मंगलवार, 18 मार्च 2025

कविता : " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "

 " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "  
 तेरी मैं तलाश में 
मन - मन भटकता हूँ ,
हुआ नहीं कभी भेट ये मंजिल से  ,
एक बैठा जा किस वन - बाग में ,
दिखता नहीं तू कैसा है रे ,
धुँधला - धुँधला क्यों राह में ?

उम्मीदे झलख रही है ,
मन यूँ ही निराश है ,
चार कदम चले बिना है।  
चरण छितराए विराम करुँ, 
पड़ा हु आधी राह में। 
पूछ रहा हूँ तुझसे ये मंजिल ,
गुमसुम , क्यों है ये राह में ? 

माँ - बहन के हाथों खाए ,
हो रहे हैं लम्बे वक्त। 
ठेंस - ठेंस है यहाँ पे इतना ,
की भर आए मेरे आँख ये मंजिल। 
इस जख्म को करे कौन मरहम - पट्टी ,
मैं अकेला ही इस एकांत में। 
कहाँ मिलेगी सतरंग ये मंजिल ,
गरीबी  क्यों है ये राह में। 
कवि : पिंटू कुमार ,कक्षा : 10th,
अपना घर।  

कविता : " रंगो का ये होली "

 " रंगो का ये होली "
होली आया होली आया। 
साथ में बहुत सारे रंग लाया। 
खुशियां ही खुशियां चारो ओर लहराया।  
होली आया होली आया। 
साथ में मिठे - मिठे गुजिया लाया। 
रंगो का नाम ही होली है। 
बोलिए बुरा न मानो होली है। 
कवि : अप्तर हुसैन , कक्षा : 8th,
अपना घर। 

कविता : " होली "

 " होली "  
होली है ये होली है , 
खुशियों की ये होली है।
साल में एक बार आता होली ,
सब का मन बहलाता होली। 
 लोग यही तो चाहते हर साल ,
हम सब मिलकर मनाए होली। 
होली में खाए गुजिया ,
गुजिया खाकर मौज उड़ाए। 
होली है ये होली है। 
कवि : अजय कुमार , कक्षा :6th,
अपना घर। 

सोमवार, 17 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

" होली आई " 
होली रंगो का त्यौहार हैं। 
होली में रंगो का बौछार है। 
तरह - तरह की मिठाइयाँ ,
और नमकीन का स्वाद है।
होली रंगो का त्यौहार है। 
एक - दूसरे को रंग लगाकर प्यार जताए। 
घर - घर जाकर खुशियाँ बाँट आए। 
तरह - तरह के रंगो का सिंगार है। 
बच्चे और बूढ़े रंग लगाने को त्यार हैं। 
होली का यह त्यौहार है। 
कवि : निरंजन कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 
  

कविता : " ज्यादा नाज़ मत करना "

 " ज्यादा नाज़ मत करना "
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफ़लताओं पर। 
वक्त सबकुछ बदल देता है इस जहाँ में। 
इस जहाँ में लोग आते है जिंदगी में हररोज ,
फिजूल वक्त जया मत करना मुस्कुराने में। 
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कभी - कभी नीचे ही उदा  ले जाती सपनो को ,
 सबकुछ बदलकर साहिल पर छोड़ जाती हैं। 
ऊंची सफलताओं में ,
बढ़ती असफलताओ से निराश मत होना जिंदगी में। 
वक्त सबकुछ बदल देता हैं इस जहाँ में। 
विशवास करना अपनी उचाइयो मे ,
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कवि : निरु कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : "बचपन "

  " बचपन "
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
सुबह उठना और स्कूल आना जाना था। 
उस बचपन में डाट मार तो हम ने भी खाए हैं। 
पर रोकर भी बत्तीसी दिखाना ,
बस एक बहाना था। 
पढ़ाई चाहकर भी न करना , 
पर दोस्तो के साथ समय उड़ाना था। 
खेलने के लिए  सबसे पहले आगे पहुच जाना ,
और उसी में पूरा समय बिताना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
दोस्तों के साथ लड़ना और 
दुसरो को लड़ना था। 
कभी - कभी तो मार हम भी खा जाते ,
पर बाद में उसको भी चिढ़ाना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था।  
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

रविवार, 16 मार्च 2025

कविता : " हौसला रखो "

 " हौसला रखो "
 हालातो से तंग आकर ,
उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया। 
जूनून थे शरीर के अंग - अंग में  ,
पर उसको  जगाने के लिए मुँह मोड़ लिया 
हौसले बढ़ जाएगी ,
चीज तो नहीं मिलेगी ,
पर उम्मीद रखो ,
चड़ना होगा तो चाँद पर भी चढ़ जाएगे। 
उम्मीद के नीचे भी बूस्टर लगाने की चाह हैं। 
आगे क्या होगा इसका न कोई परवाह हैं। 
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

सोमवार, 10 मार्च 2025

कविता: " महा मुकाबला "

  " महा मुकाबला " 
होगा आज दो टीमों में छोड़ ,
जीत - हार के बाद होगी तोड़ - फोड़। 
भारत - नेवजीलैंड एक साथ आएगे ,
स्टेडियम में दिखेंगे दोनों टीमों के फैंस ,
भरता से रोहित , विराट व ,
हार्दिक खेलेंगे धुआँ धड़ पारी। 
वरुण , अक्षर वह जादू पड़ेगे नेवजीलैंडपर। 
सभी की निगाहे तिकी रहेंगे ,
टीम इंडिया को जीतनी पड़ेगी ,
 बाद आतिसबाजी दिखेगी। 
सारे खिलाड़ियों को ऑल द बेस्ट। 
जीत कर दिखा दे वो भी है बेस्ट। 
कविः निरंजन कुमार , कक्षा : 8th,
अपना घर।  

शनिवार, 8 मार्च 2025

कविता: " होली "

 " होली " 
होली आई - होली आई ,
रंग बिरंगी होली आई। 
होली में हम सभी एक- दूसरे को ,
रंग लगाते हैं। 
धूम - धाम से होली को मनाते है। 
सबके यहाँ पकवान बनते है , 
खा - पी के मस्त रहते है। 
होली आई - होली आई ,
रंग बिरंगी होली आई। 
कविः विष्णु कुमार , कक्षा: 5th 
अपना घर 

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

कविता: " तुम्हारे बारे में "

 " तुम्हारे बारे में " 
तुम्हे समझ नही आएगा 
इस कविता का सारांस ,
इसमें  ज्ञान की ही बाते है ,
जो सिर्फ हमको पता है। 
तुम्हे क्या पता ,तुम तो हसकर  
 निकल जाओगे। 
पर तुम्हे समझ नहीं आएगा। 
इसमें मैंने तुम्हारे बारे में ,
भी बताया है। 
जो सिर्फ आच्छी और , 
बुरी चीजों दे भरा है। 
पर तुम्हे नजर नहीं आएगा ,
तुम्हे समझ नहीं आएगा। 
 क्या कहा था तुमने ?
सिर्फ तुम्हे ही लिखना पता हैं। 
मैंने इसमें पूरा संसार रचा हैं। 
जो सिर्फ हमको पता हैं ,
 तुम्हे समझ नही आएगा।
कविः सुल्तान कुमार कक्षा: 10th 
अपना घर  

गुरुवार, 6 मार्च 2025

कविता :"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "

"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "

            मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक
          आंधी वेग गति से आएगा | 
          या आएगा तो धीमे धीमे 
          कैसे भेष सजा कर आएगा | 
         वर्षा काल की फुहिया भी 
        सूखा घड़ा भर पायेगा या न | 
        शाम ढला तो फिर से वापस 
    सवेरा लौटेगा या अंधार होता ही जाएगा | 
       कैसा सफर इस नाव पे होगा ?
     चलता हूँ अब सवार होने को | 
                                                     मै - एक राह दो - मेरे मंजिल भी एक   |                                                                                                                                                                 कवि :पिन्टू कुमार                                                                                                                कक्षा : 10 th