मंगलवार, 31 अगस्त 2010

कविता ये हैं घनघोर आसमान

ये हैं घनघोर आसमान
ये हैं घनघोर आसमान ,
हरदम रहता सीना तान....
लेकर अपनी तलवार और कमान,
हर वक्त करता पानी की बरसात.....
दिन हो या पूर्णा की रात,
पानी की करता हैं बरसात....
ये आसमान नहीं चमन हैं,
यहाँ राजपूतो का अमन हैं....
जहाँ पानी बरसता हैं,
बिजली गरजती हैं....
तब पानी बरसता हैं,
ये हैं घनघोर आसमान....
हरदम रहता सीना तान.....
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता हर इक गाँव में

हर एक गाँव में
हरे पेड़ की झाँव में,
देश के हर इक गाँव में....
आते लोग जाते लोग,
अपनी गलती पर पछताते लोग....
एक गाँव के छोर से,
मोर के सुन्दर पंखों से....
हंसते गाते चलते मुस्कराते,
सब चलते अपने -अपने रस्ते....
रास्ता कठिन हैं यही बताते,
अपनी मंजिल पाने से डरते.....
अपनी मंजिल वही पाते,
जो कभी विपत्ति से न डरते....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

कविता :आसमान में दिखते तारे

आसमान में दिखते तारे

आसमान में दिखते तारे
सुन्दर-सुन्दर कितने प्यारे
तारा जब टिमटिमाते हैं
बच्चे उछल-कूंद मचाते हैं
और जिस दिन तारा दिखता
उस दिन बच्चों का मन भरता
आसमान में दिखते तारे
सुन्दर-सुन्दर कितने प्यारे

लेखक :जीतेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

सोमवार, 23 अगस्त 2010

कविता धर्म जाति का भेद भुलाए

धर्म जाति का भेद भुलाए
धर्म -धर्म क्यों करते हैं ?
धर्म जाति पर मरते हैं,
धर्म के खातिर मरने वाले ....
इस वतन के हैं जो रखवाले,
धर्म किसी का हिन्दू.....
धर्म किसी का मुस्लिम,
धर्म किसी का सिक्ख....
धर्म किसी का इसाई,
धर्म सभी का अलग -अलग हैं.....
सभी की रंघो में खून तो एक हैं,
हाथ पैर सब कुछ तुम्हारे हैं......
हाथ पैर सब कुछ मेरे भी हैं,
सबके कोई न कोई अपने हैं....
हर एक मानव के भी सपने हैं,
इस सपने को हम कैसे पाये....
आओं हम सब आपस में मिल जाये ,
धर्म जाति का भेद भुलाए.....
आपस में एक का मेल बढाए.....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता सोच के बताइए मैं कौन हूँ

सोच के बताइए मैं कौन हूँ
मुझे लगता हैं की मैं एक गुलाम हूँ ,
क्या मैं दूसरे का दास हूँ.....
क्या आप बता सकते हैं,
मेरे सवालों का जवाब दे सकते हैं....
मै सोच सकता हूँ,
देख सकता हूँ.....
सुन सकता हूँ,
मै आप के विचार नहीं बदल सकता हूँ.....
देखने में आप मुझे भोले लगते हैं,
मुझे क्या पता आप क्या सोच रहे हैं.....
चलो जरा आगे बढते हैं,
सोच के आप मुझे बताइए.....
क्या मैं दास हूँ या गुलाम हूँ,
विचार कर के बताइये जरा आप मुझे .....
आखिर मैं कौन हूँ .....
लेखक अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

रविवार, 22 अगस्त 2010

कविता पुलिस और वकील

पुलिस और वकील
सुनो सुनो यह बात अमन की ,
यह हैं अपने मुल्क का हाल....
पुलिस कहलाते देश के रक्षक,
वकील कहलाते कानून के रक्षक....
हो रही थी पुलिस और वकील में संघर्ष,
जब आई बात अपने खातिर दरी की .....
लड़ मरे दोनों सकरी भाई,
इनके ऊपर क्यों नहीं हुई कारवाही .....
क्यों की पता चले जनता को भाई,
ये कर रहे थे नेतों के काम भाई.....
जब चुनाव आयेगा भाई,
वोट कौन देगा इनको भाई.....
इस लिए नहीं हुई थी इनकी कारवाही......
लेखक सागर कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

कविता :मंहगाई

मंहगाई

इतनी बढ़ी है मंहगाई
किसी ने की जिसकी आवाज सुन मेरे भाई ॥
पूँछा आलू का क्या दाम है भइया ।
उसने बोला एक किलो का दस रुपया ॥
टमाटर का दाम वो सुनकर
अब खायेगें इसको लेकर
बैंगन की वो बात निराली
खेतों में लहराती गेंहू की बाली
धनियाँ का जब लिया गट्ठा
दाम सुनकर बैठा दिमाग का भट्ठा
बाकी सब्जी का भाव सुनकर
बाजार से भागे दौड़ लगाकर
जब लगी सभी को मंहगाई
तब सबने मिलकर आवाज लगाईं ॥
रुकी पर एक भी मंहगाई
लोगों के आंसू की धारा उसने बहाई

लेखक :आशीष कुमार ,कक्षा :,अपना घर

kavita

सोमवार, 16 अगस्त 2010

कविता तारा

तारा
एक हैं तारा ,
कई सितारे....
जग मग करते,
आकाशा में सारे....
एक चमकते हैं तारे,
नहीं कभी जिन्दगी से हारे.....
आकाशा में घूमता मारा मारा,
पूछने वाला कोई नहीं बेचारा.....
तारे हैं बहुत पुराने,
सुनते हैं आसमान में गाने.....
जाते हैं रोज नहाने,
और आते हैं रोज खाना खाने.....
एक हैं तारा,
कई सितारे......
लेखक मुकेश कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 14 अगस्त 2010

कविता प्यारी तितली

प्यारी तितली
जब जब आती तितली प्यारी
मन को भाती तितली प्यारी
रंग बिरंगी तितली प्यारी ।
फूलों से भी है सबसे न्यारी ॥
फूलों पर मंडराती है ।
यंहा वंहा उड़ जाती है ॥
हाँथ में हमारे आती ।
पंख फैलाकर उड़ जाती ॥
तितली प्यारी सबसे न्यारी ।
कई रंगों की तितली लगती प्यारी ॥
लाल गुलाबी नीली पीली ।
हाँथ में आते लगती पोली पोली
लेखक - ज्ञान कुमार
कक्षा -
अपनाघर , कानपुर

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

कविता :कैलेन्डर

कैलेन्डर

आसमान में टंगा कैलेन्डर ।
उसको पड़ रहे हाथीं-बंदर ॥
आसमान से गिरा जब बंदर ।
चिपक गया वह धरती के अंदर ॥
धरती के अंदर थे तीन बंदर ।
तीनों ने मारा तीन-तीन थप्पड़ ॥
डर के मारे घुस गया किचन के अन्दर ।
खाने लगा घी और चुकंदर ॥

लेखक :सागर कुमार ,कक्षा :,अपना घर

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

गर्मी आयी
गर्मी आयी गर्मी आयी,
गर्मी में हम रोज नहाते....
गर्मी में हम पानी पीते,
पानी पी कर प्यास बुझाते....
गर्मी आयी गर्मी आयी,
गर्मी में हम रोज नहाते....
गर्मी में हम सब के,
खूब पसीना निकले.....
गर्मी में हम पंखा चलाते,
उससे अपनी गर्मी भागते.....
फिर हम गहरी नीद में सो जाते,
गर्मी आयी गर्मी आयी.....
गर्मी में हम रोज नहाते ....
लेखक जीतेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 7 अगस्त 2010

कविता वर्षा आयी

वर्षा आयी
वर्षा आयी वर्षा आयी |
बड़ी जोर से वर्षा आयी||
वर्षा जब आती हैं|
नाले भर -भर जाते हैं||
तीन दिन से झकझोर|
पानी आया जोर दर ||
साथ में अपने हवा न लाया |
वर्षा आयी वर्षा आयी||
नदी तालाब भर - भर जाये|
पानी से शहर बेहाल||
स्कूल जाने में क्या होगा हाल||
लेखक मुकेश कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 4 अगस्त 2010

कविता :वीर बनो

वीर बनो

वीर बनो तुम वीर बनो ।
पढ़-लिखकर शूर वीर बनों ॥
पढ़ लिखकर अच्छा काम करोगे ।
जग में अपने माँ-बाप का नाम करोगे ॥
और लोगों को अच्छी सीख दोगे ।
छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाओगे ॥
तुम किसी बच्चे को अगर पढ़ाना ।
उसे सरकारी स्कूल की तरह मत रटवाना ॥
दो चार दिन तो याद रहेगा ।
अभ्यास करने से पूरा जीवन याद रहेगा ॥
यह जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है ।
जिसने इसको खोया यह तो असली मूर्खता है ॥

लेखक :आशीष कुमार, कक्षा :, अपना घर

सोमवार, 2 अगस्त 2010

कविता : भारत देश महान

भारत देश महान

अपना भारत देश महान
इस पर मत करो अभिमान
जहाँ पर गंगा है बहती
जहाँ पर गंगा माँ है रहती
हिन्दू हो या मुसलमान
सब करते हैं अच्छा काम
रोशन करते देश का नाम
अपना भारत है मतवाला
हरा-भरा और फल-फूलों वाला
भारत में थे वीर महान
नहीं करते थे वे अभिमान
सबको समझते थे एक समान
अपना भारत देश महान
इस पर मत करो अभिमान

लेखक :मुकेश कुमार , कक्षा :९, अपना घर

रविवार, 1 अगस्त 2010

कविता कलम प्यारी

कलम प्यारी
कितनी प्यारी कलम हमारी |
इससे निकली विधा सारी||
लिखती कविता और कहानी|
कितनी प्यारी कलम हमारी||
इससे निकली विधा सारी|
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर