" ये जीवन चींटी चाल चलता "
ये जीवन चींटी चाल चलता |
कोई रास्ता मालूम न पड़ता ,
कोई दास्ता सुनाने को न रखता |
बस पल -पल की ठोकर खा कर ,
आगे ही आगे बढ़ता है जाता |
हर मुसीबतो का सामना करता,
हर रास्ता अनजान है उसका |
न खुद का कोई पहचान है उनका,
कहाँ जाकर रुकेगा |
मालूम न पड़ता ,
क्योकि ये जीवन चींटी चाल चलता |
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11
अपना घर
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