बुधवार, 31 मार्च 2010

कविता बन्दर

बन्दर
मैं हूँ बन्दर मैं हूँ बन्दर,
मैं हूँ भूरा और सफेद बन्दर...
अपनी पूंछ हिलाता हूँ,
खों खों खों खों करता हूँ.....
इस दर से उस डाल पर जाता हूँ,
पडों मे गुजारा करता हूँ .....
जब मैं बगीचे में जाता हूँ,
अज के पेड़ पर चढ़ जाता हूँ......
कच्चे फल नीचे तोड़ के देता हूँ,
पके हुये फल मै खा जाता हूँ......
आशीष कुमार कक्षा ७ अपना घर कानपुर

मंगलवार, 30 मार्च 2010

कविता चिड़ियाँ आयी

चिड़ियाँ आयी
चू -चू करती चिड़ियाँ,
आई दाना भर के मुहं में....
लाई बच्चों को खिलाई,
फिर गाना गई फिर....
खूब मौंज मनाई,
चू -चू करती चिड़ियाँ.......
लेखक चन्दन कुमार कक्षा अपना घर

रविवार, 28 मार्च 2010

कविता पैसे का जमाना

पैसे का जमाना
पैसे का नाम बहुत पुराना है ,
महंगाई क जमाना है....
सब्जी कहाँ से लाना है,
मैंपैसा कहाँ से लाऊगा.....
अगर पैसा भी लाऊगा,
किन्तु सब्जी नहीं ला पाऊगा.....
देश में इतनी बढ़ गई महंगाई,
किन्तु अब रोटी खाई न गई.....
लोग कहते दाल रोटी से,
गुजरा चल जायेगा......
लोग कहने लागे नमक रोटी खाऊगा,
किन्तु पैसा कहाँ से लाऊगा.....
नमक भी महगा हो गया,
सरकार क बजट बढ़ गया....
और इंशान भूखा मर गया......
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर

बाल विवाह आज भी जारी है

बचपन खोया सिंदूर के रंगों में ........

खेल खिलौने पढना लिखना,
सब छूटा इस बचपन
में ....
धमा चौकड़ी उछल कूद,
खोया सिंदूर के रंगों में....

हुई पराई सब अनजाना,
देखो मेरे इन आँखों में....
घर के चौके घर के चूल्हे,
खेल बने अब आँगन में ......
तुमसे बस इतना मै पुछू,
ये सजा दिया क्यों बचपन में

क्या लौटा पाओगे तुम ,
मुझको मेरे बचपन में....?????

महेश कुमार, अपना घर





शनिवार, 27 मार्च 2010

कविता :प्यारे बच्चो आओ

प्यारे बच्चो आओ

आओ प्यारे बच्चो आओ ।
एक मेरी बात सुन जाओ ॥
पर्यावरण क्यों गंदा है ।
साफ इसे क्यों नहीं करते हैं ॥
अगर पर्यावरण साफ बनाना है ।
कूड़ा कचरा आदि नहीं फेकना है ॥
पन्नी का प्रयोग नहीं करना है ।
कपड़े का कोई झोला बनाओ न ॥
उसमें गुड-चीनी भर लाओ न ।
आओ प्यारे बच्चो आओ ॥
लेखक :मुकेश कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

कविता आओ भ्रष्टाचार मिटायें

आओ भ्रष्टाचार मिटायें

देश की सेवा करुगा,
भ्रष्टाचार को मिटाऊगा....
नयी सरकार नया कानून,
ये होगा अपना अधिकार.....
यही होगा नया नारा,
भ्रष्टाचार हैं इतना सारा.....
फिर भी अपना देश महान,
चारों ओर है इसका नाम....
चलो करो अपने देश की सेवा,
यही जीवन का असली मेवा......
मिलकर सब भ्रष्टाचार मिटाये ,
भ्रष्ट अफसरों को सजा दिलाये.....
भ्रष्टाचारी नेताओ को दूर भगाये,
देश को अपने खुशहाल बनायें.........
लेखक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर कानपुर

कविता कबूतर ताल किनारे

कबूतर ताल किनारे
एक कबूतर ताल किनारे,
रहता था चीटे के संग......
एक बार शिकारी आया ताल किनारे,
कबूतर था शिकारी के ताक में....
शिकारी ने अपना जाल बिछाया,
उसके आँगन में.....
चीटी ने पहले बताया था,
की तुम्हारे आंगन में.....
शिकारी ने जाल लगाया हैं,
जिससे कबूतर न आया अपने आँगन में.......
अपना घर बनाया दूसरे पेड की डाल में.....
लेखक ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

गुरुवार, 25 मार्च 2010

कविता :छोटे-पौधे कितने अच्छे

छोटे-पौधे कितने अच्छे

छोटे-पौधे कितने अच्छे ।
फूल लगे हैं कितने अच्छे ॥
गेंदा गुलाब फूल हैं अनेक ।
बगीचे में लगते हैं सब एक ॥
पौधे-हमें लगते अच्छे ।
कितने प्यार कितने अच्छे ॥
कलियाँ खिलतीं खिलता फूल ।
कितने अच्छे लगते फूल ॥
छोटे- पौधे कितने अच्छे ।
पौधे हमें लगते अच्छे ॥
कलियाँ खिलती खिलता फूल ।
कितने अच्छे लगते फूल ॥

लेखक :धर्मेद्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

बुधवार, 24 मार्च 2010

वो आते प्यारे बापू

वो आते प्यारे बापू

वह आता ।
बस्ती के अन्दर ॥
लाठी और डंडा लेकर ।
सिर पर उसके टोपी ॥
बदन में एक धोती ।
आँखों में एक गोल चश्मा ॥
सबको देता अपना प्यार ।
सबसे कहता -२ ॥
हिन्दू हो या मुस्लिम ।
सब हैं हम भाई- भाई ॥
येसी हमको उसने सीख दी ।
दुनियाँ है उसको प्यारी ॥
दुनियाँ करती उनको प्यार ।
वो थे हमारे बापू प्यारे ॥
जिनके नाम से ये दुनियाँ महान ।
वह आता ॥
बस्ती के अन्दर ।
लाठी और डंडा लेकर ॥

लेखक :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :पुलिस दरोगा एस.पी .आये

पुलिस दरोगा एस.पी.आये

पुलिस दरोगा एस.पी.आये ।
संग में अपने दो कैदी लाये ॥
उसमें एक कैदी चोर था ।
दिखने में कमजोर था ॥
रात में चोरी करता था ।
अपने बच्चों का पेट भरता था ॥
दूसरा कैदी आतंकी था ।
सारे देश में आतंक फैलाता था ॥
आतंक में बहुत से लोग मरते थे ।
आतंकी हमला करता था ॥

लेखक :हंसराज कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

कविता :पेंड़ अगर हम बन जाएँ

पेड़ अगर हम बन जाएँ

पेड़ जैसे हम बन जाएँ ।
किसी के सहारे न रह जाएँ ॥
जीवन है सब का अलग-अलग ।
सबको एक दिन मर जाना है ॥
पेड़ अगर हम बन जाएँ ।
दूसरे के बिना जीवित रह जाएँ ॥
खुशी-खुशी के गीत गाएँ ।
दुनियाँ का मन बहलायें ॥
फूल खूब दुनियाँ को दे हम ।
दुनियाँ रहे हमेशा खुश ॥
पेड़ अगर हम बन जाएँ ।
किसी के सहारे न रह जाएँ ॥

लेखक :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :आतंकवाद

आतंकवाद

कैसे हैं भइया यह आतंकवाद ।
करते रहते देश को बरबाद ॥
कहाँ से आते हैं आतंकवादी ।
करते रहते देश की बर्बादी ॥
जाने कितनी जाने जाती ।
फिर भी इनको दया न आती ॥
मुम्बई में बम ब्लास्ट किए ।
पता नहीं कितनी जानें लिए ॥
बम ब्लास्ट ये खूब हैं करते ।
मरने से यह नहीं है डरते ॥

लेखक :धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा :७
अपना घर

बुधवार, 17 मार्च 2010

कविता सोने की चिड़ियाँ

सोने की चिड़ियाँ
सोने की चिड़िया ,
खाये मिट्टी की गोलियां ,
घुमे गलियों गलियां.....
लाये सब की चिट्ठियां,
घर में छा जाये खुशियाँ.....
सब सोचे कब आयेगी चिट्ठियां,
बच्चे सोचे कब होगी स्कूल की छुट्ठियां ....
लेखक अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता कड़ाके की ठंडी

कड़ाके की ठंडी
बड़ी कड़ाके की ठंडी आयी ,
साथ में अपने पानी लाई...
ओष भी घास में लायी ,
थोडा पानी भी लाया .....
ठंड से लोग बचते हैं,
घर से बहार नहीं निकलते हैं....
ठंडी को दूर भागते हैं,
अपने को स्वच्छ बनाते हैं.....
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 16 मार्च 2010

कविता चुहिया बीमार हैं

चुहिया बीमार हैं
आज रविवार हैं ,
चूहे को बुखार हैं....
चुहिया बीमार हैं,
डाक्टर बिल्ली दुश्मन हैं.....
वह अगर आयेगी,
तो हम दोनों को खा जायेगी.....
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता लड़का जब आएगा

लड़का जब आएगा
लड़का आया लड़का आया ,
हीरो बन कर लड़का आया....
कुत्ते को भी साथ ले आया,
लड़का आया लड़का आया.....
लड़का बहुत एक्शन देखता हैं,
लड़की को साथ ले आया....
लड़का आया लड़का आया....
लेखक जमुना कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता महारानी

महारानी
एक थी महारानी विक्टोरिया रानी ,
वह सुनाती थी सबको अच्छी कहानी....
जिसमे हुआ करते हिन्दुस्तानी नाना नानी,
एक बार जब उन्हें पता चला की हिंदुस्तान में....
सुनायी जाती हैं खूब अच्छी अच्छी कहानी,
जिसमे रहते हैं केवल नाना नानी.....
उसी समय आयी विक्टोरिया रानी,
उसने हिन्दुस्तान में आकर सीखी हिन्दुस्तानी कहानी.....
वह भी अपने देश में जाकर सुनाती थी हिन्दुस्तानी कहानी,
तभी से ख़त्म होयी इग्लैंड में नाना नानी की कहानी.....
एक थी महारानी विक्टोरिया रानी.....
लेखक :सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

सोमवार, 15 मार्च 2010

कविता: होली

होली
होली आई होली आई
रंग बिरंगी होली आई
सबके मन में खुशिया छाई
साल में एक बार होली आती हैं
सबका मन बहलाती है
हरी ,नारंगी रंग लाती है
बच्चे पिचकारी मे रंग भरते है
रंग डालने मे किसी से नहीं डरते है
बच्चो का त्यौहार यह होता है
बच्चे रंग को नहीं खोता है
ऊचा , नीच का भाव छोड़कर
जाती , पाती का भाव छोड़कर
आपस मे मिल जाते है
एक दुसरे को अबीर लगाते है
खूब मिठाई खाते है
होली आई होली आई
रंग ,बिरंगी होली आई
गाँव ,शहर में खुशियाँ छाई
धूम ,धड़ाका खूब मचाई
होली आई होली आई
लेखक : मुकेश कुमार
कक्षा :
अपना घर ,कानपुर

कविता कभी न पहुचना एवरेस्ट शिखर के पास

कभी न पहुचना एवरेस्ट शिखर के पास
यह संसार हमारा ,
यह भूमि हमारी....
सबको हैं जीने क अधिकार,
एवं सब बने एक दिन महान....
कभी न बनाना इतने महान,
की पहुच जाओ एवरेस्ट शिखर के पास.....
मत भूलना कभी अपनी औकात,
रहना इसी भूमि....
एवं विश्व ग्राम के साथ,
चाहे क्यों न बन जाऊं महाराज....
सभी से मिलाना उसी तरह से,
जैसे चलते थे तुम....
अपने मित्रो के संग,
लेकिन कभी न बनना इतने महान....
की पहुँच जाओं एवरेस्ट शिखर के पास.....
लेखक अशोक कुमार कक्षा ७ अपनाघर कानपुर

कविता : तालाब

तालाब

एक गाँव के पास में
एक बड़ा सा तालाब था
पास में उसके एक पेड़ था
तालाब के पास हरियाली है
बच्चे उसमें खेल-कूद करते
फिर बच्चे खूब नहाते हैं
और बच्चे को मजा आता है
और खेतों में भी खेलते हैं
फिर तालाब किनारे आते हैं
और खूब मजे से नहाते हैं
फिर वापस घर चले जाते हैं
घर में मौंज उड़ाते हैं

लेखक :जितेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ


पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ ।
प्रदूषित होन से देश को बचाओ ॥
अगर देश प्रदूषित हो जाएगा ।
जीना देश में असम्भव हो जाएगा ॥
पेड़ लगाने से बहुत फायदे होते हैं ।
आँक्सीजन ,ज्यादा हमें देते हैं ॥
उसी से हम जीते हैं ।
पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

लेखक :चन्दन कुमार
कक्षा :
अपना घर

रविवार, 14 मार्च 2010

कविता : जिन्दगी दो पल की

जिन्दगी दो पल की

इंसान की जिन्दगी की सिर्फ ,
दो पल की होती है .....
उसी में जीना और उसी में मरना ,
यही है जिन्दगी का मतलब .....
इंसान जीता है कुछ पाने के लिए ,
लेकिन सब कुछ पाते- पाते .....
सब कुछ खो देता है ,
आखरी में ठोकर खा कर ही .....
उसकी जान चली जाती है ,
इंसान की जिन्दगी दो पल की होती है .....

लेखक :हंसराज कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता स्वय करे खुशी

स्वयं करे खुशी
बादल गरजे गड़ गड़ गड़ ,
बिजली चमके चम चम चम....
पानी बरसे झम झम झम,
झूला झूले बच्चे हम....
छाता लेकर निकले हम,
पानी बोला थम थम थम....
अब जाता हूँ स्वयं,
खुशी से नाचे गाये हम....
क्रिकेट खेलने निकले हम.....
लेखक सोनू सिंह कक्षा ८ अपना घर कानपुर

कविता बैंगन

बैंगन
बैंगन हैं गोल -गोल ,
बैंगन की जय बोल.....
बैंगन जरा बोल लो,
थोडा सा गाँव में घूम लो....
बैंगन चलो झूम लो,
बैंगन हैं गोल -गोल....
लेखक चन्दन कुमार कक्षा ४ अपना घर कानपुर

शनिवार, 13 मार्च 2010

कविता :हम सब बीमार पड़ते

हम सब बीमार पड़ते

जब- जब नाख़ून हुए बड़े,
गंदगी उसमें भरना शुरू हुयी ।
देखने में अच्छे न लगते,
सफाई ठीक से कर न पाते।
गन्दगी उसमें भरी रहती,
खाने के साथ में।
मुँह के अन्दर जाती,
अनेक बिमारी के लक्षण होते।
झट से हम बिमार पड़ते,
डाँक्टर के पास जब जाते।
डाँक्टर झट से दवा है देता,
नाख़ून काटने को साथ में कहता।
नाखुनो को हमेशा रखो साफ़,
बीमारी के समूह में।
कभी न हो तुम साथ,
जब जब नाख़ून हुए बडे,
तब तब बीमारी हुई हमारे साथ।

लेखक : अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

कविता कोयल


कोयल

कोयल हूँ मैं कोयल हूँ ,
काली रंग की मैं कोयल हूँ....
कौवा को बेकूप बनती हूँ,
और कौवा बेकूप बन जाता हैं ....
मैं अपना अंडा कौवा के,
घोसले में रख देती हूँ....
और कौवा मेरा अंडा सेता हैं,
और मेरे बच्चे को पाल लेता हैं....
जब मेरा बच्चा थोड़ा सा बड़ा हो जाता हैं,
तब कौवा उसे अपनी चीजे कुछ न देता....
अपने घोसले से भगा देता हैं,
और फिर कौवा पस्ताता हैं....
और कोयल गीत गाती हैं,
फिर कोयल उड़ जाती हैं....
लेखक हंसराज सिंह कक्षा ६ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 11 मार्च 2010

कविता :काला कौआ गुस्से में भड़का

काला कौआ गुस्से में भड़का

एक था कौआ
एक था बउवा
कौआ रोता ,बउवा सोता
जब बउवा रोता ,तब कौआ सोता
एक दिन एक उल्लू आया
संग में अपने एक साड़ी का पल्लू लाया
उल्लू बोला ये लो साड़ी का पल्लू
बउवा के सिर पर डाल मेरे लल्लू
गुस्से में आकर कौआ बोला अबे उल्लू
निकल ले उठा के अपना साड़ी का पल्लू


लेखक :आशीष सिंह
कक्षा :
अपना घर

कविता: रंग -बिरंगी चिड़ियाँ

रंग -बिरंगी चिड़ियाँ

रंग -बिरंगी चिड़ियाँ आयें ।
पूरब से पश्चिम को जायें ॥
जो -जो चिड़ियाँ न उड़ पायें ।
धरती पर वो नाचे -गायें ॥
रंग -बिरंगी चिड़ियाँ आयें ।
उड़ -उड़ कर वो नदी में जायें ॥
वहां पर अपनी प्यास बुझायें ।
रंग -बिरंगी चिड़ियाँ आयें ॥

लेखक :ज्ञान कुमार, कक्षा , अपना घर

बुधवार, 10 मार्च 2010

कविता :जनसंख्या

जनसंख्या

जनसंख्या में क्यों हो रही वृद्धि ।
भारत है एक छोटा सा देश ॥
जनसंख्या है भारत में कितनी ।
नहीं किसी को पता है भाई ॥
जनसँख्या पार कर गई अरबों की गिनती ।
एक घर में जो दो बच्चे ॥
तभी तो एक वह कुशल परिवार ।
नहीं कभी दुखी रहेगें माता- पिता और बच्चे ॥
बच्चे लिखकर होगें सच्चे ।
जनसंख्या में क्यों हो रही है वृद्धि ॥

लेखक :सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 9 मार्च 2010

कविता : पृथ्वी

पृथ्वी

पानी की बढ़ती मात्रा
ले डूबेगी पृथ्वी को
पिघल रही बर्फ पर्वतों से
और बढ रहा है पानी
कट रहें पेड़ कम बचे हैं जंगल
बढ रहे मकान बढ रहीं हैं फैक्ट्रियां
काम करो ये फैक्ट्री
कम होगा ये धुंआ
बंद करो ये पेड़ काटना
बर्फ पिघलना होगी कम
बचेगी नष्ट होने से पृथ्वी
और बचेगा आदमी
मिलेगा जीवन फिर से
और बचेगी ये पृथ्वी
लेखक :सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर

सोमवार, 8 मार्च 2010

कविता - होली का दिन आया



होली का दिन आया

होली का दिन आया है
सब के मन में खुशियाँ लाया है ॥
होली में लाल गुलाबी सभी रंग हैं मिल जाते
तो होली का मजा कुछ और ही हो जाता है ॥
होली का त्यौहार सभी को आपस में मिलाता है
सभी रंग में भंग हो जाते हैं
आपस में सभी लोग मिल जाते हैं
मस्त होकर गाना गाते हैं
होली का दिन आया है
खुशियाँ सभी के मन में लाया है

लेखक :हंसराज कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 6 मार्च 2010

कविता -दंगा

दंगा
एक बार शेर और बकरी में हो गया दंगा ।
बकरी बोली हिम्मत है तो ले मुझसे पंगा ॥
शेर ने बकरी की बात को सुनकर ।
बोला येसे शब्दों को चुनकर ॥
शेर और बकरी की बातों को सुनकर ।
तभी अचानक आया नन्हा खरगोश ॥
और बोलने लगा शेर की तरफ ।
बकरी बोली चुपकर कछुए से हार गया ॥
बातों ही बातों में शेर बकरी से हरा ।
तब शेर ने गुस्से में बकरी को मारा ॥
बहाना बना कर बकरी गई भाग ।
तभी नन्हा खरगोश गया जाग ॥
डर के मारे खरगोश वहाँ से भागा ।
शेर बेचारा है कितना अभागा ॥

लेखक :धर्मेन्द्र
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

कविता -पुलिस न हुई किसी भाई

पुलिस हुई किसी भाई

एक चोर चार बन्दर ,
पाँचो गये जेल के अन्दर ......
चोर का नम्बर चार सौ बीस ,
एक सिपाही बोला चल मसाला पीस ......
एक बन्दर का नंबर एक सौ तीन ,
एक सिपाही जाकर बोला चल बजा बीन ......
दूजे बन्दर का नंबर सात सौ दस ,
एक सिपाही बोला ये रोज चलाएगा बस ......
तीजे बन्दर का नम्बर एक हजार ,
सिपाही बोला ये सब्जी लेने जायेगा रोज बजार ......
चौथे बन्दर का नंबर आठ हजार ,
एक सिपाही से बोला आओ बैठें यार ......
बन्दर बोला तू चोर मैं सिपाही ,
अदालत में देदो मेरी गवाही ......
हम सब हैं जंगल के भाई ,
तुमने हमको क्यों पकड़ा भाई ......
तब तक एक दरोगा आया ,
उसने चारो को अपने पास बुलाया ......
उसने पूछा कौन है चोर कौन है सिपाही ,
चारो बन्दर बोले हम है जंगल के राही ......
दरोगा बोला तुम हो सब साहूकार ,
जाओ हमने तुमको छोड़ा , हो जाओ फरार ......
दरोगा ने सिपाही से कहकर चोर को बुलवाया ,
उसे देख वह आश्चर्य में पाया......
क्योंकि वह चोर था दरोगा का पापा ,
दरोगा ने उसे देख अपने गले लगाया ......
गाडी मे बैठाकर उसको घर पहुंचाया,
पुलिस न हुई किसी की भाई ......
क्योंकि बाप को अपने जेल पहुँचाई ,
चार थे चोर चार थे बन्दर ......

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता - बाघ बचाओ

बाघ बचाओ
वन्य जीवों का पता लगाओ ,
सब मिलकर राष्ट्रीय "पशु " बाघ बचाओ
जंगलो को कटने से बचायें ,
जंगल जा -जाकर बाघों का पता लगायें
अब पूरे भारत में चौदह सौ ग्यारह बाघ बचे हैं ,
उनमें से आधे तो अभी बच्चे हैं
उन्हें बचाने के खातिर जंगल काटें ,
जगह -जगह पेड़ लगाने के लिए लोगों को बाटें
राष्ट्रीय पशु "बाघ" हम सब को बचना है ,
जंगलों को हरा-भरा और बनाना है

लेखक :आशीष सिंह
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 2 मार्च 2010

कविता -रात को मुझको सपना आया

रात को मुझको सपना आया

हमने है एक कविता बनाया ,
जिसका तुका ना मिला पाया
चटनी के बिन समोसा खाया ,
सब्जी के बिन रोटी खाया
रोड पर जाकर गाड़ी चलाया ,
आसमान में जहाज उड़ाया
कच्चे - कच्चे ईंटों को बनाया ,
भट्ठों में घोंड़ो को चलाया
रात को अच्छा खाना खाया ,
बेड पर जाकर मैं फिर सोया
आखें खोला तो अपने को बिस्तर पर पाया,
पता चला कि मुझको रात को सपना आया

लेखक : आदित्य पाण्डेय, कक्षा : , अपना घर