" गाँव की कुछ यादे "
सुबह की वह रोशनी।
मेरे घर के दरवाजे पर आती थी।
रोशनी आकर मुझे कुछ कहती थी।
साथ में मखमली सी हवा ,
मेरे मन को मोह लेती थी।
परित खेत सुनहरे चमकीली
लगती थी।
जब सूरज की रोशनी उस पर पड़ती थी।
टैक्टर का चलना और गाय का चिल्लाना ,
भेद - बकरियों का चरना।
जैसे एक साथ रहना ,
यह सब गाँव को दरसाती थी।
कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 11th
अपना घर।