रविवार, 30 मई 2021

कविता : आजाद परिंदे है हम

" आजाद परिंदे है हम "

 आजाद परिंदे है हम 

दुनिया से घमंड तोड़  देगें 

गलतियों  को सही करके  

सही रास्ते की  ओर मोड़ देंगे 

आजाद परिंदे है हम

पैरों पर खड़े होकर दिखाएगे 

एक दिन संसार को सपनों से सजाएगे  

आजाद परिंदे है हम 

पक्षी की तरह पूरा दुनिया घुम लगे 

गलतियों को सही करके 

सही रास्ते की ओर मोड़ देंगे  

कवि : अमित कुमार ,कक्षा :7th 

अपना घर

 

शनिवार, 29 मई 2021

कविता : "पैसो के पीछे भागते है "

"पैसो के पीछे भागते है "

कुछ लोग पैसो के पीछे भागते है | 

इन गरीबो को समझो ,

जो भुखमरी से पीछा नही छुड़ा पता है | 

सभी गाँव का तालाब सूख गए ,

पेड़ -पौधे भी रूठ गए | 

वह  कुआँ भी नस्त हो गए ,

जहा से पानी खीचा करते थे |

वह जमीन भी सूख गई ,

जहाँ फसल हस कर खिला करते थे | 

अबतो बादल भी रूठ गया ,

जो बूंदे बनकर टपका करते थे | 

वो मुस्कुराहट भी चली गई ,

जो वर्षा पहले दिखा करते थे | 

इन हालतो को देख कर ,

आँखों से आँसू टपक आते है | 

आधे पेट ही खा कर ,

जिंदगी जिया करते है | 

इन गरीबो को समक्षो ,

जो भुखमरी से पीछा नहीं छुड़ा पाते है | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7 

अपना घर


शुक्रवार, 28 मई 2021

कविता : " प्रकृति ने खुशहाली से "

" प्रकृति ने खुशहाली से "

 प्रकृति ने खुशहाली से ,

इस पर्यावरण को सजा दिया | 

निर्मल जल से ,

सबका प्यास बुझा दिया| 

सूरज की कड़कती किरणे ,

धरती के हर कोने में उजिया फैलाए| 

उन पेड़ पौधों को नव जीवन प्रदान कराए,

पक्षी के पाँखों को चमका  देता है | 

उन नाजुक से फूलों को खिलखिला देता है,

शीतल पवन के झोंकों | 

शरीर के हर अंग -अंग को छू जाता ,

प्रकति ने खुशहाली से |

पर्यावरण को सजा दिया,

कवि :प्रांजुल कुमार ,कक्षा :12 

अपना घर

कविता : " जिन्दगी के कुछ पल है "

" जिन्दगी के कुछ पल है "

 जिन्दगी के कुछ पल है | 

जिसे तुम्हे जीने को मिला,

अपनी यह अनजान सी जिन्दगी में | 

कुछ बड़ा करना है ,

अपने राह पर आने वाले हर | 

कठिनायो से ,

उससे तुम्हे ही लड़ना है | 

अपनी इस जिन्दगी में ,

 इस जिन्दगी के कुछ पल है | 

जो तुम्हे मिला ,

कुछ ऐसा करो अपनी | 

जिन्दगी में तुम ,

कि सारा जहाँ देखता रह जाए | 

अपने इस जिन्दगी के कुछ पल,

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

गुरुवार, 27 मई 2021

कविता : "मै जिंदा हूँ इस संसार में "

"मै जिंदा हूँ इस संसार में " 

मै जिंदा हूँ इस संसार में ,

ये मेरी मजबुरी नहीं है | 

मैं जिंदा हूँ इस संसार में ,

क्यों कि इस संसार को मेरी जरूरत है |

मै अकेला इस संसार में रह नही सकता ,

मुझे हवा , पानी , धूप चहिए | 

जिंदा रहने के लिए ,

आगे साथ चलने के लिए | 

एक नई दुनिया बसाने के लिए ,

वो भले ही क्यों ना | 

मनुष्य हो या हो फिर कोई जीव ,

कवि : नितीश कुमार , कक्षा :11 

अपना घर

 

 

 

बुधवार, 26 मई 2021

कविता: "लोगो में देश भक्ति तूने जगाया "

"लोगो में देश भक्ति तूने जगाया "

 लोगो में देश भक्ति तूने जगाया ,

ऐ कोरोना तूने सही किया जो दोबारा वापस आया | 

वापस चलने लगी थी वही जिंदगी ,

टूटने लगी थी लोगो की तुझे दिललगी |

बिना हाथ धोए किसी सामग्री का ग्रहड़ कर लेना ,

नाक ,कान को बिना झिजक के ही छू लेना | 

वापस आ गई थी वही घिसी पिटी जिंदगी ,

जिसकी वजह से आज है लोगो को खुद सेसमरदगी | 

गलत किया तूने जो आया विक्राल रूप लेकर ,

क्योंकि फिर से खुश होने लोग तुझे बराबरी कर टक्कर देकर | 

मैने मान तू सफल हुआ लोगो को विफल करने में

लेकिन तू नही जानता 

जरा भी देर नही लगती लोगो को फिर से सफल होने में 

कवि : समीर कुमार ,कक्षा :11 

अपना घर

मंगलवार, 25 मई 2021

कविता : "हाय ये गर्मी"

"हाय ये गर्मी"

हाय ये गर्मी ने मार डाला,

सूरज का भी बड़ा है पारा | 

टप -टप टपक रहा है पसीना,

पैर -हाथ हो या सीना | 

गरम हवाएं के झोके ख़तर नाक ,

लू से बचकर रहना मेरे यार | 

लाइट से भी हो गए हम परेशान,

न सुबह न रात में अब आराम | 

हाय ये गर्मी ने मार डाला ,

सूरज का भी बड़ा है पारा | 

बाहर घूमना हो गया बेकार,

कोरोना और गर्मीका है वॉर | 

हाय ये गर्मी ने मार डाला ,

सूरज का भी बड़ा है पारा | 

कवि : कुलदीप कुमार ,कक्षा :10 

अपना घर


 

सोमवार, 24 मई 2021

कविता : "कोमल पक्षियो का पंख"


"कोमल पक्षियो का पंख "

वह कोमल पक्षियो का पंख 

सपनों को पूरा करने का उमग

उन पर्वतों को छुने का लक्ष्य 

दुश्मनो से लड़ने ला दम 

उन सागरों को पार  करने की  सोच 

आसमान में उड़ने की चाहत 

वह कोमल पक्षियो का पंख 

सपनों को पूरा करने की चाहत 

अपने हौसलों को पूरा करने की सोच 

कवि : अमित कुमार, कक्षा :7 

अपना घर

 


शुक्रवार, 21 मई 2021

कविता :अगर हो जाए हम एक साथ खड़े

 

"अगर  हो  जाए  हम  एक  साथ खड़े "

 अगर  हो  जाए  हम  एक  साथ खड़े 

इस महामारी   में एक साथ लड़े 

एक दूजे को सर्तक करबाना  है 

इस समय  कोशिश है कि जान बचाना है 

कही भी जाना , मास्क अवश्य  लगाना 

झुण्ड में न रह , दो गज दूरी  बनाना है 

खासी या जुखाम , आए तो डॉक्टर  के संपर्क में आना है 

चाहे हो जितनी  जिल्लत फिर  भी एक जोर लगाना है 

इस कोरोना काल में एक दूजे का साथ निभाना है

कवि :प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12 

अपना घर

गुरुवार, 20 मई 2021

कविता : इस कड़कती मौसम

" इस कड़कती मौसम"

 इस कड़कती मौसम में,

हे वर्षा एक बूंद जल तो बरसा | 

नदियाँ  और झरनो को फिर से पुनर्जीवित  कराओ ,

उन खेतो को  फिर से हरित  बनाओ | 

उन खेतो में फिर से फसलग उगववो,

हे वर्षा एक बूंद जल तो बरसा | 

पियासे लोगों का पियास तो मिटाओ ,

उन नदियाँ और झरनो को फिर से जीवित बनाओ |

बंजर जमीन को हरित बनाओ ,

इस कड़कती मौसम में | 

हे वर्षा एक बूंद जल  तो बरसा |

कवि : अमित कुमार ,कक्षा ;7th 

अपना घर