"जून की गर्मियाँ "
याद रहे या न रहे |
वो फरवरी की माह में झड़ती पत्तियाँ,
बाग -बगीचों में चहचहाटे |
और खिलते फूलों की कलियाँ,
भूल कर भी न भूल पाते है |
वो जून की गर्मियाँ ,
सुबह का सूर्योदय|
हवाओ को करवटे ,
गर्मी से भीग उढ़ते है|
शरीर के हर रोंगटे ,
फलदार भी खूब बुलाता है |
पेड़ो के आम से भरी शाखा है,
तरबूज, खरबूज खूब लुकाता है |
ये ही जून की गर्मी की याद दिलाता है,
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12
अपना घर
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