मंगलवार, 20 मई 2025

कविता : " गर्मी का आतंक "

" गर्मी का आतंक " 
 दम घुट रहा है ,
पसीना भी छूट रहा है,
उमस है चारो ओर ,
गर्मी से तप रहे है लोग ,
हवा का नमो निसान नहीं ,
पंखा का भी काम नहीं ,
सुख गए सब पेड़ - पौधे ,
अब पानी का नाम नहीं ,
हो गया  तापमान 42 डिग्री, 
घूमना भी हो गया नाकाम ,
तप रहे है सड़क और मकान। 
इस गर्मी से हो रहा सब काम नाकाम ,
दम घुट रहा है ,
पसीना भी छूट रहा है। 
कवि : सुलतान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर।  

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