शनिवार, 30 दिसंबर 2017

कविता : नन्हे से हाथों को "

" नन्हे से हाथों को "  

मेरे नन्हे से हाथों को, 
औज़ार भा गया | 
मेरे नन्हे से आँखों को, 
पैसे लुभा गया | 
न समझ था मुझमे, 
नाजायज फायदा उठाया गया | 
जिन आँखों में होनी चाहिए थे, 
ख्वाबों का संसार | 
तो शाम को सोते हैं, 
लेकर सुबह के विचार | 

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 

कवि परिचय : ये हैं देवराज कुमार जो की बिहार के नवादा जिले से अपनाघर में पढ़ने के लिए आये हुआ है | ये कवितायेँ लिखने के साथ - साथ डांस भी अच्छा कर लेते हैं | पढ़ने में   भी बहुत अच्छे हैं | 

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

कविता : प्यारी माँ हमारी

"प्यारी माँ हमारी "

रोज़ सुबह वह मुझे उठती है,
फिर वह मुझे नहलाती है |   
अपने नरम - नरम हाथों से, 
गरम - गरम नाश्ता खिलाती है | 
हाथ पकड़कर स्कूल ले जाती, 
शाम ढले तो घर ले आती | 
बैठ मुझे वह पाठ पढ़ाती, 
समझ न आये तो फिर समझाती 
क , ख ,ग वह मुझे सिखाती, 
वह मेरी है सबसे प्यारी |  
वह मेरी है सबसे  न्यारी, 
वह तो है प्यारी माँ हमारी| 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 6th , अपनाघर 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

कविता : देखो इस चिड़िया को

" देखो इस चिड़िया को "

देखो इस चिड़िया को,
कैसे चहचहाती है | 
जैसे हम लोगों को,
कुछ वह कहना चाहती है |
जीते ही हर पल को,
हमेशा वह गाती है | 
देखो इस चिड़िया को,
क्यों वह चहचहाती है |
दुःख बहुत होते है लेकिन, 
हमको वह बताती है | 
दुःख - सुख अपने देखो, 
एक पल में सह जाति है |
अपने को चोट लगे तो, 
डॉक्टर के पास जाते हैं |
लेकिन एक चिड़िया को देखो,
 दर्द अपने सह जाते हैं |
चाहे दुःख या हो गम, 
सभी पल को देखो,
हंस कर वह बिताती है |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 7th, अपनाघर 

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

कविता ; बाल मजदूर

"बल मजदूर "

नाजुक हाथों ने क्या कर दिया पाप, 
जन्म से ही दे दिया कामों का वनवास |
कलियों जैसी खिलने वाले उस मासूम, 
जिंदगी को कर दिया तबाह |
हर बचपन के लम्हों को, 
हर सजाये हुए सपनों को |
दो मिनुट में कर दिया राख,
दर्दनाक जिंदगी उसे तडपा दिया |
बचपन के खिलौनों की जगह,
 जिंदगी से लड़ना सिखा दिया | 
पेन ,किताब और कॉपी की जगह, 
कम का बोझ इर पर लाद दिया |

नाम : विक्रम कुमार , कक्षा : 7 , अपनाघर 

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

कविता :जब मैं सुबह जागा

"सुबह - सुबह जब मैं जागा "

सुबह - सुबह जब मैं जागा, 
बिस्तर छोड़कर व्यायाम को  भागा | 
तब सुबह के बज रहे थे चार, 
चिड़ियाँ उड़ी पंख को पसार | 
मानों प्रकति कह रही हो,
क्या घूमना चाहते हो संसार | 
मैं तो था बिल्कुल तैयार, 
लेकिन सपना टूटा तो 
हो गया सब बेकार | | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर

कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार जो की बिहार के नवादा जिले से आये हुए हैं | इन दो - तीन सालों में इन्होने बहुत अच्छी कविताएं लिखना सिख गए हैं और अभी चाहतें हैं की और भी सीखें | ये डांस भी बहुत अच्छा कर लेते हैं |