सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

कविता: मेरी चाह


"मेरी चाह"

मेरी  हर चाह एक ऐसा हो,
दुनिया में हर एक जैसा हो । 
हर  गरीब की एक छाया हो ,
जहाँ में बंधु और भाईचारा हो ।
कंही दुःख का कोई नाम न हो,
खुशियों से भरा हर शाम हो । 
दुनियां में हर किसी का नाम हो ,
जिंदगी में हर कोई महान हो ।
                                                                                         कवि: विक्रम कुमार, कक्षा 6th, अपना घर, कानपुर

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

कविता: ये साल बेहाल

" ये साल बेहाल"

जनवरी में हम सर्दी झेले,
फरवरी में शाम को खेले । 
परीक्षाएं होती है मार्च में ,
परिणाम आये अप्रैल में । 
मई है पूरा लू का महीना,
जून में आये खूब पसीना । 
जुलाई में जमकर बूंद -बांदी ,
अगस्त में मिली हमको आज़ादी । 
सितम्बर है शिक्षक दिवस का,
अक्टूबर में वध किया रावण का।
नवम्बर है बच्चों  का महीना ,
 दिसम्बर है अब आखरी महीना । 
नहीं पता चला कैसा बीता साल,
लेकिन ये साल है पूरा बेहाल ।
                                                                                       कवि: प्रांजुल कुमार, कक्षा 7th, अपना घर, कानपुर

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कविता: जो है सही

"जो है सही"
अब हवा क्यों नहीं चलती, 
अब चिड़िया क्यों नहीं चहकती |
छोटे बच्चे मुस्कराते क्यों नहीं, 
ये समय रुका क्यों नहीं |
अब मेरी भी सुन लो, 
जो कह रहा हूँ सही | 
ये सूरज क्यों नहीं कुछ कहता, 
चंदमा क्यों नहीं चमकता |
समुद्र की लहरें क्यों नहीं गाता, 
अब फूल क्यों नहीं महकता |
अब मेरी भी सुन लो, 
जो कह रहा हूँ सही | 
फैक्ट्रियां अब चलेगी नहीं, 
कोई कूड़ा अब होगा नहीं | 
सारी गन्दगी करो सही, 
चाहे वो फैला हो कंही |
अब सबसे कहना है यही, 
करो मिलकर गंदगी सही |

कवि: देवराज, कक्षा 7th, अपना घर, कानपुर

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

कविता: मन

"मन"
वो मन बेचैन हमारा,
क्या करे दिन में काम का मार |
मन मारकर बैठा प्यारा,
थक हुआ सा हो जाता |
मन भी वक्त में काम आता,
दिमाग से वह तनाव में हो जाता |
पता न किस बीमारी से ग्रस्त हो जाता,
हर किसी को त्रस्त कर जाता |
मन है ये मन का मारा,
वो मन बेचैन हमारा |
कवि: राज, कक्षा 7th, अपना घर, कानपुर