली में ।
घटी एक भयानक घटना ।।

नाम : मुकेश कुमार
कक्षा : 11
अपना घर .कानपुर

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

शीर्षक : सोचो फिर चलो

    सोचो फिर चलो 
पहले सोचो फिर समझो ।
फिर करने की ठानो ।।
ये कुदरत की कहानी है ।
हस करके तो देखो ।।
हिम्मत रखो करने की ।
पहले से क्यों डरते हो ।।
चलने से पहले उस पथ में ।
क्यो पीछे हटते हो ।।
कुछ नहीं है ।
हम में तुम में ।।
सब एक जैसी तो है ।
फिर क्यों नहीं चलते एक साथ ।।
कुछ तो है ।
आपस में भेद ।।
जो करने नहीं दे रहा भेट ।
 पहले सोचो फिर समझो ।
 ये कुदरत की कहानी है ।।
डर  कर के तो देखो ।
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा :10
अपना घर , कानपुर 

रविवार, 16 दिसंबर 2012

शीर्षक : उसी पथ से गुजरना है

उसी पथ से गुजरना है 
आसान समझ कर देखो तो ,
हर पथ सरल है ,
उसमे चल के देखो तो ,
हर मोड़ पर पर्वत है ,
उसी मोड़ पर ,
एक और मोड़ है ,
उसमे भी पर्वत की दीवाल है ,
पर उनके लिए ,
हाथो में मजबूती की जरूरत है ,
वह मजबूती दिखाने की नहीं ,
किसी को डराने को नहीं ,
वह हाथो को हाथो मे ,
ल्र्कत चलने वाली है ,
जरूरत हमें इसी की है ,
फर्क खाली इतना है की ,
स्नेह और प्यार को चलना है ,
एक ही पथ से गुजरना है ,
हाथो को हाथो में ,
लेकर चलना है ,
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर , कानपुर 

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

शीर्षक : हिन्दुस्तान हमारा

   हिन्दुस्तान हमारा 
वहां दूर एक जहान है,
नाम जिसका हिन्दुस्तान है ,
लोग वहाँ के जिनके पास ,
न रोटी , न कपड़ा और न ही मकान है
नेताओं की इस राजनीति मे फसकर ,
यंहा का हर एक बंदा परेशान  है ,
आजाद हुए ज़माना गुजर गया ,
लेकिन गरीब अभी परेशान है ,
बालत्कार ,चोरी ,डकैती
इनका भी सबसे ऊपर नाम है ,
नेता ,अफसर सब यहाँ के ऐसे ,
पैसो मई भी इनकी जान है ,
रोज पढ़ता हूँ ऐसी खबरे ,
तो मेरे दिल मे एक उठता है तूफान ,
इस सब के बावजूद भी आज  मेरा ,
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

शीर्षक : हकलाने के कारण

 हकलाने के कारण 
 एक लड़की को मैंने देखा ,
 वह  गरीब 8  साल की होती है ।
वह रोज स्कूल पढ़ने जाती है ,
और हर होम वर्क पूरा कर लती है ।
वह  कहानी सुनना चाहती है ,
वह बाल  सभा के सामने भी आती है।
और वह कड़ी होती है कुछ सुनाने के खातिर ,
लेकिन वह अपना नाम भी नहीं ले पाती  है।
पूछो क्यों ?
क्यों की वह हक्लाती है ,
हकलाने के कारण वह अपनी बाते नहीं बता पाती ,
 जब मैनें उसको हकलाते देखा ,
तो मेरे आखों में आंसू टपकने लगे ,
उसका आने वाला समय क्या होगा ,
उसकी सभी लोग हसीं उड़ायेंगे ,
क्योंकि  वह हक्लाती है ,
और वह अपने बारे में भी नहीं  बोल पाती है ,
लेकिन वह पढ़ना - लिखना अच्छा   जानती 
नाम : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर , कानपुर 
   

रविवार, 9 दिसंबर 2012

शीर्षक : जीवन यात्रा

    जीवन यात्रा 
जीवन के इस अदभुत संसार मे ,
पाया तूने जो मनुष्य का जीवन ।
इस समाज के लिए है कुछ करना ।
महसूस न करना कभी अकेला पन ।।
जीवन की इस लम्बी यात्रा मे ।
मुश्किले बहुत है आयेंगी ।।
डटकर लड़ना इन मुश्किलों से ,
सफलता तुझे खुद मिल जायेगी ।
पद का अपने मत करना अभिमान ,
देना तुम सबको सम्मान ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर , कानपुर 

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

शीर्षक : उम्मीदों को छोड़ो

शीर्षक : उम्मीदों को छोड़ो
उम्मीदों को छोड़ो ।
हकीकत को मानो ।
पता को पहचानो ।
उस पथ  पर  चलाना सीखो ।
खुद की उमीदो को छोड़ो ।
 बात मानो तो ,
खुद को पहचानो ।
न मिले कोई तो ,
अकले ही चल दो ।
थोडा कष्ट  होगा जरूर ।।
लेकिन पता को पहचान होगी ।
चलने का अनुभव होगा ।।
न  भोजन हो तो भी ।
जल से भूख मिटा लेंगे
हिम्मत करके ।
कुछ करके देखे ।
जो होगा ।।
उसका झेलेंगे ।
लेकिन उम्मीदों को ,
न छोड़ेंगे ।।
इस जग मे भूखे ही ।
 सो लेंगे ।
नींदों को छोड़ेंगे ।।
न मिलेगा इंसान तो ।
पौधों को ही मित्र बना लेंगे ।।
इस धरती को ।
अनंत सा बना   देंगे ।।
 उम्मीदों को छोड़ो ।
 हकीकत को मानो
  नाम : अशोक कुमार
कक्षा 10
अपना घर ,कानपुर 

 

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

शीर्षक : 2012

शीर्षक : 2012
जब आया 2012 का झोका ।
समेट  लाया अपने साथ मे मातम का झोखा ।।
चल बसे इस प्रथ्वी से जो मनुष्य ।
घरो मे  मातम आया ।।
रोते माँ ,बाप ,भाई , बहनों को देखा ।
जब 2012 का अंत आया ।।
साथ मे अपने साथ एक दिन लाया ।।
जब आया 2012 का झोका ।
समेट  लाया अपने साथ मे मातम का झोखा ।।

नाम : लवकुश कुमार
कक्षा :9
अपनाघर ,कानपुर

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

शीर्षक : हमारे नेता के वादे

शीर्षक : हमारे नेता के वादे
एक बार मुझे सरकार बनाने दो ।
और फिर सत्ता मे आने दो ।।
कसम खुदा की भारत को स्वर्ग बना दूँगा ।
भाषण से अपने गरीबी का भूत भगा दूँगा ।।
सड़क नाली और बिजली पानी ,
ख़तम होगी इन सब की परेशानी ,
मई जनसेवक हूँ थोड़ा पुण्य कमाने दो ,
बस एक बार मुझे सरकार बनाने दो ।।
ऐसे होते  हमारे नेता के वादे ।
सरकार बनाने पर बदल जाते है इनके इरादे

फिर जगह - जगह ये ठेके खुलवाते ।
लेकर के घूस खूब पैसे कमाते ।।
भोली - भाली  सी इस जनता को ।
मीठे - मीठे वांदो का ये जूस पिलाते है ।।
अरबो - खरबों , करोड़ो ,रुपये ये गटक जाते है ।
नाम:  धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा 9
अपना घर कानपुर

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

शीर्षक : सबका अधिकार है

         सबका अधिकार है 
जहाँ देखो चोर ,डकैत अपहरण से भर मार है ।
लड़कियो  को इज्जत नहीं मिलती यही लोगो की गुहार है ।।
लड़कियो  को निकलना बड़ा मुस्किल हो गया ।
यहाँ ,वहाँ शोहदों का घर हो गया ।।
मेरा यही कहना है ।
पुरुषों की संख्या ज्यादा है ।।
लडकियो की संख्या कम है ।
लड़कियो को भी जीने  का अधिकार है ।।
न ही  पुरुषों का अधिकार है ।
नाम : चन्दन कुमार 
कक्षा : 7
अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

शीर्षक : कुत्ता
काश मै भी सेठ जी का कुत्ता होता ।
तो हमारे मजे ही मजे होते ।
सुबह - सुबह बाइक मे बैठ कर ।।
करता मै भी सैर ।
खाने को मिलता माखन , बिस्कुट ,
प|नी मे होता ताजा दूध ।
खुल जाते भाग्य  हमारे ।।
यदि सेठ के कुत्ते होते हम बेचारे ।
सर्दी की तो बात निराली ,
एक बढ़िया सा होता मेरा बिस्तर ।।
जिस पर  सोता,बैठता ,लेटता ।
सबकी जुंबा पर एक ही पुकार ।।
कोई कहता नीलू ,
तो कोई कहता पीलू ,
तो प्यार से बोलता डॉगी,
तो किसी की  जुंबा पर होता मैगी ।।
न पढ़ना पड़ता न कुछ ,
बैठ - बैठ मिलता सब कुछ ।
यदि मौका मिले तो न चून्कू ,
सेठ के दुश्मन पर बड़े जोर से भौकूँ।

नाम : आशीष कुमार
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर

शीर्षक : मजदूर

      मजदूर 
 गाँव से दूर .....
एक सुबह को मजदूर ।
आज की दुनिया .....
आज का मजदूर ।।
आज के भी ठेकेदारों ..
 का है कोई जवाब नहीं ।
 एक रात ऐसी नहीं ....
 जो मिले कवाब नहीं ।
 मजदूरों पर क्या बीतती ....
 क्या है उनकी मजबूरी ।
 जो इस तरह जुटकर ....
 दिन -रात करते मजदूरी ।
 नहीं उठता है फावड़ा ....
 फिर करते है काम ।
 क्या इन सब न्र नहीं सुना ....
 एक शब्द भी होता है ''आराम''।।
 आराम की दुनिया में ....
 हराम का पैसा है ठेकेदार ।।
 बेच दो इनको और ....
 छीन लो अपना अधिकार ।।
  गाँव से दूर .....
  एक सुबह को मजदूर ।
  आज की दुनिया .....
  आज का मजदूर ।।
नाम : सोनू कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर , कानपुर 

रविवार, 2 दिसंबर 2012

फिर भी मेरा भारत महान

     फिर भी मेरा भारत महान
आजाद हिंदुस्तान की आजाद कहानी ,
हिंदुस्तान की है ये जवानी ,
अनगिनत होते है अत्याचार ,
बनकर नेता करते भष्ट्राचार ,
 आजाद हिंदुस्तान की आजाद कहानी ,
हर नेता करता मनमानी ,
माँ बेटियो पर होते अत्याचार ,
कन्हा गया वो अब शिष्टाचार ,
आँखों मे वो डर बसा है ,
  आँखों मे वो इतिहास रचा है ,
बाहर निकलने  मे भी लगता है डर ,
ये मासूम बेचारे  अब जांए किधर ,
नरक से बद्तर हो गया हिन्दुस्तान ,
  फिर भी कहते हम ,मेरा भारत महान ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

शीर्षक : दुष्ट दरिन्दे

        दुष्ट दरिन्दे 
कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
अपने लिए अपनो को लूटा करते है ।।
वो चिल्लाती रहती नहीं - नहीं  ,
फिर भी हम तरस नहीं करते है ।।
फिर कहते है जाने दो यार ,
अपनी बहन कौन , पड़ोसी की है ।।
कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
उनके भी कुछ अरमान होंगे ।।
नहीं सोचते हम उनकी वर्तमान की ।
कैसे वो रहेगी क्या करेगी ।।
नहीं सोचते उनके परिवार के लिए ,
कि उन पर क्या बीतेगी ।।
नहीं सोचते उनके लिए ,
कैसे वो घुट -घुट जियेगी ।।
 कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
 अपने लिए अपनो को लूटा करते है ।।
नहीं सोचते उनके समाज के लिए ।
क्या वो मुंह दिखाने लायक रहेगी ।।
 कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
  अपने लिए अपनो को लूटा करते है ।।
नाम : सागर कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर