रविवार, 27 जून 2010

कविता :अखबार में छपी है खबर

अखबार में छपी है खबर

अखबार में क्या छपी है खबर ।
खबर में एक आदमी का हो गया मर्डर ॥
आदमी झूठा था या झूठी थी खबर ।
जिससे पुलिस भी हो गयी बेनिडर ॥
पुलिस को पता नहीं हुआ या नहीं हुआ मर्डर ।
उसने अखबार से पढकर डाल लिया अपने कानों में खबर ॥
पुलिस वालों को खबर से नहीं कोई मतलब है ।
पुलिस वालों को केवल पैसों का तलब है ॥
अख़बार में क्या छपी है खबर।
खबर में एक आदमी का हो गया मर्डर ॥

लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 26 जून 2010

कविता :न नीचे पानी न ऊपर पानी

नीचे पानी ऊपर पानी

न नीचे पानी न ऊपर पानी
क्या हो रहा है इस साल भाई
न पेड़ है न परछाईं है
चल रही है लू तेज
सब के घर भरें है धूलों से
येसा ही रहा ये मौसम भाई
न नीचे पानी न ऊपर पानी
क्या हो रहा है इस साल भाई

लेखक :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 25 जून 2010

कविता :दुनियां बुनियादी जाल

दुनियां बुनियादी जाल

ये दुनियां है एक बुनियादी जाल ,
इसके पीछे मत पड़ना वरना हो जाओगे बेहाल ....
इस दुनिया में आया जो भी ,
बुनियादी जाल में फसें वो भी ....
ये जाल है ऐसा जो कभी न टूटे ,
चाहे काटो या तोड़ो पर कभी न टूटे ....
जो इस जाल में फसा है ,
वह कभी नहीं हंसा है ....
इस जाल को कोई तो काटेगा ,
वह इस दुनियाँ से लोगो को बचायेगा ....
पर ये काम है बड़ा कठिन ,
हममें एकता हो तो यह काम हो जाए मुमकिन ,

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

बुधवार, 23 जून 2010

कविता मौसम गर्मी का

मौसम गर्मी का
गर्मी का यह मौसम।
बच के रहेगे हम सब॥
गर्मी को होगा दूर भागना।
हर मनुष्य को होगा एक -एक पेड़ लगाना॥
गर्मी का है यह मौसम।
बच के रहेंगें हम सब॥
पेड़ लगायेंगे पानी खूब बरसाएंगे।
पर्यावरण को संतुलन बनायेंगे॥

लेखक -सागर कुमार
कक्षा -
अपना घर कानपुर

मंगलवार, 22 जून 2010

कविता : बादल

बादल

बादल आये बादल आये ।
काले-काले बादल आये ॥
काली-काली आंधी आती ।
बरसे पानी भर आते खेत ॥
मेढक बोलते टर्र-टर्र ।
पेड़ो पर बूंदे पड़ती झम-झम-झम ॥
फल गिरते टप-टप-टप ।
घर में जब पानी भर आता ॥
घर वाले हो जाते परेशान ।
इसलिय बोलती है हमारी नानी ॥
बंद हो जाए ये पानी ।
मुझे न कर इतनी परेशानी ॥
बादल आये बादल आये ।
काले-काले बादल आये ॥

लेखक :जितेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

सोमवार, 21 जून 2010

कविता पेड़ के नीचे

पेड़ के नीचे
एक पेड़ के नीचे ,
पौधे में खरगोश पानी सीचे.....
एक पेड़ में बैठा था,
रोज गाजर खाता था....
नहीं किसी से बताता था,
एक दिन किसान आया....
साथ में अपने तलवार लाया,
चुपके से खरगोश के पास गया.....
पूछा तुम्हारा काम हो गया,
बन्दर ने कहा नहीं.....
किसान ने कहाँ रुक यही,
निकली अपनी तलवार.....
कर दिया उस पर वार,
एक पेड़ के नीचे....
पौधे में खरगोश पानी सीचे......
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता :सर्दी

सर्दी

अब तो घर से निकलेगा जो भी ।
ठण्ड से सिकुड़ जाएगा वो भी ॥
पड़ रही है ये कितनी सर्दी ।
जैसे पहन कर आई हो ठण्ड की वर्दी ॥
जब निकलती है ये धूप सुहानी ।
हो जाती है तब सबकी मनमानी ॥
सूर्य की गर्मी से जब गर्माहट पाते ।
तब कुछ कर हम है पाते ॥
रात में रजाई में घुसकर ।
सो जाते हैं उसमें छुपकर ॥
पड़ रही है ये कड़ाके की सर्दी ।
जैसे पहनकर आई हो ठण्ड की वर्दी ॥

लेखक :धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

रविवार, 20 जून 2010

कविता :पेड़ पर नहीं रहा बकला

पेड़ पर नहीं रहा बकला

एक पेड़ में डालें चार ,
उस पर पत्ती लगीं बीस हजार ....
आधी पत्ती थीं हरी ,
बाकीं थीं जरी-जरी ....
एक दिन हवा आयी जोर से ,
जरी पत्ती गिरीं उस पेड़ से ....
अब पत्ती बचीं दस हजार ,
उन पर कीड़े लगे तीस हजार ....
खा गये पत्ती कर दिया खोखला ,
पेड़ में न बचा एक भी बकला ....

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर

शुक्रवार, 18 जून 2010

कविता : मिर्चा और कददू

मिर्चा और कददू
मिर्चा भइया, मिर्चा भइया ।
कददू बोले राम-राम भइया ॥
कददू बोला मैं तुझे खा जाउंगा ।
मिर्चा बोला मैं तुझे चबा जाउंगा ॥
कददू बोला मैं इतना मोटा हूँ ।
मिर्चा बोला मैं सिर्फ छोटा हूँ ॥
मुंह में तेरे घुस जाउंगा ।
कडवाहट मुंह में फैला जाउंगा ॥
कददू यह सुनकर वहां से भागा ।
मिर्चा भइया सोकर जागा ॥

लेखक :मुकेश कुमार
कक्षा :
अपना घर

गुरुवार, 17 जून 2010

कविता :बंदरिया नाच दिखाती

बंदरिया नाच दिखाती

एक बंदरिया नाच दिखावे ।
बन्दर खड़े-खड़े पछतावे ॥
मदारी रोज पैसा कमावे ।
बंदरिया बन्दर को चिढावे ॥
एक दिन बन्दर गुस्सा हो बैठा ।
बंदरिया बोले ले खाले भांटा ॥
बन्दर चिढ़कर गुस्से में बोला ।
चुप हो जा वरना जाग जायेगा मेरा शोला ॥
फिर भागेगी किसी के बरात में ।
तू खायेगी वहां पर छोला॥
मैं हो जाउंगा वहां पर भोला।
तू खाएगी तो हो जायेगा बवाल।।
मै कर दूगा जा कर बारात में धमाल।
लोग कहेगे क्या है इसका कमाल।।
एक बंदरिया नाच दिखावे।
बन्दर खड़े खड़े पछतावे।।
लेखक : मुकेश कुमार
कक्षा
अपना घर

बुधवार, 16 जून 2010

कविता :बरसात का महीना

बरसात का महीना

बरसात का महीना बड़ा सुहाना ।
जब देखो तब बारिश होती ॥
रिमझिम-२ बरसता पानी ।
रात को रहता है गरम-गरम ॥
कपड़े पहनते तो और गरम ।
दिन में देखो तो बारिश होती ॥
जिधर भी देखो घास ही दिखती ।
बरसात का महीना बड़ा सुहाना ॥

लेखक :सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 15 जून 2010

कविता :शोर

शोर

गाड़ियों एंव आदि वाहनों का ।
कितना होता है शोर ॥
इस शोर से आधी जनता ।
हो जाती है खूब सारा बोर ॥
इस शोर को कैसे रोका जाए ।
इस बात को पूरी दुनियाँ में बताया जाए ॥
गाड़ियों एवं आदि वाहनों का ।
कितना होता है शोर ॥

लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

सोमवार, 14 जून 2010

कविता :एक मकान में चार दुकान

एक मकान में चार दुकान

एक मकान में चार दुकान ।
बनते थे सब में पकवान ॥
चारो दुकानों में थे मोटे हलवाई ।
करते-रहते थे दिन-रात लड़ाई ॥
लड़ाई में क्या होते थे मुद्दे ।
दुकान में सौदे हो जाते थे मद्दे ॥
चारो दुकानों में सन्डे को होता था अवकाश ।
उस दिन चारो हलवाई नहीं करते थे बकवाश ॥
एक मकान में चार दुकान ।
बनते थे सब में पकवान ॥
लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 11 जून 2010

कविता ; प्रदूषण

प्रदूषण
प्रदूषण ने किया है परेशान ,
खोले हैं ये फैक्ट्ररियों की खान....
गर्मी से हैं अब सब बेहाल ,
मत पूछो अब किसी का हाल......
जब मार्च के महीने में है यह हाल ,
तो मई-जून आदमी हो जायेगा लाल..
आगे और पता नहीं क्या होगा ?
आदमी का कुछ पता नहीं होगा....
गाड़ी मोटर कार जो चलाते,
जाने कितना प्रदूषण कर जाते....
क्यों न करें हम साइकिल का इस्तेमाल ?
तब शायद सुधरे थोडा हाल ....
पड़ रही है गर्मी बहुत इस बार,
पहुँच गया है परा ४८ के पार....

लेखक :धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

गुरुवार, 10 जून 2010

कविता : एक मकान में चार दुकान

एक मकान में चार दुकान।
बनते थे सब में पकवान।।
चारो दुकानों में मोटे हलवाई।
करते रहते दिन रात लड़ाई॥
लड़ाई में क्या होते थे मुद्दे।
दुकान में सौदे हो जाते थे मद्दे ॥
चारो दुकानों में सन्डे को होता था अवकाश।
उस दिन चारों हलवाई नहीं करते थे बकवास॥
एक मकान में चार दुकान।
बनते थे सब में पकवान॥

लेखक : ज्ञान कुमार
कक्षा : सात

मंगलवार, 8 जून 2010

कविता : तापमान पर करो नियंत्रण

बढती जाती ये महगाई,
घटती जाती पेड़ पौधों की संख्या भाई।
बढती सूरज का तपन भाई,
बढती गर्मी होती दिक्कत सारी।
चलती लू जलती त्वचा हमारी,
होती बीमारी न्यारी।
जिसका इलाज न होता जल्दी भाई,
सोते रहते घर में भाई।
लोग देखे भाई करते रहते छि छि,
क्या हो गयी बीमारी इसको।
माता कहती मत पूछो भाई,
तुम घूमना मत धूप में भाई।
नहीं जल जाएगी त्वचा तुम्हारी,
हो जाएगी बीमारी यही भाई।
इसलिए कहते है भाई,
पेड़ पौधे मिलकर लगायो सब भाई।
वर्षा हो इतनी प्यारी,
जिससे हो हरयाली न्यारी।
सब घर में हो खुशिया प्यारी प्यारी,
पेड़ पौधे मिलकर लगायो सब भाई।

लेखक : अशोक कुमार
कक्षा : ७
अपना घर