बुधवार, 21 नवंबर 2012

शीर्षक : काम ही काम

"काम ही काम"

तू किस सोच मे डूबा है ।
अब तो सोच अपनी बदल ।।
वरना चला जाएगा यह समय ।
तू अपने को न बदल पायेगा ।।
हाथ है तेरे स्वतंत्र ।
फिर भी तेरा मन है परतंत्र ।।
फिर भी अपने के वास्ते ।
तू खुद  को कर स्वतंत्र।।
तुझे पता नहीं है तू है न फूलो सा राजा ।
जो जब मन आये बैठे कर ली आराम ।।
आराम तेरे लिए है हराम ।
अब  तुझे करना है  बस  काम ही काम ।।

नाम : आशीष कुमार , कक्षा : 10, अपनाघर , कानपुर

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