गुरुवार, 13 जून 2024

कविता: " घर की राह है थोड़ा "

"घर की राह है थोड़ा "
 घर की राह है थोड़ा  
गर्मी है मुँह मोड़ा | 
पाँच  दिन की बात है 
और घर जाने  की बात है | 
जाने को बेतहाशा हो रहा हूँ 
धीरे धीरे तैयारी भी कर रहा हूँ | 
घर की राह है थोड़ा 
गर्मी है मुँह मोड़ा | 
अकेले काटना  होगा ये 
पॉँच  दिन बिना किसी के बिन | 
पाँच  दिन की बात है 
घर जाने की इंतजार है | 


कवि : पंकज,कक्षा :9th   
 अपना घर 

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