गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

''किस किस की सुरक्षा ''

''किस किस की सुरक्षा ''
मुकेश अम्बानी जैसे उद्योगपति ,
खतरे से नहीं है खाली 
सरकार हमारी दे रही गाली । 
उनकी सुरक्षा के  लिए सी .आर .पी .ऍफ़ बल शाली ॥ 
सरकार को चिंता है तो पैसे वालो की ,
भाड़ मे  जाए दुनियादरी ,
लूट रही है जिसकी आबरू ,
वो है इस जंहाँ की सारी नारी 
नारी की सुरक्षा करना ,
उन पर हुए जुल्म का ,
उनको इन्साफ दिलाना ,
दायित्व हमारी सरकार का । 
ऐसा क्या बात है अम्बानी मे ,
जो उन्हें सुरक्षा देने  की तैयार ,
 सुरक्षा देना है तो सबको दो ,
मजदूर ,किसान हो बेरोजगार जनता सारी ,
 सारे उद्योग - धंधे चलते है ,
मजदूरों के बल पर ,
कृषि करे किसान भईया ,
बिना सुरक्षा अपने दम पर ,
ऐसा नहीं न होना चाहिए ,
सबको एक सामान अधिकार चाहिए ,
चाहे वह हो पैसा वाला ,
या हो वह मजदूरी  करने वाला  ,
सवाल हमारा यही है ,
हम इसको ही दोहराए ,
किस -किस की सुरक्षा की जाए ,
यह सरकार हमें बताये । 
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा :१ १ 
अपनाघर , कानपुर 


सोमवार, 22 अप्रैल 2013

कविता : प्राणी जा रहा

 प्राणी जा रहा 

प्राणी बड़ा ही बंधा हुआ ,
साबित होता जा रहा है .....
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे से जा रहा है .....
जो वो कर रहा है,
वही करने की वो सोच रहा है ......
न उसकी अपनी समझ है ,
न ही अपनी सोच है ......
जो देख रहा है प्रक्रति और संसार से ,
वो वही कर रहा है ......
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे जा रहा है ......
अब वह समय दूर  नहीं ,
जिसमें प्राणी को प्राणी बाधेगा .....
आँगन की उस चौपाल में,
जहां प्राणी ही प्राणी आयेगा .....
प्राणी को देख के ,
प्राणी के मुख में मुस्कान होगी .....

 हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे जा रहा है .......

                           लेखक  : अशोक कुमार
                           कक्षा : १०
                           अपना घर

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

कविता - मुकाम पा लिया

 मुकाम पा लिया 

भोर का समय था ,
मैं  जा रहा था राहों से .....
सून- सान थी सारी जगह ,
मैं डर रहा था तम के गर्दिश में .....
सहसा चली पवन तीव्रता से ,
भागे काले मेघ डरकर ....
खिल उठा रवि हंसकर ,
मन से निकला मेरे डर .....
पवन थी इतनी ठंडी ,
ताजगी भर गयी मेरे जीहान में ....
आगे बढ़ा तो एक तितली आयी ,
आ बैठी मेरे हाथ में ......
कितने वर्णों की थी ,
की मैं  कुछ कह नहीं सकता .....
 देख - देख मैं खूब हंसता ,
उसकी सुन्दरता के बारे में सबसे कहता .....
जिस कार्य से निकला था ,
वह कार्य मैं तो भूल गया .....
आ गयी मेरी मंजिल ,
मैने अपना मुकाम पा लिया ...

                                                             लेखक -आशीष कुमार
                                                             कक्षा -१०
                                                             अपना घर  

कविता - क्यों नहीं याद

 क्यों नहीं याद 

वो भगत का शहीद खून ,
वो जवानी झांसी की रानी की  ........
जो झकझोर दिया था ,
उन गोरे अंग्रेजों को ......
लेकिन आज के इस भ्रस्ट समाज में,
भ्रस्टाचारियों की है भरमार ......
इन  भ्रस्टाचारियों से ही ,
चल रही है हमारी ......
मिली जुली सरकार ,
आज के इस  भ्रस्ट समाज में ......
रह - रहे हैं सभी एक साथ ,
अपने हक़ को मांगने के लिए .....
आगे बढ़ नहीं रहे कभी ,
क्यों हम किसी का जुल्म सहें ?
क्यों न हम अपना हक़ लेकर रहें?

                                                          लेखक -ज्ञान कुमार
                                                          कक्षा -९
                                                          अपना घर 

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

कविता - मेरा गाँव

              कविता

 मेरे गाँव की सुनों कहानी ......
लाइट के प्रति हो रही मनमानी,
कभी रात में लाईट आती है ....
तो कभी हमेशा के लिए जाती है,
विधुत व्यवस्था  है बड़ी ख़राब .....
इस पर चलता है केस्को का राज,
विधुत से गाव के लोग परेशान ......
इसीलिये नहीं है गाँव की शान ,

                                        लेखक -मुकेश कुमार
                                         कक्षा -  १ १