मंगलवार, 20 मई 2025

कविता : " गर्मी का आतंक "

" गर्मी का आतंक " 
 दम घुट रहा है ,
पसीना भी छूट रहा है,
उमस है चारो ओर ,
गर्मी से तप रहे है लोग ,
हवा का नमो निसान नहीं ,
पंखा का भी काम नहीं ,
सुख गए सब पेड़ - पौधे ,
अब पानी का नाम नहीं ,
हो गया  तापमान 42 डिग्री, 
घूमना भी हो गया नाकाम ,
तप रहे है सड़क और मकान। 
इस गर्मी से हो रहा सब काम नाकाम ,
दम घुट रहा है ,
पसीना भी छूट रहा है। 
कवि : सुलतान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर।  

सोमवार, 19 मई 2025

कविता : " परेशान परिंदा था "

" परेशान परिंदा था " 
 उल्झा - उल्झा, बुझा - बुझा सा था। 
खामोशियाँ साथ में भरा हुआ था। 
गुमसुम शांत बैठा था।  
देख जब तो पाया यह तो परेशान परिंदा  था। 
जूझ रहा अपनी कठिनायों भरी डगर से।  
लड़ रहा था अपने हार मानने वाले से , इरादों से। 
जीत रहा था अपनी परेशानियों से। 
टकरा रहा था तर्क भरे तीरो से। 
आखिर हिम्मत ने साथ दिया था। 
जब देख , तो पाया परेशान परिंदा था। 
कवि : साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 

रविवार, 18 मई 2025

कविता : " ऑपरेशन सिंदूर "

 " ऑपरेशन सिंदूर "  
बड़ी मेहनत से मिली पाक को आज़ादी ,
करना चाहते है खुद की ही बर्बादी। 
न सुनकर , न कुछ बोलकर ,
वो चाहते है अपनी बर्बादी बम फोड़कर। 
इंडिया ने किया है अपनी आर्मी को यैयार  ,
पाक है एक भारत का पड़ोसी देश 
बनकर बेकार है तैयार। 
भारत माता के सिर पर होगी सिंदूर ,
पाक के खिलाफ चलेगी अब ऑपरेशन सिंदूर। 
पाक मँगवा रहा है तरह - तरह के हथियार ,
लेकिन सब हो रहा है बेकार। 
पाक ये गलती कुछ ऐसे करेगी ,
खुद को ही बर्बाद करेगी।
ऑपरेशन सिंदूर हुआ है चालू ,
देखते है किस्मे है इतना दम है ,
जो बचा ले  इंडिया से बनकर दयालु। 
हुआ है ऑपरेशन सिंदूर चालू  ...... । 
हुआ है ऑपरेशन सिंदूर चालू। .........। 
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर 

सोमवार, 12 मई 2025

कविता : " माँ "

 " माँ " 
माँ तू कितनी प्यारी है ,
जहाँ भी हो तू बस हमारी है। 
सबसे लगती दुलारी तू ,
दुनिया भर में प्यारी तू। 
बच्चो का एक हो प्यारी तू , 
माँ में सबका प्यार छुपा है।  
सभी के ममताओँ के प्यार और दुलार ,
हर एक प्यारा बेटा करता मोठेर्स डे का  इंतजार। 
सबसे प्यारी सबसे दुलारी ,
मिलाने आती हाली - हाली।
जब कोई पकवान बनता खाने को देती भर थाली। 
सभी माँ को मेरे तरफ से मोठेर्स डे की हार्दिक सुभकामनाए ।। 
कवि : अजय कुमार, कक्षा : 6th,
अपना घर। 

शनिवार, 10 मई 2025

कविता : " चोरी "


 " चोरी "
खतम करो चोरी - चमारी 
ऐसा क्यों करते हो जो लगता है महामारी।
कभी तो शर्म कर लिया करो,
चोरी कर के भी नकारते हो ,
हमें पता है मेहनत का फल मीठा नहीं होता ,
लेकिन दुसरो का तो लाज रखो।
बस खा लिया पेट भरकर ऊपर तक,
आवाज नहीं किया कही दूर - दूर तक।
बस सुलसा न हो जाए कही ,
इसलिए छिपा के रखे हो तुम सब ,
कभी मिल बाट कर खा लिया करो ,
चोरी कर लिया कोई बात नहीं ,
पर एक बार बता दिया करो ,
खत्म करो चोरी - चमारी। 
कवि : सुल्तान कुमार ; कक्षा : 11th 
अपना घर। 

बुधवार, 7 मई 2025

कविता :" अनजान हो रही गलियां "

" अनजान हो रही गलियां "
अब गुमसुम हो रही अनजान गलियां ,
अब पराए हो रहे अपने लोग। 
अब कठिनाई की मेधा चली आई मंडाते हुआ। 
अंधेरी रातो की चंदिनि भी छीन ली गए। 
अब बस  उम्मीद की दीपक जल रहा मुझमे।।
सोचकर भी नहीं मिल सकता वह पल , 
जो कभी सबसे कीमती हुआ करती थी। 
यह जमी भी मुझसे रूठ  चूकी है। 
यह मुस्कान भी मुझसे छीन चूकी है। 
यह लोग क्या समझते , सब वक्त इंतजार करते है।  
मुश्किल घड़ी में अपने भी पराए बन जाते है। 
वही सच्चा मित्र भी मुँह मोड़ लीता है। 
अब गुमसुम हो रही अनजान गलियां ,
अब पराए हो रहे अपने लोग। 
कवि : अमित कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर। 

कविता : " ये बचपन जवाब माँगता है "

 " ये बचपन जवाब माँगता है  " 
 ये गरीबी भी कितनी कड़क है। 
जो उम्र तक का लिहाज नहीं करती। 
उन बच्चो को जिनको स्कूल में होना चाहिए। 
भरी दोपहर कंश्टूशन में काम करते है। 
क्या सो गया है जहाँ सारा। 
या खो गया ज्ञान सारा। 
क्यों ये सवाल खटक जाता है। 
ये बचपन उनका जवाब मांगता है। 
हर किसी से पूछता है। 
क्या विद्यालय छुप गया है। 
या मिट्टी में मिलकर खो गया है। 
क्यों ये सवाल कटक जाता है। 
ये बचपन उनका जवाब माँगता है। 
क्या सारी किताबे जल गई है। 
या कही आसमान में खो गया है। 
डूब गई है सारी कलमे। 
या टूट गई है सारी दावाते  (स्याही )। 
क्या ये सवाल कटक जाता है। 
बचपन उनका जवाब माँगता है क्यो है। 
क्यों है ये गरीबी है। 
जो उम्र भर लिहाज नहीं रखते है। 
कवि : गोविंदा कुमार, कक्षा : 9th, 
अपना घर।  
 

सोमवार, 5 मई 2025

कविता : " चार दोस्त "

 " चार दोस्त " 
कदम से कदम जब मिलते थे हम ,
झुण्ड में जब चलते थे हम। 
सौख भरा था सभी के अंदर ,
जब  चार दोस्त मिलते थे। 
मुशीबत में काम आए  ,
ऐसा मनोकामना रखता है हम ,
दोस्त के बीच डर नहीं था किसी चीज का ,
इसलिए सर उठा के चलते थे ,
न डर था न किसी की कोई दुआए ,
मुसीबत में  देते थे हम एक दूसरे का साथ ,
किसी से न डर थी न किसी चीज की बात ,
अपना रास्ता खुद ही नापते थे हम ,
जब चार दोस्त मिलते थे। 
अपनी इज़्जत पुरे इलाको के रखते थे हम ,
कदम से कदम जब मिलते थे हम। 
झुण्ड में चलते थे हम ,
हिला के रखते थे हम दुनिया को ,
जब हमसे लोग प्यार जताते थे। 
जब  चार दोस्त एक साथ चलते थे , 
जब चार दोस्त चलते थे।

कवि : रमेश कुमार,   कक्षा 5th 
अपना घर 

शनिवार, 3 मई 2025

कविता : " सुहाना मौसम "

 " सुहाना मौसम "   
आज का मौसम कुछ खास है ,
 बारिश की बस तलाश है। 
                मौसम कुछ ऐसा ही है ,                
बारिश होने के लिए तैयार है। 
आज का मौसम  कुछ खास है है ,
सूरज धुंधला दिख रहा है। 
बादल सूरज आस - पास है ,
बारिश की बस तलाश है। 
आज  मौसम कुछ खास है। 
                                                                                                                            कवि : विष्णु कुमार, कक्षा : 6th,
अपना घर। 

शुक्रवार, 2 मई 2025

कविता : " नहीं यह तो फिर क्या है बनारस "

" नहीं यह तो फिर क्या है बनारस " 
खुद चलकर जहाँ उतरी गंगा ,
देवालय खड़े जहाँ बड़े - बड़े ,
फैलाई खुशियाँ दूर - दूर तक ,
ठहरा मनमोहक पावन सब ,
दिल और मेरी जान बनारस। 
आए बहरे खुशियाँ बाँटे , 
तट के संग उछले कूदे ,
रंग में अपने रंग लेती है ,
इतनी पावन यह धरती है.
 खुशहाली जहाँ कण  कण में  है ,
 नहीं यह तो फिर क्या है बनारस। 
कवि : साहिल कुमार, कक्षा : 9th 
अपना घर।