शुक्रवार, 26 मार्च 2010

कविता कबूतर ताल किनारे

कबूतर ताल किनारे
एक कबूतर ताल किनारे,
रहता था चीटे के संग......
एक बार शिकारी आया ताल किनारे,
कबूतर था शिकारी के ताक में....
शिकारी ने अपना जाल बिछाया,
उसके आँगन में.....
चीटी ने पहले बताया था,
की तुम्हारे आंगन में.....
शिकारी ने जाल लगाया हैं,
जिससे कबूतर न आया अपने आँगन में.......
अपना घर बनाया दूसरे पेड की डाल में.....
लेखक ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

लिखते रहो. थोड़ा तुक मिला कर लिखने की कोशिश करो..शब्द तो खूब सारे जानते ही हो..शाबास..फिर आयेंगे पढ़ने..शुभकामनाएँ.