सोमवार, 30 जुलाई 2012

शीर्षक :- जिन्दगी गोल है

शीर्षक :- जिन्दगी गोल है 
लगता है कि जिन्दगी एक वृत्त की तरह गोल है....
बस यूँ ही चलते जाओ, न होने को भोर है,
मैं सोचता हूँ कि कल मेरी जिन्दगी में....
एक भोर की किरण आयेगी,
और कुछ कर दिखलाने की चाह....
एक कोशिश की किरण,
मेरे दिलों में दिमाग में भर जाएगी....
पर क्या? करें जब सुबह की किरण आती है,
तो फिर आने वाला कल की जिन्दगी में....
अँधेरा ही अँधेरा ढला नजर आता है,
न कोई सुबह की किरण नजर आती है....
न आशा की उम्मीद नजर आती है,
बस रात दिन मेरे दिलों दिमाग में....
अँधेरा ही अँधेरा नजर आता है,
लगता है कि जिन्दगी एक वृत्त की तरह गोल है.... 
बस यूँ ही चलते जाओ जाओ न होने को भोर है,
कवि : सागर कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

रविवार, 29 जुलाई 2012

शीर्षक :- तकनीकी

शीर्षक :- तकनीकी 
आज की तकनीकी भी है क्या?....
घर बैठे देख लो सारा जहाँ,
पहले होता था। पत्रों का इंतजार....
अब हो रही फेस टू फेस बात,
आज के बच्चों को तो देखो....
कर रहे गूगल पर सर्च,
कितनी सुविधाएँ हो गई है....
आज के इस युग में,
पहले यह तकनीकी काश होती....
तो शायद सीता को,
सर्च करके राम क्या? हनुमान क्या?....
एक बच्चा ही ढूँढ़ देता,
कवि : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

शनिवार, 28 जुलाई 2012

शीर्षक :- दोपहरी

शीर्षक :- दोपहरी 
दो पहर, ठहरी दोपहरी.... 
यादों की दोपहरी,
घटनाओं की दोपहरी....
दो पहर, रुकी दोपहरी,
मिलन की दोपहरी....
शांति की दोपहरी,
आग सी दोपहरी....
दो पहर, ठहरी दोपहरी,
इंतजार की तपन की....
दिन की जवानी दोपहरी,
दो पहर, ठहरी दोपहरी....
कवि :किशन व्यास 
अपना घर  

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

शीर्षक :- मंहगाई

शीर्षक :- मंहगाई 
मंहगाई की है कैसी भरमार....
फिर भी व्यापारी आते है बाजार,
मंहगाई से जनता है बेहाल....
गरीब आदमी का हो रहा है बुरा हाल,
आखिर मंहगाई सरकार क्यों बढाती है....
यह बात हमें समझ नहीं आती है,
अगर व्यक्ति मंहगी सब्जी रोज लायेगा....
तो क्या? वह अन्य खर्च चला पायेगा,
अगर मंहगाई यूँ ही बढ़ती जाएगी....
क्या? जनता हमारी मिटटी खाएगी,
अगर मंहगाई में थोड़ी सी गिरावट आएगी....
तो जनता चैन की साँस ले पायेगी,
मंहगाई की तो बात निराली....
उसने पूरा पैसा कर दिया खाली,
कवि : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर  

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

शीर्षक :- सपनो की दुनिया

शीर्षक :- सपनो की दुनिया 
सपनो की दुनिया में....
अपनों की क्या जरुरत है,
ख़ुशी भी होती....
जब हर पल घूमने की,
कल्पना होती है....
उस समय अँधेरे में भी,
दिन नजर आता है....
पहाड़ी से कूदने में,
बड़ा मजा आता है....
बहती हुई नदी की,
कल्पना होती है....
सपनो की बात जब,
दोस्तों से होती है....
तो उस पल की हंसी की,
कोई सीमा नहीं होती है....
जब अगले दिन मिलते है,
तो फिर सपनो की बात होती है....
हर दिन एक नई,
कहानी की शुरुआत होती है....
वह दिन सबके लिए खास होता है,
सबके पास अपने-अपने....
दो चार सपने होते है,
सपनो की दुनिया में....
अपनों की क्या जरुरत है,
ख़ुशी भी होती है....
जब हर पल घूमने की,
कल्पना होती है....
कवि : अशोक कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर

बुधवार, 25 जुलाई 2012

शीर्षक :- हुआ सवेरा

शीर्षक :- हुआ सवेरा 
हुआ सवेरा निकला सूरज....
शाम को पश्चिम को जाता,
जब-जब सूरज उगता है....
तब-तब फूल खिलते है,
फिर वे अपनी सुगंध को....
अपने चारों ओर फैलाते है,
बच्चे उसमे खूब खेलते है....
फिर हंसते मुस्काते है,
हुआ सवेरा निकला सूरज....
शाम को पश्चिम को जाता,
कवि : जितेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

शीर्षक :- रात

शीर्षक :- रात 
अँधेरी काली रात....
रात की ये बात,
सुबह के पीछे रात....
शाम के आगे रात,
नीदों की ये बात....
सपनों की ये बात, 
बातों की ये रात....
जानों की ये रात,
सोंचने की ये बात....
अँधेरी क्यों है? ये रात,
नीदों की ये रात....
सपनो की ये रात,
सूरज की ये बात....
अँधेरी है ये रात,
कवि :हंसराज कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर  

सोमवार, 23 जुलाई 2012

शीर्षक :- साँझ

शीर्षक :- साँझ 
साँझ ढले आती है मस्ती....
जगमग-जगमग करती है बस्ती,
गुनगुन गाना गाती है....
साँझ ढले की बात निराली,
बात की रात होती है काली....
बस्ती में हम सब करते है मस्ती,
साँझ ढले आती है मस्ती....
जगमग-जगमग करती है बस्ती,

कवि : मुकेश कुमार 
कक्षा :11 
अपना घर 

रविवार, 22 जुलाई 2012

शीर्षक :- चुटकुला

शीर्षक :- चुटकुला 
अध्यापक : क्या तुम जानते हो आवेश किसे कहते है 
      बच्चे : नो सर 
अध्यापक: अच्छा चलो बताओ कंघी क्यों इतनी जल्दी गन्दी हो जाती है 
     बच्चे : सर बाल की गंदगी  के कारण 
अध्यापक : बिल्कुल गलत बच्चों कंघी इतनी जल्दी आवेश के कारण ही गंदी होती है क्योंकि जब हम बाल झाड़ते है तो उस कंघी में आवेश उत्पन्न होता है जिससे आस-पास की गंदगी को कंघी अपनी और खींच लेती है तभी...........। 
अध्यापक : [एक गंजे से] यार तुम्हारे घर की तो कंघी कभी गन्दी ही नहीं होती होगी  
लेखक : सोनू कुमार 
कक्षा : 11
   अपना घर

शनिवार, 21 जुलाई 2012

शीर्षक :- बचपन

शीर्षक :- बचपन 
दो साल का बच्चा होते देर नहीं....
इस छोटे से बचपन में,
कापियाँ और किताबों का भार....
हमारे सर बांध देते हैं,
बचपन की जिन्दगी तो....
खेलने की होती है,
लेकिन हमारे माँ बाप....
खेलने कहाँ देते हैं,
बस उनका तो एक ही सपना होता है....
मेरा बेटा आगे चलकर इंजीनियर बनेगा,
कवि : जितेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर  

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

शीर्षक :- यही है हम नेताओं का चरित्र

शीर्षक :- यही है हम नेताओं का चरित्र 
हम नेता जब सत्ता में आते हैं....
अपने वादों को हम धूल में मिलाते हैं,
लूटते खूब जनता का पैसा....
ये सब लगता, एक खेल जैसा,
घोटाले पर घोटाला करके....
भ्रष्टाचार खूब फैलाते हैं, 
जाति-पाति के नाम पर....
वोट हमें मिल जाते है,
सोर्स शिफारिस और रिश्वत देकर....
नेता हम बन जाते है,
नेता बनने के बाद फिर हम....
पैसा खूब कमाते है,
स्विस बैंक से हमारा  नाता....
स्विस बैंक में ही खुलता खाता,
फिर भ्रष्टाचारी और घूंसखोरी बन जाते हमारे मित्र....
यही है, हम सब नेताओं के चरित्र,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

शीर्षक :- भारत

शीर्षक :- भारत 
भारत तुम कंहा हो....
एशिया, अमेरिका, यूरोप या अफ्रीका में,
अब तुम्हारा रूप है क्या?....
काला गोरा या लाल हरा,
गुरुओं ने बताया था तुम्हारा रूप....
ऋषियों ने समझाया था तुम्हारा स्वरूप,
विश्व गुरु से सम्मानित तुम थे....
मार्ग दर्शक थे सांस्कृतिक थे,
इतिहास था, स्त्रियों का सम्मान था....
पत्थरों के पुजारी थे,
सभ्यता का रस यही था....
नदियाँ थी, दूध की,
जल भी अमृत था....
ऐसी थी, गाथा,
तुम कम्प्युटर के युग में....
डिलीट हो गए क्या?,
या पेनड्राइप का हिस्सा बन गए....
या सेव कर लॉक कर दिया,
या पासवर्ड मिल नहीं रहा है क्या?....
कंहा? खो गए हो तुम भारत,
कवि : किशन व्यास 
पिपरिया, मध्य प्रदेश  

बुधवार, 18 जुलाई 2012

शीर्षक :- "क्या सोंचेगी क्या बोलेगी"(प्रथ्वी )

शीर्षक :- "क्या सोंचेगी क्या बोलेगी"(प्रथ्वी )
क्यों जल्दी रहती है....
जाम में फसें लोगों को,
बाहर निकलने में....
क्यों लोग नहीं मानते है,
ट्रैफिक पुलिस की बातों को....
अपने आप को लोग क्या मानते हैं,
क्यों नहीं लोग एक दूसरे की....
बातों को समझते है,
अगर इस तरह प्रथ्वी भी....
उपद्रव करने लगे,
बड़ी जोर से हिलने लगे....
तो क्या रह पायेगी ये दुनिया,
क्यों नहीं हम धैर्य रख पाते हैं....
क्यों नहीं हम प्रथ्वी से सीख ले पाते हैं,
कवि : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

शीर्षक :- माँ बाप

शीर्षक :- माँ बाप 
जब सोचता अपने माँ बाप के बारे में....
तब हमें ख्याल आता है कि,
उन्होंने ही हमें आगे बढाया....
और हमें सीख दी, फिर,
हम उन्हें क्यों ठुकराते हैं....
सोंचो ? कितना दुःख उन्होंने उठाया होगा,
हमें पालने-पोसने में....
फिर भी हम उन्हें ठुकराते है,
सोंचो ? नहीं होंगे जिनके माँ बाप....
उन्हें क्या ? सीख मिलती है,
मुझे तो लगता धन्य है वे लोग....
जिनके माँ बाप होते है,
मैं भी वही सुख पा रहा हूँ....
और उन्ही की छाया में अब,
मैं उचाईयों को छूता जा रहा हूँ....
कवि : दिव्यांशु गौतम 
कक्षा : 7
अपना घर 

सोमवार, 16 जुलाई 2012

शीर्षक :- मौसम बसंत का

शीर्षक :- मौसम बसंत का 
बसंत का वो मौसम....
जिसमें रातें सुहावनी हुआ करती थी, 
और उसके दिन अक्सर....
बारिश की बूंदों में भीगा करते थे,
हमें मजा तो आता था उस वक्त.... 
जब हम स्कूलों को बसों में चला करते थे,
बैठ कक्षाओं में दोस्तों के साथ....
हम बूंदों को गिना करते थे,
अभी भी हमें याद है वो शाम....
जब हम भीगते हुए घरों को आया करते थे,
दोस्तों के साथ घरों में हम....
अक्सर कुछ पल बिताया करते थे,
बैठ कर उन्ही घरों में....
हम मीठी-मीठी बातें किया करते थे,
या फिर बरसात के समय हम....
किसी दुकान पर चाय पिया करते थे,
अगर हम चाह लें तो भी....
वो हमसे भुलाये नहीं जाते हैं,
क्योंकि ये हैं वो क्षण....
हर बरसात दोहराए नहीं जाते हैं,
कवि : सोनू कुमार 
                                            कक्षा : 11
अपना घर

रविवार, 15 जुलाई 2012

शीर्षक :- हवा

शीर्षक :- हवा 
हवा चलती सर-सर-सर....
पत्ते उड़ते फर-फर-फर,
कपडे भी उड़ जाते हैं....
पकड़ो तो हाथ न आते हैं,
हवा डाल-डाल में जाती है....
फूल पत्ते खूब गिराती है,
जब हवा का हुआ पदार्पण....
उसके सामने से हट गया दर्पण,
हवा के बारे में जितना लिखना....
उतना ही कम है,
मानना पड़ेगा हवा में....
वाकई दम है,
हवा चली सर-सर-सर....
पत्ते उड़ते फर-फर-फर,
कवि : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर 

शनिवार, 14 जुलाई 2012

शीर्षक :- जिन्दगी कूड़ा है

शीर्षक :- जिन्दगी कूड़ा है 
लगता है जिन्दगी एक कूड़ा है....
जिधर देखो उधर फेका पड़ा है,
हर घर में देखो तो कूड़ा है....
बाहर देखो तो कूड़ा है,
लगता है जिन्दगी एक कूड़ा है....
जिन्दगी अब जिन्दगी नहीं रही,
अब जिन्दगी कूड़ा बन गई....
हर चौराहों पर एक जिन्दगी,
कूड़े कि तरह लेटा पड़ा है....
हर गली हर अस्पतालों में,
हर प्लेट फार्म में....
एक कूड़ा भूखें लेटे पड़ा है,
यूँ तो हम अक्सर बातें किया करते हैं....
उन भूखें लेटे कूड़ा के बारे में सोंचा करते है,
जब कुछ करने की बारी आती है तो....
अपना-अपना मुंह मोड़ लिया करते है,
लगता है जिन्दगी एक कूड़ा है....
ये मनुष्य इस सुन्दर सी वसुंधरा को,
कूड़ा बनाने लगा है पड़ा है....
ये मनुष्य की सोंच है जो इस वक्त,
अपने खाली डिब्बे को भरने में लगा पड़ा है....
लगता है जिन्दगी एक कूड़ा है,
ये मनुष्य कूड़े-कचरे को फिर से....
यूज लेंस बनाने में लगा पड़ा है,
पर असली कूड़ा तो हर जगह....
इधर-उधर मारे-मारे लुढ़का पड़ा है,
लगता है जिन्दगी एक कूड़ा है....
जिधर देखो उधर फेका पड़ा है,
कवि : सागर कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

शीर्षक :- दुखी किसान

शीर्षक :- दुखी किसान 
दु:खी किसानो को देखकर....
हाथों पर माथा टेककर,
किसान बस यही सोंचता है....
बरसा दे पानी आधी रात को,
बरसता है पानी रात को....
खेत भर जाते हैं,
किसानो के चेहरे पर....
खुशियाँ झलक जाती है,
बोया है जो फसल....
जब हरी हो जाती है,
फसल में निकला फूल तो....
खुशबू महक जाती है,
कवि : जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

शीर्षक :- कैसी आजादी

शीर्षक :- कैसी आजादी 
आजाद देश की कैसी आजादी....
जहाँ पर भूखी, आधी आबादी,
अब बढ़ रही ज्यादा महंगाई....
अब नहीं हो पा रही कमाई,
जो गरीब है नहीं चल पा रहा खर्चा....
अमीरों को तो कोई चिंता ही नहीं,
ऐसे ही होता रहा देश में....
तो नहीं मिल पायेगा दाना पेट में,
कवि : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर  
 

बुधवार, 11 जुलाई 2012

शीर्षक :- तारों के पास

शीर्षक :- तारों के पास
पड़ती गर्मी होती बरसात....
फिर मन मेरा होता उदास,
गर्मी में मरते है....
फिर कीचड में फसंते है,
ये गर्मी न होती....
न होती बरसात,
फिर मन मेरा न होता उदास....
सूर्य न होता,
बदल न होते....
न होता ये आकाश,
काश हम होते तारों के पास....
फिर मन मेरा होता क्यों उदास,
कवि : हंसराज कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

शीर्षक :- मन

शीर्षक :- मन 
मन में आते है अनेक विचार....
जिसे मैं पालन करने से डरता हूँ,
न जाने किस वक्त किस घडी....
कौन सी प्रलय आ जाये,
मैं जानता नहीं....
मन के विचार भगवानों,
एवं शैतानों की तरह हैं....
जिसे मैं पालन करने से डरता हूँ,
मन में आते है अनेक विचार....


कवि : लवकुश कुनार 
कक्षा : 9 
अपना घर

सोमवार, 9 जुलाई 2012

शीर्षक :- सावन

शीर्षक :- सावन 
आया सावन छायी हरियाली....
अम्बर में घिरी है घटा काली,
हर जगह अब फैला कीचड़....
पानी से गली है गई भर,
सावन में लगने लगे पेड़ों पर झूले....
बड़े हुए हम वो सब है अब भूले,
खेतों में जब बरसा पानी खुश हुआ किसान....
सूखी धरती में आई फिर से जान,
भीगते हुए बारिश में स्कूल जाना....
झमाझम बारिश में खूब नहाना,
बरसात में है सबको मजा आता....
इसीलिए सावन है भाता,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

रविवार, 8 जुलाई 2012

शीर्षक :- हर बात की शुरुआत ही गाली है

शीर्षक :- हर बात की शुरुआत ही गाली है 
गर्मी के मौसम ने....
एक ऐसा चक्रव्यूह रचा है, 
जिसे देखने वाला ही.... 
परेशान हो गया है,
बरसात के मौसम में....
बारिश तो हो नहीं रही,
जो भी आसमान को देखता है....
गाली ही दे रहा है,
बरसात बहुत दिनों के बाद....
आयी तो जरुर है,
लेकिन उसके आने के अंदाज....
तो वाही पुराने हैं,
जिसकी बूंदों से....
लोग ही परेशान है,
जब बारिश की बूंद नहीं थी....
तब मानसून को गाली दिया करते थे, 
जब बारिश की बूंद आयी....
तो बूंदों को गाली दिया करते है,
इस जग के लोग भी....
बहुत परेशान रहा करते है,
जहाँ देखो जिस बात को सुनो....
उसकी शुरुआत ही गाली से किया करते है,
कवि : अशोक कुमार 
कक्षा : 10  
अपना घर

शीर्षक :- भट्टा

शीर्षक :- भट्टा 
भट्टों में जीवन जलता है....
उस आग में ईंटा पकता है,
कामों के बोझ तले दबकर....
बच्चों का बचपन मरता है,
पढ़ना लिखाना दूर की बातें....
काम करना दिन और रातें,
थककर जब आराम करूँ तो....
पेट की भूख जगाता है,
रंग बिरंगे खेल-खिलौने....
बिस्तर नरम और झूले पलने,
राजा रानी परी कहानी....
क्या ये सच में होते हैं,



कवि : महेश 
अपना घर 

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

शीर्षक :- पढ़ाई

शीर्षक :- पढ़ाई 
अपनी इस जिन्दगी में....
पढाई है बहुत जरुरी,
हमेशा अच्छे से पढाई करना....
हो चाहे जितनी मज़बूरी,
जीवन में मुश्किलें आयेंगी बहुत....
इन मुश्किलों से तुम लड़ना,
पढाई अच्छे से करके तुम....
जीवन में कुछ करना,
जब होगा तुमको कुछ ज्ञान....
तभी होगा तुम्हारा सम्मान,
लड़कर मुश्किलों से आगे बढ़ना....
हारकर मुश्किलों से मत पीछे हटना,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

बुधवार, 4 जुलाई 2012

शीर्षक :- सीख

शीर्षक :- सीख 
ये समय है पढ़ने का....
न तो गलत करने का,
अगर हुई कुछ गलती....
अक्सर कुछ सीख देती है,
इस सीख को जब जीवन में अपनाओगे....
तभी समाज में रह पाओगे,
जो अपने जीवन में गलतियों....
की सीख को अपनाओगे,
तभी तुम एक अलग....
प्राणी कहलाओगे,


कवि : लवकुश कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर  

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

शीर्षक :- मेला

शीर्षक :- मेला 
एक शहर  में लगा हुआ था....
कई दिनों से मेला,
बच्चे बूढ़े सब जाकर देखे....
घूम-घूम कर लगा रहे थे,
चारों तरफ का फेरा....
बच्चे बोले मम्मी-पापा,
झूला दो मुझको झूला....
अगर नहीं झुलाया झूला,
साथ नहीं मैं जाऊंगा....
पूरे मेले में जाकर,
दौड़-दौड़ कर घूमूँगा....
मम्मी-पापा लगे ढूंढ़ने,
अपने प्यारे दुलारे को....
ऐसी गलती कभी न करते,
अपने राज दुलारे से....

कवि : जीतेन्द्र कुमार
कक्षा : 9 
अपना घर

सोमवार, 2 जुलाई 2012

शीर्षक :- क्रिकेट

शीर्षक :-  क्रिकेट 

क्रिकेट ने इस समय मचाया धमाल 
सभी क्रिकेटर हो गए मालामाल 
इस समय क्रिशगेल के शतकों से 
सभी टीमों में आया भूचाल 




मुंबई चेन्नई और कोलकाता 
इन्हीं ने लिखी इस आई0 पी0 एल0की गाथा 
देशी प्लेयर रुके और चले विदेशी 
फुटबाल में पचास गोल मारे मेसी 



कवि : सोनू कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर 

रविवार, 1 जुलाई 2012

शीर्षक :- जिन्दगी जीने का तरीका

शीर्षक :- जिन्दगी जीने का तरीका 
एक बार की बात है। एक किसान के घर में एक बच्चा पैदा होता है। तो उस दिन  उस किसान के घर में खुशियों का माहौल होता है। जब बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है। तो किसान सोंचता है कि मैं इसे पढ़ा-लिखा कर एक बड़ा आफिसर बनाऊंगा। जिससे इसका नाम संसार में लोग जानेंगे, फिर क्या वो किसान अपने बच्चे को शिखर तक पहुँचाने में जुट गया। इस काम में उसे बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है। पर उसका बेटा एक दिन आफिसर बन जाता है। और उसका बेटा रोज काम पर जाता है। काम करके लौट आता है। उसे आफिसर बनने का मन नहीं था। पर क्या करे, घर वालों का प्रेशर था। कि नहीं तुम्हे आफिसर ही बनना है। एक दिन वो अपने कमरे में उदास बैठा था। और सोंच रहा था। कि ये दुनिया संसार और ये अम्बर ये सब क्या है ? और ये दुःख-सुख चोरी ये भ्रष्टाचारी ये तमाम सारी चीजें क्या है ? ये बातें सोंच कर वो उदास बैठा था। तभी उसके पापा उस कमरे में आए और पूछने लगे बेटा क्या हुआ ? तब वो अपने पापा से पूछा पापा ये दुनिया संसार और ये अम्बर ये सब क्या है? इस प्रश्न का जवाब जब उसको आता तब अपने बेटे को दे पता उस समय तो किसान सोंचने लगा बात तो सही कह रहा है। पर किसान इस बात को ताल देता है। और कहता है, ये सब बातें छोडो और अपनीनौकरी पर ध्यान दो इस बात से लड़के को बुरा लगा। वह अपने पिता से बोला पिताजी मैं नौकरी नहीं करूँगा। इस बात पर उसके पापा को गुस्सा आ गया और अपने लड़के को घर से बाहर कर दिया। और कहा जब तुम्हारा मन नौकरी में लगे तब ही आना नहीं तो नहीं आना लड़का बोला ठीक है। और अपना सामान लिया और घर से बाहर चला गया। और अपने प्रश्न का उत्तर ढूढने के लिए रात दिन एक कर दिया। वो जहाँ भी गया वहां चोरी, बेईमानी और भ्रष्टाचारी जैसा माहौल देखा पर वो थका नहीं। और मन में कहा हो सकता है यहाँ नहीं तो दूसरी जगह इस सवाल का उत्तर मिलेगा वो दूसरी जगह गया वहां उसे घर, खाना सब मिल गया पर वहां भी चोर, बेईमानी और भ्रष्टाचारी लोग ही मिले अंत में वो घूम-घूम कर थक गया। और कहने लगा ये दुनिया संसार और ये अम्बर ये सब क्या है ? इसका उत्तर नहीं मिला। और ये चोरी भ्रष्टाचारी क्या होती है इसका उत्तर मिल गया लगता है इन प्रश्नों का उत्तर यहाँ नहीं है। यह सोंच कर अपनी आखें बंद कर ली। और कहा कि मनुष्य लोंगो के लिया चोरी भ्रष्टाचारी ही संसार ,प्रथ्वी और अम्बर है। सही मायने में ये सबसे बुरी जगह है। यहाँ जो भी जीव-जन्तु जन्म लेते है। तो इस पृथ्वी इस संसार इस अम्बर के लिए कुछ कर के नहीं जाते है। और पापी जैसे काम जरुर सीख लेते है। धीरे-धीरे वो लड़का बूढ़ा हो जाता है। और आखिरी में कह जाता है। कि मैं इसी कीचड़ में रहकर अपनी जिन्दगी गुजार दिया हूँ और आप लोंगो से गुजारिस है। कि इस संसार में जन्म न ही लें तो बेहतर होगा लोगों से प्रार्थना करता हूँ। कि इस पाप से भरे संसार में अपनी प्यार भरी संतान को जन्म न दें और यदि दें भी तो इन पापों से भरी गली से दूर रखे। इतना कहते कहते वो अपना दम तोड़ देता है पर उसे अपने प्रश्न का जवाब नहीं मिला।

शिक्षा :- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कि किसी को दबाव में रहकर करने की इजाजत न दें और उचित शिक्षा का महत्व बच्चों को समझाये एवं अपने बच्चों को हर चीज का मतलब बताना चाहिए। संसार प्रथ्वी और अम्बर का सही मतलब एवं संसार में कितने प्रकार के काम, लोग इन के बारे में बताइए फिर उसे नौकरी के लिए प्रेशर देना चाहिए। अगर हम ऐसा करते है, तो हम एक बेहतर समाज बना सकते है। 

लेखक :- सागर कुमार  
कक्षा :- 9 
अपना घर