बुधवार, 30 जून 2021

कविता: "ये गर्मी"

"ये गर्मी"

ये गर्मी ने तो हद कर दी | 

पसीना बहा -बहा कर सबका ,

कर दिया बुरा हाल | 

न कुछ समझ में आता ,

 सिर्फ़ लोगों को गर्मी | 

ये गर्मी ने तो सब का जीना ,

कर दिया हराम | 

गर्मी के नाम से घर से बाहर नहीं  निकलते हैं ,

सब लोग कूलर और पंखा के सहारे हैं | 

कवि : सार्थक कुमार ,कक्षा : 11th

अपना घर

 

 

 

 

मंगलवार, 29 जून 2021

कविता : "चाँद"

"चाँद"

चाँद से दूर रहकर भी | 

हम चाँद पर जाने की बात करते हैं ,

वहाँ के नाजारो को हम | 

अपने नजरों में उतारना चाहते हैं ,

बीते सदियो से देखते चले आए है |

इस चाँद को ,

आखिर कौन सी ऐसी रोशनी हैं | 

जो इसको इतना खूबसूरत बनाती हैं ,

कभी नही दिखती है कभी दिखती हैं | 

क्या रहस्य है इसका ,

जो अपनी ओर आकर्षित करती हैं | 

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा : 11th 

अपना घर

सोमवार, 28 जून 2021

कविता : "उस पंक्षी को देखो "

"उस पंक्षी  को देखो  "

उस पंक्षी  को देखो जो टक लगाए | 

पानी को देख रहा हैं ,

और अपने भोजन का तलाश कर रहा हैं | 

कितना कठीन है उनका जीवन,

कैसे रहते होंगे | 

पंक्षी को कितना दूर -दूर तक जाना पड़ता ,

होगा भोजन के तलाश में |

 जी जान लगा देते है ,

अपने भोजन के लिए | 

उस पंक्षी को देखो जो टक लगाए ,

पानी को देख रहा हैं | 

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर



रविवार, 27 जून 2021

कविता : "सच्चे किसान की पहचान "

"सच्चे किसान की पहचान "

सच्चे किसान की पहचान | 

एक इमान्दार किसान के वजह से होता है ,

वो अपने लिए नहीं सोचता | 

पर वो सब के लिए सोचता है ,

चाहें वो फसल की बात हो | 

लेकिन उन्हें बहुत चिंता होता हैं फसल के लेके ,

 फसल का बात हो तो | 

हर कठनाई का सामना करता हैं | 

इस लिए सच्चे किसान का पहचान, 

कवि :सूरज कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

शनिवार, 26 जून 2021

कविता :" मौसम से क्या है कहना "

" मौसम से क्या  है कहना "

मौसम से क्या  है कहना | 

जो हरदिन बदल जाए ,

उगते हुए सूरज को भी |

इन काले बादलों से ढ़क जाये ,

 बादलों से कुछ बुँदे वर्षा दे | 

सूखे पेड़ और फसलों का मुस्कान लौटा दे,

जरा इन बादलों  से कुछ बुँदे गिरा दे | 

सूखे  नदिया और झरनो को तू ,

फिर से पुनर्जिवित करवा  दे | 

 जरा इन बदलो से कुछ बुँदे वर्षा दे,

इन सूखते हुए पेड़ो को हरित बना दे | 

 जरा इन बदलो से कुछ बुँदे वर्षा दे,

बंजर सी जमीन का प्यास तो मिटा दे | 

कवि :- सनी कुमार ,कक्षा :7th 

"अपना घर "

 

 


 

शुक्रवार, 25 जून 2021

कविता : "रात को सपना देख रहा था "

"रात को सपना देख रहा था "

रात को सपना देख रहा था तो | 

लग रहा था कि मैं बेड पे सो रहा हूँ ,

 सुबह अचानक नींद खुला तो देखा | 

कि मैं तो बेड के नीचे सो रहा हूँ ,

सपनें मैं देखता हूँ तो | 

लगता हैं कि घूम रहा हूँ पूरा संसार ,

अचानक आँख खुलता तो | 

और कहीं होता हूँ पर ,

रात का दिन खांस होता हैं | 

कवि : रोहित कुमार ,कक्षा : 4 

अपना घर

गुरुवार, 24 जून 2021

कविता : "सपने "

"सपने  "

रात के सपने और दिन के सपने | 

दोनों में बहुत अंतर हैं ,

दिन में जो सपने देखतें है |

वो अपने सफ़लता के बारे में देखतें हैं ,

और रात में जो सपने देखतें हैं | 

जो अपने दुनिया के बारे में देखतें हैं ,

दिन के सपने हमेशा | 

असल दुनिया से जुड़ा रहता हैं ,

रात के सपने हमेशा | 

एक कलनीक दुनिया से होता हैं , 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा :11 

अपना घर

बुधवार, 23 जून 2021

कविता : " आसमान में तारे "

" आसमान में तारे "

 आसमान में तारे | 

दिखते है बहुत सारे ,

कुछ टिमटिमाते हुए | 

कुछ झिगमिगाते हुए ,

उन अंधेरी रातों में | 

जुगनू के तरह रोशनी फैलाते हुए | 

आसमान में तारे ,

दिखते है बहुत सारे |

कवि : गोपाल कुमार , कक्षा : 4

अपना घर

 

मंगलवार, 22 जून 2021

कविता : " मै अब भी याद करता हूँ "

" मै अब भी याद करता हूँ "

 मै अब भी याद करता हूँ | 

उस पल को ,

जब मै घुटनों के बल चलता था | 

मुझे याद हैं वह दिन ,

जब खटिए से गिर जाता था | 

मुझे याद है वह दिन ,

जब मै मिट्टी से सना रहता था | 

उसे डर था की कहीं गिर ना जाए कहीं वह ,

एसलिए उँगली पकड़ कर चलता था | 

उसे मालूम था कि खो ना जाए कहीं वह ,

एसलिए हाथ नहीं छोड़ता था | 

मै अब भी याद करता हूँ ,

उस पल को | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा :7 

अपना घर

सोमवार, 21 जून 2021

कविता : "जीओ खुलकर जीओ "

"जीओ खुलकर जीओ "

 जीने में  क्या बुराई हैं | 

 चाहें हम जैसे जीए ,

पर जीना तो हम सब को | 

चाहें खुश हो के जीए ,

और चाहें दुखी हो के जीए | 

जीना तो हर हाल में हैं ,

ऐसे जीने से क्या फायदा | 

जिसमे कोई मज़ा ही नहीं ,

जीओ तुम खुलकर जीओ | 

बिना डर के , बिना शर्म के ,

जीओ खुलकर जीओ | 

चाहें भले कितनी रुकावटें आए |

हमेशा तुम खुश हो के जीओ ,

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा :11 

अपना घर

 

 

 

शनिवार, 19 जून 2021

कविता : " चेहरें की हॅंसी "

" चेहरें की हॅंसी "

 चेहरें की हॅंसी | 

रूठती ही जा रहीं हैं ,

आँसु और गम दोनों | 

मिटटी हीं जा रहीं हैं ,

चेहरें पर उदासी बनी हैं | 

न चेहरें पर मुस्कुराहट है ,

 न आँसुओ पर कोई छाया |

न मन में कोई हिचकिचाहत ,

न गम पे कोई पैहरा | 

न पैरों में कोई बंधन ,

ये दिन रुठती ही क्यों जा रहीं हैं ,

कवि : सनी कुमार , कक्षा : 10 

अपना घर

शुक्रवार, 18 जून 2021

कविता : " ज़माना अब बदलता जा रहा हैं "

" ज़माना अब बदलता जा रहा हैं "

ज़माना अब बदलता जा रहा हैं | 

लोग और विचार बदलते जा रहें है,

इस घड़ी में सभी को ढ़लना होगा | 

बस कल्पना रहती हैं ,

आने वाले समय का क्या होगा | 

लोगों का भिजाज़ बदल रहा ,

सोंचने का अन्दाज़ बदल रहा | 

रीति -रिवाजें बैण्ड -बाजे ,

सब बदल रहें हैं | 

आने वाला हर कल बदल रहा हैं ,

पढ़ाई करने का स्तर बदल रहा |

तुम्हें बदलना होगा , हम को बदलना होगा ,

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12 

अपना घर

 


गुरुवार, 17 जून 2021

कविता : " यह रंग बिरंगे फूलों "

" यह रंग बिरंगे फूलों "

यह रंग बिरंगे फूलों को | 

चाहतीं हैं पूरी दुनियाँ ,

इस फूलों की खुशबू से | 

 महेकने लगतीं हैं फूलों की बगिया,

भरा हुआ फूलों की बगिया से | 

हर कोई इसे ले जाता हैं ,

इन फूलों की हैं इतनी तारीफ़ | 

जो सभी को हैं भाता ,

हर कोई इसे घर पर ले आता |

कवि : पिंटू कुमार ,कक्षा :6 

अपना घर

बुधवार, 16 जून 2021

कविता : "ये काले -काले बादल "

"ये काले -काले बादल "

ये काले -काले बादल | 

मन को करतें घायल ,

लेके अपने सांग बारिस के बूंदे | 

यह देखकर किसान भी रूठे ,

जब गिरना होता हैं तब | 

कहाँ निकल जाते हैं ये सब,

जब गिरती तेरी बूंदे |

तब सब तुझको ढूढ़े ,

ये काले -काले बादल | 

मन को करते घायल ,

कवि :  कुलदीप कुमार ,कक्षा : 10 

अपना घर

मंगलवार, 15 जून 2021

कविता : " मौसम का क्या कहना "

 " मौसम का क्या कहना "

 मौसम का क्या कहना | 

जो हसी -खुशी का महौल बना दे,

सूखने लँगे सारे पेड़ -पौधे | 

अब तो बादलो से कुछ बूद गिरा दे,

मौसम का क्या कहना | 

जो अंधकार को उजाले में बदल दे,

चारो तरफ है अंधेरा ही अंधेरा | 

अब तो अंधेरे -अंधेरे में दीपक जला दे,

जो हर एक चेहरे पर मुस्कान दिला दे | 

रूठे  है लोग तुझसे ,

अब तो गर्मी को सर्दी में बदल दे | 

जो चाँदनी रात में तारे दिखा दे ,

लोग इंतजार करते है तेरा | 

अब तो फूलो से बगिया महका दे,

कवि :रविकिशन कुमार  ,कक्षा :12 

अपना घर

सोमवार, 14 जून 2021

कविता: "मुझे लग रहा था ,ढडी "

"मुझे लग रही  थी ,ठण्डी  "

मुझे लग रही  थी  ,ठण्डी शाम को | 

मैने इकट्ठा किया कुछ घास ,

सब मिलकर आग जलाए  एक साथ | 

ठण्डी से नहीं कर रहा था , हाथ पाँव काम,

मैने आस -पास से लकड़ी का किया इंतजाम | 

आग पे बैठे -बैठे  हो गया ,

शाम के आधी रात |

अभी भी मै क्यूँ बैठा हूँ आग के पास,

कोहरा गिर रहा था मेरे आस -पास | 

सब मिलकर आग जलाए एक साथ ,

कवि : अमित कुमार  , कक्षा :7 

अपना घर

रविवार, 13 जून 2021

कविता :"जिंदगी की ही सुरवात"

" जिंदगी की शुरुआत "

 जिन्दगी की शुरुआत  | 

सूर्य की चन्द  किरणों  से होता है ,

सुबह की हवा चली पुरवइया || 

तन -मन कर उठा ,

ये जिंदगी की शुरुआत  |

एक नए उमंग की तरह होती है ,

जिंदगी की ही शुरुआत  | 

सूर्य की चन्द  किरणों से होता है | | 

कवि :गोविंदा कुमार , कक्षा :5th 

"अपना घर "

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

शनिवार, 12 जून 2021

कविता : " कुछ ऐसे ख्वाब है "

"  कुछ ऐसे ख्वाब है "

कुछ कुछ ऐसे ख्वाब है | 

जो पूरा नहीं कर सकते ,

पर उसके बिना हम | 

नहीं रह सकते ,

संग सपने हम खूब सजाते |

पर भविष्य में क्या होगा ,

ये हम नहीं समझ पाते | 

कुछ पल हम एक दूसरे के साथ होते है ,

उसी में सारी जिन्दगी का | 

बहाब होते है ,

अगर हम एक दुसरे से जुदा होते है | 

तो जिस तरह जुड़ा उसी तरह टूटती है ,

जैसे हम पहली बार मिलते है | 

तो पूरी -पूरी रात नहीं सोते है ,

तो सोच लो यार | 

कुछ ऐसे ख्वाब होते है , 

कवि : देवराज कुमार ,कक्षा : 11 

अपना घर


शुक्रवार, 11 जून 2021

कविता :" ये जीवन चींटी चाल चलता "

" ये जीवन चींटी चाल चलता "

ये जीवन चींटी चाल चलता | 

कोई रास्ता मालूम न पड़ता ,

कोई दास्ता सुनाने को न रखता | 

बस पल -पल की ठोकर खा कर ,

आगे ही आगे बढ़ता है जाता | 

हर मुसीबतो का सामना करता,

हर रास्ता अनजान है उसका | 

न खुद का कोई पहचान है उनका,

कहाँ जाकर रुकेगा | 

मालूम न पड़ता ,

क्योकि ये जीवन चींटी चाल चलता | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

बुधवार, 9 जून 2021

कविता : "जून की गर्मियाँ "

"जून की गर्मियाँ  "

याद रहे या न रहे | 

वो फरवरी की माह में झड़ती पत्तियाँ,

बाग -बगीचों में चहचहाटे | 

और खिलते फूलों की कलियाँ,

भूल कर भी न भूल  पाते  है | 

वो जून की गर्मियाँ ,

सुबह का सूर्योदय|

हवाओ को करवटे ,

गर्मी से भीग उढ़ते है| 

शरीर के हर रोंगटे ,

फलदार भी खूब बुलाता है | 

पेड़ो के आम से भरी शाखा है,

तरबूज, खरबूज खूब लुकाता है | 

ये ही जून की गर्मी की याद दिलाता है, 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12 

अपना घर


मंगलवार, 8 जून 2021

कविता : "बचपन "

"बचपन "

खिल खिलाहट भरी हँसी की आवाज है बचपन | 

माँ की प्यार है बचपन ,

पापा के आँखो का तारा है बचपन | 

खिलौनो की भंडार और नखरों की ,

भरमार है बचपन | 

आँगन खेल  का मैदान और,

पूरा घर ही संसार है बचपन | 

पेड़ पर चड़ना और दोस्तों से लड़ना,

दो पल में ही सबकुछ भुला कर | 

आपस में खेलना है बचपन ,

स्कूल में शैतानी करना | 

बहनें और भाई से मनमानी,

करना ही है बचपन |

जीवन में एक अनोखा पल है बचपन,

सबसे अलग और अलग है बचपन | 

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8 

अपना घर

 


सोमवार, 7 जून 2021

कविता : "देखा मैंने हजारो जिंदगी "

"देखा मैंने हजारो जिंदगी "

अब तक क्या देखा | 

देखा मैंने हजारो जिंदगी,

देखा मैने हजारो अज़नबी | 

देखा मैंने हसती जिंदगी ,

देखा मैंने खुशनसीब जिंदगी| 

देखा मैंने वेव्स और छोटी से छोटी जिंदगी,

और सबकी कहानी दो | 

जगहों पर ख़त्म होतीं है ,

एक ढीक उस तरह | 

जिस प्रकार उगे सूरज हो,

बादल छेक लेती हैं | 

और खाली हाथ लौटने पर,

बेवसकर देती है | 

दूसरा हसीन होतीं है,

जिस प्रकार चंद्रमा आकाश | 

में हमेशा बनी रती रहती है ,

और उगे सूरज को जाने का इतजार करती है |

 और अंधरे में रोशनी करती है ,

कवि: देवराज कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

रविवार, 6 जून 2021

कविता : "जब हम नाराज़ होते है "

"जब हम नाराज़ होते है "

हर रास्ते गलत दिखती है | 

हर बात तीखी लगती है ,

हर चीजे बेकार होते है | 

जब हम नाराज़ होते है ,

कोई समझाए तो| 

हमे समझ नहीं आता,

रिस्ते और दोस्ती | 

शत्रु है बन जाता ,

हर बात पर दूसरो दोषी ठहराते है | 

जब हम नाराज होते है ,

रोटी अच्छी नहीं लगती है| 

चावल पक्का नहीं लगता है,

माँ का हाथो का खाना |

भी गले में अटक जाता है,

मन पसंद मिठाई भी | 

पीका पड़जाता है ,

हर चीजों से मुँह बनाकर | 

बैठ जाते है ,

जब हम नाराज होते है | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11 

 अपना घर

 


शनिवार, 5 जून 2021

कविता : "वो दिन भुलाया नहीं जा सकता "

"वो दिन भुलाया नहीं जा सकता "

वो दिन भुलाया नहीं जा सकता | 

उस दिन की लगी आग सीने से ,

बुझाया नहीं जा सकता | 

जीन वीरो ने हस कर चूमे थे,

फ़ासी के फंदे | 

देशके आज़ादी के खातीर,

उन महान वीरो को अपने दिल से | 

उनका नाम हटाया नहीं जा सकता ,

वो दिन भुलाया नहीं जा सकता | 

जिसने देश को आज़ाद कराया ,

मुझे गर्व है उस देश के भुमी पर | 

जहाँ हज़ारो लोगो को लाइट का हर एक,

कटरा देश के भूमी को स्नेह हुए | 

कवि :संजय कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर 

शुक्रवार, 4 जून 2021

कविता : "ये कोरोना है महामारी "

"ये कोरोना है महामारी "

 ये कोरोना है महामारी ,

सब पे पड़ गया है भारी |

सिर्फ घर के अन्दर ही रहते है,

न हो पाता है अच्छे से पढ़ाई | 

क्योकि आ गया है कोरोना महामारी,

 लकडाउन बढ़ता ही जा रहा है |

हॉलिडे पर हॉलिडे बढ़ता ही जा रहा है,

घर पर ही दिन और रात काटे | 

ये कोरोना है महामारी ,

कवि : नवलेश कुमार ,कक्षा : 7 

अपना घर

बुधवार, 2 जून 2021

कविता : "ये संसार कब खुश होगा "

"ये संसार कब खुश होगा "

ये संसार कब खुश होगा | 

जब हर मौसम में रस होगा,

हर सड़को पर चमकते तारे होंगे | 

हर गाँव के गलियारो ये लाईटो की रोशनी फैले होगे ,

हर बच्चा पढ़ा -लिखा होगा | 

बूड़ो की भी अपना जगह होगा,

हर बचपन सबका खुसनुया होगा |

हर ममता के आँचल में अपना प्यार होगा ,

सबसे प्यारा है संसार हमारा | 

दुनिया है तो जीवन है हमारा ,

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10 

अपना घर

 

 

मंगलवार, 1 जून 2021

कविता: "बहती हवा "

"बहती हवा "

न जाने कहाँ से चली आई | 

मन्द -मन्द बहकर वातावरण में सफाई,

कभी भवन्डर तो कभी पूर्वाई | 

इस जगत में बहती हवा आई ,

साल के हर महीने में | 

फूल और बाग बगीचों में,

फसलों के कलियों में | 

लगता हैं कोई जादू समाई ,

इस जगत में बहती हवा आई | 

जब की मौंसम बेईमान है ,

बारिश का कोई ठिकाना न हो | 

फिर भी राहत सबको दिलाई ,

इस जगत में बहती हवा आई | 

कवि :प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर