बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कविता: जो है सही

"जो है सही"
अब हवा क्यों नहीं चलती, 
अब चिड़िया क्यों नहीं चहकती |
छोटे बच्चे मुस्कराते क्यों नहीं, 
ये समय रुका क्यों नहीं |
अब मेरी भी सुन लो, 
जो कह रहा हूँ सही | 
ये सूरज क्यों नहीं कुछ कहता, 
चंदमा क्यों नहीं चमकता |
समुद्र की लहरें क्यों नहीं गाता, 
अब फूल क्यों नहीं महकता |
अब मेरी भी सुन लो, 
जो कह रहा हूँ सही | 
फैक्ट्रियां अब चलेगी नहीं, 
कोई कूड़ा अब होगा नहीं | 
सारी गन्दगी करो सही, 
चाहे वो फैला हो कंही |
अब सबसे कहना है यही, 
करो मिलकर गंदगी सही |

कवि: देवराज, कक्षा 7th, अपना घर, कानपुर

कोई टिप्पणी नहीं: