"जीओ खुलकर जीओ "
जीने में क्या बुराई हैं |
चाहें हम जैसे जीए ,
पर जीना तो हम सब को |
चाहें खुश हो के जीए ,
और चाहें दुखी हो के जीए |
जीना तो हर हाल में हैं ,
ऐसे जीने से क्या फायदा |
जिसमे कोई मज़ा ही नहीं ,
जीओ तुम खुलकर जीओ |
बिना डर के , बिना शर्म के ,
जीओ खुलकर जीओ |
चाहें भले कितनी रुकावटें आए |
हमेशा तुम खुश हो के जीओ ,
कवि : नितीश कुमार ,कक्षा :11
अपना घर
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