"बहती हवा "
न जाने कहाँ से चली आई |
मन्द -मन्द बहकर वातावरण में सफाई,
कभी भवन्डर तो कभी पूर्वाई |
इस जगत में बहती हवा आई ,
साल के हर महीने में |
फूल और बाग बगीचों में,
फसलों के कलियों में |
लगता हैं कोई जादू समाई ,
इस जगत में बहती हवा आई |
जब की मौंसम बेईमान है ,
बारिश का कोई ठिकाना न हो |
फिर भी राहत सबको दिलाई ,
इस जगत में बहती हवा आई |
कवि :प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें