" परेशान परिंदा था "
उल्झा - उल्झा, बुझा - बुझा सा था।
खामोशियाँ साथ में भरा हुआ था।
गुमसुम शांत बैठा था।
देख जब तो पाया यह तो परेशान परिंदा था।
जूझ रहा अपनी कठिनायों भरी डगर से।
लड़ रहा था अपने हार मानने वाले से , इरादों से।
जीत रहा था अपनी परेशानियों से।
टकरा रहा था तर्क भरे तीरो से।
आखिर हिम्मत ने साथ दिया था।
जब देख , तो पाया परेशान परिंदा था।
कवि : साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर।
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