रविवार, 9 जून 2024

कविता :"घर की छुट्टिया "

"घर की छुट्टिया " 
जा रहा हूँ मैं घर इस बार 
और सब कहते है 
वहां पर मजे करोगे 
पर घर जाकर पता चलता है 
कि किया होगा वहां पर हाल 
ऊपर से ये तेजी गर्मी 
कर देगा लोगों को परेशान 
ये पांच दिन की छुट्टिया 
जा रहा हूँ घर इस बार 
सारी चीजें हमें पता है 
कि किया होगा वहां पर हल 
इस गर्मी को झेलना 
मुश्किल हो जाएगा 
हो जाएगा बुरा हाल 
घर पे जो मेहनत करते है 
वो मेहनत नहीं है आसान 
कर -करके हो जाते परेशान 
फिर भी काम छोड़ते नहीं 
क्योकि हम लोगों का यही है काम 
इस पांच दिन कि छुट्टिया में 
जा रहा हूँ घर इस बार 
परिवार को हाथ बटाऊगा 
ताकि थोड़ा मिले आराम 
क्योकि हमेशा मेहनत करते रहते है 
मौका ही नहीं मिलता है करने का आराम 
इस पांच दिन की छुट्टिया में 
जा रहा हूँ घर इस बार 
कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :दस 
अपना घर 















   

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