शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

शीर्षक : 2012

      "2012" 
 
2012 बड़ा है खतरनाक ।
अमेरिका मे ले आया तूफान ।।
2012 ने दिखा दी अपनी शान ।
जाने कितने मारे गए बेजान ।।
भारत में 2012 का रहा जलवा ।
मुंबई नगरी में मचा दी तबाही।।
इसकी हम कैसे दी गवाही ।
कितने फिल्म स्टारों को ले गया अपने साथ ।।
लेकिन 2012 ने नहीं छोड़ा हमारा साथ ।
2012 को जब याद किया जायेगा ।।
सैंडी तूफान की याद दिलाएगा ।
2012 बड़ा है खतरनाक ।
अमेरिका मे ले आया तूफान ।


नाम : मुकेश कुमार , कक्षा : 11, अपनाघर ,कानपुर 

शीर्षक :लक्ष्य

    "लक्ष्य " 

सभी को एक लक्ष्य ,
की तलाश होती  है
लक्ष्य तक पहुँचने के लिए ,
एक कठिन राह होती है ...
सभी को कठिनाइयों की राहों से,
एक दिन गुजरना पड़ता है ......
कोई राहों से गुजर जाता है ,
तो कोई राहों से भटक जाता है ।
सभी को एक लक्ष्य ,
की तलाश होती  है ।

नाम : ज्ञान कुमार, कक्षा : 9, अपना घर , कानपुर 

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

शीर्षक : भूखा मजदूर

    " भूखा मजदूर"

अगर न होते बाग - बगीचे ।
और न होते खेत - खलिहान ।।
कहाँ से आता गेंहूँ चावल ।
कैसे भरता हम लोगो का पेट ।।
किसान उगाता है सब्जी।
गेंहूँ, चावल, और भांटा ।।
किसान अपनी मेहनत करके खाता है ।
और हमें खिलाता है ।।
नाम : जितेन्द्र कुमार, कक्षा : 9, अपना घर , कानपुर  

बुधवार, 28 नवंबर 2012

शीर्षक : जिंदगी डस्टबीन

      "जिंदगी डस्टबीन" 

कैसी ये जिंदगी है ,जो  डस्टबीन की तरह लगती है ।
डस्टबीन की तरह लुढ़कती है ।।
लुढ़क - लुढ़क कर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचती है ।
पहुंच- पहुंच कर कूड़े करकट को ढूँढती है ।।
कैसी ये जिंदगी है ,जो  डस्टबीन की तरह लगती है ।
और ये उधर ,इधर घूमा करती है ।।
कूड़े कर कट को ढूँढा करती है ।
कैसी ये जिंदगी है ,जो  डस्टबीन की तरह लगती है ।

नाम : सागर कुमार कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

शीर्षक : कवि की छवि

   "कवि की छवि" 
 
एक था बहुत बड़ा कवि ।
जब हमने देखी उसकी छवि ।।
उड़ गए होश हमारे ,
गश खाकर हम गिरे,
देख के हमको दौड़े लोग बेचारे ।
मै तो था बेहोश ,
पानी ही पड़ते हमको आया होश ।।
कवि ने पूछा अरे ओ भईया ,
हमने बोला क्या रे कविया ?
सुनकर हमारी ये बतियाँ ,
कवि के गुस्से से लाल हो गई अँखियाँ ।
काले बादलो की भाँती मेरे पास में छाया ,
उसका यह रोब हमरे मन को भाया ।
हमने कहा अरे ओ भईया ,
सुन लो तनि हमरी ये बतिया ।
हमने सुना था  कि तुम हो शांत रस के कवि ,
तो शान्ति के जैसी होगी तुम्हारी छवि ।
पर तुम तो निकले रौंद्र रस के कवि ,
तुमने बदल दी हमारी छवि ।।
नाम : आशीष कुमार , कक्षा : 10, अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 26 नवंबर 2012

शीर्षक :जिंदगी

   " जिंदगी"
 
बड़ी तो कठिन है जिंदगी ।
वक्त पर चलना सिखाती है जिंदगी ।।
लक्ष्य जो तेरे हाथ मे है ।
उस लक्ष्य तक पहुचाती है जिंदगी ।।
तेरे सभी सपनों को ।
सच में बदलती है जिंदगी ।।
बन गया लक्ष्य तेरा तो ।
झूम के हंसती , गाती है जिंदगी ।।
वक्त से पहले अगर संभल न पाये ,
तो हर शाम भूखो सुलाती है जिंदगी ।।
नाम :धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

शीर्षक : कुछ तो सीखो

  "कुछ तो सीखो"

बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।
हमें अपने वातावरण मे ।।
बन जाता है मौसम अचानक ।
पानी गिराने लगता है गगन से ।।
नहीं किसी को पराया समझाना ।
कभी - कभी  धूप में छाया भी करना ।।
लेकिन नहीं सीख  पाते है हम कुछ ।
अपने वातावरण और गगन से ।।
अपने ब्रम्हाण्ड और धरती से सीखो ।
एक दूसरे की सहायता करना सीखो ।।
नाम : ज्ञान कुमार, कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर 

बुधवार, 21 नवंबर 2012

शीर्षक : यह भी जिंदगी

"यह भी जिंदगी"

क्या इंसान भी वो होते है ।
जो भूखे ही सोते है ।।
नहीं है उनका कोई सहारा ।
भूखा रहता उनका पेट बेचारा ।।
जो देता है उनको दान ।
वो करते है उनका सम्मान ।।
भलाई का जमाना नहीं रहा।
युग कलयुग का चल रहा।।

नाम : ज्ञान कुमार , कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर 

शीर्षक : काम ही काम

"काम ही काम"

तू किस सोच मे डूबा है ।
अब तो सोच अपनी बदल ।।
वरना चला जाएगा यह समय ।
तू अपने को न बदल पायेगा ।।
हाथ है तेरे स्वतंत्र ।
फिर भी तेरा मन है परतंत्र ।।
फिर भी अपने के वास्ते ।
तू खुद  को कर स्वतंत्र।।
तुझे पता नहीं है तू है न फूलो सा राजा ।
जो जब मन आये बैठे कर ली आराम ।।
आराम तेरे लिए है हराम ।
अब  तुझे करना है  बस  काम ही काम ।।

नाम : आशीष कुमार , कक्षा : 10, अपनाघर , कानपुर

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

शीर्षक : पिंडो के सामान

 "पिंडो के सामान "

आकाशीय  पिंडो में ,
भिड़ने की छमता नहीं होती ।
आकर्षण के कारण ,
उन मे  की  मिलने की ,
सम्भावना नहीं होती ।
पक्षियों को झुण्ड में 
चलने  की आदत  होती है,
उन में  भी,
मिलने की सम्भावना नहीं होती ।
इंसानों में तो ,
सारी योग्यता होती है फिर भी ,
हर एक पथ  में,
एक अलग  ही चाहत होती है ।
सामंजस्य एवं एकता की , 
कोई खास भावना नहीं होती ,
इन में मिलने जुलने की ,
वर्षों से परम्परा है ,
फिर भी आपस में ,
कोई विशेषता नहीं होती ,
सारे के सारे इंसानों में भी 
आपस में आकर्षण ,
पिंडो से ज्यादा ,
भावनाओं का भंडार  है  ,
ये सारे के सारे ,
पिंडो के सामान  हैं ।
   नाम : अशोक कुमार , कक्षा : 10, अपना घर कानपुर  

  

बुधवार, 14 नवंबर 2012

शीर्षक : दीपावली

 " दीपावली"

दीपावली तो है , आ गई ।
आसमान मे तारे आ गए ।।
जगमग -जगमग करते बादल छा गए ।
लड्डू ,पेड़ा  तुम खूब खाओ ।।
मौज - मस्ती तुम खूब कर आओ ।
थोड़ी दिन के लिए तुम पढाई भूल जाओ ।।
पड़ाका , हथगोला  थोडा कम जलाओ ।
किसी भूखे को थोडा खाना खिलाओ ।।
हर अँधेरे घरों में तुम जाओ ।
एक नन्हा दिया तो जलाओं ।।
नाम : मुकेश कुमार , कक्षा : 11, अपना घर ,कानपुर

शनिवार, 10 नवंबर 2012

शीर्षक : समय

 " समय"

उस समय की बात है ।
जब वक्त था सोने का ।।
सूनसान हो गया था ,सारा महौल ।
मन  तो चंचल  होता ही है ।।
कुछ करने को जी करता है ।
किसी तरह से मन को रोक पाया ।।
तब उसको कुछ अच्छा करने को भाया ।
लिया कलम कापी का सहारा ।।
उनके आगे भी वह हारा ।
धोखा दे दिया पेन ने उसका ।।
इतने मे वह बड़े जोर से बमका ।
गलत नहीं थी पेन की कोई ।।
सर्दी से इंक थी उसकी जम  गई ।
तब तक सब जाग गए थे उसके शोर से ।।
बूढ़े ,बच्चे ,युवा सभी चिड़िया के शोर से ।
 नाम : सागर कुमार , कक्षा: 9, अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 7 नवंबर 2012

शीर्षक : बदलाव

    "बदलाव"

समाज में आते है बदलाव ।
बदलाव से आती है कठिनाइयाँ ।।
कभी मुस्किल हो जाता है ।
साथ में खाना मिठाइयाँ ।।
जबआखिर हो ही जाती है ।
विद्यालय की लम्बी छुट्टियाँ ।।
तब हमको मजा आता है ।
घर मे बिताने मजा छुट्टियाँ ।।
लेकिन कुछ परिवर्तनों से ।
छुट्टियाँ में मजा नहीं आता है ।।

नाम : ज्ञान कुमार , कक्षा : 9, अपनाघर ,कानपुर 

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

शीर्षक : आदी है

  "आदी है"
सुनने की आदत नहीं ।
बोलने की बेसर्मी है ।।
माँगने की आदत नहीं ।
खाने की बिमारी है ।।
गाने की आदत नहीं ।
चिल्लाने के हम आदी है।।
बेसर्मी की कोई सीमा नहीं ।
ओके सर ,एस सर ,कहने की आदत है ।।
सही गलत की पहचान नहीं ।
बुलंद आवाजो को सुनने के ।।
हम आदी है।
कामचोरी मे भी ।।
सीना -जोरी मे भी।
सुनने की आदत नहीं ।
बोलने की बेसर्मी है ।।

नाम : अशोक कुमार , कक्षा : 10, अपनाघर ,कानपुर

रविवार, 4 नवंबर 2012

शीर्षक: डर लगता है

   "डर लगता है" 

डर लगता है मौसम के बदलने से ।
बीमारी लोग डरते है अच्छे से ।।
डर लगता है शोर -सराबे से ।
धरती को प्रदूषित करते है अच्छे से ।।
डर लगता है अकेले चलने से ।
डर लगता है नियम का पालन करने मे ।।
कही सजा न मिल जाए ।
डर लगता है झूठ बोलने से ।।
कंही हजार बार झूठ न बोलना पड़े।
डर लगता है ज्यादा प्यार करने से ।।
कंही मै इसमें घायल न हो जाऊं ।
बच भी जाऊ तो कंही सम्हाल न पाऊ ।।

नाम : लवकुश कुमार , कक्षा : 9 , अपनाघर ,कानपुर 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

शीर्षक : गाँधी के भारत में राज्य बटते हुय

"गाँधी के भारत में राज्य बटते हुए "
 
गाँधी तू  कहाँ गया ।।
तेरा देश बट गया ।।
तेरे लोग बात गए ।
जातिया बात गई ।।
और अब तेरे राज्य भी बात बंट रहे है ।
गाँधी तू  कहाँ गया ।।
तेरा भारत टूट रहा है ।
नदियाँ बंट गई ।।
बंट गई फसले और तेरे जिले भी बंट रहे है ।
गाँधी तू  कहाँ गया ।।
तेरा देश मिट रहा है ।
मिट गई तेरी बिरासत ।।
मिट गई तेरी संस्कृति ।
और अब तेरे रिश्ते भी मिट रहे है ।

के .एम .भाई , सामाजिक कार्यकर्ता, कानपुर 

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

शीर्षक :मेरा भारत महान

"मेरा भारत महान"

अपना ये भारत है महान ।
इसकी महानता का करले ज्ञान ।।
महान है इसका हरेक मानव ।
उसके बारे मे भी कुछ जानो ।।
रोज सुबह मंदिर को जाते है सज्जन ।
कुछ मिले जाये ये करके आस ।।
इसलिए भजते रहते है ये ।
भगवान शिव को बारो मॉस ।।
प्रतिदिन गंगा स्नान को जाते ।
फल ,भोजन इत्यादि वानरों को खिलाते ।।
लम्बी आयु की है मांग करते ।
करके घोटाला अपनी जेब भरते ।।
उस ओर कभी मुड़ कर नहीं देखा ।
जिस ओर बैठा वह गरीब बेचारा ।।
जिसके पास नहीं है ।
जीने का को सहारा ।।
अपने ज्ञान का करते है बखान ।
और कहते है मेरा भारत महान।।

कवि: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा :9, अपना घर ,कानपुर 

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शीर्षक : ये सब सपने

"मुझसे दोस्ती करोगे रवि..."

तपती धरती उबलता रवि ।
प्रकृति पर लिखता कवि ।।
ये कैसा संसार है ।
सबको अपने जीवन पर प्यार है ।।
ये संसार हमारा है ।
इसको मिल कर बचाना है।।
संसार मे जो आता है ।
वह जरूर ऊपर जाता है।।
प्रकृति के साथ रहना है ।
ये तो कवि का कहना है ।।
कवि रवि से कहता है ।
तू क्यों अकेला रहता है ।।
तेरी दोस्ती के लिए हर कोई मरता है।
तुझसे संसार का हर दुश्मन डरता है ।।
क्या इन्सान की दोस्ती से डरते हो रवि।
या हमसे दोस्ती नहीं करना चाहते हो रवि ।।
तुझसे कहता है ये कवि ।
तेरी दोस्ती चाहता हूँ रवि ।।
मानवों को तूँ इतना रोशनी देता है ।
फिर क्यों तूँ इतना उदास रहता है ।।
तुम्हे ठंढी मे देखने के लिए लोग तरसते है ।
गर्मियों मे तुम में फिर क्यों आग बरसते है।।
मै हूँ एक छोटा सा कवि ।
मुझसे से दोस्ती करोगे रवि।।

नाम :चन्दन कुमार , कक्षा : 7 , "अपना घर", कानपुर

शीर्षक : शिक्षा

            शिक्षा 
हम खो गए तो राहो मे ढूंढा करोगे ।
एक -एक  को रोककर पूछा करोगे ।
जिंदगी आपकी होगी अधूरी ।
हर वक्त हमें ही सोचा करोगे ।
समझ गए जो आप हमारी कीमत ।
तो किस्मत को भी वश मे रखोगे ।
हम अभी कहते है आप से ।
की न बनाओ हमसे दूरियाँ ।
वरना चाह कर भी रो न सकोगे ।
नाम : संजय कुमार 
कक्षा : 12