" चार दोस्त "
कदम से कदम जब मिलते थे हम ,
झुण्ड में जब चलते थे हम।
सौख भरा था सभी के अंदर ,
जब चार दोस्त मिलते थे।
मुशीबत में काम आए ,
ऐसा मनोकामना रखता है हम ,
दोस्त के बीच डर नहीं था किसी चीज का ,
इसलिए सर उठा के चलते थे ,
न डर था न किसी की कोई दुआए ,
मुसीबत में देते थे हम एक दूसरे का साथ ,
किसी से न डर थी न किसी चीज की बात ,
अपना रास्ता खुद ही नापते थे हम ,
जब चार दोस्त मिलते थे।
अपनी इज़्जत पुरे इलाको के रखते थे हम ,
कदम से कदम जब मिलते थे हम।
झुण्ड में चलते थे हम ,
हिला के रखते थे हम दुनिया को ,
जब हमसे लोग प्यार जताते थे।
जब चार दोस्त एक साथ चलते थे ,
जब चार दोस्त चलते थे।
कवि : रमेश कुमार, कक्षा 5th
अपना घर
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