शनिवार, 10 मई 2025

कविता : " चोरी "


 " चोरी "
खतम करो चोरी - चमारी 
ऐसा क्यों करते हो जो लगता है महामारी।
कभी तो शर्म कर लिया करो,
चोरी कर के भी नकारते हो ,
हमें पता है मेहनत का फल मीठा नहीं होता ,
लेकिन दुसरो का तो लाज रखो।
बस खा लिया पेट भरकर ऊपर तक,
आवाज नहीं किया कही दूर - दूर तक।
बस सुलसा न हो जाए कही ,
इसलिए छिपा के रखे हो तुम सब ,
कभी मिल बाट कर खा लिया करो ,
चोरी कर लिया कोई बात नहीं ,
पर एक बार बता दिया करो ,
खत्म करो चोरी - चमारी। 
कवि : सुल्तान कुमार ; कक्षा : 11th 
अपना घर। 

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