" गर्मी का आतंक "
दम घुट रहा है ,
पसीना भी छूट रहा है,
उमस है चारो ओर ,
गर्मी से तप रहे है लोग ,
हवा का नमो निसान नहीं ,
पंखा का भी काम नहीं ,
सुख गए सब पेड़ - पौधे ,
अब पानी का नाम नहीं ,
हो गया तापमान 42 डिग्री,
घूमना भी हो गया नाकाम ,
तप रहे है सड़क और मकान।
इस गर्मी से हो रहा सब काम नाकाम ,
दम घुट रहा है ,
पसीना भी छूट रहा है।
कवि : सुलतान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर।