सोमवार, 31 अगस्त 2009

kavita: रविवार का दिन

रविवार का दिन

रविवार का दिन है कितना अच्छा,
बंद रहती है स्कूल की सभी कक्षा....
इस दिन रहती सभी की छुट्टी ,
बच्चा बच्चा सारा दिन करता मस्ती...
फिल्म देखना फुटबाल खेलना,
नाटक सीखना और दिखाना ...
इधर उधर खूब घूमने जाना ,
यही है दिन भर का दिनचर्या ...
रविवार का दिन है कितना अच्छा,
बंद रहती है स्कूल की सभी कक्षा...

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 26 अगस्त 2009

कविता: बन्दर और कलेंडर

बन्दर और कलेंडर

आसमान में टंगा कलेंडर,
उसको पढ़ रहे थे हाथी बन्दर....
आसमान से गिरा जब बन्दर,
चिपका गया धरती के अन्दर
धरती के अन्दर थे तीन बन्दर,
तीनों ने मारे जम के थप्पड़ ...
बन्दर भगा किचन के अन्दर,
खाने लगा घी और मक्खन....
लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ८, अपना घर

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

कविता: रक्षाबंधन त्यौहार

रक्षाबंधन त्यौहार

आज बुधवार है,
नानकारी का बाजार है...
बाजार का झोला तैयार है,
आज मेरी सोच बेकार है...
आज तो रक्षा बंधन त्यौहार है,
राखी हाथ में बंधने को तैयार है..
राखी हम पहले बंधावायेंगे,
बाजार
फ़िर बाद में जायेंगे...
खूब जम के मिठाई खायेंगे,
मिलके खुशियाँ मनाएंगे...
लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 12 अगस्त 2009

कविता: सब्जी की गाड़ी

सब्जी की गाड़ी

आलू बैगन की थी गाड़ी,
उसमें बैठी दस सवारी...
पहिया बने थे धनिया भइया,
हार्न बनी थी लौकी...
स्टेरिंग बने थे कद्दू जी,
गेयर बनी थी मूली...
लाइट बने थे लाल टमाटर,
दिन में बैठे थे मुंह बंद कर...
जैसे ही अँधेरा घिर आता,
चलते थे अपना मुंह खोलकर...
सीट बने थे गोभी जी,
ड्राईवर बने थे शलजम जी....
एक दिन की हम बात बताएं,
सभी जरा सा गौर से सुनिए...
शाम को सूरज ढलने को आया,
चारो तरफ़ अँधेरा छाया...
आपस में दो गाड़ी लड़ गई,
एक दूजे से दोनों भिड गई
एक थी लकड़ी की गाड़ी,
दूजी थी सब्जी की गाड़ी...
सब्जी की गाड़ी टूट गई,
अलग - अलग वो छिटक गई...
सवारी सारे कूद पड़े थे,
गाड़ी से वे दूर खड़े थे...
सबने मिलकर सब्जी को उठाया,
घर ले जाकर सबको बिठाया...
घर में सबने सब्जी बनाया,
बच्चे बूढे सबने मिल खाया...

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कविता: रसीले आम

रसीले आम

आम क्या है ये रसीले,
पेड़ों पर लगे है पीले-पीले...
सोच रहे है कब जोर से हवा चले,
पीले रसीले आम खाने को मिले...
आम का अब समय आया है,
खट्टे-मीठे आम खाने को जी ललचाया है...
पेड़ों पर लगे है कच्चे-पक्के आम,
बाजारों में इनके कितने महंगे दाम...
आम क्या है ये रसीले,
पेड़ों पर लगे है पीले-पीले ...

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

कविता: बकरी खाती खीरा ककड़ी

बकरी खाती खीरा ककड़ी

एक थी प्यारी बकरी,
खाती हरदम खीरा ककड़ी...
जब दिन आया मंगल,
वो भाग के पहुँची जंगल...
जंगल में मिले दो भालू,
दोनों खा रहे थे कच्चे आलू...
बकरी को खिलाया कच्चा आलू,
खाकर बकरी बन गई चालू...
भालू ने सोचा बकरी को खा लूँ,
नरम मुलायम मांस मै पा लूँ...
बकरी निकली बहुत ही चालू,
भालू को पिलाया जम के दारू...
दारू पीकर भालू बोला खीरा-खीरा,
बकरी ने झटपट भालू को चीरा...
भालू ने मरते ही बोला जय हो,
भैया बकरी से अब रखो भय हो...
सब भालू अब खाना खीरा ककड़ी,
जैसे हरदम खाती थी वो बकरी..
एक थी प्यारी बकरी,
खाती हरदम खीरा ककड़ी...
लेखक, सागर कुमार, कक्षा , अपना घर

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

कहानी: दो दोस्त और जंगल का राक्षस

दो दोस्त और जंगल का राक्षस

बहुत समय पहले की बात है की एक छोटा सा गाँव था, उसी गाँव में दो मित्र रहते थेएक का नाम था गंगू और दूसरे का नाम छंगू थागंगू चालक और बुद्धिमान था, क्योंकि वह पढ़ने जाता था, पर छंगू ही चालाक था ही बुद्धिमानवह बिल्कुल अनपढ़ और भोला था, यहाँ तक की उसने स्कूल का मुंह भी नही देखा थाघर में गरीबी होने के कारण वह पढ़ सका और छोटी उम्र में ही काम करने लगागंगू हमेशा छंगू के सामने अपना घमंड दिखाया करता था कि मै तुमसे कितना चालाक और बुद्धिमान हूँ, मगर छंगू कभी भी इन बातों का बुरा नही मानता थावो कहता था हा यार मै अनपढ़ भला कैसे बुद्धिमान हो सकता हूँ समय के साथ धीरे -धीरे दोनों मित्र बड़े हो गएएक दिन दोनों मित्रों ने आपस में बात की, कि चलो कंही घूमने चलते हैछंगू ने कहा कि चलो आज उस पास के जंगल में चलते हैदोनों मित्र टहलते-टहलते गाँव से दूर उस जंगल में गए, चारो तरफ़ घने पेड़ के जंगल थेगर्मी बहुत तेज थी गंगू को तेज प्यास लगी, गंगू कहने लगा अगर थोडी देर में मुझे पानी नही मिला तो शायद मै प्यास से मर जाऊछंगू ने गंगू को एक पेड़ के छाये में लिटा दिया और ख़ुद पानी ढूढ़ने के लिए जंगल कि तरफ़ चल दियाभटकते- भटकते आखिरकार वो एक कुएं के पास पहुँच ही गयाउस कुएं के पास के पेड़ पर दो बड़े राक्षस रहते थेकुएं का पानी मुहं तक लबालब भरा था, छंगू को भी अब तक प्यास लग गई थीवो झुक कर पानी पीने लगा, पानी पीने कि आवाज सुनकर पेड़ से दोनों राक्षस धड़ाम से जमीं पर कूद पड़ेछंगू अचानक आवाज सुनकर थोड़ा डर गया उसने पीछे देखा तो दो बड़े राक्षस खडे थेदोनों राक्षस ने छंगू से पूछा कि तुम कौन हो और यंहा पर क्या कर रहे होछंगू बहादुर था उसने बिना डरे बताया कि मेरा नाम छंगू है, और मै पास के गाँव का रहन वाला हूँमै और मेरा दोस्त गंगू आज इधर घूमने आये थेमेरा दोस्त अभी प्यास से बेहाल होकर पेड़ के पास पड़ा है, मै उसके लिए पानी लेने आया हूँछंगू के निडरता और दोस्त के लिए प्यार देखकर दोनों राक्षस बहुत खुश हुए , दोनों राक्षसों ने कहा कि हम दोनों भी दोस्त है और हम दोनों एक दूसरे के लिए जान भी दे सकते हैउन्होंने छंगू को एक बर्तन में पानी तथा ढेर सारे मिठाई, फल दिए, और कहा अपने दोस्त को खिलाना और हमेशा अच्छे दोस्त बनकर रहनाछंगू पानी और मिठाई लेकर गंगू के पास पंहुचा, उसे पानी पिलाया और फ़िर दोनों ने जमकर मिठाई औरफल खाया, साथ ही छंगू ने गंगू को उन दोनों राक्षस कि बात भी बताई कि किस तरह पानी लेते हुए वे दोनों भले राक्षस गए थे, और उन्होंने ने ये फल और मिठाई दिएगंगू को कहानी सुनते - सुनते आँखों से आंसू गए कि किस तरह छंगू ने अपने जान की परवाह करते हुए उसकी जान बचाई, साथ ही गर्व भी हुआ कि उसका दोस्त कितना बहादुर हैमगर अपने पर शर्मिंदा होने लगा कि मै किस तरह छंगू को नीचा दिखता था, और अपने पर घमंड करता थागंगू रोते हुए अपने गलतियों के लिए छंगू से माफ़ी मांगने लगा, छंगू ने उसे गले लगाते हुए कहा धत पगले दोस्तों में माफ़ी मांगते है, इतना कहते-कहते छंगू के भी आँखों से आंसू टपकने लगेदोनों दोस्त वापस अपने गाँव आये और खूब मजे से प्रेम पूर्वक रहने लगे

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कक्षा में है नही घड़ी

कक्षा में है नही घड़ी

कक्षा है भाई कितनी बड़ी,
पर लगी नही है कोई घड़ी...
मन करता है सब बच्चों का,
लाकर लगा दे एक घड़ी...
पर डर लगता है सब बच्चों को,
टीचर, प्रिंसपल के डंडे से...
बच्चे भी कुछ कह नही पाते,
अपने क्लास के टीचर से...
कक्षा है भाई कितनी बड़ी,
पर लगी नही है कोई घड़ी...
लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर