रविवार, 27 नवंबर 2022
कविता: "आखिर कब तक"
शुक्रवार, 25 नवंबर 2022
कविता :"मौसम ने बदल लिया मोड़ "
"मौसम ने बदल लिया मोड़ "
मौसम ने बदल लिया मोड़ ,
गर्मी से सर्दी कर दिया जोर।
सर्दी से बचकर है रहना ,
सर्दी को सहते है रहना।
गर्मी से सर्दी कर दिया जोर,
टाइम का पता नहीं चलता।
कब हुआ सबेरा कब हुआ अँधेरा,
मौसम ने बदल लिया मोड़।
पौलुसन से और बढ़ रहा है सर्दी,
मौसम ने बदल लिया मोड़। ।
कवी: राहुल कुमार ,कक्षा 9th
अपना घर
गुरुवार, 24 नवंबर 2022
कविता :"वो तुम्हें नहीं भूली है"
"वो तुम्हें नहीं भूली है"
उसको छोड़कर ,
दोस्तों से गपसप सही है।
क्या तुम्हारे पास ,
माँ खातिर एक पल नहीं है।
जिसने तुम्हे खुद से भी ज्यादा चाहा,
तुम तो उसे भूल गए।
पर उनके दिल में तुम्हारी जगह वहीँ है,
क्या तुम्हे नहीं लगता की।
माँ खातिर दोस्त छोड़ना सही है।
उसे भूल चाहे याद कर पर ,
एक बात जरूर जान लेना तुम उसे भूल गए हो पर ,
वो तुम्हें नहीं भूली है। ।
कवी: महेश कुमार ' कक्षा:8th
अपना घर
बुधवार, 23 नवंबर 2022
कवित: " जिंदगी है बहते सागर जैसा "
" जिंदगी है बहते सागर जैसी "
जिंदगी यह बहता सागर की तरह है ।
जिंदगी का कोई तो छोर होगा ,
सागर के बहते लहरों में ,
अपने हौसलों को बनाया है ।
इन नन्ही चीटियों को देखकर,
हर विपत्ति से लड़ने का हौसला आया है ।
अपने लक्ष्य की ओऱ बढ़ते क़म,
मुशीबतों को देखकर पीछे न होगा।
जिंदगी एक बहता सागर की तरह है,
इस जिंदगी का कोई तो छोर होगा ।
कवी: संजय कुमार ,कक्षा 12TH
अपना घर
मंगलवार, 22 नवंबर 2022
कविता : "रूठ गई वह डाली"
"रूठ गयीं वह डाली"
रूठ गई वह डाली,
जिस पर फूल खिले थे वह निराले ।
सुबह की वह किरण जो ,
पेड़ के मन को कर देती हरियाली ।
वह आज दिख नहीं रही है ,
कौन सी मौसम बन गई उसके लिए पराई ।
पूंछ रही है वह सबसे ,
क्या हमने कोई गड़बड़ कर दी भाई ।
जिंदगी हो या फिर मौत ,
पलंग बनकर निभाता हूँ ।
जिंदगी में आखिरी समय भी ,
तुम्हारे शरीर को पावन कर आता हूँ ।
फिर भी मेरी जिंदगी की ऐसी मजाल ,
उखाड़ने के लिए लोग हैं बेक़रार ।
कब पहुंचेगी मेरी लफ्जों की गुहार ,
एक सांस में है मेरे जीवन का संचार ।
फिर भी क्यों रूठ गई वह डाली ,
जिस पर फूल खिले थे वह निराले ।
कवी: विक्रम कुमार, कक्षा 12th
अपना घर
शुक्रवार, 11 नवंबर 2022
कविता: " दोस्त "
पता नहीं कब लौटेगा।
कभी न कभी मुझे,
उसकी याद सताएगी ।
पढ़ाया, लिखाया,खिलाया, पिलाया,
अच्छे गानों में नाच नचाया ,
पता नहीं कब आएगा उसका साया,
दोस्त न सही एक अच्छा इंसान है ।
वही मेरे लिए गुरु सामान है ।
दोस्त जा रहा है दूर ,
पता नहीं कब लौटेगा,
कभी न कभी मुझे उसकी याद आएगी ।
कवी : मंगल कुमार , कक्षा: 6th
अपना घर
गुरुवार, 10 नवंबर 2022
कविता : "पूरी दुनिया देखनी है तुमको "
"पूरी दुनिया देखनी है तुमको "
अभी तो सिर्फ घर परिवार और गाँव देखा है ।
अभी तो पूरी दुनिया देखनी है तुमको,
उसमे क्या गलत हो रहा है।
सुधारना है तुमको ,
अभी तो खुद के हक़ के लिए लड़े हो ,
दूसरों के खातिर लड़ना है तुमको ।
लिंग जाती का भेद हटाकर ,
इस दुनिया को बदलना है तुमको ।
लड़के तो वैसे ही आगे हैं पर ,
लड़कियों के खातिर काढ़ना है तुमको ।
अभी तो सिर्फ घर परिवार गाँव देखा है ,
अभी तो पूरी दुनिया देखनी है तुमको ।
कवी : महेश कुमार , कक्षा : 8th
अपना घर